यह कितनी हैरतअंगेज बात है कि एक तरफ देशभर का मीडिया और तमाम जागरूक लोग शोर मचाते हैं, चिल्लाते हैं, और सरकार को कोसते हैं कि आतंकियों को फांसी के फंदे पर लटकाने में जानबूझकर देरी लगायी जाती है वहीं दूसरी तरफ जब किसी आतंकी हत्यारे को फांसी देने का ऐलान कर तारीख निर्धारित कर दी जाती है तो कुछ राजनीतिज्ञ फांसी का विरोध करना शुरू कर देते हैं। यह बताने की अब कोई जरूरत नहीं बची है कि आतंकवादियों का कोई धर्म नहीं होता। फिर भी राजनीति और कानून की कुश्तियां लडने वाले इस तथ्य को जानबूझकर नजरअंदाज कर देते हैं और हत्यारों को बचाने के लिए किसी भी हद तक जाते हुए धर्म और मजहब की दुहाई देने से नहीं चूकते। देश के भूतपूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के हत्यारों को ९ सितंबर को दी जाने वाली फांसी की सजा इसलिए टल गयी क्योंकि कुछ सामाजिक संगठन और नेता ऐसा नहीं चाहते। उन्हें राजीव गांधी की नृशंस हत्या को लेकर कोई मलाल नहीं है। उनकी पूरी सहानुभूति तो उन हत्यारों के साथ है जिन्होंने बडी ही बेरहमी के साथ देश के एक युवा नेता को मौत की नींद सुला दिया। भारत को दुनिया का सबसे बडा लोकतांत्रिक देश कहा जाता है परंतु यहां पर लोगों की कम और शातिर राजनीतिज्ञों की ज्यादा चलती है। अपनी मनमानी को सर्वोपरि मानने वाले यह लोग कानून के राज का खात्मा कर अपनी दादागिरी चलाने पर आमादा हैं। इस देश का आम आदमी कभी भी यह नहीं चाहता कि नृशंस हत्याएं करने वालों को माफ कर दिया जाए। आतंकवादियों को खून बहाने की खुली छूट दे दी जाए। परंतु देश के कुछ नेता, वकील और भीड की एक जमात यह मानने लगी है कि हत्यारे भी माफी के हकदार हैं। यह देश महात्मा गांधी के अहिंसावादी विचारों पर यकीन रखने वाला देश है। २१ मई १९९१ को तामिलनाडु के श्रीपेरंबदूर में लिट्टे ने राजीव गांधी की इसलिए हत्या कर दी थी क्योंकि वे अहिंसा के मार्ग पर चलने के पक्षधर थे और लिट्टे को लोगों का खून बहाना पसंद था। असंख्य लोगों का रक्त बहाने के बाद भी तमिल ईलम का जो सपना लिट्टे ने देखा था वह पूरा नहीं हो पाया। पर जिस तरह से राजीव गांधी के हत्यारों को बचाने की जंग जारी है। तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जयललिता जो कि लिट्टे की घोर विरोधी मानी जाती हैं उन्हें भी करुणानिधि ने हत्यारों के पक्ष में नतमस्तक होने को विवश कर दिया है। द्रमुक वर्तमान में यूपीए सरकार में कांग्रेस की सहयोगी पार्टी है। ऐसा भी नहीं है कि कांग्रेस को यह जानकारी न रही हो कि द्रमुक का शुरू से ही लिट्टे को घोर समर्थन रहा है फिर भी कांग्रेस ने सत्ता सुख पाने के लिए उसका साथ लेने में परहेज नहीं किया। देश की राजनीति का चरित्र ही कुछ ऐसा है कि अपने फायदे के लिए किसी भी समझौते को करने में संकोच नहीं किया जाता। अपनी-अपनी सुविधा के अनुसार नीति, नियम और सिद्धांतों की बलि चढा दी जाती है।करुणानिधि कांग्रेस की कमजोरी से वाकिफ हैं इसलिए वे और उनके साथी राजीव गांधी की के हत्यारों को बचाने के अभियान में लग गये हैं। करुणानिधि को इस तथ्य से कोई लेना-देना नहीं है कि देश की सबसे बडी अदालत ने तीनों मुजरिमों को फांसी की सजा सुना दी है। इस सजा के खिलाफ अपराधियों ने राष्ट्रपति के समक्ष माफी की गुहार लगायी थी जिसे नामंजूर कर दिया गया। करुणानिधि के लिए अदालत और राष्ट्रपति की भी कोई अहमियत नहीं है। उनका पूरा ध्यान राजनीति और अपने वोट बैंक पर टिका हुआ है। यह भी सच है कि उनके लिए तमिल और तमिलनाडु पहले है और हिंदुस्तान बाद में। करुणानिधि तामिलनाडु के मतदाताओं के द्वारा ठुकराये जा चुके हैं और उनकी कुर्सी पर जयललिता विराजमान हैं। यह पीडा भी उन्हें बेचैन किये हुए है। फांसी की सजा पाए हत्यारो को बचाने के लिए धर्म और जातीयता का खतरनाक खेल खेलने वाले नेताओं को इस बात की कतई चिंता नहीं है कि वे देश में अराजकता फैलाने का काम कर रहे हैं। तामिलनाडु की तरह पंजाब में भी एक आतंकवादी को फांसी दिये जाने का विरोध किया जा रहा है। उस आतंकवादी के पंजाबी होने के कारण कुछ राजनीतिक और सामाजिक संगठनों ने पंजाब में काफी हो-हल्ला मचा रखा है। यहां तक कर पंजाब सरकार भी उनके साथ खडी हुई है। तामिलनाडु और पंजाब की देखा-देखी जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्लाह भी संसद भवन पर हमले के दोषी अफजल गुरू को फांसी के फंदे से बचाने के लिए अपना राग अलापने लगे हैं। वैसे भी जम्मू-कश्मीर सरकार यह आशंका जताती चली आ रही है कि यदि अफजल को फांसी होती है तो राज्य में गडबडी हो सकती है। यह कितनी हैरतअंगेज मांग है कि तमिल हत्यारों को इसलिए फांसी मत दो क्योंकि तमिलनाडु में हालात बिगड जाएंगे, पंजाबी आतंकवादी को फांसी देने पर पंजाब का पारा ऊपर चढ जायेगा और अफजल गुरु को सजा देने पर जम्मू-कश्मीर के हालात हाथ से बाहर निकल जाएंगे। इन नेताओं से कोई यह तो पूछने वाला है ही नही कि ऐसे में भारतवर्ष कहां होगा?
Thursday, September 1, 2011
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