ढोंगी समाजवादी मुलायम सिंह यादव के लाडले अखिलेश यादव ने उत्तर प्रदेश की सत्ता तो हासिल कर ली पर वहां की आम जनता सपनों के इस सौदागर से खुश नहीं है। लोगों को लगने लगा है कि वे बुरी तरह से ठगे गये हैं। यूपी की तस्वीर को बदल पाना अखिलेश के बस की बात नहीं है। इस युवा मुख्यमंत्री की भले ही कैसी भी मजबूरी हो पर वोटरों ने तो उन्हें प्रदेश के कायाकल्प के लिए ही चुना था। मुलायम सिंह जानते थे कि वे मतदाताओं का विश्वास खो चुके हैं इसलिए उन्होंने अपने पुत्र के कंधे पर बंदूक रख कर अपना स्वार्थ साधने की योजना बनायी और उसमें सफल भी हो गये...। दिखावे के तौर पर अखिलेश को मुख्यमंत्री बना तो दिया गया है पर असली ताकत मुलायम और उनकी कुटिल मंडली के हाथ में है, इसलिए अराजक तत्व अपनी मनमानी करने को स्वतंत्र हैं। बेचारे अखिलेश चाहते हुए भी कुछ नहीं कर पा रहे हैं। मीडिया के सब्र का पैमाना भी भरने लगा है। उसने भी अखिलेश को निशाने पर लेना शुरू कर दिया है। बीते सप्ताह चंद अराजक तत्वों ने कुछ पत्रकारों की पिटायी कर दी। कलम के पुजारी बौखला उठे और सीधे जा पहुंचे मुख्यमंत्री के दरबार। मुख्यमंत्री ने उनकी हर शिकायत ध्यान से सुनी और उन्हें भरोसा दिलाया कि उनके रहते अब कोई पत्रकारों का बाल भी बांका नहीं कर पायेगा। अखिलेश पत्रकारों पर इतने मेहरबान हो गये कि उन्होंने यूपी के पत्रकारों को एकदम सस्ती कीमतों पर सर्व-सुविधायुक्त घर देने का ऐलान कर दिया। इतना ही नहीं उनके लिए मुफ्त इलाज की सुविधा उपलब्ध करवाने की घोषणा भी कर डाली। जिन मीडिया कर्मियों के कैमरे और वाहन तोडे गये थे उनकी क्षतिपूर्ति भी सरकारी खजाने से हो गयी। यह है मीडिया का दम। जिस मुख्यमंत्री को जनता से किये गये वादे पूरे करने में नानी याद आ रही है उसने पत्रकारों को चुटकी बजाते ही प्रसन्न और संतुष्ट कर दिया। पत्रकारों के चेहरे भी चमक उठे। मुलायम सिंह भी जब प्रदेश के मुख्यमंत्री थे तब उन्होंने भी कई अखबारों के चापलूस सम्पादकों और पत्रकारों को भारी-भरकम उपहारों और पुरस्कारों से नवाजने में कोई कसर बाकी नहीं रखी थी। आरती गाने वाले कलमवीरों के लिए सरकारी खजाना लुटा देने वाले मुलायम सिंह देश का प्रधानमंत्री बनने का सपना संजोये हैं। वे जानते हैं कि सपने कैसे साकार किये जाते हैं। बाप के गुण बेटे तक पहुंचने में देरी नहीं लगती। अखिलेश एक अच्छे बेटे का फर्ज निभा रहे हैं। उन्होंने भी यह बात गांठ बांध ली है कि लोगों के असंतोष भरे स्वरों को मीडिया के ढोल का शोर ही दबा सकता है। ऐसा कतई नहीं है कि सिर्फ राजनेता ही मीडिया को साधने के लिए विभिन्न तिकडमें आजमाते हैं। स्वर्गीय धीरूभाई अंबानी के सुपुत्रों की तरह गौतम अदानी भी देश के एक नामचीन उद्योगपति हैं। अंबानी बंधुओं की तर्ज पर काम करते हुए उन्होंने भी चंद वर्षों में अरबों-खरबों का साम्राज्य खडा कर लिया है। दुनिया के सबसे बडे लोकतांत्रिक देश हिंदुस्तान में अनवरत तरक्की हासिल करने के लिए कौन से रास्ते पर चलना चाहिए और किन-किन हस्तियो को साधना और रिझाना चाहिए इस कला में अदानी ने भी श्रेष्ठता हासिल कर ली है। केंद्र सरकार के कई मंत्री उनकी जेब में रहते हैं। उन्हें देश के किसी भी प्रदेश में अपनी विद्युत परियोजनाएं प्रारंभ करने और विभिन्न उद्योग लगाने के लिए कौडियों के भाव सरकारी जमीनें उपलब्ध करवा दी जाती हैं। किसानों की खेती की जमीनें हडपने की भी उन्हें खुली छूट दे दी जाती है। मजदूरों का शोषण और उनकी जान के साथ खिलवाड करना इनके लिए आम बात है।
