Thursday, June 2, 2011
कैसे थमेगा यह सिलसिला?
वर्षों के कठोर संघर्ष की बदौलत पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री बनने वाली ममता बनर्जी की सादगी और ईमानदारी उनके शत्रुओं का भी मन मोह लेती है। पैरों में तीस-चालीस रुपये की प्लास्टिक की चप्पल और बदन पर ढाई-तीन सौ रुपये की सूती साडी पहन कर जब वे सडक पर चलती हैं तो रास्ते भी खुद को गौरवान्वित महसूस करने लगते हैं। ममता जब से राजनीति में आयी हैं तभी से उनका ऐसा ही आम पहनावा रहा है। इसी पहनावे ने उन्हें आम आदमी का नेता बनाया और वो शौहरत दिलवायी जिसके लिए कई नेता जीवन भर तरसते रहे और अंतत: इस दुनिया से रुखसत हो गये। ममता पिछले कई वर्षों से राजनीति में सक्रिय हैं। लोकसभा सदस्य रहने के साथ-साथ रेल मंत्रालय भी संभाल चुकी हैं। यानी दूसरे नेताओं की तरह कमायी करने के उनके पास भी भरपूर मौके थे पर उन्होंने काजल की कोठरी में रहकर भी खुद को दागी होने से बचाये रखा। ममता की यही उपलब्धि उनकी बहुत बडी पूंजी है। देश के चंद ईमानदार नेताओं में उनका नाम शीर्ष पर है। दूसरी तरफ जयललिता हैं जिनका देश की राजनीति में रुतबा तो है मगर उसके पीछे के कारण कुछ और हैं। अन्ना द्रमुक पार्टी की सर्वेसर्वा जयललिता एम. करुणानिधि को परास्त कर तमिलनाडु की सत्ता पर काबिज तो हो गयी हैं पर उनकी चुनावी जीत को बिल्ली के भाग्य से छींका टूटने की कहावत से जोड कर देखा जा सकता है। करुणानिधि का भ्रष्टाचार उन्हें ले डूबा और जयललिता की निकल पडी। जयललिता भ्रष्टाचार और भाई-भतीजावाद में यकीन रखने वाली नेता हैं। अपने चंद वर्षों के राजनीतिक जीवन में सैकडों भ्रष्टाचार के आरोपों में लिपटी इस महिला के पास अरबों रुपये की संपत्ति है। महंगी से महंगी साडियां, आधुनिकतम चप्पलें और आभूषण पहनने की शौकीन जयललिता को राजनीति में स्थापित होने के लिए ममता जैसा संघर्ष नहीं करना पडा। दलितों की तथाकथित मसीहा मायावती और जयललिता एक ही सिक्के दो पहलू जैसी हैं। राजनीति के रण में येन-केन-प्रकारेण बाजी मार ले जाने वाली इन दो बहनों को तो इतिहास में वो जगह कतई नहीं मिल पायेगी जो ममता के हिस्से में आयेगी। लगता है तरह-तरह के पात्रों को झेलना इस देश के लोकतंत्र की मजबूरी है और जो काम मजबूरी से किया जाता है उसका हश्र अच्छा तो हो ही नहीं सकता।भारत में लगभग सभी राजनीतिक पार्टियां और नेता धन के मोह से ग्रस्त हैं। सवा सौ करोड की आबादी वाले देश में अस्सी प्रतिशत लोग गरीब हैं तो दूसरी तरफ गरीबों की आवाज बुलंद करने की राजनीति करने वाले नेता बेहिसाब दौलत के मालिक हैं। महात्मा गांधी के नाम पर राजनीति करने वाला हर कांग्रेसी ठाठ-बाट के साथ जीता है। भगवान राम के नाम की बदौलत सत्ता का स्वाद चखने वाली भारतीय जनता पार्टी के कई नेताओं का धनमोह और राजसीलीला तो देखते ही बनती है। चाल, चरित्र और व्यवहार में खुद को दूसरी राजनीतिक पार्टियों से अलग बताने वाली भारतीय जनता पार्टी एक तरफ भ्रष्टाचार से लडती दिखायी देती है तो दूसरी तरफ उसी के विधायक पंजाब में रिश्वत लेने के आरोप में धर लिये जाते हैं। यही दोहरा चरित्र इस पार्टी की असली पहचान है। कर्नाटक के पर्यटन और इन्फ्रास्ट्रक्चर मंत्री जनार्दन रेड्डी के बारे में खुलासा हुआ है कि यह महाशय दो करोड की कुर्सी पर विराजते हैं और ढाई करोड के सोने से बने भगवान की आराधना करते हैं। कर्नाटक में रेड्डी बंधुओं की तूती बोलती है। मुख्यमंत्री बीएस येद्दियुरप्पा की नींद उडाये रखने वाले रेड्डी बंधुओं ने खनिज संपदाओं का दोहन कर इतना माल जुटा लिया है कि कुछ भी खरीदने की ताकत रखते हैं। सत्ता और सत्ताधीश उनके समक्ष बौने हो जाते हैं। बेचारे मुख्यमंत्री हमेशा डरे-डरे रहते हैं। रेड्डी बंधु कहीं उनके विधायकों को खरीद कर उनकी सरकार ही न गिरा दें। उनका ज्यादातर समय तो 'बंधुओं' को मनाने-समझाने और संतुष्ट रखने में ही बीत जाता है। रेड्डी बंधुओं को यह कतई बर्दाश्त नहीं होता कि कोई उनके लूटमार के धंधे में खलन डाले। सुषमा स्वराज उनकी बहन हैं। वे पार्टी को मुंहमांगा चंदा देते हैं। इसलिए पार्टी की कोई भी सीख और नसीहत उन्हें नहीं सुहाती। यह बात अकेले भाजपा की नहीं है। देश की जितनी भी राजनीतिक पार्टियां हैं उनके अधिकांश नेताओं की भू-माफियाओं, खनिज माफियाओं और किस्म-किस्म के लुटेरों से गजब की नजदीकियां देखी जा सकती हैं। यह लोग चुनाव में थैलियां देते हैं, गुंडे उपलब्ध कराते हैं और हर वो काम करते हैं जिन्हें सीधा-सादा आम आदमी नहीं कर सकता। चुनाव जीतने के बाद नेता लोग अपने उपकारियों का पूरा ख्याल रखते हैं। कहने को तो उन्हें जनता चुनती है पर वे इस सच्चाई को किनारे रख अपने 'बंधुओं' को मालामाल करने में लग जाते हैं। यह सिलसिला कभी थमता नहीं है। पब्लिक और मीडिया कभी-कभार शोर मचाता है पर कोई बात नहीं बनती। इसी का नाम लोकतंत्र है जहां एक तरफ ममता बनर्जी हैं तो दूसरी तरफ जयललिता, मायावती और रेड्डी बंधु जैसे लोग हैं। ममता जब चुनाव लडती हैं तो अपनी पेंटिंग बेचकर इकट्टे हुए धन से काम चलाती हैं और दूसरे नेता माफियाओं की शरण में चलें जाते हैं। पता नहीं ऐसा कब तक चलता रहेगा?
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