नेताओं के चक्कर में अपनी हंसती-खेलती जिंदगी को नर्क बनाने और दर्दनाक मौत के हवाले हो जाने वाली महत्वाकांक्षी युवतियों की वास्तविक संख्या का पता लगा पाना आसान नहीं है। इस सिलसिले कहीं अंत होता भी नजर नहीं आता। १९९५ में देश की राजधानी दिल्ली में सुशील शर्मा नामक युवा कांग्रेस नेता ने अपनी प्रेमिका नैना साहनी को तंदूर की धधकती आग में झोंक दिया था, क्योंकि उसे शक था कि वह उसके प्रति वफादार नहीं है। हालांकि वह खुद भी हद दर्जे का लम्पट था। इधर-उधर मुंह मारे बिना उसे चैन नहीं मिलता था। पर उसे प्रेमिका ऐसी चाहिए थी जो सती-सावित्री हो। आधुनिक विचारों वाली नैना साहनी ने राजनीति में जगह बनाने के लिए सुशील शर्मा को अपने मोहपाश में बांधने की भूल की थी, जिसका खामियाजा उसे भुगतना पडा। दरिंदगी और हैवानियत की तमाम सीमाएं पार करके रख देने वाली इस राक्षसी घटना के उजागर होने के बाद लगा था कि युवतियां इससे सबक लेंगी और अय्याश नेताओं के आसपास जाने से भी कतरायेंगी। पर ऐसा हो नहीं पाया। इतिहास गवाह है कि कामुक नेताओं को हमेशा उन नारियों की तलाश रहती है जो अपने मादक रंग-रूप की बदौलत कुछ पाना चाहती हैं। राजनीति के प्रांगण में एक से बढकर एक नारायण दत्त तिवारी भरे पडे हैं जिनकी हवस कभी भी मिटने का नाम नहीं लेती। जहां-तहां इनके जाल बिछे रहते हैं। जिनमें कई बार सच्ची और सीधी नारियां भी फंस जाती हैं। कुछ का भला हो जाता है और कुछ का बहुत बुरा हश्र होता है। मधुमिता का नाम आज भी कई लोगों को याद होगा। अच्छी-खासी कविताएं लिखा करती थी। अभिनय कला में पारंगत होने के कारण मंचों पर छा जाया करती थी। ऐसे ही किसी कार्यक्रम में उत्तर प्रदेश के एक अय्याश मंत्री की उस पर नजर पड गयी। पता नहीं रंगीले मंत्री ने मधुमिता को कौन-से चमकते सपने दिखाये कि वह भटक गयी। उसे खबर थी कि मंत्री शादीशुदा है। फिर भी वह उसके मोहपाश में बंध गयी। एक पढी-लिखी युवती ने अपनी मान-मर्यादा को इसलिए ताक पर रख दिया था क्योंकि उसे भौतिक सुविधाओं की अपार भूख थी। मंत्री के लिए यह कोई बडी बात नहीं थी। हराम की कमायी को अपनी अय्याशियों पर लुटाना उसका पुराना शगल था। पहले भी न जाने कितनी युवतियों का वह यौन शोषण कर चुका था। वह निरंतर बचता आया था। मधुमति गर्भवती भी होती रही और मंत्री पर शादी करने का दबाव भी बनाती रही। मंत्री के राजी होने का सवाल ही नहीं उठता था। आखिरकार वो दिन भी आ गया जब एक उभरती हुई कवयित्री की संदिग्ध मौत की खबर ने लोगों को हैरत में डाल दिया। दोनों के अवैध रिश्तों पर देशभर के अखबारों के पन्ने रंगे गये और न्यूज चैनल वाले झूम-झूमकर मधुमिता और अमरमणी त्रिपाठी के वासना में डूबे रिश्तों के अफसाने सुनाते रहे। मधुमिता की मौत से भी सबक लिया जा सकता था। ऐसी घटनाएं आंखें खोलने का काम करती हैं। किसी ने शायद सच ही कहा है कि इश्क अंधा होता है...।
अनुराधा बाली उर्फ फिज़ा और गीतिका शर्मा ने भी मधुमिता की कहानी को दोहराया है। दोनों इस जहां से विदा हो चुकी हैं। दोनों के हिस्से में भी संदिग्ध मौत आयी है। दोनों ही समझदार कहलाती थीं। पढी-लिखी थीं। फिर भी नेताओं के मायाजाल में ऐसे उलझीं कि काला इतिहास बनकर रह गयीं। फिज़ा और गीतिका की मौत ने एक फिर से यह भी साबित कर दिया है कि ऐसे फिसलन भरे रिश्तों का अंजाम बुरा ही होता है। गैर मर्दों पर आसक्त हो जाने वाली नारियों के लिए भी यह बहुत बडा सबक है। अनुराधा और गीतिका इतनी सक्षम तो थीं कि अपनी मेहनत के बलबूते पर सम्मानजनक जीवन जी सकती थीं। पर उनके बहुरंगी सपनों ने उनके पैरों की जमीन छीन ली। अनुराधा ने खुद को हरियाणा के राजनेता चंद्रमोहन की सेज तक पहुंचा दिया तो गीतिका हरियाणा के ही मंत्री गोपाल कांडा के इशारों पर नाचती रही। इसमें जबरदस्ती ही नहीं, मनमर्जी भी थी। पहल किसने की यह