Thursday, October 3, 2013

साफ-सुथरे लोकतंत्र के हत्यारे

सुप्रीम कोर्ट ने 'राइट टू रिजेक्ट' को मतदाताओं का अधिकार बताते हुए वोटिं‍ग मशीन में इसे एक विकल्प के रूप में शामिल करने को कहा है...। वाकई यह एक ऐतिहासिक फैसला है। जिस काम को अंजाम देने के लिए देश की संसद टालमटोल करती चली आ रही थी, उसे आखिरकार न्यायालय ने कर दिखाया। दरअसल कोर्ट का हुक्मरानों के मुंह पर यह जबर्दस्त तमाचा है। देश के सजग मतदाताओं को इसका वर्षों से इंतजार था। बेचारे वोट देने तो जाते थे, लेकिन जब किसी भी उम्मीदवार को अपने पैमाने पर खरा नहीं पाते थे, तो मायूस हो जाते थे। गुस्सा भी आता था। यह कैसा लोकतंत्र है, जहां खुद राजनीतिक पार्टियां ही दागी और अपराधी चेहरों को जानते-समझते हुए भी चुनावी टिकट दे देती हैं। मजबूरन दागदार प्रत्याशी को मतदान करना पडता है। उनके न चाहते हुए भी गुंडे, बदमाश, चोर-उच्चके और हद दर्जे के भ्रष्टाचारी विधायक और सांसद बन जाते हैं। कई मतदाता तो ऐसे भी होते हैं जो दबंगो और लुटेरो को वोट देने के बजाय घर-परिवार और यार-दोस्तो के साथ छुट्टी मनाते हैं। वे शहर के किसी गुंडे और हत्यारे को मंत्री, मुख्यमंत्री बनाकर लोकतंत्र की आत्मा को लहुलूहान करने के भागीदार होने से बचना चाहते हैं। यही वजह है कि दुनिया के सबसे बडे लोकतांत्रिक देश हिन्दुस्तान में औसतन पचास से पचपन प्रतिशत तक की वोटिं‍ग होती आयी है। इस आधी-अधूरी वोटिं‍ग के चलते ही खोटे सिक्कों की चांदी हो जाती है।
यदि सब कुछ दुरुस्त रहा और राजनीतिक पार्टियों ने कोई चाल नहीं चली तो यह तय है कि मतदाताओ को कई राज्यों में शीघ्र होने जा रहे विधानसभा चुनावों और आगामी लोकसभा चुनाव के दौरान ऐसी इलेक्ट्रानिक मशीनों से मतदान करने का अवसर मिलेगा, जिनमें 'इनमें से कोई नहीं' का बटन भी जुडा होगा। मतदाताओं के इस अभिव्यक्ति के अधिकार से इतना तो होगा ही कि जगजाहिर अराजकतत्वों का पत्ता साफ हो जायेगा। यह बहुत जरूरी है। हर सजग मतदाता को अपने क्षेत्र के प्रत्याशी की पूरी खोजखबर रहती है। मीडिया भी लोगों को जगाने के काम में लगा रहता है। ऐसा भी देखा गया है कि भ्रष्ट और बेइमान लोग कुछ समाचार पत्रों और न्यूज चैनलों को धन की चमक दिखाकर अपने पक्ष में करने में सफल हो जाते हैं। पेड न्यूज की बीमारी के चलते ऐसे लोग मतदाताओं की आंखों में धूल झोंकने में भी सफल हो जाते हैं। जब से मीडिया पर पूंजीपतियो ने कब्जा जमाया है, तभी से गुंडे बदमाशों की बन आयी है। बेलगाम हो चुके पूंजीपति-मीडिया ने लोकतंत्र के चेहरे को मनमाने तरीके से बदरंग किया है। पूंजीपतियों के अपने स्वार्थ होते हैं। भ्रष्ट राजनेताओं से इनका अंदरूनी गठबंधन होता है। भ्रष्टों को चुनाव में विजयी बनाने के लिए यह लोग पत्रकारिता के उसूलों को नीलाम कर देते हैं। दरअसल, मीडिया की ताकत का दुरुपयोग करने में यह लोग कोई कमी नहीं छोडते। इनका मीडिया के क्षेत्र में आना ही मीडिया के पतन का कारण