Thursday, June 16, 2011

देश को इन पर नाज़ है

उजाला हो न हो
यह और बात है
मेरी हर आवाज
अंधेरों के खिलाफ है...
महाराष्ट्र की राजधानी मुंबई में फिर एक पत्रकार की हत्या कर दी गयी। देश का महानगर मुंबई जिसे मायानगरी भी कहा जाता है कई-कई रंगों के साथ जीता है। किस्म-किस्म के अपराधी और माफिया यहां भरे पडे हैं। सफेदपोश अपराधियों की भी यहां भरमार है। दूसरे शहरों की तुलना में यहां अगर रंगीनियां ज्यादा हैं तो खतरे भी कम नहीं हैं। मुंबई की फितरत से वाकिफ हर सच्चा पत्रकार जानता है कि यहां पर कलम के दुश्मनों के कितने लंबे हाथ हैं। पर वो पत्रकार ही क्या जो दुश्मनों से डर जाए। अंडरवल्र्ड और मुखौटेबाज सफेदपोशों पर कलम चलाने वालों को कई खतरों से जूझना पडता है। जिसके खिलाफ लिखो वही जान का दुश्मन बन जाता है।पत्रकार ज्योतिर्मय डे भी एक ऐसे पत्रकार थे जो अपनी जान हथेली पर लेकर चला करते थे। मुंबई की सडकों पर बेखौफ अपनी मोटर सायकल पर दौडने वाले ज्योतिर्मय डे उर्फ जे.डे ने मुंबई की काली दुनिया का सच उजागर करने का अभियान चला रखा था। पिछली बीस वर्ष से वे बिना किसी से डरे विभिन्न गैंगस्टरों, तेल माफियाओं और खाकी वर्दी में लिपटे गद्दारों को बेनकाब करने में लगे थे। पिछले दिनों जब सरकार ने एकाएक पेट्रोल की कीमतें बढा कर देशवासियों को स्तब्ध कर दिया था तब जे.डे ने अपनी रिपोर्ट में बेखौफ यह जानकारी दी थी कि किस तरह देशवासियों को लूटा जा रहा है और इस लूट के खेल में बडे-बडे राजनेता, मंत्री और तेल माफिया शामिल हैं। यह लुटेरे आपस में हाथ मिला चुके हैं। उनके गठजोड को तोड पाना आसान नहीं है। यह जे.डे की खोजी खबरें ही थीं जिनके छपने के बाद कई अपराधियों पर कानूनी कार्रवाई की गाज गिरी थी। इस जागरुक पत्रकार को अपराध जगत के चप्पे-चप्पे की जानकारी रहती थी और अपराधियों के काम करने के तौर तरीकों का भी ऐसा ज्ञान था कि खबरें छपने के बाद अपराधी भी विस्मित हुए बिना नहीं रह पाते थे। अंडरवल्र्ड के काम करने के तौर-तरीकों पर उनकी लिखी दो पुस्तकें काफी चर्चित हुई। माफियाओं के 'कोड वल्र्ड' का जे.डे ने जो खुलासा किया उससे पुलिस वालों का भी काम काफी हद तक आसान हो गया था। पुलिस वालों से भी तेज दिमाग रखने वाले जे.डे राजनीतिज्ञों और अपराधियों के याराने से भी अच्छी तरह से वाकिफ हो चुके थे। उनकी कलम सफेदपोश नेताओं और खाकी वर्दीधारियों को भी नहीं बख्शती थी। अगर यह कहा जाए कि जे.डे अपराधियों के साथ-साथ खाकी और खादी के निशाने पर भी थे तो गलत न होगा। उनकी हत्या से यह भी तय हो गया है कि मायानगरी में समर्पित पत्रकार कतई सुरक्षित नहीं हैं। अंडरवल्र्ड के शैतान किसी को भी निशाने पर ले सकते हैं। महाराष्ट्र में दाऊद इब्राहिम, छोटा शकील, अरुण गवली, पप्पू कालानी, छोटा राजन आदि माफियाओं के बाद और भी कई नये माफिया सिर उठा चुके हैं। तेल माफिया तो इतने हिं‍सक हो चुके हैं कि सरकार का भी उन पर कोई बस चलता नहीं दिखता। कुछ ही महीने पहले नासिक के सहायक कलेक्टर यशवंत सोनावडे को इन्ही तेल माफियाओं ने जिं‍दा जला दिया था। पुलिस और तेल माफियाओं की आपस में कितनी छनती और बनती है उसका पता तो इससे चल जाता है कि सोनावडे के हत्यारों के खिलाफ समय सीमा के अंदर चार्जशीट ही नहीं दाखिल की गयी और हत्यारों को जमानत मिल गयी।पत्रकारिता के प्रति जीवनभर समर्पित रहे जे.डे ने तेल माफियाओं के जुर्म की दास्तान से सरकार को निरंतर अवगत कराया पर सरकार तो सरकार है। उसके काम करने के रंग-ढंग बडे निराले हैं। जब किसी अधिकारी के तेल माफियाओं के हाथों मारे जाने पर उसको कोई फर्क नहीं पडता तो पत्रकार तो पत्रकार हैं। सिर्फ कलम घिस्सू...। सरकार के लिए उनकी जान की कोई कीमत नहीं है। जब किसी पत्रकार की निर्मम हत्या कर दी जाती है तब सरकार के मंत्री संवेदना के दो शब्द उछाल कर चलते बनते हैं। कुछ तो ऐसे भी होते हैं जो पत्रकारों पर भी उंगली उठाते हुए इशारों-इशारों में यह कह देते हैं कि पत्रकारों को भी सोच-समझ कर रिपोर्टिंग करनी चाहिए। खतरों से बचकर रहना चाहिए। इन इशारों के पीछे यह सीख भी छिपी होती है कि देख कर भी अनदेखा करना सीखो। पत्रकारों को ज्ञान बांटने वालों की कमी नहीं है। कई तो ऐसे हैं जो पत्रकारों की आचार संहिता की जंजीरों में बांध देना चाहते हैं। भंडाफोड करने वाले पत्रकार उन्हें फूटी आंख नहीं सुहाते। इसलिए जब कोई सच्चा पत्रकार मौत के मुंह सुला दिया जाता है तो ये चेहरे यह कहने से भी नहीं चूकते कि यह तो अपनी करनी का फल जो हर किसी को भुगतना पडता है। वैसे भी महाराष्ट्र का चेहरा अब पहले जैसा नहीं रहा। भ्रष्टाचार और अपराध यहां की पहचान बन चुके हैं। कई राजनेताओं की छवि जिस तरह से कलंकित हुई है वह भी कोई लुकी-छिपी नहीं है। सफेदपोश नेताओं के चेहरों के मुखौटे उतारने का काम भी ज्योतिर्मय डे जैसे पत्रकारों ने ही किया है। भ्रष्टाचारियों को बेनकाब करने और आम आदमी की आवाज बन अंधेरे के खिलाफ लडने वाले पत्रकारों पर देश को नाज़ है। इन्हीं की बदौलत लोकतंत्र सुरक्षित है और रहेगा...।

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