यह अब किसी शोध का विषय नहीं है। खोज-खबर के लिए यहां-वहां भटकने की भी जरूरत नहीं है। दिग्गज राजनेता खुद-ब-खुद सच उगलने लगे हैं। खुद को तथा अपनी जमात को बेझिझक बेनकाब करने लगे हैं। आज की तारीख में राजनीति सबसे बढिया धंधा है। इसके लिए किसी पूंजी की जरूरत नहीं। बस एक खास किस्म के हुनर और चालाकी की दरकार है। जो शख्स किसी उद्योगधंधे के काबिल न हो, जो अच्छा डॉक्टर, वकील, पत्रकार, इंजिनियर बनने से चूक जाए, उसे फौरन राजनीति में कदम धर देने चाहिए। यहां उसकी हर मनोकामना पूरी होने में देरी नहीं होगी। राजनीति में फटेहाल फकीरों को भी अरबों कमाने में देरी नहीं लगती। चालू और चालाक तो सभी को पछाडने की कूवत रखते हैं।
यह पुख्ता विचार हैं कांग्रेस के ही एक उम्रदराज सांसद के, जिनका नाम है चौधरी वीरेंद्र सिंह। यही चौधरी साहब कभी यह रहस्योद्घाटन भी कर चुके हैं कि इसी देश में १०० करोड की दक्षिणा देकर राज्यसभा का सांसद बना जा सकता है। यानी धन के दम पर काले चोर भी लोकतंत्र के सबसे बडे मंदिर में प्रवेश पाकर अपनी मनमानी कर सकते हैं। १०० करोड की लागत लगाकर हजारों करोड की काली कमायी करने से उन्हें कोई नहीं रोक सकता। वाइएसआर कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष जगमोहन रेड्डी की धन-संपत्ति का डेढ-दो वर्षों में ४०० गुना बढ जाना राजनीति के धंधे के अजब-गजब कमाल को दर्शाने और बताने का जीवंत उदाहरण है। जय हो मेरे निराले देश हिन्दुस्तान की, जहां माया की माया बडी ही अपरम्पार है। देश के प्रदेश झारखंड, जहां आदिवासियों को भूखे पेट सोने को विवश होना पडता है, और बार-बार मरना पडता है, वहां के एक शातिर मुख्यमंत्री ने हजारों करोड रुपये एक ही झटके में समेट लिए। यह बात दीगर है कि उसे जेल भी जाना पडा। उसकी पत्नी उसे बेकसूर बताती रही। मधु कोडा के काले धन पर कोई आंच नहीं आयी। जब वह अदालती चक्करों से मुक्त हो जायेगा तो इसी दौलत की बदौलत राजनीति के मैदान में नये-नये झंडे गाडेगा। उसके चाहने वालों की भीड भी सतत उसके पीछे खडी नजर आयेगी। यही वजह है कि मधु के चेहरे पर कभी भी कोई शिकन नहीं देखी गयी। उसे अपने इस विश्वासघाती दुष्कर्म पर कोई शर्म-वर्म नहीं आयी। वैसे भी जन्मजात भ्रष्टाचारी कभी भी शर्मिन्दगी महसूस नहीं करते। जेल की दीवारों में कैद होकर अपने काले करमों का दण्ड भुगत रहे हरियाणा के ओमप्रकाश चोटाला ने भी यही किया। खुद को देश की एकमात्र सिद्धांतवादी पार्टी मानने वाली भाजपा के येदियुरप्पा ने भी आंध्रप्रदेश का मुख्यमंत्री बनते ही अपनी असली औकात दिखाने में जरा भी देरी नहीं लगायी। अपने बेटों और दामादों को सरकारी जमीनें कौडी के दाम देकर पार्टी के नाम पर ही ऐसा दाग जड दिया, जिसका मिट पाना असंभव है। औरों से अलग होने का ढोल पीटने वाली भाजपा के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष बंगारू लक्ष्मण और नितिन गडकरी ने भी कमल की साख को ही कटघरे में खडा कर दिया है। दलित बंगारू लक्ष्मण का तो भाजपा की राजनीति से लगभग पत्ता ही साफ हो गया, लेकिन गडकरी पार्टी के भावी पी.