आसमान पर उडने वालों को एक न एक दिन जमीन पर आना ही पडता है। शासकों को पता नहीं कौन इस भ्रम में डाल देता है कि उनका सितारा कभी नहीं डूब सकता। जो राजनेता लोकतंत्र और वोटरों के मिज़ाज़ की सच्चाई को नजरअंदाज नहीं करते उन्हें सत्ता में होने या न होने से कोई फर्क नहीं पडता। उत्तरप्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री बहन मायावती के दरबारियों ने उनको हमेशा अंधेरे में रखा। बहन जी भी उजाले यानी हकीकत से परहेज करने लगी थीं। कहते हैं कि उनके पास प्रजा की फरियाद सुनने के लिए वक्त ही नहीं रहता था। कहां और किस जगह किस-किस की मूर्तियां स्थापित करनी हैं और अमरत्व को पाना है इसी जद्दोजहद में उन्होंने अपना कीमती वक्त गंवा दिया। उन्हें याद ही नहीं रहा कि हाड-मांस के जीते-जागते पुतलों ने उन्हें सत्ता किस लिए सौंपी है। वे मगरूर होती चली गयीं और जनता से भी दूर हो गयीं। आखिरकार जनता ने उन्हें सबक सिखा ही दिया। सत्ता खोने के बाद बहन जी के होश ठिकाने आ गये। उन्हें उन मीडिया वालों की भी याद हो आयी जिन्हें अपने मुख्यमंत्रित्व काल में वे अक्सर दुत्कारा और फटकारा करती थीं और उनसे दूरी बनाये रखने में अपनी भलाई समझती थीं। एक पुरातन कहावत है चोर की दाढी में तिनका। इस कहावत की सार्थकता आज भी बरकरार है।
मायावती को मीडिया के समक्ष उपस्थित होने के लिए कोई ठोस मुद्दा और कारण नहीं सूझ रहा था। उत्तरप्रदेश के विधानसभा चुनावों में बुरी तरह से मात खाने के बाद भी उन्हें यही लगता है कि वे इस पराजय की हकदार नहीं थीं। उनके साथ घोर धोखा और अन्याय हुआ है। उनके शत्रु आज भी उनके पीछे लगे हैं। राजनेता अपना भाषण खुद लिखते हैं या दूसरों से लिखवाते हैं इस बाबत कभी कोई सवाल-जवाब नहीं किये जाते। पत्रकार भी जानते-समझते हैं कि यह जमात दूसरों की कलम और दिमाग का ज्यादा इस्तेमाल करती है। ऐसे बिरले ही हैं जो मौलिक सोच रखते हों और लिखने और पढने में पारंगत हों।
जब मायावती यूपी की मुख्यमंत्री थीं तब यह कहा जाता था कि बसपा की सरकार को शशांक शेखर, पीएल पुनिया और सतीशचंद्र मिश्रा जैसे लोग चला रहे हैं। बहनजी तो सिर्फ सत्ता सुख भोगते हुए आराम फरमाती रहती हैं। तब तो उन्होंने चुप्पी साधी हुई थी पर अब जब वे सत्ता में नहीं हैं कि तो उन्होंने फरमाया है कि कोई दूसरा नहीं बल्कि मैं पूरे होशो हवास के साथ खुद अपनी सरकार चला रही थी। तब भी अपना भाषण मैं खुद लिखती थी और आज भी सतीशचंद्र मिश्रा और दारासिंह चौहान जैसे सांसद मेरा लिखा ही संसद में पढते हैं। यानी वे संसद में वही बोलते हैं जो बहनजी चाहती हैं।
मायावती यहीं ही नहीं रुकीं। उन्होंने यूपी की वर्तमान समाजवादी पार्टी की सरकार पर जमकर तीर चलाये। उनका कहना है कि सपा के कार्यकर्ता अपनी पहले वाली हरकतों को दोहरा रहे हैं। हफ्ता वसूली और अपहरण की घटनाएं बढ रही हैं। कारोबारी खुद को असुरक्षित महसूस कर रहे हैं। दलितों पर होने वाले अत्याचारों की कोई सीमा नहीं रही। हद तो यह कि थानों में रिपोर्ट तक दर्ज नहीं की जाती। पुलिस वालों के सामने अपराधी अपने वाहनों पर सपा के झंडे लगाकर बेखौफ घूमते हुए अपराधों को अंजाम देने में लगे हैं। राज्यसभा सदस्य बनने के बाद पहली बार संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करने वाली मायावती को यूपी रसातल में जाता नजर आ रहा है। दूसरी तरफ प्रदेश के युवा मुख्यमंत्री अखिलेश यादव का कहना है कि मायावती ने प्रदेश की ऐसी दुर्गति करके रख दी है कि जिसे सुधारने में वक्त तो लगेगा ही। पंद्रह दिनों के भीतर कानून व्यवस्था में सुधार लाने का दावा करने वाले मुख्यमंत्री यह भी बताने से नहीं चूकते कि पिछले कुछ वर्षों में गलत नीतियों एवं प्रशासनिक कर्मियों के कारण राज्य विकास के मामले में काफी पिछड गया है। प्रदेश के प्रति व्यक्ति की आय राष्ट्रीय प्रति व्यक्ति की लगभग आधी है। उन्होंने अधिकारियों से कहा है कि हम सभी को मिलकर प्रदेश के विकास कर सकारात्मक आधार तैयार करना होगा ताकि लोगों को परिवर्तन की सुखद अनुभूति हो।
