Thursday, January 31, 2013

क्या ऐसा हो पायेगा?

वक्त तथाकथित बडे-बडों का रंग-रोगन उतार कर उनका असली चेहरा दिखा ही देता है। जो धुरंधर राजनीति को लूटपाट और उठा-पटक का सुरक्षित जरिया मानते हैं उनके संभलने और सतर्क होने का वक्त आ गया है। पांच बार देश के प्रदेश हरियाणा के मुख्यमंत्री रहे भ्रष्टाचारी ओमप्रकाश चौटाला ने यह भ्रम पाल लिया था कि कानून उसका बाल भी बांका नहीं कर सकता। अपने मुख्यमंत्रित्व काल में ओमप्रकाश चौटाला ने भ्रष्टाचार के न जाने कितने कीर्तिमान रचे। उसके पिता चौधरी देवीलाल ने राजनीति में रच-बस कर नैतिकता और ईमानदारी की जो मिसालें पेश कीं उन्हें उनके इस नालायक पुत्र ने कभी भी अनुकरणीय नहीं माना और वो सब गलत हथकंडे अपनाये जिनसे सिद्धांतवादी पिता के नाम पर बट्टा ही लगा।
अपने पिता के जीवनकाल में विदेशी घडि‍यों की तस्करी के संगीन आरोप में धरा गया ओमप्रकाश शुरू से ही अपराधी प्रवृत्ति का रहा है। पर यह राजनीति ही है जो अपराधियों को भी बडी आसानी से अपना लेती है। यह भी देश के लोकतंत्र की विडंबना ही है कि अपराधियों को सफलता की सीढि‍यां चढते देरी नहीं लगती। जानते-समझते हुए भी लोग अक्सर इन्हें हाथों-हाथ लेते हैं। ठग और लुटेरे ओमप्रकाश के साथ तो उसके ईमानदार पिता देवीलाल का नाम जुडा था, इसलिए हरियाणा के वोटरों ने उस पर वोटों की बरसात करने में कभी कोई कंजूसी नहीं की। उसे एक बार नहीं, पांच बार मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बिठाया। पर इस मुख्यमंत्री ने जनता के साथ इतने छल किये कि भ्रष्टाचार और चौटाला परिवार एक दूसरे के पर्यायवाची बनकर रह गये। हरियाणा के ग्रामों और शहरों में चौटाला की धन की अथाह भूख पर चर्चाओं का दौर शुरू हो गया। कई भुक्तभोगियों ने मीडिया तक अपनी फरियाद पहुंचायी पर बात आयी-गयी हो गयी। पूरे प्रदेश में एक ही परिवार की दादागिरी का यह आलम था कि उद्योगपति और व्यापारी आलीशान कोठियां खडी करने और महंगी कारों की सवारी से परहेज करने लगे। ओमप्रकाश चौटाला और उनके बेटे को जो भी कोठी और कार अच्छी लगती उसी को पाने के लिए लालायित हो उठते। कई लोग तो खुद-ब-खुद अपनी कोटी या कार हरियाणा के इन राजनीतिक गुंडो को सौंप देने में ही अपनी भलाई समझते थे। आज भी हरियाणा में ऐसे कई किस्से लोगों की जबान पर हैं। हरियाणा में ओमप्रकाश चौटाला जैसा लालची और लुटेरा दूसरा और कोई पैदा नहीं हुआ। इसे लालच और धन की भूख की इंतिहा ही कहेंगे कि जिस मुख्यमंत्री को अपने प्रदेश में शिक्षा की गंगा बहानी चाहिए थी, उसी ने शिक्षकों की नियुक्ति में करोडों की रिश्वतखोरी कर प्रदेश की सबसे बडी कुर्सी की गरिमा पर कालिख पोत डाली। सन १९९९-२००० में ओमप्रकाश चौटाला मुख्यमंत्री थे तभी तीन हजार अध्यापकों की भर्ती में गडबड घोटाला किया गया। भ्रष्ट और नीयतखोर चौटाला ने शिक्षा विभाग के उच्च अधिकारी पर दबाव डाला कि वे चुने हुए योग्य उम्मीदवारों की सूची बदल डालें और उनके मनपसंद लोगों की नियुक्ति कर दें। अधिकारी ने मुख्यमंत्री के आदेश का पालन किया और योग्य उम्मीदवार किनारे कर दिये गये और नालायक चेहरों को शिक्षक के पद से नवाज दिया गया। चौटाला और उसके गिरोह ने पढे-लिखे उम्मीदवारों के नंबर कम करवाये और अपने चहेतों के नंबर बढवाकर सैकडों करोड की काली कमायी कर ली। अंधेरगर्दी और भ्रष्टाचार के इस खतरनाक खेल पर पर्दा पडा रह जाता यदि संबंधित अधिकारी को उसका हिस्सा मिल जाता। पूरा माल अकेले ही हजम करने की चाल चौटाला को बहुत महंगी पडी। मिल-बांट कर खाने के सिद्धांत पर चलने वाले अधिकारी ने चौटाला को बेनकाब करने की ठान ली और वह योग्य उम्मीदवारों की मूल सूची के साथ अदालत की शरण में जा पहुंचा। वैसे भी हर कोई जानता है कि राजनेताओं और नौकरशाहों में गजब की जुगलबंदी चलती है। इनके द्वारा सत्ता की मलाई खाने का कोई मौका नहीं छोडा जाता। अगर चौटाला ने अफसर को खुश कर दिया होता तो उसे आज इतने बुरे दिन नहीं देखने पडते। बाप-बेटे और उनके संगी साथियों को दस वर्ष की कैद की सजा सुना दी गयी है। हालांकि यह भ्रष्टाचार का मामला १९९९ में सामने आया था। इसे अदालत तक पहुंचने में ही लगभग नौ साल लग गये। भ्रष्टाचारी चौटाला ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि उसे जेल की हवा खानी पडेगी। जब इस कांड को अंजाम दिया गया तब केंद्र में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की सरकार थी जिसे चौटाला का सहयोग प्राप्त था। अपने ही सहयोगी पर कार्रवाई करना किसी भी सरकार के लिए आसान नहीं होता। अब जब कांग्रेस के राज में चौटाला को जेल की यात्रा करनी पडी है तो उसका मुंह भी खुल गया है कि यह तो कांग्रेस की राजनीतिक साजिश है। वैसे भी कांग्रेस पर सीबीआई के दुरुपयोग के आरोप लगते ही रहते हैं। इस देश का हर भ्रष्टाचारी नेता भी खुद को पाक-साफ बताने में लगा रहता है। सत्ता की यह रीत भी सर्वविदित है कि वह अपनों को बचाने में पूरी ताकत लगा देती है। कौन नहीं जानता कि अपने देश में बहुत से राजनीतिक लूटेरों पर भ्रष्टाचार के संगीन आरोप हैं और उन पर अदालतों में मामले भी चल रहे हैं, पर उनकी गति इतनी धीमी है कि वे दुनिया से विदा हो जाएंगे पर फैसले नहीं आ पाएंगे। खुफिया ब्यूरो की फाइलों में भी कई मामले वर्षों से कैद हैं। यह तो अच्छा हुआ कि जैसे-तैसे चौटाला गिरोह को सजा हो गयी है और देशवासियों में कुछ उम्मीद जगी है कि धीरे-धीरे सभी का नंबर लगेगा। पर क्या वाकई ऐसा हो पायेगा?

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