Thursday, March 1, 2012

बेचारे मधु कोडा और कृपाशंकर सिं‍ह...!

नागपुर में बहुजन समाज पार्टी के कुछ कार्यकर्ताओं ने प्रदेश अध्यक्ष की धुनाई कर अपना रोष जताया। कार्यकर्ताओं का आरोप है कि महानगर पालिका चुनाव में टिकटें बेची गयीं। पार्टी के समर्पितों का पत्ता सिर्फ इसलिए काटा गया क्योंकि उनकी तीन लाख रुपये देने की हैसियत नहीं थी। ऐसे ही कुछ आरोप पार्टी की सुप्रीमों बहन मायावती पर भी लगते रहे हैं। उनकी निगाह में वही शख्स विधायक और सांसद बनने के लायक होता है जिसकी जेब में दम होता है। वैसे इसके लिए सिर्फ मायावती को ही क्यों दोष दें? हिं‍दुस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री इंद्रकुमार गुजराल ने अपनी आत्मकथा में इस महारोग पर जिस तरह से कलम चलायी है, उससे इस देश की राजनीति और भ्रष्ट राजनेताओं का असली चेहरा अपने आप सामने आ जाता है। गुजराल उन चंद राजनेताओं में शामिल हैं जिन्होंने राजनीति की काजल की कोठरी में वर्षों तक चहल-कदमी करने के बाद भी खुद को दागी नहीं होने दिया। राजनीति के बदनाम खिलाडी लालू प्रसाद यादव के बिहार से तब गुजराल राज्यसभा का चुनाव लडने जा रहे थे। इसी चुनाव के सिलसिले में उनका लालू से मिलना हुआ। उन्होंने गुजराल को सचेत किया कि यदि उन्हें राज्यसभा का चुनाव जीतना है तो विधायकों के लिए थैलियों का इंतजाम करना होगा। बिना धन के काम बन पाना आसान नहीं। साफ-सुथरी राजनीति के हिमायती गुजराल के लिए लालू का यह 'मंत्र' किसी झटके से कम नहीं था। उन्होंने लालू के प्रस्ताव को फौरन नकार दिया। पर कितने हैं जो ऐसा कर पाते हैं? यह जनजाहिर सच है कि कई भ्रष्ट उद्योगपति, धनपति, अखबार मालिक और किस्म-किस्म के अपराधी धन की चमक की बदौलत ही राज्यसभा के सदस्य बनते आये हैं। इन्हें अपनी औकात का पता होता है। जनता तो इन्हें चुनने से रही इसलिए यह लालूमंत्र अपनाते हैं और बडी आसानी से अपने सभी सपनों को साकार कर लेते हैं। इस देश की राजनीति और व्यवस्था लगभग पूरी तरह से लालू मार्का नेताओं के रंग में रंगी नजर आती है। अरबों-खरबों का चारा घोटाला करने वाले लालूप्रसाद यादव की देखादेखी कितनों ने इस देश को लूटा-खसोटा इसका खुलासा धीरे-धीरे होता दिखायी दे रहा है। बताते हैं कि धन लेकर धडल्ले से चुनावी टिकटें बांटने की शुरूआत भी इन्ही महाशय ने की थी। डकैतों, गुंडों, बलात्कारियों और हत्यारों को टिकट देने का कीर्तिमान रचने वाले लालूप्रसाद यादव ने कांग्रेस की मदद से इस देश की राजनीति के सबसे बडे डकैत मधु कोडा को झारखंड का मुख्यमंत्री बनवाया था। मधु कोडा ने झारखंड में हजारों करोड का खनन घोटाला कर सिद्ध कर दिया कि वाकई वे लालू के असली चेले हैं। चेला फिलहाल जेल में है और गुरु अभी तक खुद को बचाये हुए है।