हमारा तो यही कहना है कि जिस जनता ने मायावती को सत्ता से बाहर किया है उसे अखिलेश यादव से बहुत उम्मीदें हैं। अगर वे खरे नहीं उतरे तो जनता युवा नेताओं पर भी भरोसा करना छोड देगी। सुनने में आ रहा है कि अधिकारियों और बाबुओं ने उनकी नाक में दम कर रखा है। प्रशासन में कई लोगों की दखलअंदाजी से भी उन्हें फैसले लेने में कठिनाई हो रही है। कहने को तो अखिलेश प्रदेश के मुख्यमंत्री हैं पर पिता मुलायम सिंह यादव के इशारों पर भी उन्हें नाचना ही पडता है। ऐसे में अखिलेश के भी बहनजी जैसे हाल न हो जाएं, सोच कर डर लगता है। हालांकि इससे उनका कुछ नहीं बिगडेगा। भुगतना तो उसी आम जनता को ही पडेगा जिसे नये 'राजा' से बहुतेरी उम्मीदें हैं।
मायावती को मीडिया के समक्ष उपस्थित होने के लिए कोई ठोस मुद्दा और कारण नहीं सूझ रहा था। उत्तरप्रदेश के विधानसभा चुनावों में बुरी तरह से मात खाने के बाद भी उन्हें यही लगता है कि वे इस पराजय की हकदार नहीं थीं। उनके साथ घोर धोखा और अन्याय हुआ है। उनके शत्रु आज भी उनके पीछे लगे हैं। राजनेता अपना भाषण खुद लिखते हैं या दूसरों से लिखवाते हैं इस बाबत कभी कोई सवाल-जवाब नहीं किये जाते। पत्रकार भी जानते-समझते हैं कि यह जमात दूसरों की कलम और दिमाग का ज्यादा इस्तेमाल करती है। ऐसे बिरले ही हैं जो मौलिक सोच रखते हों और लिखने और पढने में पारंगत हों।
जब मायावती यूपी की मुख्यमंत्री थीं तब यह कहा जाता था कि बसपा की सरकार को शशांक शेखर, पीएल पुनिया और सतीशचंद्र मिश्रा जैसे लोग चला रहे हैं। बहनजी तो सिर्फ सत्ता सुख भोगते हुए आराम फरमाती रहती हैं। तब तो उन्होंने चुप्पी साधी हुई थी पर अब जब वे सत्ता में नहीं हैं कि तो उन्होंने फरमाया है कि कोई दूसरा नहीं बल्कि मैं पूरे होशो हवास के साथ खुद अपनी सरकार चला रही थी। तब भी अपना भाषण मैं खुद लिखती थी और आज भी सतीशचंद्र मिश्रा और दारासिंह चौहान जैसे सांसद मेरा लिखा ही संसद में पढते हैं। यानी वे संसद में वही बोलते हैं जो बहनजी चाहती हैं।
मायावती यहीं ही नहीं रुकीं। उन्होंने यूपी की वर्तमान समाजवादी पार्टी की सरकार पर जमकर तीर चलाये। उनका कहना है कि सपा के कार्यकर्ता अपनी पहले वाली हरकतों को दोहरा रहे हैं। हफ्ता वसूली और अपहरण की घटनाएं बढ रही हैं। कारोबारी खुद को असुरक्षित महसूस कर रहे हैं। दलितों पर होने वाले अत्याचारों की कोई सीमा नहीं रही। हद तो यह कि थानों में रिपोर्ट तक दर्ज नहीं की जाती। पुलिस वालों के सामने अपराधी अपने वाहनों पर सपा के झंडे लगाकर बेखौफ घूमते हुए अपराधों को अंजाम देने में लगे हैं। राज्यसभा सदस्य बनने के बाद पहली बार संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करने वाली मायावती को यूपी रसातल में जाता नजर आ रहा है। दूसरी तरफ प्रदेश के युवा मुख्यमंत्री अखिलेश यादव का कहना है कि मायावती ने प्रदेश की ऐसी दुर्गति करके रख दी है कि जिसे सुधारने में वक्त तो लगेगा ही। पंद्रह दिनों के भीतर कानून व्यवस्था में सुधार लाने का दावा करने वाले मुख्यमंत्री यह भी बताने से नहीं चूकते कि पिछले कुछ वर्षों में गलत नीतियों एवं प्रशासनिक कर्मियों के कारण राज्य विकास के मामले में काफी पिछड गया है। प्रदेश के प्रति व्यक्ति की आय राष्ट्रीय प्रति व्यक्ति की लगभग आधी है। उन्होंने अधिकारियों से कहा है कि हम सभी को मिलकर प्रदेश के विकास कर सकारात्मक आधार तैयार करना होगा ताकि लोगों को परिवर्तन की सुखद अनुभूति हो।
हमारा तो यही कहना है कि जिस जनता ने मायावती को सत्ता से बाहर किया है उसे अखिलेश यादव से बहुत उम्मीदें हैं। अगर वे खरे नहीं उतरे तो जनता युवा नेताओं पर भी भरोसा करना छोड देगी। सुनने में आ रहा है कि अधिकारियों और बाबुओं ने उनकी नाक में दम कर रखा है। प्रशासन में कई लोगों की दखलअंदाजी से भी उन्हें फैसले लेने में कठिनाई हो रही है। कहने को तो अखिलेश प्रदेश के मुख्यमंत्री हैं पर पिता मुलायम सिंह यादव के इशारों पर भी उन्हें नाचना ही पडता है। ऐसे में अखिलेश के भी बहनजी जैसे हाल न हो जाएं, सोच कर डर लगता है। हालांकि इससे उनका कुछ नहीं बिगडेगा। भुगतना तो उसी आम जनता को ही पडेगा जिसे नये 'राजा' से बहुतेरी उम्मीदें हैं।
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