Thursday, August 30, 2012

चोर मचाए शोर

देश के नौजवानों का गुस्सा उफान पर है। अब उन्हें आश्वासनों से आश्वस्त कर पाना आसान नहीं है। युवकों की एक बडी जमात को यह बात समझ में आ गयी है कि देश के वर्तमान शासकों में से ज्यादातर भरोसे के काबिल नहीं हैं। देश को रसातल में ले जाने के दोषियों की लगभग शिनाख्त हो चुकी है। ऐसे विकट दौर में मुल्क की राजनीति के मंच पर कोई भी ऐसा चेहरा नजर नहीं आता जिस पर आज की पीढी पूरी तरह से यकीन कर सके। यही वजह है कि भ्रष्टाचार के खिलाफ लडाई लडने वालों को किराये की भीड जुटानी नहीं पडती। लोकपाल के लिए सतत संघर्षरत अन्ना हजारे इसका ज्वलंत उदाहरण हैं। उनके एक इशारे पर देशभर में युवाओं के हुजूम का सडकों पर उतर आना यही दर्शाता है कि वे वर्तमान शासन व्यवस्था से नाखुश हैं। उन्हें किसी ऐसे नायक की बेसब्री से तलाश है जो देश की डूबती नैय्या को किनारे लगा सके।
अन्ना हजारे और उनकी टीम पिछले डेढ वर्ष से भ्रष्टाचार के खिलाफ जंग छेडे हुए है। मनमोहन सरकार जब टस से मस होती नहीं दिखी तो टीम ने राजनीति के मैदान में उतरने का ऐलान कर दिया। कई राजनेताओं ने इस फैसले की खिल्ली उडायी। इस खिल्ली के पीछे जबरदस्त भय छिपा है। भ्रष्टाचारी हमेशा भयग्रस्त रहते हैं। सत्ता के लुट जाने का डर उनकी नींद हराम किये रहता है। अगर शासक पूरी तरह से ईमानदार होते तो 'लोकपाल' कब का अस्तित्व में आ चुका होता। जहां अपनी गर्दने कटने का डर हो वहां नंगी तलवारें नहीं लटकायी जातीं। कोई बेवकूफ ही ऐसी भूल करेगा। हमारे देश के नेता तो वैसे भी जनता को बेवकूफ बनाने के लिए जाने जाते हैं। कल तक अन्ना हजारे के नेतृत्व में भ्रष्टाचार के खिलाफ जंग लडने वाले अरविं‍द केजरीवाल और उनके समर्थक बीते रविवार को जब कोयला घोटाला मुद्दे को लेकर प्रधानमंत्री मनमोहन सिं‍ह, सप्रंग अध्यक्ष सोनिया गांधी और भाजपा के अध्यक्ष नितिन गडकरी के आवास को घेरने निकले तो उनके साथ जोशो-खरोश से लबालब युवक-युवतियों की जो भीड थी, उसने यह संदेश तो दे ही दिया है कि सत्ता की आड में लूटमार करने वाले शासक और राजनेता सावधान हो जाएं। भ्रष्टाचारियों को बेनकाब करने के लिए सडक पर उतरे योद्धाओं ने यह भी स्पष्ट कर दिया है कि लगभग सभी राजनीतिक दलों में ऐसे लोग शामिल हैं जो मुल्क की संपदा को लूटने में कोई परहेज नहीं करते। कांग्रेस और भाजपा के नेताओं ने मिलजुल कर कोयले की अंधी लूट मचायी और अरबो-खरबों के वारे-न्यारे किये। इस हकीकत को पता नहीं क्यों किरण बेदी ने नजर अंदाज कर दिया! उन्हें भाजपा ईमानदार लगने लगी और कोयले के सर्वदलीय लुटेरों के खिलाफ सडक पर उतरने से कन्नी काट गयीं। कल तक अन्ना टीम के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलती रहीं किरण बेदी के इस नये रूख में भी रहस्य छुपे हैं। नितिन गडकरी ऐसे चेहरों पर नजर बनाये रखने में माहिर हैं। कुछ माह बाद यदि यह खबर सुनने में आती है कि किरण बेदी को भाजपा ने राज्यसभा का सांसद बनाने की तैयारी कर ली है तो आश्चर्य नहीं किया जाना चाहिए। सडक से लेकर संसद तक छिडे कोल युद्ध में राजनेताओं को एक दूसरे पर कीचड उछालने का भी अच्छा-खासा अवसर मिल गया।
भाजपा की कद्दावर नेत्री सुषमा स्वराज ने डंके की चोट पर कह डाला कि कांग्रेस ने सिर्फ कोयले की दलाली में ही नहीं, बल्कि लोहे की दलाली में भी 'मोटा माल' खाया है। कांग्रेस के बयानवीरों ने जब सुषमा को रेड्डी बंधुओं की याद दिलायी तो उन्होंने रहस्योद्घाटन कर डाला कि कांग्रेस के एक मुख्यमंत्री ने रेड्डी बंधुओ से भी मोटी थैलियां ली थीं। हमारे यहां के नेता बडे कमाल की चीज हैं। पता नहीं कौन-कौन से रहस्य अपने अंदर दबाये रहते हैं। जब उन पर कोई वार करता है तभी रहस्योद्घाटन करते हैं! वर्ना चुप्पी बनाये रहते हैं। क्या ऐसे देशभक्तों को बार-बार सलाम नहीं करना चाहिए? वैसे सुषमा और रेड्डी बंधुओं के रिश्ते बडे पुराने हैं। रेड्डी बंधु सुषमा को अपनी बहन मानते हैं। सब जानते हैं कि बहन और भाई एक दूसरे की रक्षा करने के अटूट रिश्ते से बंधे होते हैं। कांग्रेस के कई नेता सुषमा से मोटे माल की परिभाषा जानने को ऐसे उतावले दिखे जैसे भ्रष्टाचार के खेल में वे जन्मजात अनाडी हों। देश के एक बडे खनन समूह  वेदांता रिसोर्सेज ने खुलासा किया है कि उसने पिछले तीन वर्षों के दौरान देश के विभिन्न राजनीतिक दलों को २८ करोड का चंदा दिया है। वेदांता के कर्ताधर्ता अनिल अग्रवाल ने यह तो नहीं बताया कि किस पार्टी को कितना धन दिया गया पर समझने वालों के लिए इशारा ही काफी है। भारतवर्ष में कांग्रेस, भाजपा, सपा, बसपा का सिक्का चलता है। कोई भी उद्योगपति इन्हें मोटा या छोटा माल दिये बिना अपने काले-पीले धंधों को अंजाम नहीं दे सकता। देश के जितने भी कुख्यात खनन माफिया, भू-माफिया, दारू माफिया और संदिग्ध उद्योगपति हैं, सभी राजनीतिक पार्टियों को थैलियां पहुंचाते हैं। इन थैलियों को चंदा कह लें या फिर मोटा माल बात एक ही है...। हा यह बात दीगर है कि पार्टियों की औकात देखकर ही भेंट चढायी जाती है। राजनीतिक पार्टियां भी इस माल पर अपना जन्मसिद्ध अधिकार समझती हैं। इसी से उनकी पार्टियों का कारोबार चलता है। मतदाताओं को 'माल' बांटने के लिए भी इसी 'मोटे माल' का उपयोग किया जाता है। पार्टी के खाते में आडा-तिरछा चंदा बडी आसानी से समाहित हो जाता है और उंगलियां भी नहीं उठ पातीं। न जाने कितने नेता चंदे की बदौलत मालामाल हो गये हैं। बसपा सुप्रीमों मायावती इसका जीवंत उदाहरण हैं।

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