किसी भी जीवंत अखबार के लिए उसकी वर्षगांठ बहुत मायने रखती है। इस अवसर पर प्रसन्नता होना भी स्वाभाविक है। सफलताओं के आकलन और असफलताओं के कारणों को जानने-समझने का भी यह सटीक अवसर है। महाराष्ट्र की उपराजधानी नागपुर से प्रकाशित होने वाले आपके प्रिय राष्ट्रीय साप्ताहिक 'विज्ञापन की दुनिया' ने अपने प्रकाशन के सोलह वर्ष पूर्ण कर १७ वें वर्ष में प्रवेश कर लिया है। इस साप्ताहिक का प्रकाशन क्यों किया गया... इसका जवाब इंकलाबी शायर अकबर इलाहाबादी के इस शेर में बखूबी दिया गया है:
''खींचो न कमाने व न तलवार निकालो।
जब तोप मुकाबिल हो तो अखबार निकालो।''
स्वतंत्रता दिवस के पर्व पर १९९६ में जब 'विज्ञापन की दुनिया' का प्रकाशन प्रारंभ किया गया था तब देश के बेहद चिंताजनक हालात थे। देवेगौडा देश के प्रधानमंत्री थे। उनका होना न होना एक बराबर था। दुनिया का सबसे बडा लोकतांत्रिक देश रामभरोसे चल रहा था। धनबल और बाहुबल ने अपनी जडें जमा ली थीं। चुनावों में अंधाधुंध काला धन खर्च कर येन-केन-प्रकारेण विधानसभाओं, लोकसभा तथा राज्यसभा में पहुंचने वालों का सिलसिला जोर पकड चुका था। अपराधियों ने खुद को सुरक्षित रखने के लिए राजनीति की डगर पकडनी शुरू कर दी थी। कई नेताओं को भी अराजकतत्वों का साथ फायदे का सौदा नजर आने लगा था। चुनाव प्रक्रिया में सुधार लाने के लिए तब के चुनाव आयुक्त टी.एन.शेषण ने अपना डंडा चला दिया था। भ्रष्ट राजनीति के वो शातिर खिलाडी जो चुनाव प्रचार में करोडों रुपये फूंकते हैं और लाखों दर्शाते हैं उनकी चूलें हिलने लगी थीं। वे नये-नये रास्ते खोजने में लग गये थे। देश के कई अखबारों में विज्ञापनों की कीमत पर खबरें छापी जाने लगी थीं। धन्ना सेठों और अपने-अपने क्षेत्र के दबंग माफियाओं ने जबरन पत्रकारिता के क्षेत्र में घुसपैठ कर अखबार निकालने का अभियान-सा चला दिया था। महंगी और लक्जरी कारों पर 'प्रेस' के स्टिकर श्रमजीवी पत्रकारों का मुंह चिढाने लगे थे। और मजे की बात यह कि अधिकांश अखबारों का किसी न किसी राजनीतिक पार्टी से अटूट वास्ता था। उनमें छपने वाली खबरें बता देती थीं कि यह अखबार कांग्रेस का है, भारतीय जनता पार्टी का है या फिर बहुजन समाज पार्टी अन्यथा समाजवादी पार्टी का। अपने निजी स्वार्थों को पूरा करने के लिए पत्रकारिता के तमाम उसूलों की बलि चढाये जाने के उस दौर में राष्ट्रीय साप्ताहिक 'विज्ञापन की दुनिया' का प्रकाशन इस अटूट इरादे से किया गया कि इस साप्ताहिक की अपनी एक अलग पहचान होगी। निष्पक्षता और निर्भीकता के साथ पत्रकारिता करते हुए आम आदमी की समस्याओं और तकलीफों को सामने लाते हुए शासन और प्रशासन को जगाने का अभियान चलाया जायेगा। जनहित के मुद्दों की कतई अनदेखी नहीं होगी और चाहे कुछ भी हो जाए पर इसे किसी पार्टी या नेता की कठपुतली नहीं बनने दिया जायेगा।
हमें गर्व है कि हम अपना तयशुदा लक्ष्य और रास्ता नहीं भूले। पूंजीपतियों के अखबारों से टक्कर लेते हुए 'विज्ञापन की दुनिया' निरंतर सिद्धांतो की लडाई लडता चला आ रहा है। शिक्षण माफियाओं, भू-माफियाओं और धर्म के ठेकेदारों को बेनकाब करते चले आ रहे इस अखबार ने भ्रष्ट राजनेताओं और दिशाहीन सत्ताधीशों को कभी भी नहीं बख्शा। हमारा मानना है कि हिंद के असली दुश्मन हैं जातिवाद, धर्मवाद, भ्रष्टाचार, अनाचार और अंधभक्ति। साम्प्रदायिक ताकतें अव्यवस्था फैलाने के साथ-साथ देश की प्रगति में बेहद बाधक बनी हुई हैं। देश के कुछ समाज सेवक और राजनेता ऐसे भी हैं जो आतंकवादियों और नक्सलियों के प्रति मित्रता भाव रखते हैं। आजादी के इतने वर्ष बीत जाने के बाद भी लोगों को अपनी जाति और धर्म के व्यक्ति को वोट देना जरूरी लगता है। दोस्ती और रिश्तेदारी भी खूब निभायी जाती है। तरह-तरह के प्रलोभन और धन की भूमिका भी जगजाहिर है। इस चक्कर में अपराधियों को भी सत्ता तक पहुंचने का मौका मिलता चला आ रहा है। 