Thursday, May 31, 2012

भेडि‍यों को पहचानो

वो भी एक दौर था जब शिक्षा के क्षेत्र में विद्वानों और चरित्रवानों की उपस्थिति को नितांत आवश्यक समझा जाता था। आज तो हालात यह हैं कि लम्पट किस्म के लोग भी इस क्षेत्र में घुसपैठ कर चुके हैं। नेताओं और उद्योगपतियों ने कालेजों और स्कूलों को दूकानों में तब्दील करके रख दिया है। ऐसे में पढाने वाले सेल्समैन की भूमिका में हैं और सेल्समैन का मालिक के फायदे के लिए काम करना जरूरी होता है। नहीं तो उसका पत्ता कटने में देरी नहीं लगती। मालिक को भी हमेशा ऐसे सेल्समैन की तलाश रहती है जो उसकी कमायी में भरपूर योगदान दे। उसे उनके चरित्र से कोई लेना-देना नहीं होता। नेताओं के मेडिकल और इंजिनियरिंग कालेजों में लाखों की वसूली की जाती है। उस काम को अंजाम देने में चाटूकार किस्म के प्रोफेसर और प्राचार्य खासी भूमिका निभाते हुए वर्षों तक टिके रहते हैं। धन वसूलने की उनकी यह भूमिका जगजाहिर हो चुकी है। लोगों ने इसे मजबूरीवश स्वीकार भी कर लिया है। पर अब तो कई स्कूल और कालेज अय्याशी के अड्डे भी बन चुके हैं। जहां पर छात्राओं की इज्जत पर खुलेआम डाका डाला जा रहा है। भोली-भाली छात्राओं की मासूमियत के साथ जिस तरह से छेडछाड की जा रही है उससे यह भय भी सताने लगा है कि शिक्षा का क्षेत्र कहीं चरित्रहीनों और निर्लज्जों का अखाडा न बनकर रह जाए।
पंजाब देश का एक ऐसा प्रदेश है जिसके बारे में कहा जाता है कि यहां महिलाओं को भरपूर इज्जत बख्शी जाती है। मां, बहनों और बेटियों पर बुरी नजर डालने वालों का कचूमर निकाल कर रख दिया जाता है। इसी पंजाब के मनासा जिले में स्थित गल्र्स हाईस्कूल के अय्याश प्रिं‍सिपल की बीते सप्ताह ऐसी धुनाई की गयी कि उसकी आने वाली पीढि‍यां भी नहीं भूल पायेंगी। यह प्रिं‍सिपल छात्राओं को पढाना-लिखाना छोड अश्लील फिल्मों में डूबा रहता था। क्लास रूम में मोबाइल फोन पर छात्राओं के सामने नंगी फिल्में देखने में उसे बडा मजा आता था। अगर उसकी नीयत में खोट नहीं होती तो वह इस दुष्कर्म को एकांत में भी अंजाम दे सकता था। पर उसकी मंशा ही यही होती कि अश्लील फिल्म देखकर छात्राओं की भावनाएं भडकें और शारीरिक संबंध बनाने के लिए उतावली हो जाएं। वासना की अंधी गलियों में भटकते प्रिं‍सिपल की हरकतों का छात्राओं ने कई बार विरोध किया। आधुनिक शिक्षण क्षेत्र का यह महर्षि सुधरने की बजाय छात्राओं पर भद्दी टिप्पणीयां करते हुए देख लेने की धमकियां देने लगा। आखिरकार छात्राओं को अहसास हो गया कि इसका सुधरने का इरादा नहीं है। ऐसे में अगर कुछ नहीं किया गया तो बात और बिगड सकती है। अंतत: सजग छात्राओं ने अपने अभिभावकों को उसकी निर्लज्ज करतूतों से अवगत करा दिया। अभिभावक आग बबूला हो उठे। उन्होंने प्रिं‍सिपल को क्लास रूम में ही रंगे हाथ पकडा और जूते-चप्पलों, घूसों और थप्पडों की बरसात करने के बाद पुलिस के हवाले करने में कतई देरी नहीं लगायी। जेल की सलाखों के पीछे पहुंचने के बाद यह वासना का पुजारी सुधरेगा या नहीं यह तो बाद की बात है, लेकिन इससे उन पथभ्रष्टों को जरूर सबक मिलेगा जो नैतिकता और मर्यादा की बलि चढकर दूसरों की बेटियों की इज्जत पर दाग लगाने की फिराक में रहते हैं।
पंजाब से लगा हरियाणा प्रदेश भी वासनाखोरों से अछूता नहीं है। यहां भी स्कूलों और कालेजों में लडकियां महफूज नहीं हैं। सोनीपत जिले के खानपुर गांव में भगत फूलसिं‍ह महिला विश्वविद्यालय में दिनदहाडे एक छात्रा पर बलात्कार किया गया। यह कुकर्म करने वाले और कोई नहीं बल्कि हॉस्टल के संचालक और उसके दो साथी हैं। बलात्कार की शिकार छात्रा इतनी आहत और विचलित हो गयी कि उसकी रूलायी थमने का नाम नहीं ले रही थी। सहेलियों के लगातार पूछने पर उसने आपबीती बतायी तो वे भी सन्न रह गयीं। उनका खून खौल उठा और वे फौरन हॉस्टल के वार्डेन के पास जा पहुंची। वार्डेन ने शिकायत को इस अंदाज से सुना कि जैसे कुछ हुआ ही न हो। वे उपदेश झाडने लगे। उनका कहना था घर की बात घर में ही रहनी चाहिए। बाहर जाने से सभी की बदनामी होती है। समझदारी इसी में है कि छोटी-छोटी बातों को मुद्दा न बनाया जाए। जो होना था, वह हो गया। अब उसे भूल जाना उस लडकी के हित में है जिसका यौन शोषण हुआ है। आखिर उसे शादी भी करनी है। अगर बदनामी हो गयी तो कौन शरीफ आदमी उससे ब्याह रचायेगा? वार्डेन के रवैय्ये से खफा छात्राएं विश्व विद्यालय के रजिस्ट्रार तथा कुलपति के पास गई तो उन्होंने भी चुप्पी साध लेने की अमूल्य सलाह दे डाली। कुलपति महोदय को चिं‍ता सता रही थी कि अगर यह बात बाहर चली गयी तो विश्वविद्यालय की बेहद बदनामी होगी। उन्हें छात्रा की इज्जत के लुट जाने का कोई मलाल नहीं था। इसी विश्वविद्यालय में तीन माह के भीतर तीन छात्राओं को आत्महत्या करने के लिए क्यों विवश होना पडा इस पर अभी तक रहस्य का पर्दा पडा हुआ है। प्रशासन 'बलात्कार' की भनक भी किसी को पडने देना नहीं चाहता था। बलात्कारियों के हिमायती नजर आने वाले कुलपति की सीख को नजर अंदाज कर छात्राओं ने आखिर वो कर दिखाया जिसकी किसी को उम्मीद नहीं थी। दो हजार से अधिक छात्राएं सडक पर उतरीं और विश्वविद्यालय के ऊंचे ओहदों पर बैठे भेडि‍यों के खिलाफ कार्रवाई करने की मांग पर अड गयीं। उनके तीखे नारों ने लोगों की आंखें खोल दीं। वार्डेन, रजिस्ट्रार और कुलपति जैसों के चेहरों पर जितना भी थूका जाए कम है। पर क्या विश्वविद्यालय प्रशासन की कमीनगी का पर्दाफाश करने के लिए सडकों पर उतरने वाली लडकियों को शाबाशी देने के साथ-साथ नमन नहीं किया जाना चाहिए?

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