उनके कारखानों में सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम न होने के कारण मजदूरों के घायल होने तथा मौत के मुंह में समाने की खबरें आती रहती हैं। पर ये खबरें सुर्खियां हासिल नहीं कर पातीं। अफसरों, जनप्रतिनिधियों और छुटभइये किस्म के नेताओं को अपनी जेब में रखने वाले अदानी जहां कहीं भी अपना उद्योग लगाते हैं वहां के मीडिया का खास ध्यान रखते हैं। बडे अखबार मालिकों से दोस्ताना बनाने में देरी नहीं लगाते। तथाकथित सिद्धांतवादी अखबारों पर इस कदर विज्ञापनों की बरसात कर देते हैं कि उनके तमाम सिद्धांतों की ही धज्जियां उड जाती हैं। कुछ जागरूक पत्रकार अदानी के कारनामों की खबरें अपने अखबारों के संपादकों के पास भेजते भी हैं तो उन्हें रद्दी की टोकरी के हवाले कर दिया जाता है। महाराष्ट्र के सजग पाठक अदानी के जादू से वाकिफ हो चुके हैं। इस जादूगर की मेहरबानी से गुजरात के उन पत्रकारों की भी किस्मत खुल गयी है जो मक्खनबाजी में माहिर हैं। खबर है कि मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी और अदानी की आरती गाने तथा दलाल की भूमिका निभाने वाले तीस पत्रकारों के अभूतपूर्व समर्पण से प्रसन्न होकर अदानी ने उन्हें ३० से ७० लाख रुपये की कीमत के फ्लैट उपहार में दिये हैं।
जो उद्योगपति पत्रकारों को लाखों रुपयों के फ्लैट की सौगात दे सकता है वह अखबारों के संपादकों और मालिकों के लिए कितना कुछ कर सकता है इसका सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है। वैसे भी अब अधिकांश बडे अखबार उद्योगपतियों, बिल्डरों, भूमाफियाओं और खनिज माफियाओं के द्वारा चलाये जा रहे हैं। देश में कोयला घोटाला को लेकर जबरदस्त शोर मचा है। अखबारों में रोज खबरें छप रही हैं कि कैसे हजारों करोड के कोयला घोटाले को अंजाम दिया गया। यह भी कम चौंकाने वाली सच्चाई नहीं है कि देश के एक बडे अखबार के मालिकों ने अखबार का रौब दिखाकर बिजली परियोजना के नाम पर अवैध तरीके से दो कोयला ब्लाक हथियाये और बिजली उत्पादन करने की बजाय कोयले का कारोबार कर ७६५ करोड का घपला कर डाला। बिजली परियोजना अभी भी अधर में लटकी है। खुद को भारत का सबसे बडा समाचार पत्र समूह कहने वालों का बस चले तो देश की सारी दौलत को अपनी तिजोरी में कैद कर लें। लोगों के मन में अक्सर सवाल उठता है कि बडे-बडे चालीस और साठ पेज के अखबार डेढ-दो रुपये में कैसे बेचे जाते हैं। आखिर घाटे का व्यापार क्यों किया जाता है? दरअसल हमारे देश में नामी-गिरामी अखबार मालिकों से सरकारें भी डरती हैं। कई अखबार मालिक दिखावे के लिए अखबार निकालते हैं पर उनके असली कमाऊ धंधे कुछ और होते हैं। अरबो-खरबों के सरकारी ठेके लेना, कोयला ब्लॉक आबंटन करवाना और करोडों की सरकारी जमीनों को कौडियों के भाव पाना ही इनका असली मकसद है। कुछ ऐसे पहुंचे हुए अखबार मालिक भी हैं जिन्हें आम जनता तो दुत्कारती है पर फिर भी वे राज्यसभा के सांसद बनते चले आ रहे हैं। ये सब लेन-देन का खेल है जिसे अपने देश में बखूबी अंजाम दिया जा रहा है।
