Thursday, May 3, 2012

इसे कहते हैं कलाकारी

तब देश में फिल्म अभिनेता गोविं‍दा का जलवा था। फिल्में खूब चलती थीं। उनके चाहने वालों में हर वर्ग के लोग शामिल थे। राजनीति से उनका कोई लेना-देना नहीं था परंतु कांग्रेस के चतुर, चालाक और शातिर नेता कृपाशंकर सिं‍ह और चाटूकार पत्रकार राजीव शुक्ला उन्हें कांग्रेस में लाने की ठान चुके थे। इन्हें यकीन था कि लोकप्रिय अभिनेता लोकसभा चुनाव जीतने में सक्षम है। उन्हीं दिनों मुंबई में कांग्रेस के एक कार्यक्रम में गोविं‍दा को आमंत्रित कर सोनिया गांधी के साथ मंच पर विराजमान करा दिया गया। गोविं‍दा गदगद हो गये। उन्होंने अपने भाषण में एक कविता पढी। दरअसल इस कविता में कांग्रेस सुप्रीमों की आरती गायी गयी थी। मैडम को फिल्मी नायक का यह अंदाज भा गया। लोकसभा चुनाव में गोविं‍दा को टिकट थमा दी गयी। यह उनकी लोकप्रियता का चमत्कार था कि वे भाजपा के एक दिग्गज नेता को पराजित कर सांसद बनने में सफल भी हो गये। उनके जीतने से भ्रष्टाचारी कृपाशंकर की साख बढ गयी और फिर धीरे-धीरे उसने इतनी दौलत बटोरी कि राजनीति के पुराने घाघ खिलाडि‍यों की आंखें फटी की फटी रह गयीं। अखबार में कलम घिसायी करने वाले राजीव शुक्ला के यहां भी दौलत बरसने लगी और उन्होंने न्यूज-२४ के कारोबार को अच्छी तरह से जमा लिया।
कृपाशंकर सिं‍ह और राजीव शुक्ला जैसे संदिग्ध नवधनाढ्य उन लोगों के आदर्श हैं जो राजनीति में प्रवेश करने के बाद येन-केन-प्रकारेण करोडों में खेलना चाहते हैं। गोविं‍दा सांसद तो बन गये पर उन वोटरों के लिए कुछ भी नहीं कर पाये जिन्होंने उन पर विश्वास जताया था। कांग्रेस ने उन्हें दूसरे प्रत्याशियों के चुनाव प्रचार में झोंकने में कोई कोर कसर बाकी नहीं रखी। अपने देश में अभिनेताओं को देखने के लिए वैसे भी भीड उमड पडती है। कांग्रेस ने अभिनेता का खूब दोहन किया। पर 'हीरो' को दो नाव की सवारी इतनी महंगी पडी कि फिल्मों से भी जाते रहे। राजनीति उनके बस का रोग नहीं था, सो दूसरा लोकसभा चुनाव लडने की हिम्मत ही नहीं जुटा पाये। जबरदस्ती के सौदे का यही हश्र होता है। राजीव शुक्ला ने फिल्म अभिनेता शाहरुख खान पर भी जाल फेंकने की बहुतेरी कोशिशें की थीं। पर कामयाब नहीं हुए। पर फिर भी कोशिशें जारी हैं। लगभग रिटायर हो चुकी फिल्म अभिनेत्री रेखा को दाना डालने में उन्हीं का हाथ है। रेखा ने भले ही फिल्मों में अभिनय कर नाम कमाया हो, पर जिस तरह से वे कपडों की तरह प्रेमी बदलती रहीं उससे उन्हें चरित्रवान नारी तो कतई नहीं कहा जा सकता। रेखा को राज्यसभा में लाने से यह तो पक्का हो गया है कि सांसद बनने के लिए चरित्रवान होना जरूरी नहीं है। नाम होना चाहिए। भले ही इज्जत पर दाग लगाकर कमाया गया हो। सोनिया गांधी और बच्चन परिवार के बीच की कटुता जगजाहिर है। समाजवादी मुलायम सिं‍ह यादव बच्चन परिवार पर इसलिए मेहरबान रहे हैं क्योंकि उनकी गांधी परिवार से नहीं जमती। अमिताभ बच्चन की पत्नी जया बच्चन को भी वे इसी वजह से राज्यसभा के लिए मनोनीत करते चले आ रहे हैं। कांग्रेस के द्वारा रेखा को राज्यसभा लाने के पीछे भी यहीं राजनीति काम कर रही है। रेखा अमिताभ की पूर्व प्रेमिका हैं। जाहिर है अब उसकी अमिताभ के साथ नहीं पटती। दुश्मन के दुश्मन से दोस्ती करने को भी राजनीति कहते हैं। कांग्रेस ने रेखा को जया बच्चन के सामने खडा कर जो गेम खेला है उसके परिणाम भी शीघ्र सामने आ जाएंगे। देश के जाने-माने क्रिकेटर सचिन तेंदुलकर को भी राज्यसभा में लाने वाले यही राजीव शुक्ला ही हैं। हालांकि सचिन का कहना है कि साढे बाइस साल तक क्रिकेट की सेवा के फलस्वरूप उन्हें इस सम्मान से नवाजा गया है। सचिन की तरह क्रिकेट की सेवा करने वाले और हैं। पर मैडम की उन पर कभी दया-दृष्टि नहीं हो पायी। राजीव शुक्ला का भी उन पर ध्यान नहीं गया। सचिन का यह बयान भी आया कि वे क्रिकेटर ही रहेंगे। राजनीति के दरवाजे से कोसों दूर रहेंगे। सचिन के राज्यसभा के लिए मनोनयन के फौरन बाद भाकपा नेता गुरुदास कामत ने सवाल उठाया कि सौरभ गांगुली ने कौन-सा पाप किया है जो उन्हें इसके लायक नहीं समझा गया। तय है कि क्रिकेट के अलावा और भी खेल इस देश में खेले जाते हैं पर सरकारें क्रिकेटरों पर ही मेहरबान रहती हैं। हॉकी, कबड्डी, फुटबाल जैसे हिं‍दुस्तानी खेलों और खिलाडि‍यों की कोई पूछ-परख नहीं होती। यह कैसा न्याय है? इस मामले में भारतीय जनता पार्टी भी कम नहीं है। उसे भी नामी-गिरामी फिल्म और टीवी वाले ही दिखते हैं। शादीशुदा धर्मेंद्र से सात फेरे लेने वाली हेमा मालिनी और स्मृति ईरानी को राज्यसभा में इसलिए जगह मिल जाती है, क्योंकि वे लोकप्रिय होने के साथ-साथ खूबसूरत भी हैं। वोटरों को लुभा सकती हैं। वैसे भी राजनीति लेन-देन का खेल है। यहां रिकार्ड बनाना आसान नहीं है। टांगे खींचने वाले नाक में दम करके रख देते हैं। सचिन वाकई बहुत भोले हैं।
यह भी हो सकता है कि कांग्रेस सचिन को अपने आंगन में मूर्ति की तरह सजा कर रखने की सोच चुकी हो, क्योंकि उसे मालूम है कि पुरानी मूर्तियां आकर्षण खो चुकी हैं। निष्कर्ष यही है कि देशवासी उन्हें ताउम्र क्रिकेट खेलते देखना चाहते हैं पर राजनीति के सौदागर कुछ और ही ठान चुके हैं। हर कोई जानता है कि राजनीति और मतलबपरस्ती एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। सचिन कोई दूध पीते बच्चे नहीं जो इतना भी न समझते हों।

No comments:

Post a Comment