Thursday, September 22, 2011

मोदी की पीडा और ताकत

देश में लगता है जैसे कोई जबरदस्त नाटक चल रहा है। पात्र इतने बेबस हो गये हैं कि अपनी निर्धारित भूमिका से हटने में कोई परहेज नहीं करते। कल तक जो लालकृष्ण आडवानी प्रधानमंत्री बनने के ख्वाब संजोये थे आज बरबस पलटी मार चुके हैं। कह रहे हैं कि उन्हें आर.एस.एस. से लेकर पार्टी तक इतना मान-सम्मान मिल चुका है कि अब उन्हें किसी पद की ख्वाहिश नहीं रही। क्या वाकई यह दिल से निकला सच है या कुछ और? मोदी के तीन दिन के उपवास ने उनके कद को जिस तरह से दिखाया है उसके सामने तो बडे-बडे नेता बौने नजर आने लगे हैं। यह भी कहा जा रहा है कि नरेंद्र मोदी ने बडी चालाकी के साथ भारतीय जनता पार्टी को हाइजैक कर लिया है। मोदी पार्टी से भी बडे हो गये हैं। उनके शत्रु तौल-तौल कर बोलने में अपनी भलाई समझने लगे हैं। मौके की नजाकत को देखकर छा जाने का जो हुनर गुजरात के इस मुख्यमंत्री में है उससे राजनीति के बडे-बडे दिग्गज गच्चा खा जाते हैं। गुजरात दंगे के बाद से ही मोदी को घेरने और ढेर करने की कोशिशों में लगे उनके विरोधियों को यह बात तो समझ में आ ही गयी है कि यह शख्स किसी ऐसी-वैसी मिट्टी का नहीं बना है। इसका जितना विरोध होता है यह उतना ही खुद को ताकतवर दर्शाता है। बार-बार छाती ठोंक कर कहता है कि मुझे अकेला मत समझो। मेरे साथ छह करोड गुजराती खडे हैं। विरोधी इस इंतजार में हैं कि मोदी कभी यह तो कहें कि उनके साथ देश की सवा सौ करोड जनता खडी हुई है। अब जब आडवानी ने कह दिया है कि उनकी रथयात्रा के पीछे प्रधानमंत्री बनने का लालच नहीं छिपा है तो मोदी निश्चय ही गदगद हैं। देश के कई बुद्धिजीवी तो उन्हें अछूत मानते हैं। वे डरते हैं कि अगर मोदी के द्वारा किये गये और किये जा रहे अच्छे कामों की भूले से भी तारीफ कर दी तो उनके इर्द-गिर्द के संगी-साथी उन्हें भी सांप्रदायिक मानने लगे हैं। दबी जबान से मोदी की आरती गाने वाले कई हैं पर खुले मंचों पर उनका साहस जवाब दे जाता है। कल तो जो अमेरिका नरेंद्र मोदी को कोस रहा था वह भी उनकी आर्थिक नीतियों का मुरीद हो गया है। जिस तरह से मोदी ने गुजरात का विकास किया है उसे देखते हुए उसे भी यह कहने को विवश होना पडा है कि मोदी भारत वर्ष के अच्छे प्रधानमंत्री सिद्ध हो सकते हैं। खुद को प्रगतिशील कहने वाली बुद्धिजीवियों की कौम को नरेंद्र मोदी के द्वारा चुना गया विकास का रास्ता दिखायी ही नहीं देता। उन्हें बार-बार गुजरात दंगो की याद आ जाती है। न्यूज चैनल वाले भी कम बाजीगर नहीं हैं। सदभावना उपवास तोडने के बाद लगभग तमाम चैनल वाले लगातार मोदी के भाषण का सीधा प्रसारण दिखाते रहे जैसे ही उनका भाषण खत्म हुआ तो चैनल वालों को २००२ के दंगों की याद आ गयी और निमंत्रित बुद्धिजीवियों के मुख से यह कहलवाया जाने लगा कि मोदी तो हत्यारे हैं। उनके दामन पर