आखिरकार मायावती के मायावी शासन से उत्तरप्रदेश की जनता को मुक्ति मिल ही गयी। यह असंभव-सा लगने वाला करिश्मा उस आम जनता ने कर दिखाया है जिसने कभी मायावती पर भरोसा कर उन्हें सत्ता सौंपी थी। बहुजन समाज पार्टी की कर्ताधर्ता मायावती ने अपार मतों की बदौलत सत्ता तो हासिल कर ली थी पर वे आम जनता की कसौटी पर खरी नहीं उतर पायीं।देश के सबसे बडे प्रदेश की कमान संभालने के बाद बहनजी में जबरदस्त अहंकार घर कर गया था। उन्हें लगने लगा था कि दुनिया की कोई भी ताकत उन्हें सत्ता से बाहर नहीं कर सकती। वे यह भूल गयीं कि जो जनता सिर पर बिठाना जानती है, वही जनता धूल चटाना भी जानती है। इसी जनता ने न जाने कितने अहंकारियों के होश ठिकाने लगाये हैं। पर मायावती ने इतिहास से सबक लेने की जरा भी कोशिश नही की। उन्हें हाडमांस के इंसानों ने सम्राट बनाया पर वे पत्थरों की मूर्तियों को तराशने में लगी रहीं! आम जनता घोर अराजकता की शिकार होती रही। महिलाओं पर बलात्कार पर बलात्कार होते रहे। विधायक और मंत्री भ्रष्टाचार और अत्याचार के कीर्तिमान रचते रहे पर बहन जी पत्थर की मूर्ति बनी रहीं। अपनी मूर्तियों को तो उन्होंने जहां चाहा वहां स्थापित कर मनमानी कर ली पर खुद उन्होंने जनता के बीच जाना छोड दिया। चाटूकारों की मंडली ने दलितों की तथाकथित मसीहा के अहंकार को जायज ठहराते हुए उनके इस भ्रम को निरंतर बनाये रखा कि वे देश की ऐसी हस्ती हैं जिसका सूरज कभी अस्त नहीं हो सकता। अपने पांच वर्ष के शासन काल में वह नई-नई तिजोरियां खरीदती रहीं और उनमें बेशुमार दौलत जमा करती रहीं। जिस धन को आम जनता के हित में खर्च किया जाना था उसे अपनी तथा हाथी की मूर्तियां बनवाने में फूंक डाला। लोग चीखते-चिल्लाते रहे। मूर्ति सुन पाती तो सुनती।बहन जी ने इतनी आरामपरस्त हो गयी थीं कि वे बिजलीगृह और पुल का उद्घाटन भी अपनी हवेली के वातानुकूल कमरे में बैठे-बैठे रिमोट का बटन दबाकर करने लगीं। नौकरशाहों और जाति समकरण पर हद से ज्यादा यकीन करने वाली मायावती ने मुख्यमंत्री की कुर्सी पर काबिज होने के बाद जमीन-जायदाद, हीरे-मोती और सोने-चांदी के जेवरातों को इस कदर अहमियत दी कि उन्हें 'धन की देवी' भी कहा जाने लगा। भ्रष्टाचार को शिष्टाचार का दर्जा देने वाले राजनेताओं में अगर किसी का नाम लिया जा सकता है तो वे हैं मायावती। उनकी हमेशा यह शिकायत भी रहती है कि मनुवादी उन्हें फलता-फूलता नहीं देखना चाहते इसलिए उन्हें सिर्फ मायावती का ही भ्रष्टाचार दिखता है दूसरों का नहीं।