Friday, June 10, 2011

डराना, चमकाना और धमकाना बंद करो...

''भ्रष्टाचार और काले धन के खिलाफ आंदोलन करने वाले योग गुरु बाबा रामदेव खुद नंबर एक के ठग हैं। उन्होंने न जाने कितनों को टोपी पहनायी है और अपना उल्लू सीधा किया है। यह आदमी हद दर्जे का ढोंगी है। ना तो यह किसी सम्मान के लायक है और ना ही इस पर भरोसा किया जा सकता है। बाबा की १९९४ से लेकर अब तक की गतिविधियों की बारीकी से जांच होनी चाहिए।'' यह बोलवचन हैं कांग्रेस के ही एक दिग्गज नेता के...। जी हां अगर कांग्रेस के महासचिव दिग्विजय सिं‍ह का बस चले तो वे बाबा रामदेव को ऐसा सबक सिखाएं कि उनकी आने वाली सात पुश्तें भ्रष्टाचार और काले धन के खिलाफ मुंह न ही खोल पाएं।बाबा रामदेव के अनशन का जिस तरह से सरकार ने तमाशा बनाया और पुलिसिया डंडे चलवाये उसका अनुमान बाबा को निश्चय ही नही था। बाबा तो यही मानकर चल रहे थे कि जिस तरह से चार-चार मंत्री हवाई अड्डे पर उनके स्वागतार्थ पहुंचे थे वैसे ही अनशन के खत्म होने तक उनकी आवभगत का सिलसिला चलता रहेगा। सरकार ने अन्ना हजारे को भले ही घास न डाली हो पर उनकी हर बात मान ली जायेगी। लगता है बाबा की हवा में उडने की रफ्तार कुछ ज्यादा ही तेज थी। संन्यासी को सत्ता की चाल-चालाकी और ताकत का अनुमान ही नहीं था। अगर होता तो हर कदम फूंक-फूंक कर रखते। जब वे दिल्ली से खदेड दिये गये तो उनके होश ठिकाने आये। पर तब तक चिडि‍या खेत चुग चुकी थी। पर भगवाधारी इस हकीकत को मानने और समझने को तैयार ही नहीं। उन्हें तो अभी भी सब कुछ हरा-हरा नजर आ रहा है। वे इस सच से भी अनजान नही हैं कि उन्होंने जो फसल बोयी है उसे वे काट पायें या ना काट पायें पर राजनीति के खिलाडी जरूर काट लेंगे। देश की राजधानी दिल्ली के रामलीला मैदान में अपने समर्थकों के खिलाफ सरकार के इशारे पर हुई बर्बर कार्रवाई को बाबा के लिए इस जन्म में तो भूल पाना आसान नहीं होगा। उनके अनशन के तौर-तरीकों का विरोध करने वाले दिग्गी राजा जैसे नेताओं के तीखे आरोपों के तीरों के वार भी उन्हें भूलाये नहीं भूलेंगे। बाबा को सरकार, भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचारियों पर वार करना बडा आसान काम लग रहा था। पर उन्हें इस तथ्य से रूबरू होने में देरी नहीं लगी कि जिनके खुद के घर कांच के होते हैं उन्हें दूसरों के घरों में पत्थर नहीं फेंकने चाहिएं। अधिकांश चतुर राजनेता इस उसूल को ताउम्र निभाते हैं। जो नहीं निभाते वे कांच की तरह बिखेर दिये जाते हैं। बाबा नेता नहीं हैं पर नेताओं की भाषा बोलने में उनका कोई सानी नहीं है। योग गुरु होने के साथ-साथ वे जुगाडू किस्म के व्यापारी भी हैं। अपने आश्रमों और दवा की फैक्ट्रियों के लिए सरकारी जमीनों पर उनकी नजर लगी रहती है। राजनेताओं की मेहरबानी से करोडों की जमीने पानी के मोल हथिया भी चुके हैं। उत्तराखंड की सरकार उन पर हमेशा मेहरबान रही है। उद्योग-धंधों का जाल फैलाकर अरबों-खरबों का साम्राज्य खडा करने वाले बाबा पहले और इकलौते संन्यासी नहीं हैं। बाबा की अभूतपूर्व तरक्की यकीनन हैरान करने वाली है। उनके मात्र दो ट्रस्ट का ही सालाना कारोबार ११०० करोड से ऊपर है। बाबा जब तक शांति से योग प्रचार में लगे थे तब तक वे आरोपों से अछूते थे। पर जैसे ही उन्होंने क्रांतिकारियों वाली भाषा बोलनी शुरू की और बयानबाजियों के चक्कर में पडते चले गये तो विरोधियों की संख्या बढती चली गयी। अगर वे शुद्ध रूप से योग धर्म निभाते रहते तो उन पर उंगलियां उठाना कतई आसान न होता। उन्होंने कुटिया और झोपडी की बजाय कांच के घर बनाने शुरू कर दिये और उनमें रहने के साथ-साथ आंखें भी दिखाने लगे! यही उनकी सबसे बडी भूल थी। राजनेता कभी भी आक्रमण बर्दाश्त नहीं कर सकते। वे जीवन भर तेरी भी चुप और मेरी भी चुप के नियम-कायदे पर चलते हैं। जब कोई उनके कपडे उतारने की कोशिश करता है तो ये उसे नंगा करने के अभियान में लग जाते हैं। इसी पटका-पटकी की बदौलत नेताओं की भ्रष्टाचारी बिरादरी जिं‍दा हैं। क्या यह कम गौर करने वाली बात है कि रामदेव बाबा का काले धन के खिलाफ लडाई का बिगुल बजने के बाद कुछ नेताओं ने ढोल पीटना शुरू कर दिया है कि हमारे देश में धर्मगुरूओं के पास जो अथाह काला धन जमा है, पहले उसे बाहर लाया जाना चाहिए। इस देश में कई ऐसे संत हैं जो काले धन को सफेद करने के काम में लगे हैं। बाबा रामदेव के द्वारा धनपतियों, भू-माफियाओं, बिल्डरों और संदिग्ध किस्म के लोगों से करोडों रुपये चंदे और दान के रूप में लिये जाने की खबरें मीडिया में अक्सर आती रहती हैं। उनके पास जो लोग योग सीखने आते हैं उनसे भी उनकी जेब के हिसाब से वसूली कर ली जाती है। गरीबों को पीछे और अमीरों को आगे बिठाकर योग सिखाने वाले बाबा के होश ठिकाने लगाने के लिए सरकार अब पूरी तरह से पिल चुकी है। आयकर विभाग को काम पर लगा दिया गया है और दूसरी एजेंसियों को भी बाबा की छानबीन के आदेश दे दिये गये हैं। अब देखना यह है कि बाबा कब तक टिके रहते हैं। असली सच यह भी है कि देश की जनता इस झमेले में उलझने को तैयार नहीं है कि बाबा ने कैसे दौलत कमायी और क्या-क्या किया। वह असली मुद्दे से भटकने को कतई तैयार नहीं है। देश डराने, चमकाने और धमकाने के दुष्चक्र से मुक्त होना चाहता है। चोर की दाढी में तिनका और चोर मचाये शोर जैसे हालातों की भाषा हर किसी को समझ में आने लगी है। इसलिए असली मुद्दों से भटकाने के कुचक्र अब और नहीं चल पायेंगे। सत्ताधीशों को होश में आना ही होगा...।

No comments:

Post a Comment