Thursday, May 10, 2012

आग जलनी चाहिए



विभिन्न सामाजिक मुद्दों को उठाने के लिए शुरू किये गये टीवी-शो'‘सत्यमेव जयते' की शुरुआत ही गजब की रही। इस शो में कन्या भ्रूण हत्या जैसे उस बेहद गंभीर मुद्दे को उठाया गया जिसे समय-समय पर देश के कई बुद्धिजीवी, पत्रकार और सामाजिक कार्यकर्ता भी उठाते रहे हैं। पर इस इकलौते शो ने तो कमाल ही कर डाला! जिस काम को अनेकों लोग वर्षों की मेहनत के बाद भी नहीं कर पाये उसे एक शो ने कुछ ही घंटों में कर दिखाया! इसे हम फिल्म अभिनेता आमिर खान के व्यक्तित्व के चमत्कार की सफलता भी मान सकते हैं। एक अकेले शख्स ने न जाने कितने लेखकों, पत्रकारों, नेताओं और तथाकथित समाजसेवकों को मात दे दी। कई लोगों को आपत्ति भी हो सकती है। पर जो सच है उसे झुठलाया भी नहीं जा सकता। अपने देश के कुछ ऐसे प्रदेश हैं जहां कन्या भ्रूण हत्या पर लाख प्रयासों के बाद भी रोक नहीं लगायी जा सकी है। शहरों, कस्बों और ग्रामों में भ्रूण लिं‍ग परीक्षण की तो जैसे दूकानें ही खुल चुकी हैं। फौरन पता लगा लिया जाता है कि गर्भवती मां के पेट में लडका है या लडकी। लडकियों के दुश्मन ढेरों हैं इसलिए उनके भ्रूण को येन-केन-प्रकारेण नष्ट करने में देरी नहीं की जाती। लडकों से वंश चलता है इसलिए उनके भ्रूण पर आंच नहीं आने दी जाती। इक्कीसवीं सदी में भले ही बहुत कुछ बदल गया है पर लडकी को लेकर कई लोगों की सोच नहीं बदली है। उनके लिए लडकी का मतलब होता है, एक ऐसा बोझ जो जीवन भर पीछा नहीं छोडता। लडका कमाकर देता है और लडकी कमायी को खाती है। पढाई-लिखायी से लेकर शादी ब्याह तक मजबूरन धन लूटाना पडता है। बदले में कुछ भी मिलता-जुलता नहीं। देश के कई नामी-गिरामी डाक्टर वर्षों से भ्रूण लिं‍ग परीक्षण और गर्भपात के कुकर्म में साथ देते हुए अपनी तिजोरियां भरने में लगे हैं। ये डाक्टर अपने विवेक को बेचने के बाद भी सीना तानकर चलते हैं। वे जानते हैं कि वे हत्यारे हैं। कानून और मानवता के साथ खिलवाड कर रहे हैं। पर जहां कमाने की होड मची हो वहां दिल की कौन सुनता है?
पर इस सच को भी नजअंदाज नहीं किया जा सकता कि दमदार मार्केटिं‍ग के जरिये कुछ भी करवाया जा सकता है। बहरों के कान तक भी आवाज पहुंचायी जा सकती है। शासन और प्रशासन के मुंह पर थप्पड मारा जा सकता है। स्टार टीवी ने अभिनेता आमिर खान के साथ मिलकर वही तो किया है जिसे अभी तक कोई नहीं कर पाया था। अभिनेता ने जैसे ही सत्यमेव जयते कहा सारा देश जाग गया। वैसे यह भारत के राष्ट्रीय प्रतीक चिन्ह का वाक्य है जो देश के लगभग सभी पुलिस थानों में नजर आता है। लोग पढते हैं। व्यंग्य से मुस्कराते हैं और आगे बढ जाते हैं। अपने यहां के थानों की साख ही कुछ ऐसी है कि जहां अच्छे-खासे उपदेश अर्थहीन प्रतीत होते हैं। खैर जैसे ही अभिनेता ने सत्यमेव जयते के नारे के साथ कन्या भ्रूण की सच्चाई देश और दुनिया के सामने रखी तो कई लोग ऐसे हतप्रभ रह गये जैसे किसी ने पहली बार इस भयावह हकीकत से पर्दा उठाया हो। यह कहने में कोई अतिशयोक्ति नहीं कि एक सैलिब्रेटी ने जैसे ही इस पुरातन समस्या को उठाया तो जनता तो जनता मंत्री-संत्री तक जाग उठने का नाटक करते नजर आये। राजस्थान के मुख्यमंत्री ने तो फौरन अभिनेता को मिलने का बुलावा भेज दिया। दोनों आपस में मिले भी। राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के अंदाज बता रहे थे कि अपने प्रदेश की इस जगजाहिर समस्या के बारे में उन्हें पहली बार सटीक जानकारी मिली है! मुख्यमंत्री ने अभिनेता को आश्वासन दिया कि कन्या भ्रूण समस्या से पूरी ताकत के साथ निपटा जाएगा। उन डाक्टरों को भी नहीं बख्शा जायेगा जो इस अपराध को रोकने की बजाय बढावा देते चले आ रहे हैं। ध्यान रहे कि शो में राजस्थान को लेकर गर्भपात और बेटियों के साथ होने वाले घोर अन्याय के कई उदाहरण पेश किये गये थे। कांची के शंकराचार्य ने भी गर्भपात पर रोक लगाये जाने की मांग दोहरा दी है। इस शो का असर ही कहेंगे कि उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद में स्वास्थ्य विभाग के द्वारा छापा मारकर गर्भपात करने वाले डाक्टर को रंगे हाथ गिरफ्तार कर लिया गया।
देश के दूसरे शहरों में भी डॉक्टरी के नाम पर कसाईगिरी करने वाले बदमाशों के प्रति रोष और धडपकड की खबरें सुर्खियों में हैं। मेरे विचार से यह अच्छे बदलाव के संकेत हैं। जिसका श्रेय अभिनेता आमिर खान को जाता है। भले ही उन्होंने यह सफलता जबरदस्त मार्केटिं‍ग की बदौलत हासिल की हो, पर की तो है। ऐसे में इधर-उधर की बेसिर-पैर की बातों में उलझने की बजाय इस नयी पहल का स्वागत किया जाना चाहिए। किसी ने तो अपने हाथ में मशाल  थामी। दुष्यंत कुमार की गजल की पंक्तियां हैं:

हो गई है पीर पर्वत-सी पिघलनी चाहिए,
इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए।

मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही,
हो कहीं भी आग, लेकिन आग जलनी चाहिए।

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