एम. नरेंद्र मोदी की नैय्या पर सवार होकर चौके-छक्के लगाने की फिराक में हैं। उन्होंने नागपुर से लोकसभा चुनाव लडने की तैयारियां शुरू भी कर दी हैं। जमीनी चुनावी दंगल से कन्नी काटते चले आ रहे गडकरी के लिए आगामी लोकसभा चुनाव किसी अग्नि परीक्षा से कम नहीं होगा। अभी से वोटरों को लुभाने के एक सुत्रीय कार्यक्रम में लग चुके गडकरी को कांग्रेस ने पटकनी देने की दमदार योजनाएं बनानी भी शुरू कर दी हैं। जैसे ही लोकसभा चुनाव का बिगुल बजेगा, ढोल बजाने लगेंगे। चतुर कांग्रेसी 'पूर्ति' के चमत्कारी पन्ने खोलने के अभियान में जुट जाएंगे। इसी का नाम राजनीति है। फिर अपने देश में तो सत्ता और राजनीति के काम करने के अपने ही अंदाज हैं। किसका कब तक उपयोग करना है, कब किसे बेनकाब करना है और किसे कब तक बचाना और छिपाना है, इसके भी तयशुदा फार्मूले हैं। चारा घोटाले में फंसने के बाद भी वर्षों तक लालू प्रसाद यादव का राजनीति और सत्ता में बने रहना क्या दर्शाता है? एक कुटिल घोटालेबाज बिहार की मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बडे मज़े के साथ विराजमान रहता है और जब जेल जाने की नौबत आती है तो अपनी अनपढ घरवाली को बिहार की सत्ता ऐसे सौंपता है जैसे मुख्यमंत्री का पद कोई सोने का हार हो जिसे कोई रईस दूल्हा अपनी दुल्हन को पहना कर उसे रिझा रहा हो। लोकतंत्र का इससे भयावह और कोई मज़ाक नहीं हो सकता। लालू प्रसाद जैसे भ्रष्टाचारियों ने हमेशा लोकतंत्र का मजाक ही उडाया है। फिर भी इन्हें जेल की हवा खिलाने में वर्षों लग जाते हैं। देश की जनता राजनीति के सभी भ्रष्टाचारियों को जेल की सलाखों के पीछे देखना चाहती है। दो-चार को सजा दे दिये जाने से देशवासियों को राहत नहीं मिलने वाली। जितने भी भ्रष्टाचारी हैं, उनकी असली जगह जेल ही है। उन्हें बचाने और छुपाने की तमाम कोशिशें बंद होनी चाहिए। शासन और प्रशासन के पास हर राजनीतिक डकैत की जन्मपत्री है। इसलिए इन डकैतों का खुली हवा में सांस लेना वातावरण को और बिगाडेगा। इनकी देखा-देखी और ठग और लुटेरे पैदा होंगे और देश कभी भी खुशहाली का चेहरा नहीं देख पायेगा।
यह पुख्ता विचार हैं कांग्रेस के ही एक उम्रदराज सांसद के, जिनका नाम है चौधरी वीरेंद्र सिंह। यही चौधरी साहब कभी यह रहस्योद्घाटन भी कर चुके हैं कि इसी देश में १०० करोड की दक्षिणा देकर राज्यसभा का सांसद बना जा सकता है। यानी धन के दम पर काले चोर भी लोकतंत्र के सबसे बडे मंदिर में प्रवेश पाकर अपनी मनमानी कर सकते हैं। १०० करोड की लागत लगाकर हजारों करोड की काली कमायी करने से उन्हें कोई नहीं रोक सकता। वाइएसआर कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष जगमोहन रेड्डी की धन-संपत्ति का डेढ-दो वर्षों में ४०० गुना बढ जाना राजनीति के धंधे के अजब-गजब कमाल को दर्शाने और बताने का जीवंत उदाहरण है। जय हो मेरे निराले देश हिन्दुस्तान की, जहां माया की माया बडी ही अपरम्पार है। देश के प्रदेश झारखंड, जहां आदिवासियों को भूखे पेट सोने को विवश होना पडता है, और बार-बार मरना पडता है, वहां के एक शातिर मुख्यमंत्री ने हजारों करोड रुपये एक ही झटके में समेट लिए। यह बात दीगर है कि उसे जेल भी जाना पडा। उसकी पत्नी उसे बेकसूर बताती रही। मधु कोडा के काले धन पर कोई आंच नहीं आयी। जब वह अदालती चक्करों से मुक्त हो जायेगा तो इसी दौलत की बदौलत राजनीति के मैदान में नये-नये झंडे गाडेगा। उसके चाहने वालों