मेरे जैसे बहुत से लोगों की यही मनोकामना है कि यह गुस्सा सतत बना रहे। इसकी आग कभी बुझने न पाए। जब बर्दाश्त करने की हदें खत्म हो जाती हैं तो आम जनता को सडक पर उतरने को मजबूर होना ही पडता है। गूंगे-बहरे शासकों को जगाने के लिए आक्रोश के नगाडे बजाने ही पडते हैं। हो सकता है कि यह हकीकत देश की तपती नारियों को बहुत देर बाद समझ में आयी हो। पर जब आ ही गयी है तो इस लडाई को अंजाम तक पहुंचना ही चाहिए। अब अगर कदम रूक गये तो पहले से भी ज्यादा अनर्थ हो सकता है। एक अनजान और बेनाम लडकी वो काम कर गयी जिसका आधी आबादी को वर्षों से इंतजार था। कुछ बेवकूफ यह कहते हैं कि नारियों के नारों और प्रदर्शनों से कुछ भी हासिल नहीं होगा। पिछले साल अन्ना हजारे ने 'लोकपाल' को लेकर कितना हल्ला मचाया था। फिर भी आखिरकार उन्हें मुंह की खानी पडी। सत्ता जीत गयी और वे हार गये। इतिहास गवाह है, जब भी कोई आंदोलन अपनी शक्ल लेना शुरू करता है तब उसे नाकाम करने के लिए तरह-तरह की स्वार्थी ताकतें एकाएक सक्रिय हो जाती हैं। अहिंसा के पुजारी महात्मा गांधी के गर्म हौसलों को सर्द करने के लिए भी ऐसे ही अवरोध खडे किये जाते थे। पर उन्होंने धरने-प्रदर्शनों, नारों और भूख हडतालों की बदौलत अंग्रेजों की नींद हराम की, देशवासियों को जगाया और वो कर दिखाया जिसकी उम्मीद उनके आलोचकों और जन्मजात विरोधियों को तो कतई नहीं थी। इससे ज्यादा और अधिक शर्मनाक बात और क्या होगी कि समाज के कुछ ठेकेदार कानून के लुंज-पुंज रखवालों को लताडने और दुराचारियों को दुत्कारने की बजाय महिलाओं को ही तरह-तरह की नसीहतें देने से बाज नहीं आ रहे हैं।
आंध्रप्रदेश के प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बोत्सा नारायण राव की बदअक्ली ने लोगों के गुस्से को तब और सुलगा दिया जब उन्होंने फरमाया कि आखिर रात के वक्त युवती कहां घूम रही थी? दरअसल यह प्रश्न नहीं है, यह तो शंका का वो नुकीला तीर है जो हर नारी की छाती पर उतारा गया है जो अपने पैरों पर खडी होकर बहुत कुछ कर दिखाना चाहती है। मध्यप्रदेश की महिला कृषि वैज्ञानिक अनीता शुक्ला ने तो जख्मों पर नमक छिडकते हुए यह तक कहने में देरी नहीं लगायी कि गैंग रेप की शिकार हुई युवती को दुराचारियों का विरोध ही नहीं करना चाहिए था। उसके विरोध के चलते ही उसकी ऐसी दुर्गति हुई। यदि वह खुद को बलात्कारियों के हाथों सौंप देती तो उसका जीवन बच जाता।
क्या आपको नहीं लगता कि यह एक बहादुर लडकी का सरासर अपमान है? यह मोहतरमा तो युवतियों को बलात्कारियों के हाथों लुट जाने की सीख देने और दुराचारियों के हौसलों को बढाने वाली ऐसी अपराधी दिखती हैं जिसका खुली हवा में घूमना-फिरना अपराधियों और अपराधों को जन्म दे सकता है।
यह वो देश है जहां विधायक विधानसभा में जन समस्याओं पर चर्चा करना छोड अश्लील विडियो देखने का शौक फरमाते हैं। देश के राष्ट्रपति के शहजादे को धरना प्रदर्शन करने वाली तमाम लडकियां और महिलाएं हद दर्जे की नकली और ढोंगी लगती हैं :
''आजकल हर मुद्दे पर कैंडलमार्च निकालने का फैशन हो गया है। लडकियां दिन में रंग-पुतकर कैंडल मार्च निकालती हैं और रात को डिस्को में जाती हैं।'' यह महाशय सांसद भी हैं। यह महान उपलब्धि इन्होंने अपने पिताश्री के नाम और काम की बदौलत हासिल तो कर ली पर लगता नहीं है कि ये सांसद बनने के काबिल हैं। इनके अंदर तो कोई सडक छाप मवाली विचरण कर रहा है जिसे पुलिस वालों के डंडों से पिटने वाली लडकियों का असली चेहरा नजर नहीं आया। पानी की बौछारों और अश्रु गोलों के सामने डटी रहने वाली लडकियों की बहादुरी पर घटिया कटाक्ष करने वाले ऐसे सांसद के दिल और दिमाग में यकीनन कीचड भरा हुआ है। ऐसे जनप्रतिनिधि देश में बहुतेरे हैं जिन्हें नारियों का विद्रोही रूप खतरे की घंटी लगता है। यह लोग कतई नहीं चाहते कि महिलाएं घर से निकलें। यह लोग सतत उन्हें डराये रखना चाहते हैं। ये वो लोग हैं जो किसी भी महिला के चरित्र पर उंगली उठाने में संकोच नहीं करते। बलात्कार की शिकार युवतियों को एक ही झटके से चरित्रहीन घोषित कर देने में भी इन्हें कभी कोई शर्म नहीं आती। युवतियों को बलात्कारियों के समक्ष घुटने टेक देने की शिक्षा देने वाली अनीता शुक्ला