उनके कारखानों में सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम न होने के कारण मजदूरों के घायल होने तथा मौत के मुंह में समाने की खबरें आती रहती हैं। पर ये खबरें सुर्खियां हासिल नहीं कर पातीं। अफसरों, जनप्रतिनिधियों और छुटभइये किस्म के नेताओं को अपनी जेब में रखने वाले अदानी जहां कहीं भी अपना उद्योग लगाते हैं वहां के मीडिया का खास ध्यान रखते हैं। बडे अखबार मालिकों से दोस्ताना बनाने में देरी नहीं लगाते। तथाकथित सिद्धांतवादी अखबारों पर इस कदर विज्ञापनों की बरसात कर देते हैं कि उनके तमाम सिद्धांतों की ही धज्जियां उड जाती हैं। कुछ जागरूक पत्रकार अदानी के कारनामों की खबरें अपने अखबारों के संपादकों के पास भेजते भी हैं तो उन्हें रद्दी की टोकरी के हवाले कर दिया जाता है। महाराष्ट्र के सजग पाठक अदानी के जादू से वाकिफ हो चुके हैं। इस जादूगर की मेहरबानी से गुजरात के उन पत्रकारों की भी किस्मत खुल गयी है जो मक्खनबाजी में माहिर हैं। खबर है कि मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी और अदानी की आरती गाने तथा दलाल की भूमिका निभाने वाले तीस पत्रकारों के अभूतपूर्व समर्पण से प्रसन्न होकर अदानी ने उन्हें ३० से ७० लाख रुपये की कीमत के फ्लैट उपहार में दिये हैं।
जो उद्योगपति पत्रकारों को लाखों रुपयों के फ्लैट की सौगात दे सकता है वह अखबारों के संपादकों और मालिकों के लिए कितना कुछ कर सकता है इसका सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है। वैसे भी अब अधिकांश बडे अखबार उद्योगपतियों, बिल्डरों, भूमाफियाओं और खनिज माफियाओं के द्वारा चलाये जा रहे हैं। देश में कोयला घोटाला को लेकर जबरदस्त शोर मचा है। अखबारों में रोज खबरें छप रही हैं कि कैसे हजारों करोड के कोयला घोटाले को अंजाम दिया गया। यह भी कम चौंकाने वाली सच्चाई नहीं है कि देश के एक बडे अखबार के मालिकों ने अखबार का रौब दिखाकर बिजली परियोजना के नाम पर अवैध तरीके से दो कोयला ब्लाक हथियाये और बिजली उत्पादन करने की बजाय कोयले का कारोबार कर ७६५ करोड का घपला कर डाला। बिजली परियोजना अभी भी अधर में लटकी है। खुद को भारत का सबसे बडा समाचार पत्र समूह कहने वालों का बस चले तो देश की सारी दौलत को अपनी तिजोरी में कैद कर लें। लोगों के मन में अक्सर सवाल उठता है कि बडे-बडे चालीस और साठ पेज के अखबार डेढ-दो रुपये में कैसे बेचे जाते हैं। आखिर घाटे का व्यापार क्यों किया जाता है? दरअसल हमारे देश में नामी-गिरामी अखबार मालिकों से सरकारें भी डरती हैं। कई अखबार मालिक दिखावे के लिए अखबार निकालते हैं पर उनके असली कमाऊ धंधे कुछ और होते हैं। अरबो-खरबों के सरकारी ठेके लेना, कोयला ब्लॉक आबंटन करवाना और करोडों की सरकारी जमीनों को कौडियों के भाव पाना ही इनका असली मकसद है। कुछ ऐसे पहुंचे हुए अखबार मालिक भी हैं जिन्हें आम जनता तो दुत्कारती है पर फिर भी वे राज्यसभा के सांसद बनते चले आ रहे हैं। ये सब लेन-देन का खेल है जिसे अपने देश में बखूबी अंजाम दिया जा रहा है।
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