मायावती जिन लुभावने वादों को उछाल कर मुख्यमंत्री बनी थीं उन्हें पूरा करने में उन्होंने थोडी सी भी गंभीरता दिखायी होती तो उन्हें हार का मुंह नहीं देखना पडता। आखिरकार यूपी के मतदाताओं ने मायावती को सत्ता से बाहर कर चुना भी तो उसी समाजवादी पार्टी को जिसे गुंडों, दबंगो और बदमाशों की पार्टी बता कर बहन जी ने सत्ता पायी थी। बहनजी ने तो लोगों को और भी ज्यादा निराश किया। नतीजा सामने है फिर से मुलायम सिंह की पार्टी सत्ता पर काबिज हो गयी है। हालांकि मुलायम के सुपुत्र अखिलेश यादव ने प्रदेश की तमाम जनता को विश्वास दिलाने की पूरी कोशिश की है कि अब पहले वाली गलतियां नहीं दोहराई जाएंगी। कानून तोडने वालों को सबक सिखाया जायेगा। खुद मुलायम सिंह ऐसा कहते तो आम जनता यकीन करने से पहले हजार बार सोचती। पर युवा अखिलेश यादव बार-बार धोखा खाये मतदाताओं को रिझाने में कामयाब रहे हैं। इस मामले में तो उन्होंने राहुल गांधी को भी मात दे दी है। चुनाव प्रचार के दौरान राहुल बांहें चढाते हुए सभी विरोधी पार्टियों के नेताओं पर बरसते रहे और वोटरों को कांग्रेस के पक्ष में करने के हथकंडे-दर-हथकंडे अपनाते रहे पर जनता ने गांधी परिवार के 'एंग्री मैन' पर भरोसा जताने की बजाय आम आदमी के चेहरे अखिलेश यादव को सर्वोत्तम माना। सीधी और सरल भाषा में अपनी बात कहने वाले अखिलेश ने यह कह कर न जाने कितने लोगों का दिल जीत लिया कि उनके शासन काल में मायावती की प्रतिमाओं को कोई नुकसान नहीं पहुंचाया जायेगा।अखिलेश के बयान ने मायावती को राहत देने का काम किया है या उलझन में डाल दिया है यह तो वे ही जानें पर यदि वैसे भी अखिलेश प्रतिमाओं को नष्ट करने का इरादा दर्शाते तो मायावती से ज्यादा नुकसान खुद उन्ही को होना था। अखिलेश ने उन दलितों को प्रसन्न कर दिया जो बहन जी के वोटर हैं। युवा समाजवादी लोगो का दिल जीतने की कला में पारंगत नजर आता है। पिछली बार चुनाव प्रचार के दौरान मुलायम सिंह ने यह कहने से परहेज नहीं किया था कि यदि उनके हाथ में सत्ता आयी तो वे मायावती तथा हाथी की मूर्तियों को ठिकाने लगा देंगे। उनके पुत्र ने जो दरियादिली दिखायी है वह उनकी परिपक्वता की निशानी है। एक दूसरे को नीचा दिखाने पर तुले रहने वाले उम्रदराज नेताओं को इससे सबक लेना चाहिए। देश की जनता अपने जनप्रतिनिधी इसलिए नहीं चुनती कि वे शत्रुता को बरकरार रखें। समाजवादी पार्टी को यूपी में अभूतपूर्व सफलता दिलवाने वाले अखिलेश यादव की चारों तरफ वाह-वाही हो रही है। अखिलेश को तारीफों के चंगुल से भी खुद को बचाये रखना होगा। अंधाधुंध आरतियां गाने वाले भी किसी शत्रु से कम नहीं होते। अच्छा कर गुजरने की मंशा रखने वाले नेताओं को चाटुकारों की मंडलियां ही ले डूबती हैं। अपने इर्द-गिर्द के चेहरों के द्वारा खडी की गयी मुश्किलों को पार कर पाना मुश्किल हो जाता है। देश के युवा कवि गिरीश पंकज की यह पंक्तियां काबिले गौर हैं:
हो मुसीबत लाख पर यह ध्यान रखना तुम
मन को भीतर से बहुत बलवान रखना तुम
बहुत संभव है बना दे भीड तुम को देवता
किन्तु मन में इक अदद इंसान रखना तुम।
Friday, March 9, 2012
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