Thursday, February 28, 2013

नेताओं के घडि‍याली आंसुओं की अंतर्कथा

महाराष्ट्र के एक मंत्री हैं भास्कर जाधव। अपने बेटे-बेटी की शादी में पचासों करोड रुपये फूंकने के तमाशे के चलते उन्हे अपनी पार्टी के सुप्रीमों शरद पवार की ऐसी फटकार सुनने को मिली कि उनकी जुबान पर ही ताले लग गये। इन मंत्री महोदय का अतीत बडा ही बुलंद रहा है। शिवसेना की पैदाइश हैं। पर जब शिवसेना में दाल गलनी बंद हो गयी तो शरद पवार की राष्ट्रवादी कांग्रेस का दामन थाम लिया। अपने खिलाफ कलम चलाने वाले एक पत्रकार को कार्यालय की तीसरी मंजिल से नीचे फेंककर अपनी दादागिरी और उद्दंडता का भी परचम लहरा चुके हैं। यही वजह है कि अधिकांश पत्रकार उनसे बेहद खौफ खाते हैं। मंत्री जी कितनी भी नंगाई कर लें पर पत्रकार तो पत्रकार अखबार मालिकों की भी चुप्पी बनी रहती है। वैसे मंत्री जी का कहना है कि विवाह समारोह में अंधाधुंध धन फूंक कर उन्होंने कोई गुनाह नहीं किया। मेहमानों की मेहमान-नवाजी और शाही ठाटबाठ दिखाने का यही तो एक मौका होता है। ऐसे अवसर बार-बार तो नहीं आते। बच्चों के जन्म दिवस और शादियों पर दोनों हाथों से दौलत उडाना राजनेताओं का पुराना शगल है। महाराष्ट्र के नेता और मंत्री इस मामले में कुछ ज्यादा ही रंगदार हैं। रंग-रंगीले कार्यक्रमों को अंजाम देने और उनमें शामिल होने में उन्हें बेहद फख्र महसूस होता है और छाती भी तन जाती है। सभी शरद पवार नहीं हैं जो अपनी इकलौती लाडली बिटिया की शादी में हाजिरी बजाने वाले दो लाख बरातियों को एक-एक पेडा परोस कर विदा कर दें। वैसे भी महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री शरद पवार के बारे में यह मशहूर है कि वे दिखने-दिखाने में यकीन नहीं करते। रजाई ओडकर घी पीने वालों में उनकी गिनती की जाती है। घडि‍याली आंसू बहाने में उनका कोई सानी नहीं माना जाता। उन्हें दुख तो होना ही था! उन्ही की पार्टी के मंत्री ने ऐसा खुला खेल खेला कि वे रातभर जागते रहे और पता नही क्या-क्या सोचते रहे। यकीनन सिर पर खडे लोकसभा चुनावों की चिं‍ता ने भी परेशान किया होगा। ऐसे ही दिखावटबाजों के कारण पार्टी की साख भी दांव पर लगती है। पवार को अपने भतीजे अजीत पवार की भी याद आयी होगी जो महाराष्ट्र के दबंग मंत्री हैं और मुख्यमंत्री की नाक में दम किये रहते हैं। मीडिया ने तो उनकी दुलारी सुप्रिया को भी नहीं बख्शा जो राकां की सांसद हैं और उन करोडों रुपयों की मालकिन हैं जिनकी जादूई कमाई को लेकर कई तरह की बातें की जाती हैं। भारतीय जनता पार्टी के पूर्व सुप्रीमो नितिन गडकरी ने भी रूतबा दिखाने के लिए नागपुर में अपने लाडले बेटे की शादी में ऐसा ही शाही करिश्मा दिखाया था। लोगों ने आलोचनाएं भी की थीं। पर नेताओं के लिए यह रोजमर्रा की बातें हैं। उन्हें लोगों की कानाफूसी और मीडिया में छपने वाली खबरों से कोई ज्यादा फर्क नहीं पडता। यह भी पता चला है कि भास्कर जाधव के बच्चों की शाही शादी के लिए प्रदेश के एक बडे ठेकेदार ने अपनी तिजोरियां खोल दी थीं। यानी शादी प्रायोजित थी। माल दूसरे का और शान मंत्री की...। वैसे ठेकेदारों और मंत्रियों के रिश्तो की महिमा भी बडी अपरंपार है। मंत्रीजी अपने चहेते ठेकेदार को एक तरफा सरकारी ठेके दिखाते हैं और ठेकेदार भी वक्त आने पर यारी निभाकर वफादारी का भरपूर सबूत पेश करते हैं। गडकरी ने अपने मंत्रित्व काल में जिस ठेकेदार को अरबों-खरबों के ठेकों की सौगात दी थी उसी ने गडकरी के धंधों में करोडों रुपये की 'पूर्ति' कर अपना फर्ज निभाने में कोई कोताही नहीं की। महाराष्ट्र सरकार के वर्तमान मंत्री जाधव के लिए नोटों की बरसात करने वाले शहा नामक बिल्डर पर आयकर का शिकंजा कसा जा चुका है। बेचारे को जवाब देते नहीं बन रहा है। पूर्व मंत्री गडकरी की कंपनियों में जान फूंकने वाला ठेकेदार भी खुद को कानूनी शिकंजे से बचाने की तिकडमों में लगा है। अपने बच्चों की शादियों में अरबों रुपयों का तामझाम दिखाकर बडे-बडे उद्योगपतियों को मात देने वाले राजनेताओं की कथनी और करनी का यही अंतर उनके असली चरित्र को दर्शाता है। यही नेता जब जनता के बीच जाते हैं तो इनके घडि‍याली आंसू देखकर कोई भी विचलित हो जाता है। इन घडि‍याली आंसुओं की हकीकत तो यदा-कदा ही सामने आ पाती हैं। कोई व्यापारी और उद्योगपति यदि 'शाही शादी' का तमाशा दिखाए तो किसी को भी कोई आपत्ति नहीं होती। ये नेता जो आम जनता के मसीहा कहलाते हैं और उसके जनप्रतिनिधी बन सत्ता पाते हैं, आखिर कैसे भूल जाते हैं कि लोगों को उनका यह मायावी चरित्र बहुत तकलीफ पहुंचाता है। लोग इतने बेवकूफ नहीं हैं कि वे हकीकत को न समझ पाएं। जो शख्स कल तक फटेहाल रहा हो वही सत्ता पाते ही कैसे मालामाल हो गया, इसकी पहचान उसे फौरन हो जाती है।
वो वक्त बहुत पीछे छूट चुका जब देश का आम आदमी हर 'तमाशा' देखकर खामोश रहता था। आज उसे बडी पीडा होती। खुद पर गुस्सा भी आता है। उसने कैसे-कैसे सौदागरों को अपना कीमती वोट देकर विधानसभा और लोकसभा में भेजने की भारी भूल की है...।

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