Thursday, June 23, 2011

चुप्पी कब टूटेगी?

स्याह रात नहीं लेती
नाम खत्म होने का
यही तो वक्त है
सूरज तेरे निकलने का
नागपुर के आठ युवकों ने देश की राष्ट्रपति से इच्छा मृत्यु की मांग की है। हिं‍दुस्तान के चप्पे-चप्पे में अपनी जडें जमा चुके भ्रष्टाचार और भ्रष्ट व्यवस्था से नाराज इन युवकों का कहना है कि वे ऐसे हालातों में जीना नहीं चाहते। १८ से ३० वर्ष तक की आयु के इन युवाओं ने राष्ट्रपति को भेजे अपने पत्र में कई सुलगते सवाल उठाये हैं। इस दमघोटू व्यवस्था से मुक्ति पाने को आतुर युवक जानना चाहते हैं कि इस देश में भ्रष्टचार के खिलाफ आवाज बुलंद करने वालों पर कहर क्यों ढाया जाता है? देश को लूटने वालों के खिलाफ आवाज बुलंद करने वालों पर लाठियां भांजना कहां की मर्दानगी है? इन युवकों का यह भी मानना है कि भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचारियों को सरकार का संरक्षण मिला हुआ है। जिनके हाथ में सत्ता है वही लोग अपनी मनमानी कर रहे हैं। खुद तो देश को लूट ही रहे हैं साथ ही अपने सगे संबंधियों और यार दोस्तों को लूटमार करने के भरपूर अवसर मुहैया करवा रहे हैं। नक्सलवाद तथा आतंकवाद से लडने और देश की सुरक्षा के लिए जान कुर्बान करने को तत्पर युवकों को यह भी लगता है कि भ्रष्टाचार से लड पाना उनके बस की बात नहीं है। यानी भ्रष्टाचारी आज इतने ताकतवर हो चुके हैं कि उनका कोई बाल भी बांका नहीं कर सकता। जो भी इनके खिलाफ आवाज उठाता है उसे ठिकाने लगा दिया जाता है। ईमानदारी की इस देश में कोई कीमत नहीं है। यही पीडा उन्हें बेहाल किये हुए है। बडी तेजी से महानगर की शक्ल अख्तियार करता नागपुर देश का हृदय स्थल है। नागपुर के युवकों की इच्छा और पीडा को सिर्फ एक शहर तक सीमित नहीं किया जा सकता। देश के करोडों युवक कुछ ऐसी ही सोच के साथ सरकार के जागने और व्यवस्था के दुरुस्त होने के इंतजार में हैं। वैसे इंतजार और सब्र की भी सीमा होती है।अन्ना हजारे और बाबा रामदेव ने भ्रष्टाचार के खिलाफ जो अलख जलायी उसका उजाला लगभग पूरे देश में फैल चुका है। कल तो जो सोये थे वे भी जाग गये हैं। लोगों का गुस्सा संभाले नहीं संभल पा रहा है। फिर भी सत्ता का सुख भोग रहे राजनेताओं की आंखें अभी भी खुलने का नाम नहीं ले रही हैं। उन्हें तो यही लग रहा है कि कुछ दिनों बाद लोग सब कुछ भूल जायेंगे। इस देश की अधिकांश जनता वैसे भी रोजी-रोटी की समस्या में उलझी रहती है। भूख हडतालों और आंदोलनों से उसका कोई वास्ता नहीं होता। ये तो कुछ सिरफिरे हैं जो भ्रष्टाचार और काले धन के खिलाफ शोर मचाये हुए हैं। इन पर भी जब सरकार का डंडा चलेगा तो यह अपने आप ठंडे हो जायेंगे। सच कहूं... सरकार इस बार इस भूल से मुक्ति पा ले तो बेहतर होगा। देशवासियों की सहनशीलता अब खत्म हो चुकी है। जब युवक इच्छा मृत्यु की मांग कर रहे हों तो सरकार को समझ लेना चाहिए कि पानी सिर से ऊपर जा चुका है। अब खास ही नहीं आम लोग भी यह मानने लगे हैं कि शासकों में ही ऐसे कई चेहरे शामिल हैं जो देश के साथ गद्दारी करते चले आ रहे हैं। सरकार अच्छी तरह से वाकिफ है कि वे कौन लोग हैं। फिर भी वह नही चाहती कि उनके इर्द-गिर्द के भ्रष्टाचारी बेनकाब हों। मेरे सामने कुछ अखबार पडे हैं जिनमें यह खबर छपी है कि उत्तरप्रदेश की आंवला लोकसभा सीट से भारतीय जनता पार्टी की सांसद मेनका गांधी ने आरोप लगाया है कि स्विस बैंक में जमा आधे से ज्यादा धन कांग्रेस नेताओं का है। यही वजह है कि विदेशी बैंक खातों की जांच करने से कांग्रेस कतरा रही है। सच तो यह है कि काले धनपतियों और काले धन को बचाने के लिए कांग्रेस ने अपनी पूरी साख को दांव पर लगा दिया है। पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की बागी पुत्रवधु ने दावे के साथ यह भी कहा है कि बोफोर्स तोप घोटाले का धन भी विदेशों में जमा किया गया है। मेनका गांधी का शुमार गंभीर किस्म के नेताओं में किया जाता है। उनके मुंह से निरर्थक और फालतू शब्द कम ही फूटते देखे गये हैं। देश के मुखर नेता सुब्रमण्यम स्वामी भी अक्सर गांधी परिवार पर इस तरह के आरोप दागते देखे गये हैं परंतु उन्हें देश की जनता ने कभी उतनी गंभीरता से नहीं लिया। अब जब गांधी खानदान की एक जिम्मेदार सदस्या कांग्रेस और सोनिया गांधी पर आरोप लगा रही हैं तो उन्हें जवाब देने में देरी नहीं करनी चाहिए। आज भी देश की सत्तर प्रतिशत जनता मीडिया में आयी खबरों पर पूरा यकीन करती है। सोनिया गांधी और राहुल गांधी की चुप्पी देशवासियों को कहीं न कही सशंकित किए हुए है। सोनिया गांधी नहीं तो कम से कम राहुल गांधी को तो स्थिति स्पष्ट करनी ही चाहिए। अपनी चाची के आरोपों का जवाब न देकर कहीं न कहीं वे कांग्रेस पार्टी का भी नुकसान कर रहे हैं। वैसे तो राहुल गांधी हर मुद्दे पर जबान खोलते हैं पर भ्रष्टाचार और काले धन पर उन्हें कभी बोलते नहीं देखा गया। यह चुप्पी चौंकाती है और उन युवाओं को हतोत्साहित करती है जो कांग्रेस के इस युवराज को अपना आदर्श मानते हैं। राहुल गांधी को प्रधानमंत्री बनाने के लिए उछलकूद मचाने वाले दिग्विजय सिं‍ह जैसे नेता पता नहीं राहुल गांधी को इस गंभीर मुद्दे पर खुलकर बोलने की सलाह क्यों नहीं देते?

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