Thursday, September 15, 2011
मत चूको आडवानी!
भारतीय जनता पार्टी के उम्रदराज नेता लालकृष्ण आडवानी रथ यात्राएं निकालने में कुछ ज्यादा ही यकीन रखते हैं। अभी तक वे पांच रथ यात्राएं निकाल चुके हैं और छठवीं यात्रा का उन्होंने बडे जोर-शोर के साथ ऐलान कर दिया है। कई लोग यह कहते हैं कि राजनीति से संन्यास लेने की उम्र में आडवानी जी पर देश का प्रधानमंत्री बनने का जुनून छाया हुआ है। ८३ वर्षीय इस भाजपाई को युवाओं पर ज्यादा भरोसा नहीं दिखता। उन्हें लगता है जिस मुस्तैदी के साथ वे देश की बागडोर संभाल सकते हैं, दूसरा कोई नहीं संभाल सकता। वे आखिरी दम तक पी.एम. बनने की लडाई लडते रहना चाहते हैं। लोग चाहे कुछ भी कहते और सोचते रहें। कहने वाले तो यह भी कहते हैं कि काठ की हांडी बार-बार नहीं चढती। पर आडवानी जैसे सत्ता के खिलाडी कहावतों में यकीन नहीं रखते। वैसे राजनीति के इस लाल को जब देश का उपप्रधानमंत्री बनने का मौका मिला था तभी उसने ठान लिया था कि चाहे कुछ भी हो जाए पर आखिरी सांस तक प्रधानमंत्री बनने के सपने को पूरा करने के युद्ध को लडते ही रहना है। वैसे भी जो नेता सत्ता का स्वाद चख चुके होते हैं उन्हें खाली-पीली बैठना कतई रास नहीं आता। राम जन्म भूमि रथ यात्रा, जनादेश यात्रा, स्वर्ण जयंति रथ यात्रा, भारत उदय यात्रा और भारत सुरक्षा यात्रा निकाल चुके आडवानी को रथ यात्राएं निकालने का तो जैसे चस्का ही लग गया है। वे जब भी किसी नयी रथ यात्रा की घोषणा करते हैं तो सरकार घबरा उठती है। लगभग बीस वर्ष पूर्व जब उन्होंने राम जन्म भूमि रथ यात्रा निकाली थी तब देश में जो माहौल बना था वह सुखद तो नहीं था। यह भी सच्चाई है कि उसी रथ यात्रा ने आडवानी एंड कंपनी के आकाशी मंसूबों में रंग भर दिया था और सत्ता भी दिलायी थी। 'राम' के नाम पर केंद्र में सत्ता का सुख निचोड चुकी भारतीय जनता पार्टी हमेशा यह दर्शाते नहीं थकती कि वह ईमानदारों की पार्टी है। तभी तो आडवानी ने भ्रष्टाचार के खिलाफ रथयात्रा निकालने की घोषणा की है। पूरे जोश और सच्ची नीयत के साथ भ्रष्टाचार के खिलाफ बिगुल फूंकने वाले अन्ना हजारे को भी अडवानी की इस नयी तैयारी ने यह कहावत याद दिला दी है कि मेहनत करे मुर्गी और अंडा खाये फकीर...। अब यह बताने की जरूरत तो नहीं है कि जिस जीवंतता के साथ अन्ना हजारे ने भ्रष्टाचार के मुद्दे को उठाया वह नेताओं के बस की बात नहीं हो सकती। अन्ना हजारे ने बडे पते की बात कही है कि जिस देश में करोडों लोग भूखे मर रहे हों वहां रथ यात्रा का कोई औचित्य नहीं है। पर अन्ना का सुझाव अगर आडवानी मान लें तो फिर उन्हें राजनेता कौन कहेगा? अन्ना को किसी बडे पद और कुर्सी का लालच नहीं है, लेकिन अन्ना ने एक बार फिर से आडवानी के सपनों को पर तो लगा ही दिये हैं। यही वजह है कि 'मत चूको चौहान' की तर्ज पर आडवानी ने उडने और दौड लगाने की ठान ली है। हश्र चाहे जो भी हो। लोग हैं कि कहने और बोलने से बाज नहीं आते। कहां अटल बिहारी वाजपेयी और कहां लालकृष्ण आडवानी। भारतीय जनता पार्टी को सत्ता दिलवाने में अटल जी का जो योगदान था उसे दूसरा