उस वर्ग से ताल्लुक रखती दिखती हैं जो घर परिवार तथा समाज में होने वाले नारी शोषण को नजरअंदाज करने में ही अपनी भलाई समझता है। महिलाएं पति के हाथों चुपचाप पिटती रहें तो इन्हें संतुष्टि मिलती है। इस वर्ग को बहू-बेटियों और बच्चियों के साथ होने वाले दुराचार आहत नहीं करते। ऐसे लोगों के कारण ही स्कूलों, कॉलेजों और अस्पतालों में भी वासना के भूखे सफेदपोश बलात्कारी बनने में देरी नहीं लगाते। भाई और पिता के हाथों लुट जाने वाली लडकियों की आहत कर देने वाली खबरों को पढने के बाद भी इनके चेहरे पर कोई शिकन नहीं आती। दरअसल इन्हें तो हमेशा अपनी 'नाक' की चिंता रहती है। तथाकथित इज्जत और मान-मर्यादा के चक्कर में रिश्तों की पवित्रता को भी इन लोगों ने सूली पर चढा दिया है...।
आंध्रप्रदेश के प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बोत्सा नारायण राव की बदअक्ली ने लोगों के गुस्से को तब और सुलगा दिया जब उन्होंने फरमाया कि आखिर रात के वक्त युवती कहां घूम रही थी? दरअसल यह प्रश्न नहीं है, यह तो शंका का वो नुकीला तीर है जो हर नारी की छाती पर उतारा गया है जो अपने पैरों पर खडी होकर बहुत कुछ कर दिखाना चाहती है। मध्यप्रदेश की महिला कृषि वैज्ञानिक अनीता शुक्ला ने तो जख्मों पर नमक छिडकते हुए यह तक कहने में देरी नहीं लगायी कि गैंग रेप की शिकार हुई युवती को दुराचारियों का विरोध ही नहीं करना चाहिए था। उसके विरोध के चलते ही उसकी ऐसी दुर्गति हुई। यदि वह खुद को बलात्कारियों के हाथों सौंप देती तो उसका जीवन बच जाता।
क्या आपको नहीं लगता कि यह एक बहादुर लडकी का सरासर अपमान है? यह मोहतरमा तो युवतियों को बलात्कारियों के हाथों लुट जाने की सीख देने और दुराचारियों के हौसलों को बढाने वाली ऐसी अपराधी दिखती हैं जिसका खुली हवा में घूमना-फिरना अपराधियों और अपराधों को जन्म दे सकता है।
यह वो देश है जहां विधायक विधानसभा में जन समस्याओं पर चर्चा करना छोड अश्लील विडियो देखने का शौक फरमाते हैं। देश के राष्ट्रपति के शहजादे को धरना प्रदर्शन करने वाली तमाम लडकियां और महिलाएं हद दर्जे की नकली और ढोंगी लगती हैं :
''आजकल हर मुद्दे पर कैंडलमार्च निकालने का फैशन हो गया है। लडकियां दिन में रंग-पुतकर कैंडल मार्च निकालती हैं और रात को डिस्को में जाती हैं।'' यह महाशय सांसद भी हैं। यह महान उपलब्धि इन्होंने अपने पिताश्री के नाम और काम की बदौलत हासिल तो कर ली पर लगता नहीं है कि ये सांसद बनने के काबिल हैं। इनके अंदर तो कोई सडक छाप मवाली विचरण कर रहा है जिसे पुलिस वालों के डंडों से पिटने वाली लडकियों का असली चेहरा नजर नहीं आया। पानी की बौछारों और अश्रु गोलों के सामने डटी रहने वाली लडकियों की बहादुरी पर घटिया कटाक्ष करने वाले ऐसे सांसद के दिल और दिमाग में यकीनन कीचड भरा हुआ है। ऐसे जनप्रतिनिधि देश में बहुतेरे हैं जिन्हें नारियों का विद्रोही रूप खतरे की घंटी लगता है। यह लोग कतई नहीं चाहते कि महिलाएं घर से निकलें। यह लोग सतत उन्हें डराये रखना चाहते हैं। ये वो लोग हैं जो किसी भी महिला के चरित्र पर उंगली उठाने में संकोच नहीं करते। बलात्कार की शिकार युवतियों को एक ही झटके से चरित्रहीन घोषित कर देने में भी इन्हें कभी कोई शर्म नहीं आती। युवतियों को बलात्कारियों के समक्ष घुटने टेक देने की शिक्षा देने वाली अनीता शुक्ला उस वर्ग से ताल्लुक रखती दिखती हैं जो घर परिवार तथा समाज में होने वाले नारी शोषण को नजरअंदाज करने में ही अपनी भलाई समझता है। महिलाएं पति के हाथों चुपचाप पिटती रहें तो इन्हें संतुष्टि मिलती है। इस वर्ग को बहू-बेटियों और बच्चियों के साथ होने वाले दुराचार आहत नहीं करते। ऐसे लोगों के कारण ही स्कूलों, कॉलेजों और अस्पतालों में भी वासना के भूखे सफेदपोश बलात्कारी बनने में देरी नहीं लगाते। भाई और पिता के हाथों लुट जाने वाली लडकियों की आहत कर देने वाली खबरों को पढने के बाद भी इनके चेहरे पर कोई शिकन नहीं आती। दरअसल इन्हें तो हमेशा अपनी 'नाक' की चिंता रहती है। तथाकथित इज्जत और मान-मर्यादा के चक्कर में रिश्तों की पवित्रता को भी इन लोगों ने सूली पर चढा दिया है...।
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