'विज्ञापन की दुनिया' ने जो देखा वही छापा। जब यह हकीकत हमारे सामने आयी कि कुछ बडे राजनेताओं के अपने-अपने गिरोह हैं जिनमें भू-माफिया, बिल्डर माफिया, कोयला माफिया, रेत माफिया, शराब माफिया और शिक्षण माफिया शामिल हैं तो हमने उनकी गहराई से तहकीकात कर निरंतर खबरें छापीं। जिससे गिरोहबाज और सौदागरनुमा नेता बौखला उठे। दरअसल महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ में कुछ ऐसे राजनेता हैं जिन्होंने ऐसे गुर्गे पाल रखे हैं जो उनकी छत्रछाया में रहकर निरंतर तरह-तरह के काले-पीले धंधों को बेखौफ अंजाम देते रहते हैं। चुनाव के समय इन्हीं के द्वारा जुटाया गया काला धन मतदाताओं को लुभाने के काम आता है। इन्हीं गुर्गों को सरकारी ठेके दिलाये जाते हैं। हरे भरे जंगलों के दरख्तों को काटने और वहां की खनिज सम्पदा के दोहन की भी उन्हें खूली छूट दे दी जाती है। चंद सिक्कों की ऐवज में कोयले की खदानों की लीज देकर उन्हें अरबपति और खरबपति बना दिया जाता है। यह कितनी शर्मनाक सच्चाई है कि महाराष्ट्र जैसे प्रदेश में बैंकों का कर्ज न चुका पाने के कारण बेबस किसानों को आत्महत्या करनी पडती है और दूसरी तरफ शक्कर कारखाने चलाने वाले राजनेताओं के पिट्ठू सरकारी बैकों का अरबों-खरबों रुपया हजम कर जाते हैं। यह भी काबिलेगौर है कि इस विशाल प्रदेश में कुछ बडे नेताओं के भी शक्कर कारखाने हैं जो हमेशा घाटे में चलते रहते हैं और कर्ज डूबोने का काम करते हैं। इस तथाकथित घाटे के बावजूद भी नेताओं और शक्कर कारखाने के मालिकों की नोटों की तिजोरियों की संख्या में इजाफा होता चला जाता है। ऐसे राजनेता भी हैं जो देशद्रोहियों से नजदीकियां रिश्ते रखते हैं। 'विज्ञापन की दुनिया' ने माफियाओं और सत्ताधारियों के भाईचारे पर बार-बार कलम की तलवार चलाकर सजग पत्रकारिता के दायित्व को निभाया है। देश और समाज के वातावरण में जहर घोलने वाले अराजक तत्वों के खिलाफ 'विज्ञापन की दुनिया' की कलम सतत चलती चली आ रही है। शासन और प्रशासन में बैठे भ्रष्टाचारियों को भी कभी बख्शा नहीं गया। सरकार की गलत नीतियों पर भी बेखौफ होकर शब्दबाण बरसाये गये। जनहित के कामों की तारीफ भी की गयी। पर हैरत की बात यह भी है कि सरकार कभी भी अपनी बुराई बर्दाश्त नहीं कर पाती। उसे सच शूल की तरह चुभता है। सरकार चलाने वाले देश और प्रदेश को अपनी बपौती मान लूटते-खसोटते रहें और 'विज्ञापन की दुनिया' चुपचाप तमाशा देखता रहे यह भला कैसे संभव है? सत्ता के मद में चूर शासन और प्रशासन को भी 'विज्ञापन की दुनिया' की निष्पक्षता और निर्भीकता कम ही रास आती है। दरअसल जो चाटूकारिता करते हैं वही उन्हें भाते हैं। झूठी प्रशंसा के जन्मजात भूखों को अब कौन समझाये कि बेखौफ होकर सच को सामने लाना ही पत्रकारिता का पहला धर्म है। जो इस धर्म की सौदेबाजी करते हैं उन्हें पत्रकारिता में रहने का कोई अधिकार नहीं है। 'विज्ञापन की दुनिया' अपने पत्रकारीय दायित्व को निभाने के लिए प्रतिज्ञाबद्ध है। यह संकल्प कभी टूट नहीं सकता क्योंकि इसके साथ देश के लाखों सजग पाठक, शुभचिंतक, आत्मीय जन और अपनी जान को दांव पर लगा देने वाली समर्पित टीम है।
