Thursday, September 8, 2011

ऊंट आया पहाड के नीचे?

कारण चाहे जो भी हों पर राहत देने वाली बात तो जरूर है कि देश में भ्रष्टाचारियों के खिलाफ माहौल बन चुका है। दिल्ली में बैठी केंद्र सरकार के कानों पर भी जूं रेंगने लगी है और एक-एक कर देश के लुटेरों को सलाखों के पीछे पहुंचाया जाने लगा है। राजनीति के कुख्यात दलाल अमर सिं‍ह की तिहाड जेल रवानगी से यह संदेश भी देने की कोशिश की गयी है कि देर है पर अंधेर नहीं...। हालांकि इसके पीछे भी बहुत बडी राजनीति देखी जा रही है। पिछले कई वर्षों से कर्नाटक में अपनी दादागिरी की बदौलत सामानांतर सरकार चलाते चले आ रहे खनन माफिया रेड्डी बंधुओं पर भी आखिरकार सीबीआई के शिकंजे ने असर दिखाया है और उन्हें भी जेल में डाल दिया गया है। रेड्डी बंधुओं और अमर सिं‍ह में ज्यादा फर्क नहीं है। दोनों ही राजनीति के माथे का ऐसा कलंक हैं जिनकी जडें बहुत गहरे तक समायी हैं। ऐसे ही दुष्टों और बेइमानों के कारण ही कई लोग राजनीति को वेश्या का दर्जा देने में नही हिचकिचाते। नेताओं का नकाब ओडकर खुले आम डकैती करने वाले रेड्डी बंधुओं को प्रारंभ से ही भारतीय जनता पार्टी का साथ मिलता चला आ रहा है। अब जब वे जेल भेजे जा चुके हैं तो पार्टी के दिग्गजों की सिट्टी-पिट्टी ही गुम हो चुकी है। उन्हें यह भय भी सता रहा है कि कहीं रेड्डी बंधुओं के समर्थक विधायक बगावत पर उतरने के बाद मौजूदा कर्नाटक सरकार की ही धराशायी न कर दें। वैसे यह खतरा तो है ही। जो भ्रष्टाचारी सरकार बनाने में मददगार हो सकते हैं वे अपना बुरा वक्त आने पर भट्ठा भी बिठा सकते हैं। रेड्डी बंधु और अमर सिं‍ह जैसे अवैध करोबारी राजनीतिक गलियारों में विचरण करने वाले ऐसे सांप हैं जो दूध पिलाने वाले को भी काटे बिना नहीं रहते। यही इनकी असली फितरत है जिसे राजनीति के बडे-बडे खिलाडी जानते समझते तो हैं पर उनका इनके बिना काम भी नहीं चलता। आडे वक्त के लिए इन खोटे सिक्कों को संभाल कर रखना उनकी मजबूरी है। कर्नाटक और आंध्रप्रदेश में बडे-बडे राजनेताओं की शह पर अवैध उत्खनन कर हजारों करोड रुपये के वारे-न्यारे कर चुके रेड्डी बंधुओं के यहां मारे गये छापे में केवल ३० किलो सोना और चार-पांच करोड नगद बरामद हुए। देखा जाए तो यह कुछ भी नहीं है। जो धनपशु एक मंदिर में आठ सौ हीरों का जडा मुकुट और स्वर्ण जडि‍त करोडों की साडी अर्पित कर सकते हैं उनके लिए यह रकम कोई मायने नहीं रखती। उनके लिए मंदिरों में करोडों का चढावा चढाने और नौकरशाही को मुंहमांगी थैलियां देने में ज्यादा फर्क नहीं है। उनके यहां से अरबों-खरबों की दौलत बरामद होनी चाहिए थी। इससे ज्यादा माल तो आजकल शहरों के सरकारी ठेकेदारों के यहां मारे गये छापों में ही बरामद हो जाता है। सरकारों को अपनी उंगलियों पर नचाने वाले रेड्डी बंधुओं के पास कितनी काली दौलत होगी इसका अता-पता तो उन्हें भी नहीं होगा। ऐसे में सीबीआई तो क्या दुनिया की कोई भी जांच एजेंसी इन खनिज माफियाओं की लुकी-छिपी अथाह दौलत के असली ठिकानों का पता नहीं लगा सकती।