कोई भाजपाई न तो निभा पाया है और न ही निभा पायेगा। आडवानी जी जो हैं सो हैं। वक्त भी अब पहले-सा नहीं रहा। उन्नीस सौ नवासी-नब्बे और २०११ के बीच बहुत बडा फासला है। लोगों की सोच बदल चुकी है। अंध भक्ति का जमाना लद चुका है। आडवानी की जब पहली रथ यात्रा निकली थी तब देश भर में उनका जो स्वागत-सत्कार हुआ था, इस बार उसके आसार कम ही नजर आते हैं। देश की जनता ने भाजपा के नेतृत्व में बनी एनडीए सरकार के 'फीलगुड' और 'शाइनिंग इंडिया' को काफी करीब से देखने और जानने-समझने के बाद आडवानी की देश के भावी प्रधानमंत्री बनने की तमाम संभावनाओं पर भी विराम जड दिया था। भारत की आम जनता बार-बार धोखे खाने की आदी नहीं रही। उसके सब्र का बांध कब का टूट चुका है। ऐसा तो हो ही नहीं सकता कि आडवानी इस हकीकत से वाकिफ न हों। फिर भी वे बिल्ली के भाग्य से छींका टूटने के इंतजार में हैं! उन्हें यह भी अच्छी तरह से मालूम है कि वर्तमान में लगभग पूरा देश अन्ना हजारे के भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन के असर की गिरफ्त में है। एकाएक छठवीं रथयात्रा की घोषणा कर आडवानी ने यह दर्शा दिया है कि गर्म तवे पर रोटी सेंकने का कोई भी मौका वे खोना नहीं चाहते। अगले साल सात राज्यों में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। लोकसभा चुनाव २०१४ में होने हैं। अगर भाजपा ने इन राज्यों के विधानसभा चुनावों में झंडे गाड लिये तो पूरा का पूरा श्रेय आडवानी की रथ यात्रा मिलेगा। तय है कि २०१४ के लोकसभा चुनाव के असली भाजपाई नायक भी लालकृष्ण आडवानी ही होंगे। तो क्या बाकी बेचारे खाली हाथ तालियां बजाते रह जाएंगे? गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के सपनों का क्या होगा? वे भी आडवानी से कम जिद्दी नहीं हैं। दुनिया के सबसे ताकतवर देश अमेरिका ने भी मोदी के हौसलें बुलंद कर दिये हैं। उसकी निगाह में नरेंद्र मोदी में प्रधानमंत्री बनने के सभी गुण विद्यमान हैं। अन्ना हजारे की तर्ज पर 'उपवास' का रास्ता पकडने वाले मोदी अपनों और बेगानों को चारों खाने चित्त करने की तमाम कलाओं से वाकिफ हैं। अगर न होते तो गुजरात की गद्दी को इतनी मजबूती के साथ पकडे रखने में कामयाब न हो पाते। लालकृष्ण आडवानी के लिए न तब राह आसान थी और न ही अब। आडवानी की रथयात्रा के शुरू होने के साथ ही अन्ना हजारे की भी यात्रा शुरू हो जायेगी। आडवानी वोटों के लिए तो अन्ना लोगों को जगाने के लिए निकलेंगे। ८४ साल के करीब पहुंचने जा रहे आडवानी की सक्रियता देख भाजपा के ५४ वर्षीय राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गडकरी को अपना मोटापा घटाने और सोयी हुई शक्ति को जगाने के लिए मुंबई के एक अस्पताल में भर्ती होने को विवश होना पडा है। अपने निरंतर बढते कारोबार और मोटापे की वजह से लोगों के निशाने पर रहने वाले गडकरी भी कच्चे खिलाडी नहीं हैं। वे भी सत्ता के लिए ही राजनीति में आये हैं...। ऐसे में विभिन्न दरख्तों पर बैठे गिद्ध क्या करते हैं यह देखना भी दिलचस्प होगा...।
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