स्वतंत्रता दिवस और वर्षगांठ के पर्व पर समस्त देशवासियों को हार्दिक शुभकामनाएं।
''खींचो न कमाने व न तलवार निकालो।
जब तोप मुकाबिल हो तो अखबार निकालो।''
स्वतंत्रता दिवस के पर्व पर १९९६ में जब 'विज्ञापन की दुनिया' का प्रकाशन प्रारंभ किया गया था तब देश के बेहद चिंताजनक हालात थे। देवेगौडा देश के प्रधानमंत्री थे। उनका होना न होना एक बराबर था। दुनिया का सबसे बडा लोकतांत्रिक देश रामभरोसे चल रहा था। धनबल और बाहुबल ने अपनी जडें जमा ली थीं। चुनावों में अंधाधुंध काला धन खर्च कर येन-केन-प्रकारेण विधानसभाओं, लोकसभा तथा राज्यसभा में पहुंचने वालों का सिलसिला जोर पकड चुका था। अपराधियों ने खुद को सुरक्षित रखने के लिए राजनीति की डगर पकडनी शुरू कर दी थी। कई नेताओं को भी अराजकतत्वों का साथ फायदे का सौदा नजर आने लगा था। चुनाव प्रक्रिया में सुधार लाने के लिए तब के चुनाव आयुक्त टी.एन.शेषण ने अपना डंडा चला दिया था। भ्रष्ट राजनीति के वो शातिर खिलाडी जो चुनाव प्रचार में करोडों रुपये फूंकते हैं और लाखों दर्शाते हैं उनकी चूलें हिलने लगी थीं। वे नये-नये रास्ते खोजने में लग गये थे। देश के कई अखबारों में विज्ञापनों की कीमत पर खबरें छापी जाने लगी थीं। धन्ना सेठों और अपने-अपने क्षेत्र के दबंग माफियाओं ने जबरन पत्रकारिता के क्षेत्र में घुसपैठ कर अखबार निकालने का अभियान-सा चला दिया था। महंगी और लक्जरी कारों पर 'प्रेस' के स्टिकर श्रमजीवी पत्रकारों का मुंह चिढाने लगे थे। और मजे की बात यह कि अधिकांश अखबारों का किसी न किसी राजनीतिक पार्टी से अटूट वास्ता था। उनमें छपने वाली खबरें बता देती थीं कि यह अखबार कांग्रेस का है, भारतीय जनता पार्टी का है या फिर बहुजन समाज पार्टी अन्यथा समाजवादी पार्टी का। अपने निजी स्वार्थों को पूरा करने के लिए पत्रकारिता के तमाम उसूलों की बलि चढाये जाने के उस दौर में राष्ट्रीय साप्ताहिक 'विज्ञापन की दुनिया' का प्रकाशन इस अटूट इरादे से किया गया कि इस साप्ताहिक की अपनी एक अलग पहचान होगी। निष्पक्षता और निर्भीकता के साथ पत्रकारिता करते हुए आम आदमी की समस्याओं और तकलीफों को सामने लाते हुए शासन और प्रशासन को जगाने का अभियान चलाया जायेगा। जनहित के मुद्दों की कतई अनदेखी नहीं होगी और चाहे कुछ भी हो जाए पर इसे किसी पार्टी या नेता की कठपुतली नहीं बनने दिया जायेगा।
हमें गर्व है कि हम अपना तयशुदा लक्ष्य और रास्ता नहीं भूले। पूंजीपतियों के अखबारों से टक्कर लेते हुए 'विज्ञापन की दुनिया' निरंतर सिद्धांतो की लडाई लडता चला आ रहा है। शिक्षण माफियाओं, भू-माफियाओं और धर्म के ठेकेदारों को बेनकाब करते चले आ रहे इस अखबार ने भ्रष्ट राजनेताओं और दिशाहीन सत्ताधीशों को कभी भी नहीं बख्शा। हमारा मानना है कि हिंद के असली दुश्मन हैं जातिवाद, धर्मवाद, भ्रष्टाचार, अनाचार और अंधभक्ति। साम्प्रदायिक ताकतें अव्यवस्था फैलाने के साथ-साथ देश की प्रगति में बेहद बाधक बनी हुई हैं। देश के कुछ समाज सेवक और राजनेता ऐसे भी हैं जो आतंकवादियों और नक्सलियों के प्रति मित्रता भाव रखते हैं। आजादी के इतने वर्ष बीत जाने के बाद भी लोगों को अपनी जाति और धर्म के व्यक्ति को वोट देना जरूरी लगता है। दोस्ती और रिश्तेदारी भी खूब निभायी जाती है। तरह-तरह के प्रलोभन और धन की भूमिका भी जगजाहिर है। इस चक्कर में अपराधियों को भी सत्ता तक पहुंचने का मौका मिलता चला आ रहा है। 