डकैती और हेराफेरी में चंदन तस्कर विरप्पन को मात देने वाले रेड्डी बंधुओं को अगर राजनीति का मुखौटा पहनने का अवसर न मिला होता तो ये लोग बहुत पहले ही सरकारी मेहमान बना कर जेल भिजवा दिये गये होते। देश के तमाम शातिर लुटेरे इस हकीकत से बहुत जल्दी वाकिफ हो जाते हैं कि यदि उन्हें बेखौफ होकर अपने काले धंधों को अंजाम देते रहना है तो राजनीति और सत्ताधारियों का दामन थामना ही होगा। कर्नाटक के पूर्व लोकायुक्त संतोष हेगडे यदि इन डकैतों का पर्दाफाश नहीं करते तो यह अभी तक खुली हवा में सांस ले रहे होते। बिलीकोरे बंदरगाह से ३५ लाख टन लौह अयस्क रातों-रात गायब करने का कीर्तिमान रच चुके रेड्डी बंधुओ के समक्ष दुनिया की सबसे बडी प्रख्यात स्टील निर्माता कंपनी आर्सेलर मित्तल लिमिटेड भी कोई मायने नहीं रखती। लक्ष्मी मित्तल देश और दुनिया के जाने-माने उद्योगपति हैं और उन्होंने यह मुकाम खून-पसीना बहाकर हासिल किया है। रेड्डी बंधुओं ने तो देश की बहुमूल्य खनिज सम्पत्ति की हेराफेरी कर हजारों करोड का साम्राज्य खडा किया है। हराम की कमायी करने वाले किस तरह से अंधाधुंध दौलत लुटाते हैं उसे जानने के लिए यह जान लेना भी जरूरी है कि रेड्डी बंधु सोने की जिस कुर्सी पर विराजमान होते हैं उसकी कीमत है ढाई करोड। जिस सोने की प्रतिमा के समक्ष सिर झुकाते हैं वह तीन करोड की है। घर में खाने-पीने के जो बर्तन हैं वो भी सोने के हैं। सैर-सपाटे के लिए इन रईसों के पास चार हेलिकॉप्टर हैं। राजसी ठाठ-बाट वाला यह जलवा देश के लुटेरों की असली नीयत को बयां कर देता है। सत्ता के दलाल अमर ‍सिं‍ह की भी कुछ ऐसी ही दास्तां है। वे किसी जमीन में फकीर थे। राजनेताओं से नजदीकियां बढाने के बाद देखते ही देखते मालामाल हो गये। उनके जेल जाने पर किसी को भी हैरानी नहीं हुई।सत्ता के इस दलाल की भी वर्षों पहले जेल रवानगी हो गयी होती पर कुछ राजनेताओं ने इसे सतत बचाए रखा। सत्ताधारियों को ब्लैकमेल करने में माहिर अमर सिं‍ह ने उद्योगपतियों, मंत्रियों, मुख्यमंत्रियों से दोस्ती-यारी कर जो अरबों-खरबों रुपये कमाये उसका काला-चिट्ठा मीडिया के द्वारा कई बार उजागर किया गया पर उनका बाल भी बांका नहीं हो पाया। 'कैश फॉर वोट' कांड के नायक रहे अमर सिं‍ह ने राजनीति के मैदान में सर्कसबाजी कर न जाने कितनी दौलत कमायी। अपनी इस अथाह काली माया को सफेद करने के लिए पचासों फर्जी कंपनियां भी खडी कीं। कार्पोरेट घरानों को प्रलोभन देकर राजनेताओं और उनकी पार्टियों के लिए चुनावी फंड जुटाने वाला ऊंट अब पहाड के नीचे आ चुका है। देखें क्या होता है...। वैसे अमर सिं‍ह आसानी से हार मानने वालों में नहीं हैं। कई राजनीतिक दिग्गजों के रहस्य उनकी मुट्ठी में कैद हैं। क्या पता क्या धमाका कर गुजरें। धमाका तो रेड्डी बंधु भी कर सकते हैं क्योंकि उन्होंने भी जो खनन डकैतियां की हैं उनमें वे अकेले नहीं थे। न जाने कितने और सफेदपोश भी उनके साथ शामिल थे। तभी तो उन तमाम सफेदपोशों के चेहरों के रंग भी उड चुके हैं।

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