Friday, April 15, 2011
चोर की दाढ़ी में तिनका
देश में ऐसे विद्वानों और बुद्धिजीवियों की भरमार है जो यह तय कर चुके हैं वे सही हैं और दूसरे गलत हैं। विरोध करना इनकी फितरत है। देश का कानून भी इनकी निगाह में सड़-गल चुका है। यह लोग इस इंतजार में हैं कि जैसा वे चाहते और सोचते हैं वैसा ही होने लगे। जिसको ये गाली दें उसकी कोई भूल से भी तारीफ न करे। जो लोग इन्हें पसंद नहीं वे कितना भी अच्छा काम कर लें पर इनकी धारणा टस से मस नहीं होने वाली। देश में 'हीरो' के रूप में उभरे अन्ना हजारे ने अपने अनशन के खत्म होते ही गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की तारीफ कर दी। अन्ना का कहना था कि मोदी प्रदेश के विकास के लिए जी-जान से जुटे हैं। आज देश को ऐसे ही जुझारु नेताओं की जरूरत है। इस बात को देश के साथ-साथ पूरी दुनिया जानती-समझती है कि नरेंद्र मोदी का अतीत भले ही कैसा हो परगुजरात के मुख्यमंत्री बनने के बाद उन्होंने प्रदेश की जनता के साथ कभी कोई भेदभाव नहीं किया। वे देश के प्रदेश गुजरात के ऐसे मुख्यमंत्री हैं जिनपर कभी भी भ्रष्टाचार के आरोप नहीं लगे। अपने कर्तव्य को निभाने में मोदी ने कहीं कोई कसर बाकी नहीं रखी। मोदी के द्वारा किये गये और किये जा रहे जनहित कार्यों की तारीफ तो कई विरोधी नेता भी करते हैं। ऐसे में अन्ना हजारे ने अगर मोदी की तारीफ कर दी तो कौन-सा आसमान टूट पडा? अन्ना के द्वारा मोदी की तारीफ करने के बाद उनके कुछ साथी भी अपनी नाराजगी पर लगाम नहीं लगा पाये। कांग्रेस के एक दिग्गज नेता ने तो जंतर-मंतर पर हुए उनके आमरण अनशन और तमाम प्रदर्शन पर हुए खर्च का हिसाब मांग डाला। ऐसा पहली बार हुआ है जब किसी के भूख हडताल करने पर उससे हिसाब-किताब मांगा गया हो। अन्ना ने जिस तरह से राजनेताओं को मात दी है उससे उनका बौखलाना जायज है। भाजपा के सुप्रीमों लालकृष्ण आडवानी एवं कुछ और नेताओं का बयान आया कि अन्ना का देश के नेताओं को भ्रष्टाचारी कहना उचित नहीं है। यह सोच आगे चलकर देश को बहुत बडा नुकसान पहुंचा सकती है। यह कौन नहीं जानता कि अन्ना शुरू से ही चिल्लाते चले आ रहे हैं कि हिंदुस्तान की बर्बादी की असली वजह हैं भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचारी। तमाम भ्रष्टाचारियों को जेल में ठूंस दिया जाना चाहिए। इस तरह की मांग तो हर देशप्रेमी करता चला आ रहा है। इसमें गलत क्या है? जब भ्रष्टाचारी नेता पर उंगली उठती है तोउसका यह तो मतलब होता नहीं कि उंगली ईमानदारों पर भी उठ रही है। यह तो चोर की दाढी में तिनके वाली बात हो गयी। इस देश में हजारों नेता हैं। पांच-सात चेहरों को ही मिर्ची क्यों लगी? ऐसे में एक सवाल यह भी कि अपने आपको पूरी तरह से ईमानदार कहने वाले नेता क्या भ्रष्टाचार को बढावा देने के दोषी नहीं हैं? यह भ्रष्टाचार इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, मोरारजी देसाई, अटल बिहारी वाजपेयी और वर्तमान प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के जमाने तक आते-आते आसमान को भी चीर गया है। कोई भी राजनेता यह नहीं कह सकता कि हम भ्रष्टाचारियों को नहीं जानते। हकीकत तो यह है कि अधिकांश नेताओं की शह पर ही तरह-तरह के माफिया पनपते हैं। इन माफियाओं में देश की खनिज सम्पदा के लुटेरे, जमीन चोर, बिल्डर, स्मगलर और नौकरशाह तक शामिल हैं। यह लोग अगर चंदा न दें तो देश के आधे से ज्यादा नेताओं का संसद और विधान सभा में पहुंचना ही मुश्किल हो जाए। चुनाव जीतने और मंत्री बनने के बाद यही नेता आम जनता के हित की लडाई न लडते हुए अपने दाताओं की पैरवी करते नजर आते हैं। दाता देते ही इसलिए हैं कि देश को लूट सकें। यह देश वर्षों से लुट रहा है और शासकों ने गजब की चुप्पी साध रखी है। खुद को ईमानदार कहने वालों के पास इस बात का भी जवाब नहीं है कि यह लोग टाटा, बिरला और अंबानियों के तलवे क्यों चाटते हैं। इन लुटेरों की कौम को बचाने के लिए तमाम कायदे और कानून को ताक पर क्यों रख देते हैं? सच तो यह है कि जनता ने जिसे भी सत्ता सौंपी वही तटस्थ बने रहा। जब खुद के स्वार्थों पर चोट पडती दिखी तो हल्ला मचाया कि सामने वाला भी चोर है...। तेरी भी चुप, मेरी भी चुप को राजनीति का मूलमंत्र बना चुके नेताओं की चालाकी के खेल को जनता पूरी तरह से समझ चुकी है इसलिए वह चिल्ला-चिल्ला कर कह रही है इस देश के नेता भ्रष्ट हैं...।
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