Thursday, August 2, 2012

नकली और असली भीड

पिछले वर्ष की तरह इस वर्ष भी अन्ना हजारे और बाबा रामदेव ने भ्रष्ट राजनेताओं और सरकार की नींद उडा कर रख दी है। बाबा कुछ ज्यादा जोश में हैं। वजह भी स्पष्ट दिखायी दे रही है। उनके खासमखास साथी बालकृष्ण को जेल भेज दिया गया है। उन्हें यकीन हो गया है कि सरकार हाथ धोकर उनके पीछे पड गयी हैं। ऐसे में वे अगर शांत बैठे रहेंगे तो उनपर भी आंच आ सकती है। सरकार का क्या भरोसा कि उन्हें भी सलाखों के पीछे पहुंचा दे। योग गुरु माहौल बनाने में लग गये हैं। इस कला में वे खासे पारंगत हैं। इसलिए दुश्मन के दुश्मनों के यहां हाजिरी लगाने और उनकी आरती गाने में कोई कसर नहीं छोड रहे हैं।
अन्ना हजारे की टीम को गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी मानवता के हत्यारे लगते हैं तो रामदेव को वे ऐसे महात्मा नजर आते हैं जिनमें कोई खोट नहीं है। भगवा वस्त्रधारी बाबा ने अहमदाबाद के एक कार्यक्रम में फरमाया कि सभी मुझसे गुजरात के भ्रष्टाचार के बारे में पूछते हैं। मुझे तो यह प्रदेश निरंतर प्रगति करता नजर आता है। भ्रष्टाचार का तो यहां नामो-निशान नहीं दिखता। मोदी ने कुछ भी गलत नहीं किया। अगर किया होता तो कांग्रेस नीत यूपीए सरकार उन्हें जेल में डाल चुकी होती। अब तो यह बात तय हो गयी है कि नौ अगस्त को दिल्ली के रामलीला मैदान में काले धन की वापसी के लिए अनशन करने जा रहे योगी ने नरेंद्र मोदी को क्लीन चिट दे दी है। ऐसे में जब अन्ना हजारे और उनकी टीम के लोग मोदी की बखिया उधेडेंगे तो क्या होगा? निश्चय ही बाबा तैश में आये बिना नहीं रहेंगे। ऐसे में सारा का सारा खेल बिगड भी सकता है। हो सकता है कि बाबा इसकी भी पूरी तैयारी कर चुके हों। वैसे भी अन्ना और बाबा में बहुत अंतर है। बाबा की सोच बदलती रहती है पर अन्ना अडिग रहते हैं। बाबा को उद्योग-धंधों की चिं‍ता है तो अन्ना का सिर्फ अपने लक्ष्य की।
बाबा और उनके चेले-चपाटों पर ढेरों उंगलियां उठती रही हैं। योग को उद्योग में तब्दील कर देने में भी उनका कोई सानी नहीं है। आरोपों में दम है इसलिए योगी बेचैन, भयभीत और विचलित नजर आता है। अन्ना के चेहरे की ताजगी और शालीनता में कोई फर्क नजर नहीं आता। यह बात दीगर है कि बीते एक साल में उनकी टीम के बारे में बहुत कुछ सुनने में आया। अरविं‍द केजरीवाल के आपा खो बैठने को लेकर तरह-तरह के सवाल उठते रहे। आयकर विभाग ने भी उनकी घेराबंदी की। किरण बेदी और भूषण बाप-बेटे को आरोपों के कटघरे में खडा कर यह कहा जाता रहा कि अन्ना टीम खुद पूरी तरह से पाक-साफ नहीं है। ऐसे में उसे दूसरों पर उंगलियां उठाने का कोई अधिकार नहीं है। इतना कुछ होने के बाद भी अन्ना हजारे पर कभी कोई उंगली नहीं उठी। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि अन्ना बाबा नहीं हैं। बाबा की बाजीगरी से भी अन्ना का कोई लेना-देना नहीं है। बाबा रामदेव को इस बात का भी गुरुर है कि उनमें भीड जुटाने की जबर्दस्त क्षमता है। इस बार के अनशन में जब शुरू के दिनों में पिछले वर्ष की तरह भीड नहीं जुटी तो बाबा ने भी मजाक उडाया और मीडिया ने भी। यह भी कहा गया कि अन्ना का जादू खत्म हो चुका है। उनके साथियों ने साख का सत्यानाश करके रख दिया है। पिछले वर्ष लगातार तेरह दिनों के अनशन से सरकार की नींद उडाकर रख देने वाले अन्ना के इस बार फिर से अनशन पर बैठते ही देखते ही देखते जो भीड उमडी उससे कई लोगों को धक्का लगा। मीडिया भी भौंचक्का रह गया। पर आम जनता के चेहरे खिल उठे। यही आम जनता ही अन्ना की असली ताकत है जो उन्हें हारते हुए नहीं देखना चाहती। उसे पता है अन्ना की हार में उसकी हार है और भ्रष्टाचारियों की जीत। लोगों को बहकाना कतई संभव नहीं है। वे जानते हैं कि अन्ना टीम भ्रष्टाचार का खात्मा करने और भ्रष्टाचारियों को सजा दिलाने के लिए जिस मजबूत लोकपाल बिल को लाने पर अडी है उसमें आम जन का ही हित छिपा है। भ्रष्टाचार और महंगाई ने आम आदमी के चेहरे की रौनक छीन ली है। इसलिए इस बार वह भी आर-पार की लडाई लडने को इच्छुक है। अन्ना हजारे तो नायक हैं ही। उनकी नैतिक ताकत लाजवाब है। पिछली बार उनके अनशन से सरकार हिल-सी गयी थी। इस बार अरविं‍द केजरीवाल, मनीष सिसोदिया और गोपाल राय ने भूख हडताल पर बैठकर देशवासियों को यह संदेश तो दे ही दिया है कि वे देशहित के लिए अपना बलिदान भी दे सकते हैं और बाबा रामदेव की तरह मैदान छोडकर भागने वालों में नहीं हैं। अन्ना हजारे की टीम का साहस सराहना के काबिल है। ऐसा पहली बार हुआ है कि कोई आंदोलन सरकार से टकराने की ठाने है और उसके भ्रष्ट मंत्रियों के चेहरों के रंग उड चुके हैं। सरकार भी लोकपाल आंदोलन की अहमियत से वाकिफ है और वह यह भी जानती है कि इस बार आंदोलनकारी उसकी कोई बात सुनने वाले नहीं हैं। कहावत है कि 'दूध का जला छाछ फूंक-फूंक कर पीता है।' अन्ना टीम सरकार पर यकीन करने को कतई तैयार नहीं दिखती। यह कहना भी गलत है कि देश की जनता ऐसे आंदोलनों से थक चुकी है और उसका मोहभंग हो चुका है। लोगों का मोह तब भंग होता जब उन्हें अन्ना के एजेंडा में कोई बदलाव नजर आता। अन्ना भी वही हैं और उनकी टीम के हौसले भी जस के तस हैं। रही बात भीड की तो उसे अनशन की सफलता और असफलता का पैमाना मान लेना भारी भूल होगी। पिछली बार भीड का बहुत-सा हिस्सा तमाशा देखने के लिए भी जुटा था पर इस बार जो भीड है वो अनशन को अंजाम तक ले जाने वाली भीड है। सरकार भी इस हकीकत को समझ रही है। दिखावे के लिए भले ही वह यह कह रही हो कि उसे ऐसे आंदोलनों और भूख हडतालों से कोई फर्क नहीं पडता।

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