बात भी कोई मायने नहीं रखती। जहां आपसी रजामंदी हो वहां नारी को अबला और पुरुष को सबल कहकर किसी एक पक्ष के प्रति सहानुभूति दर्शाना बेमानी है। अनुराधा जब चंद्रमोहन से पहली बार मिली तब वह प्रदेश का उपमुख्यमंत्री था। उपमुख्यमंत्री कोई छोटी-मोटी हस्ती नहीं होता। एक बडी हस्ती के प्रति आसक्त होने के पीछे अनुराधा का भी स्वार्थ था। उसे अपने वो तमाम सपने साकार करने थे जो अधूरे रह गये थे। चंद्रमोहन ने देह की प्यास बुझाने के लिए अपने पद की गरिमा को ताक पर रख दिया तो अनुराधा ने भी नैतिकता और मर्यादा के चोले को उतार फेंका। वह जानती थी कि चंद्रमोहन पहले भी किसी के साथ सात फेरे ले चुका है। अनुराधा ने एक बाल-बच्चेदार शख्स को हथियाने के लिए अपना धर्म तक बदलने में देरी नहीं लगायी। चंद्रमोहन तो उस पर बुरी तरह से आसक्त था ही। धर्म उसने भी बदला पर वह प्यार के धर्म को नहीं निभा पाया। दोनों का प्यार अगर सच्चा होता तो उनके जुदा होने के हालात न बनते। स्वार्थ पर टिके रिश्तों का हमेशा यही अंजाम होता है। गीतिका को भी पता था कि जो धनाढ्य नेता उससे नजदीकियां बढाने को आतुर है, वह उसकी उम्र की लडकी का पिता है। गीतिका की भले ही कोई और मजबूरी रही हो पर कोई भी मर्द किसी युवती के साथ जबरन शारीरिक संबंध नहीं बना सकता। गीतिका का गर्भपात करवाना दर्शाता है कि वह पूरी तरह से निर्दोष नहीं थी। ऐसे में...?
अनुराधा बाली उर्फ फिज़ा और गीतिका शर्मा ने भी मधुमिता की कहानी को दोहराया है। दोनों इस जहां से विदा हो चुकी हैं। दोनों के हिस्से में भी संदिग्ध मौत आयी है। दोनों ही समझदार कहलाती थीं। पढी-लिखी थीं। फिर भी नेताओं के मायाजाल में ऐसे उलझीं कि काला इतिहास बनकर रह गयीं। फिज़ा और गीतिका की मौत ने एक फिर से यह भी साबित कर दिया है कि ऐसे फिसलन भरे रिश्तों का अंजाम बुरा ही होता है। गैर मर्दों पर आसक्त हो जाने वाली नारियों के लिए भी यह बहुत बडा सबक है। अनुराधा और गीतिका इतनी सक्षम तो थीं कि अपनी मेहनत के बलबूते पर सम्मानजनक जीवन जी सकती थीं। पर उनके बहुरंगी सपनों ने उनके पैरों की जमीन छीन ली। अनुराधा ने खुद को हरियाणा के राजनेता चंद्रमोहन की सेज तक पहुंचा दिया तो गीतिका हरियाणा के ही मंत्री गोपाल कांडा के इशारों पर नाचती रही। इसमें जबरदस्ती ही नहीं, मनमर्जी भी थी। पहल किसने की यह बात भी कोई मायने नहीं रखती। जहां आपसी रजामंदी हो वहां नारी को अबला और पुरुष को सबल कहकर किसी एक पक्ष के प्रति सहानुभूति दर्शाना बेमानी है। अनुराधा जब चंद्रमोहन से पहली बार मिली तब वह प्रदेश का उपमुख्यमंत्री था। उपमुख्यमंत्री कोई छोटी-मोटी हस्ती नहीं होता। एक बडी हस्ती के प्रति आसक्त होने के पीछे अनुराधा का भी स्वार्थ था। उसे अपने वो तमाम सपने साकार करने थे जो अधूरे रह गये थे। चंद्रमोहन ने देह की प्यास बुझाने के लिए अपने पद की गरिमा को ताक पर रख दिया तो अनुराधा ने भी नैतिकता और मर्यादा के चोले को उतार फेंका। वह जानती थी कि चंद्रमोहन पहले भी किसी के साथ सात फेरे ले चुका है। अनुराधा ने एक बाल-बच्चेदार शख्स को हथियाने के लिए अपना धर्म तक बदलने में देरी नहीं लगायी। चंद्रमोहन तो उस पर बुरी तरह से आसक्त था ही। धर्म उसने भी बदला पर वह प्यार के धर्म को नहीं निभा पाया। दोनों का प्यार अगर सच्चा होता तो उनके जुदा होने के हालात न बनते। स्वार्थ पर टिके रिश्तों का हमेशा यही अंजाम होता है। गीतिका को भी पता था कि जो धनाढ्य नेता उससे नजदीकियां बढाने को आतुर है, वह उसकी उम्र की लडकी का पिता है। गीतिका की भले ही कोई और मजबूरी रही हो पर कोई भी मर्द किसी युवती के साथ जबरन शारीरिक संबंध नहीं बना सकता। गीतिका का गर्भपात करवाना दर्शाता है कि वह पूरी तरह से निर्दोष नहीं थी। ऐसे में...?
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