Thursday, December 8, 2011
ऐसे ही चल रहा है लोकतंत्र
ये बेचारी राजनीतिक पार्टियां। अपनों पर गाज गिराने से हमेशा कतराती हैं। पर कभी-कभी हालात बद से बदतर हो जाते हैं। कमाऊपूतों को भी बख्शना मुश्किल हो जाता है। कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा भारतीय जनता पार्टी की रीढ की हड्डी के समान थे। इन्हीं ने इस पार्टी को कर्नाटक में सत्ता पाने लायक बनाया था। कर्नाटक में आज भी भाजपा की सत्ता है। येदियुरप्पा मुख्यमंत्री की कुर्सी खो चुके हैं। जेल यात्रा भी कर आये हैं। जब वे कुर्सी पर विराजमान थे, तो उनकी खूब तूती बोला करती थी। वे जब-तब बेल्लारी बंधुओं पर चाबुक बरसाते रहते थे। शोर मचाते थे कि यह बंधु महाचोर हैं। प्रदेश का खनिज बेच-बेच कर अपार दौलत के मालिक हो गये हैं। बेल्लारी बंधु भी राजनीतिक दृष्टि से येदियुरप्पा से कतई कमजोर नहीं थे। पर मुख्यमंत्री उनके राजनीतिक कद को काटने-छांटने में लगे रहते थे। लोगों को लगता था एक ईमानदार मुख्यमंत्री, भ्रष्टाचारी खनिज माफियाओं को बेनकाब कर सच्चाई सामने लाना चाहता है। पर दरअसल सच कुछ और ही था। जो जब सामने आया तो लोग चौंके बिना नहीं रह सके। येदियुरप्पा तो बेल्लारी बंधुओं का भी बाप निकला। अमानत में ख्यानत करने वाला मुख्यमंत्री प्रदेश की जनता का हित भूलकर अपना तथा अपनों का आर्थिक साम्राज्य बढाने के चक्कर में हर नैतिकता को ताक में रख चुका था। ऐन दिवाली के दिन नागपुर जा पहुंचा था। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गडकरी का इसी शहर में आशियाना है। गडकरी जी को दिवाली की 'गिफ्ट' देने के बाद वह बेखौफ और बेफिक्र था। अब कोई उसका बाल भी बांका नहीं कर पायेगा। पर वह पाप का घडा ही क्या जो एक दिन न फूटे। आखिरकार येदियुरप्पा भ्रष्टाचार के आरोप में धर लिये गये। गिफ्ट कवच नहीं बन पायी। आडवानी ने भी यात्रा के दौरान कह डाला कि येदियुरप्पा तो वाकई भ्रष्ट थे। हमने पहले ही समझाया था कि संभल जाओ। पर नहीं संभले तो अब हम क्या कर सकते हैं। लालकृष्ण आडवानी किसी जमाने में पत्रकार हुआ करते थे। बेचारे येदियुरप्पा इस सच को नहीं समझ पाये कि पत्रकारों और नेताओं की एक जैसी फितरत होती है। लेना जानते हैं, निभाना नहीं। चलती गाडी में सफर करने का आनंद लेने की कला कोई इनसे सीखे। इंजन के खराब होते ही जानना-पहचानना तक भूल जाते हैं। चोट खाये महा भ्रष्टाचारी येदियुरप्पा भी अब सचेत हो गये हैं। उन्होंने कर्नाटक में भाजपा को पलीता लगाने के लिए तरह-तरह के तौर-तरीके आजमाने शुरू कर दिये हैं। वे आडवानी और गडकरी को दिखा देना चाहते हैं कि वे खुद के द्वारा बोये गये पौधे की जडें काटना भी जानते हैं। ऐसा कैसे हो सकता है कि उनका बोया पौधा कालांतर में वृक्ष बने और उसकी छाया का सुख दूसरे भोगें। आज के दौर में राजनीति तो खुद के उद्धार लिए की जाती है। वक्त आने पर दुश्मन को भी दोस्त बना लिया जाता है। येदियुरप्पा तो राजनीति के मंजे हुए खिलाडी हैं। उन्होंने कल के अपने शत्रु खनिज माफिया बेलारी बंधुओं को गले लगा लिया है। यानी दुश्मन आज एक हो गये हैं और भाजपा के तंबू उखाडने और उजाडने की कवायदें शुरू कर चुके हैं। इतिहास गवाह है कि जब दो ताकतवर शत्रु एक दूसरे के गले में बांहें डालकर तांडव मचाते हैं तो कुछ न कुछ होकर रहता है। येदियुरप्पा के समर्थको का दावा है कि उनके नेता में इतनी ताकत तो बची ही है कि वे कर्नाटक से भाजपा की सत्ता का काम तमाम कर सकते हैं। भाजपा से खार खाये पूर्व मुख्यमंत्री के समर्थकों का कहना है कि नितिन गडकरी जब से भाजपा के सुप्रीमों बने हैं तब से भाजपा के समर्पित नेताओं की इज्जत खतरें में पड गयी है। कांग्रेस अपने चहेतों को बचाती है और भाजपा साथ देने की बजाय नंगा करने पर उतारू हो जाती है। येदियुरप्पा हों या बेल्लारी बंधु, यह लोग देश की लगभग हर राजनीतिक पार्टी में विराजमान हैं। खनिज माफिया, भू-माफिया, लूट-खसोट माफिया और चमकाने-धमकाने वाले माफियाओं के बिना किसी पार्टी की गाडी नहीं चलती। मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ और उडीसा जहां पर खनिज पदार्थ अधिकतम मात्रा में हैं वहीं इनकी खूब तूती बोलती है। इन प्रदेशों में जिस-जिस पार्टी को शासन करने का मौका मिला उस-उसने जमकर चांदी काटी। गुर्गे अरबों-खरबों में खेलने लगे। पार्टी की ताकत में भी भरपूर इजाफा हो गया। कोई भी चुनाव लडने के लिए इस ताकत का होना निहायत जरूरी है। यह गुर्गे पार्टी के आर्थिक तंत्र को चलाते हैं और उसकी ऐवज में विधान परिषद और राज्य सभा पहुंचते रहते हैं। पार्टी इनके कंधों पर तब तक अपने हाथ रखे रहती है जब तक यह बेनकाब नहीं हो जाते। यह सिलसिला बहुत पुराना है। देश पर सबसे ज्यादा समय तक राज करने वाली कांग्रेस ने यह बीज बोये थे जो धीरे-धीरे पौधे बने और अब तो विशाल दरख्तों की शक्ल अख्तियार कर चुके हैं। हर राजनीतिक पार्टी इनकी छाया का आनंद लूटती रहती है। मीठे फल खा लेती है और कडवे दूसरों की झोली में उछाल देती है। दरअसल इन दरख्तों की जडें इतनी मजबूत हो चुकी हैं कि इन्हें जड से काट पाना बहुत मुश्किल है। जो भी इन्हें धराशायी करने की कोशिश करता है हमारे देश के घाघ राजनेता उसी का काम तमाम करने के लिए एकजुट हो जाते हैं। अपने देश का लोकतंत्र इसी तरह से चलता चला आ रहा है।
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