है। लोकतंत्र के चौथे स्तंभ को इन्होंने काली कमायी और सत्ता की दलाली का अड्डा बनाकर रख दिया हैं। भ्रष्टाचारियों की आरती गाना और शैतानों को साधु की तरह पेश करना इनका पेशा है। पत्रकारिता की मूल भावना से इनका कोई वास्ता नहीं है। पेड न्यूज के असली जनक यही पूंजीपति ही हैं। चुनावी मौसम में तीर की तरह छोडी जाने वाली खबरें अक्सर मतदाताओं को भ्रम में डाल देती हैं। आज जब मतदाताओं को अपने विकल्प को चुनने का अधिकार मिलने जा रहा है तो भ्रष्ट मीडिया के दिमाग का दुरुस्तीकरण भी बेहद जरूरी है। पर अफसोस की बात यह भी है कि कई अखबारीलाल राज्यसभा के सांसद बन कर सरकार को अपने इशारे पर नचा रहे हैं। पिछले दिनों मीडिया के दिग्गजों के द्वारा कोयले की खदाने हथियाये जाने की पुख्ता खबरों के बाद इस तथ्य का खुलासा हो गया है कि दर्डा और अग्रवाल जैसों की जमात के लोग पत्रकारिता की आड में कैसे गुल खिलाते चले आ रहे हैं।
पूंजीपतियों की तरह ही कुछ राजनेताओं ने भी मीडिया के क्षेत्र में अतिक्रमण कर उसे शर्मनाक सौदेबाजी का अड्डा बना कर रख दिया है। राजनेताओ के अखबार और न्यूज चैनल अपनी-अपनी पार्टी की पूरी बेशर्मी के साथ पैरवी करते हैं। खुद राजनीतिक पार्टियां भी ऐसे उम्मीदवारों को टिकट देने में दिलेरी दिखाती हैं, जिनके यहां बेहिसाब धन भरा पडा है। यह धन काला है या सफेद इससे उनका कोई लेना-देना नहीं है। धन और बाहुबल को चुनाव जीतने का एकमात्र जरिया मानने वाली राजनीतिक पार्टियों की निगाह में गरीबों और ईमानदारों की कोई कीमत नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने मतदाताओं को ऐसी सभी संदिग्ध प्रत्याशियों को खारिज करने का अधिकार देकर साफ-सुथरे लोकतंत्र की उम्मीदें जगा दी हैं। इन दिनों जिस तरह से भ्रष्टाचारियों को जेल यात्राओं पर भेजा जा रहा है उससे देश के अच्छे भविष्य की उम्मीदें भी जगने लगी हैं। इसके लिए बधाई और अभिनंदन का पात्र है देश का सुप्रीम कोर्ट, जिसके कारण भ्रष्ट नेताओं के चेहरे का रंग उडता जा रहा है। इस सदी के भ्रष्टतम नेता, चारा घोटाले के नायक लालू प्रसाद यादव को दोषी पाये जाने पर तत्काल जेल भेज दिया गया। यह वही लालू प्रसाद है जो बिहार का सर्वशक्तिमान मुख्यमंत्री और देश का रेलमंत्री रह चुका है। यह लुटेरा देश का प्रधानमंत्री बनने का सपना देख रहा था। देशवासियों की किस्मत अच्छी है... कि इसका असली चेहरा सामने आ गया और महाधूर्त के पीएम बनने के मंसूबे धरे के धरे रह गये...। मेडिकल कॉलेज (एमबीबीएस) के प्रवेश घोटाले में दोषी सिद्ध हुए रशीद मसूद को चार साल की सजा सुनायी गयी और जेल में डाल दिया गया है। अब वो वक्त आ गया है जब सजग वोटर राजनीति के भ्रष्ट और अमर्यादित खिलाडि‍यों की मनमानियों और तिकडमबाजियों से मुक्ति पा सकते हैं। इसके लिए उन्हें सिर्फ और सिर्फ अपने वोट देने के अधिकार का सजग होकर सदुपयोग करना है...।

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