मुंबई में हाल ही में संपन्न हुए महानगर पालिका के चुनाव में मुंबई कांग्रेस अध्यक्ष कृपाशंकर सिं‍ह ने भी नोट के बदले टिकटें दीं। वर्षों से पसीना बहाते चले आ रहे कांग्रेस के समर्पित कार्यकर्ताओं ने कृपाशंकर की मनमानी से नाराज होकर हो-हल्ला मचाया। दिल्ली में बैठे कृपाशंकर के खैरख्वाहों की नींद तब टूटी जब मुंबई में कांग्रेस की लुटिया डूब गयी और शिवसेना ने फिर से मुंबई महानगर पालिका पर बडी आसानी से कब्जा कर लिया। कृपाशंकर की भी मधु कोडा से नगदीकियां रही हैं जो यह बताती हैं कि इस देश में भ्रष्टाचारियों के बीच गजब का भाईचारा है। कृपाशंकर सिं‍ह उत्तर भारतीयों के नेता कहलाते हैं‍। इसी लेबल के सहारे उन्होंने दो सौ फीट की झोपडी से आलीशान कोठी, कई फ्लैटों, करोडों के फार्म हाऊस और अरबों की दुकानों तक का सफर तय किया। कृपाशंकर दाल-रोटी के चक्कर में मुंबई आये थे। आलू-टमाटर बेचते-बेचते कांग्रेस की गोद में जा बैठे। कहते हैं देश की सबसे पूरानी पार्टी कांग्रेस किसी को निराश नहीं करती। अपने सेवकों के भाग्य का ताला खोल ही देती है। बशर्ते सेवक लेने और देने तथा पीठ में छुरा भोकने की कला में सिद्धहस्त हो। दिल्ली में बैठे अपने कांग्रेसी आकाओं के आशीर्वाद की बदौलत महाराष्ट्र सरकार में गृहराज्य मंत्री की कुर्सी पर बैठने और फिर बेफिक्री के साथ उसका दोहन करने वाले कृपाशंकर के खिलाफ आय से अधिक संपत्ति के मामले में भ्रष्टाचार विरोधी कानून के तहत प्राथमिकी दर्ज हो चुकी है। गिरफ्तारी का खतरा भी मंडरा रहा है। इस प्रतापी उत्तर भारतीय नेता ने चंद ही वर्षों में चार सौ करोड से अधिक की संपत्ति जमा कर यह भी बता दिया है कि राजनीति से बढि‍या और कोई धंधा नहीं हो सकता है। धोखाधडी, जालसाजी तथा साक्ष्यों को नष्ट करने के आरोपी कृपाशंकर सिं‍ह ने झारखंड के भ्रष्टतम पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोडा की सरकार के मंत्री कमलेश सिं‍ह को अपना समधी बनाकर उससे अरबों रुपये झटके तथा मधु कोडा की हराम की कमायी से भी मोटी हिस्सेदारी पायी। यह मान लेना भी कृपा के साथ घोर अन्याय होगा कि उसने सारा माल खुद की तिजोरी के हवाले कर दिया होगा। हराम की कमायी के एक नहीं कई दमदार माई-बाप होते हैं। मधु कोडा हों या कृपाशंकर अपने अकेले के दम पर तो दो कदम भी आगे नहीं बढ सकते। यह माई-बाप तब तक साथ देते रहते हैं जब तक सबकुछ ठीक-ठाक चलता रहता है। भ्रष्टाचारी औलादों को यह सीख भी दे दी जाती है कि किसी भी हालत में पकड में न आना। जो पकडा गया वह चोर कहलाता है। मधु कोडा और कृपाशंकर सिं‍ह जैसे जल्दबाज नेता अपने माई-बाप की सीख पर ढंग से अमल नहीं कर पाये। बदकिस्मती से धर लिये गये। माई-बाप ने भी उन्हें अनाथों की तरह मरने-मिटने के लिए अकेला छोड दिया है। बेचारे मधु कोडा और कृपाशंकर सिं‍ह...!

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