Thursday, December 27, 2012

जनता को मत अबला जानो

राजधानी में बेहद क्रुरता के साथ अंजाम दिये गये सामूहिक बलात्कार ने संपूर्ण देशवासियों को झिं‍झोड कर रख दिया। जहां-तहां जनता सडकों पर उतर आयी। यहां तक कि जेल में कैद विभिन्न अपराधियों का भी खून खौल उठा। २३ वर्षीय मेडिकल छात्रा को अपनी हवस का शिकार बनाने वालों का सरगना मुकेश जब अपने सगे भाई के साथ तिहाड जेल में पहुंचाया गया तो वह अपनी सुरक्षा के प्रति पूरी तरह से आश्वस्त था। जब तक वह बाहर था तब तक उसकी रंगत उडी हुई थी। दिल्ली की बेकाबू भीड से पिटने के भय ने उसकी नींद उडा रखी थी। वह जेल की कोठरी में पहुंच कर इत्मीनान की सांस लेना चाहता था। वैसे भी दिल्ली की तिहाड जेल को दुनिया की सुरक्षित जेलों में गिना जाता है। कहते हैं कि यहां पर परिंदा भी पर नहीं मार सकता।
कैदियों को टीवी और समाचार पत्रों के माध्यम जानकारी मिल गयी थी कि दो बलात्कारी तिहाड जेल में लाये गये हैं। कैदियों ने जब से दिल्ली गैंगरेप की खबर पडी थी तभी से वे बेहद गुस्से में थे। बलात्कारी मुकेश, सुबह के समय नित्य क्रियाकलाप से निवृत होकर बडे आराम से वार्ड में टहल रहा था कि गुस्साये कैदियों ने उसे दबोच लिया और उसके चेहरे और शरीर के विभिन्न अंगों पर ब्लेड से वार-दर-वार कर लहुलूहान कर डाला। उनका बस चलता तो वे दोनों का काम ही तमाम कर डालते। तिहाड जेल में बलात्कारी पर हमले की खबर को महज खबर मानकर दरकिनार नहीं किया जा सकता। दरअसल यह खबर इस हकीकत की तरफ इशारा करती है कि खूंखार अपराधी भी ऐसे नृशंस बलात्कार को अक्षम्य मानते हैं। किसी की भी बहन-बेटी की इज्जत लुटने से उनका भी मन आहत होता हैं और खून खौल उठता है बिलकुल वैसे ही जैसे अन्य सजग देशवासियों का। फिल्म अभिनेता अमिताभ बच्चन ने अपनी पीडा व्यक्त करते हुए सही ही कहा है कि हमारी ही मिट्टी के लोग हमारी मिट्टी के साथ अन्याय कर रहे हैं। जिस कोख से जन्मे उसी का निरादर करने वालों को तो ऐसी सजा दी जानी चाहिए कि भविष्य में कोई भी गुंडा-बदमाश बहन-बेटियों पर गलत निगाह डालने की जुर्रत ही न कर सके। दिल्ली गैंगरेप के दोषियों को तो तिल-तिल मरने की सजा मिलनी ही चाहिए।फांसी देने से तो इनका उद्धार हो जायेगा।
ऐसा पहली बार हुआ जब युवक, युवतियां, छात्र, छात्राएं और महिलाएं सडकों पर उतर आयीं। देश की आधी आबादी का खौफ आक्रोश में बदल गया। दिल्ली पुलिस हाय-हाय के नारे गूंजते रहे। वातानूकूलित कारों में अंगरक्षकों के साथ घूमने वाले नेताओं और नौकरशाहों पर सैकडों सवाल दागे गये। अपनी सुख-सुविधाओं के चक्कर में आम जनता की तकलीफों को नजरअंदाज करने वाले सताधीशों तक यह संदेश भी पहुंचाया गया कि अगर अब भी वे नहीं सुधरे तो लोग चुप नहीं बैठेंगे। सब्र का बांध टूट चुका है। हर किसी के दिल में अव्यवस्था के प्रति आग जल रही है। इस आग को अगर समय रहते नहीं बुझाया गया तो बहुत बडा अनर्थ भी हो सकता है। इस सच्चाई को भला कैसे नजरअंदाज किया जा सकता है कि राजनेताओं और अफसरों की औलादों के आगे-पीछे सुरक्षा गार्डों और दरबानों और कारों का काफिला होता है। उन्हें कोई छूने तो क्या ताकने की भी जुर्रत नहीं कर सकता। असली मुश्किल का सामना तो आम लोगों तथा उनकी बहू-बेटियों को करना पडता है। भरे बाजार से लेकर सिटी बसों और लोकल ट्रेनों में उन्हें दुराचारियों के विभिन्न दंशों का शिकार होना पडता है। अब जब पानी सिर से ऊपर चला गया है तो आधी आबादी सडक पर उतरने और व्यवस्था के खिलाफ नारे लगानें को विवश हो गयी हैं। दिल्ली में हुए सामूहिक बलात्कार से पहले भी कई बार ऐसे दुष्कर्म हो चुके हैं। देश में कहीं न कहीं ऐसी दुराचार की घटनाएं हर रोज होती हैं। पर कुछ को ही सजा मिल पाती है। अधिकांश बलात्कारी आसानी से कानून के शिकंजे से छूट जाते हैं। इसे आप क्या कहेंगे कि हमारे देश की पूर्व राष्ट्रपति प्रतिभाताई पाटिल ने अपने कार्यकाल में ३० बलात्कारियों, दुराचारियों की फांसी की सजा को उम्रकैद में बदलकर अपनी दरियादिली दिखाने में जरा भी देरी नहीं लगायी। उन्होंने उन परिवारों की जरा भी चिं‍ता नहीं की जिनकी बहू-बेटियों की अस्मत लूटी गयी और मौत के घाट उतार दिया गया। अपनी वाहवाही के लिए ऐसे दिखावे इस देश के सत्ताधीशों की पहचान बन चुके हैं। आज यह कलम यह लिखने को विवश है कि जब तक बलात्कारियों, हत्यारों के प्रति आंख मूंदकर दया दिखायी जाती रहेगी तब तक इस देश में दुराचार और दुराचारी अपना तांडव मचाते रहेंगे। यकीनन सताधीशों को येन-केन-प्रकारेण होश में लाने का वक्त आ गया है। देश के ऊर्जावान कवि गिरीश पंकज की कविता की यह पंक्तियां महज शब्द नहीं बल्कि आम आदमी के दिल की ललकार और पुकार हैं...
जाग गई है दिल्ली भाई,
होती जग में तेरी हंसाई
सत्ता का मद बहुत हो गया
जनता के दु:ख को पहचानो
बंद करो ये लाठी-गोली
जनता को मत अबला जानो
इंकलाब को मत कुचलो तुम
क्या तुम भी बन गए कसाई?

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