की भीड भी सतत उसके पीछे खडी नजर आयेगी। यही वजह है कि मधु के चेहरे पर कभी भी कोई शिकन नहीं देखी गयी। उसे अपने इस विश्वासघाती दुष्कर्म पर कोई शर्म-वर्म नहीं आयी। वैसे भी जन्मजात भ्रष्टाचारी कभी भी शर्मिन्दगी महसूस नहीं करते। जेल की दीवारों में कैद होकर अपने काले करमों का दण्ड भुगत रहे हरियाणा के ओमप्रकाश चोटाला ने भी यही किया। खुद को देश की एकमात्र सिद्धांतवादी पार्टी मानने वाली भाजपा के येदियुरप्पा ने भी आंध्रप्रदेश का मुख्यमंत्री बनते ही अपनी असली औकात दिखाने में जरा भी देरी नहीं लगायी। अपने बेटों और दामादों को सरकारी जमीनें कौडी के दाम देकर पार्टी के नाम पर ही ऐसा दाग जड दिया, जिसका मिट पाना असंभव है। औरों से अलग होने का ढोल पीटने वाली भाजपा के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष बंगारू लक्ष्मण और नितिन गडकरी ने भी कमल की साख को ही कटघरे में खडा कर दिया है। दलित बंगारू लक्ष्मण का तो भाजपा की राजनीति से लगभग पत्ता ही साफ हो गया, लेकिन गडकरी पार्टी के भावी पी.एम. नरेंद्र मोदी की नैय्या पर सवार होकर चौके-छक्के लगाने की फिराक में हैं। उन्होंने नागपुर से लोकसभा चुनाव लडने की तैयारियां शुरू भी कर दी हैं। जमीनी चुनावी दंगल से कन्नी काटते चले आ रहे गडकरी के लिए आगामी लोकसभा चुनाव किसी अग्नि परीक्षा से कम नहीं होगा। अभी से वोटरों को लुभाने के एक सुत्रीय कार्यक्रम में लग चुके गडकरी को कांग्रेस ने पटकनी देने की दमदार योजनाएं बनानी भी शुरू कर दी हैं। जैसे ही लोकसभा चुनाव का बिगुल बजेगा, ढोल बजाने लगेंगे। चतुर कांग्रेसी 'पूर्ति' के चमत्कारी पन्ने खोलने के अभियान में जुट जाएंगे। इसी का नाम राजनीति है। फिर अपने देश में तो सत्ता और राजनीति के काम करने के अपने ही अंदाज हैं। किसका कब तक उपयोग करना है, कब किसे बेनकाब करना है और किसे कब तक बचाना और छिपाना है, इसके भी तयशुदा फार्मूले हैं। चारा घोटाले में फंसने के बाद भी वर्षों तक लालू प्रसाद यादव का राजनीति और सत्ता में बने रहना क्या दर्शाता है? एक कुटिल घोटालेबाज बिहार की मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बडे मज़े के साथ विराजमान रहता है और जब जेल जाने की नौबत आती है तो अपनी अनपढ घरवाली को बिहार की सत्ता ऐसे सौंपता है जैसे मुख्यमंत्री का पद कोई सोने का हार हो जिसे कोई रईस दूल्हा अपनी दुल्हन को पहना कर उसे रिझा रहा हो। लोकतंत्र का इससे भयावह और कोई मज़ाक नहीं हो सकता। लालू प्रसाद जैसे भ्रष्टाचारियों ने हमेशा लोकतंत्र का मजाक ही उडाया है। फिर भी इन्हें जेल की हवा खिलाने में वर्षों लग जाते हैं। देश की जनता राजनीति के सभी भ्रष्टाचारियों को जेल की सलाखों के पीछे देखना चाहती है। दो-चार को सजा दे दिये जाने से देशवासियों को राहत नहीं मिलने वाली। जितने भी भ्रष्टाचारी हैं, उनकी असली जगह जेल ही है। उन्हें बचाने और छुपाने की तमाम कोशिशें बंद होनी चाहिए। शासन और प्रशासन के पास हर राजनीतिक डकैत की जन्मपत्री है। इसलिए इन डकैतों का खुली हवा में सांस लेना वातावरण को और बिगाडेगा। इनकी देखा-देखी और ठग और लुटेरे पैदा होंगे और देश कभी भी खुशहाली का चेहरा नहीं देख पायेगा।
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