'विज्ञापन की दुनिया' ने जो देखा वही छापा। जब यह हकीकत हमारे सामने आयी कि कुछ बडे राजनेताओं के अपने-अपने गिरोह हैं जिनमें भू-माफिया, बिल्डर माफिया, कोयला माफिया, रेत माफिया, शराब माफिया और शिक्षण माफिया शामिल हैं तो हमने उनकी गहराई से तहकीकात कर निरंतर खबरें छापीं। जिससे गिरोहबाज और सौदागरनुमा नेता बौखला उठे। दरअसल महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ में कुछ ऐसे राजनेता हैं जिन्होंने ऐसे गुर्गे पाल रखे हैं जो उनकी छत्रछाया में रहकर निरंतर तरह-तरह के काले-पीले धंधों को बेखौफ अंजाम देते रहते हैं। चुनाव के समय इन्हीं के द्वारा जुटाया गया काला धन मतदाताओं को लुभाने के काम आता है। इन्हीं गुर्गों को सरकारी ठेके दिलाये जाते हैं। हरे भरे जंगलों के दरख्तों को काटने और वहां की खनिज सम्पदा के दोहन की भी उन्हें खूली छूट दे दी जाती है। चंद सिक्कों की ऐवज में कोयले की खदानों की लीज देकर उन्हें अरबपति और खरबपति बना दिया जाता है। यह कितनी शर्मनाक सच्चाई है कि महाराष्ट्र जैसे प्रदेश में बैंकों का कर्ज न चुका पाने के कारण बेबस किसानों को आत्महत्या करनी पडती है और दूसरी तरफ शक्कर कारखाने चलाने वाले राजनेताओं के पिट्ठू सरकारी बैकों का अरबों-खरबों रुपया हजम कर जाते हैं। यह भी काबिलेगौर है कि इस विशाल प्रदेश में कुछ बडे नेताओं के भी शक्कर कारखाने हैं जो हमेशा घाटे में चलते रहते हैं और कर्ज डूबोने का काम करते हैं। इस तथाकथित घाटे के बावजूद भी नेताओं और शक्कर कारखाने के मालिकों की नोटों की तिजोरियों की संख्या में इजाफा होता चला जाता है। ऐसे राजनेता भी हैं जो देशद्रोहियों से नजदीकियां रिश्ते रखते हैं। 'विज्ञापन की दुनिया' ने माफियाओं और सत्ताधारियों के भाईचारे पर बार-बार कलम की तलवार चलाकर सजग पत्रकारिता के दायित्व को निभाया है। देश और समाज के वातावरण में जहर घोलने वाले अराजक तत्वों के खिलाफ 'विज्ञापन की दुनिया' की कलम सतत चलती चली आ रही है। शासन और प्रशासन में बैठे भ्रष्टाचारियों को भी कभी बख्शा नहीं गया। सरकार की गलत नीतियों पर भी बेखौफ होकर शब्दबाण बरसाये गये। जनहित के कामों की तारीफ भी की गयी। पर हैरत की बात यह भी है कि सरकार कभी भी अपनी बुराई बर्दाश्त नहीं कर पाती। उसे सच शूल की तरह चुभता है। सरकार चलाने वाले देश और प्रदेश को अपनी बपौती मान लूटते-खसोटते रहें और 'विज्ञापन की दुनिया' चुपचाप तमाशा देखता रहे यह भला कैसे संभव है? सत्ता के मद में चूर शासन और प्रशासन को भी 'विज्ञापन की दुनिया' की निष्पक्षता और निर्भीकता कम ही रास आती है। दरअसल जो चाटूकारिता करते हैं वही उन्हें भाते हैं। झूठी प्रशंसा के जन्मजात भूखों को अब कौन समझाये कि बेखौफ होकर सच को सामने लाना ही पत्रकारिता का पहला धर्म है। जो इस धर्म की सौदेबाजी करते हैं उन्हें पत्रकारिता में रहने का कोई अधिकार नहीं है। 'विज्ञापन की दुनिया' अपने पत्रकारीय दायित्व को निभाने के लिए प्रतिज्ञाबद्ध है। यह संकल्प कभी टूट नहीं सकता क्योंकि इसके साथ देश के लाखों सजग पाठक, शुभचिंतक, आत्मीय जन और अपनी जान को दांव पर लगा देने वाली समर्पित टीम है।
स्वतंत्रता दिवस और वर्षगांठ के पर्व पर समस्त देशवासियों को हार्दिक शुभकामनाएं।
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