सांप्रदायिकता के ऐसे दाग हैं, जो मोदी के इस जन्म में तो नहीं मिट सकते। दरअसल मोदी को निरंतर कटघरे में खडा करने और उनका विरोध करते रहने का फैशन-सा चल पडा है। कांग्रेस और दूसरी राजनैतिक पार्टियों में भी ऐसे नेता भरे पडे हैं जो यह मानते हैं कि गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में मोदी ने सर्वजनहित के जो काम किये हैं वे बेमिसाल हैं। बंद कमरों में मोदी की तारीफें करने वाले वोट बैंक और अपनी पार्टी के नियम-कायदों से बंधे हुए हैं। उन्हें मालूम है कि खुलेआम मोदी की तारीफ भारी पड सकती है। मोदी के उपवास और सदभावना कार्यक्रम के मंच पर लोकसभा में विपक्ष की नेता सुष्मा स्वराज ने उनकी तारीफ करते हुए रहस्योद्घाटन के अंदाज में बताया कि विरोधी भी मोदी के सदभाव के कायल हैं। सुषमा ने अपनी बात को मजबूती प्रदान करने के लिए पीडीपी नेता मेहबूबा मुफ्ती के तथाकथित कथन का हवाला दिया कि पिछले दिनों राष्ट्रीय एकता परिषद की बैठक में महबूबा ने स्वयं बताया कि उनके एक मुसलमान दोस्त गुजरात में उद्योग लगाना चाहते थे। मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने आधे घंटे में ही वो सारी औपचारिकताएं पूर्ण कर उद्योग लगाने की हरी झंडी दे दी। मोदी अपने प्रदेश में सर्वधर्म समभाव का आदर्श पेश कर रहे हैं। मोदी राजनेता हैं। उन्होंने ठान लिया है कि दाग धोने का एक ही रास्ता है लोगों के दिल में बस जाओ। जो बीत गया सो बीत गया। अपने आलोचकों का मुंह बंद करने के लिए वे हमेशा कहते भी हैं कि गुजरात की जनता ही मेरे लिए सर्वोपरि है। मैंने कभी हिं‍दू-मुसलमान को अलग-अलग तराजू पर तौलने की कोशिश नहीं की। पर उनके विरोधी यह मानने को तैयार ही नहीं होते कि मोदी मुसलमानों के हितचिं‍तक हो सकते हैं। यही वजह है कि दूसरी राजनैतिक पार्टियों के नेता मोदी के नाम से ही बिचकते हैं। यह क्या कम हैरान कर देने वाली सच्चाई है कि एक तरफ सुषमा स्वराज जब यह कहती हैं कि महबूबा मुफ्ती मोदी की प्रशंसक हैं तो दूसरी तरफ बवाल खडा हो जाता है। महबूबा चिल्लाने और शोर मचाने लगती हैं कि यह सरासर झूठ है। महबूबा जैसे नेताओं के मन में यह बात घर कर चुकी है कि मोदी को मुसलमान अपना शत्रु मानते हैं ऐसे में अगर हमने मोदी की तारीफों के पुल बांधे तो हम कहीं के नहीं रहेंगे। मुसलमानों के वोटों को अपने पाले में रखने के लिए नरेंद्र मोदी जैसे नेताओं का सतत विरोध करते रहना एक नहीं अनेक नेताओं की जन्मजात मजबूरी है। मोदी को यह हकीकत भी परेशान करती है कि खुद उनकी पार्टी के नेता पूरी तरह से उनका समर्थन नहीं करते। मोदी पर भ्रष्ट होने के आरोप भी लगने लगे हैं। पर मोदी बेफिक्र हैं। उन्हें गुजरात की जनता पर भरोसा है जिसने उन्हें दो बार एकतरफा जीत दिलवायी तो इस बार भी दिलवा ही देगी...।

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