Thursday, December 29, 2011
वर्ष २०१२ के समक्ष खडा सवाल
वर्ष २०११ बहुत कुछ कहकर विदा हो गया। देश की आजादी के बाद का यही एक ऐसा वर्ष था जिसने आशाएं जगायीं और ऐसे-ऐसे सवाल उठाये जिनके जवाब वर्ष २०१२ को देने ही होंगे। पर क्या ऐसा हो पायेगा?अब यह हकीकत किसी भी सजग देशवासी से छिपी नहीं है कि देश की बदहाली का सबसे बडा कारण भ्रष्टाचार और काला धन है। बीते साल विदेशों से काला धन वापस लाने के लिए खूब भाषणबाजी हुई। आंदोलन भी हुए। पर हासिल कुछ भी नहीं हो पाया। सरकार ने कहा कि वह चाहकर भी उन लोगों के नाम उजागर नहीं कर सकती जिन्होंने देश का धन विदेशी बैकों में जमा करवा रखा है। विदेशों के बैंको में जमा भारतीय धन को वापस लाने की मांग करने वाले लगातार यह कहते रहे कि इस धन से देश का कायाकल्प किया जा सकता है। यानी बदहाली को दूर किया जा सकता है। पर देश की केंद्र सरकार ने जिस तरह से मजबूरी जतायी उससे यह तय हो गया है कि विदेशों में जमा धन वापस आना लगभग असंभव है। क्या वर्ष २०१२ की निगाहें भी विदेशों में जमा धन पर लगी रहेंगी या फिर देश में जमा अथाह काले धन पर भी उसका ध्यान जायेगा? यहां यह बता देना जरूरी है कि अपने हिंदुस्तान में हर वर्ष लगभग ४० लाख करोड रुपये का काला धन पैदा होता है। यह सारा का सारा धन विदेशों के बैंकों में नही चला जाता। इसका महज कुछ हिस्सा यानी लगभग ५ लाख करोड रुपये विदेशों में पहुंच जाते हैं। विदेशों में पहुंचने वाले धन में किसका कितना योगदान होता है इसका अनुमान लगा पाना मुश्किल नहीं है। सरकारी धन पर हाथ साफ करने में हमारे यहां की नौकरशाही को महारत हासिल है। नेताओं की पांचों उंगलियां घी में रहती हैं। ऐसा माना जाता है कि यदि सरकारें सतर्क रहतीं और विकास कार्यों के लिए भेजी जाने वाली रकम सही तरीके से विकास कार्यों में ही खर्च होती तो देश का चेहरा चमकता नजर आता। पर नीचे से ऊपर तक चलने वाले भ्रष्टाचार ने देश के चेहरे को ही बदरंग कर डाला है। जिस देश के अधिकांश राजनेता ही पथभ्रष्ट हो चुके हों, उसकी दुर्गति तो होनी ही है। भ्रष्टाचारी विदेशों के बैंकों में काला धन इसलिए छिपाते हैं क्योंकि उन्हें पहचान गुप्त रखने की शत-प्रतिशत गारंटी दी जाती है। देश के वितमंत्री प्रणब मुखर्जी भी इसी विवशता का हवाला देकर साफ-साफ कह चुके हैं कि विदेशों में जिन लोगों का धन जमा है उनके नाम उजागर करने में असमर्थ हैं। पर देश के बैंकों और अन्य गुप्त ठिकानों पर जो काला धन जमा है कम से कम उसे तो बाहर लाया जा सकता है। यह कोई सात समंदर पार का मामला नहीं, अपने ही देश का मामला है। जहां पर शासक जो चाहें वही कर सकते हैं। फिर यह कोई छोटी-मोटी रकम नहीं है। विदेशी बैंकों में जमा धन से कई गुना ज्यादा है यह धन। पर इस धन के बारे में कोई आवाज नहीं उठाता। किसी भी समाजसेवी और बाबा के नेत्र नहीं खुलते। कोई खादीधारी नहीं चिल्लाता। संसद में भी इस पर कोई चर्चा नहीं होती। तमाम राजनीतिक दल भी चुप्पी साधे रहते हैं। दरअसल इस काले धन की माया बडी अपरंपार है। इसी की बदौलत देश में एक समानांतर अर्थ व्यवस्था चलती चली आ रही है। इसी की ही बदौलत भारत की एक चमकती-दमकती दुनिया दिखायी देती है जिसमें भ्रष्ट अफसर, नेता, कारपोरेट घराने, तस्कर, खनिज डकैत और भू-माफियाओं के साथ मुखौटाधारी साधु-संन्यासी और सफेदपोश शामिल हैं। न जाने कितने विधायक और सांसद इसी काले धन के दम पर चुनाव जीतते हैं और फिर प्रदेश और देश पर राज करते हैं। यह लोग काले धन का कभी खात्मा नहीं होने देना चाहते। इनकी सारी सुख-सुविधाएं, कारोबार और अय्याशियां इसी के दम पर टिकी हैं। वो जमाना कब का लद चुका जब धर्मगुरू कष्टों भरा जीवन जीया करते थे। अब तो अधिकांश योगी नेताओं और धन्नासेठों की तरह सारे सुख लूट लेना चाहते हैं। इनकी जीवनशैली बडे-बडे उद्योगपतियों और नव धनाढ्यों को भी मात देती दिखायी देती है। इनका सारा का सारा ताम-झाम काले धन की नींव पर टिका होता है और यह काला धन कहां से आता है इसे जानने के लिए गुरु-महाराजों के चेले-चपाटों को जान लेना काफी है। गरीब आदमी तो इनके आसपास फटक ही नही पाता। इनके अधिकांश अनुयायी मालादार होते है। अपने-अपने क्षेत्र के महारथी।यह सच्चाई भी उजागर हो चुकी है कि देश के कई मंदिरों और मठों में अरबों-खरबों के सोने-चांदी, हीरे-जवाहरात के भंडार भरे पडे हैं। राजनेताओं और उद्योगपतियों के यहां के काले धन को खंगाला जाए तो कई धमाके सामने आ सकते हैं। मंत्रियों, अफसरों, दलालों, मीडिया दिग्गजों और तमाम कर चोरों की तिजोरियों में भी जो काला धन विद्यमान है उसे अगर बाहर लाया जाए तो तंगी से जूझ रहे देशवासियों को बहुत बडी राहत मिल सकती है पर जिन्होंने आम भारतीयों की खून-पसीने की कमायी अपने-अपने तहखानों में छिपा रखी है, वे क्या ऐसा कुछ होने देंगे? वर्ष २०१२ को इसका जवाब ही नहीं, कुछ करके भी दिखाना होगा। तभी २०११ की लडाई की सार्थकता बरकरार रहेगी।
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