Thursday, January 2, 2014

निकलो बंद मकानों से...

लाल बहादुर शास्त्री। एक ऐसा प्रेरणास्पद नाम जो देशभक्ति, ईमानदारी, सदाचार और सरलता का प्रतीक है। देश के इतिहास में लाल बहादुर शास्त्री को छोडकर दूसरा और कोई ऐसा प्रधानमंत्री हुआ ही नहीं जो सच्चे मायनों में देशवासियों का आदर्श हो। हर किसी के साथ कोई न कोई विवाद जुडा रहा है। किसी को परिवारवाद ले डूबा तो किसी ने करनी और कथनी में भारी अंतर रख अपनी छवि मलीन कर डाली। जय जवान, जय किसान का नारा लगाने वाले लाल बहादुर शास्त्री देश के ऐसे प्रधानमंत्री थे जिन्होंने सच्चे अर्थों में देश की सेवा की और जन-जन पर अपनी अमिट छाप छोडी। आज भी देश उन जैसे प्रतिभावान नेता और प्रधानमंत्री की बेसब्री से बाट जोह रहा है। देखें कभी पूरी होती है भारतमाता की यह इच्छा। यह सुखद खबर आपके पढने और सुनने में आयी होगी कि लाल बहादुर शास्त्री के पोते आदर्श शास्त्री आम आदमी पार्टी में शामिल हो गये हैं। चलती गाडी की सवारी तो हर किसी को भाती है, लेकिन आदर्श शास्त्री ने अरविं‍द केजरीवाल के उसूलों से प्रभावित होकर ही एक करोड की अपनी लगी-लगायी नौकरी को लात मार दी है। नागपुर के विख्यात चिकित्सक डॉ. उदय बोधनकर ने भी आम आदमी पार्टी की टिकट पर नागपुर लोकसभा चुनाव लडने का मन बना लिया है। डॉ. बोधनकर ने आम आदमी पार्टी से जुडने का यूं ही मन नहीं बनाया। उन्हें इस पार्टी के सुप्रीमो अरविं‍द केजरीवाल का पारंपरिक पार्टियों से एकदम अलग हटकर काम करने का तरीका बेहद भाया है। दूसरे नेताओं की तरह नाटकीय अंदाज अपनाये बिना उन्होंने जो करिश्मा कर दिखाया है उसी के कायल हो गये हैं नागपुर के जाने-माने बालरोग विशेषज्ञ डॉ. बोधनकर। उनके ससुर स्वर्गीय वसंत साठे का नाम देश के कद्दावर नेताओं में शामिल रहा है। बापू की कर्मभूमि वर्धा से दो बार लोकसभा चुनाव जीतने वाले वसंत साठे ने देश के सूचना प्रसारण मंत्री का दायित्व भी बखूबी से निभाया था। डा. बोधनकर अपने ससुर के चुनाव संचालन की महत्वपूर्ण भूमिका निभा भी चुके हैं। यानी वे राजनीति के अंदरूनी दांव-पेच से वाकिफ हैं। डॉ. बोधनकर को 'आप' पार्टी का उम्मीदवार बनाने के लिए कई सामाजिक संगठनों ने अपनी आवाज बुलंद कर दी है। दूसरी तरफ नागपुर से लोकसभा चुनाव लडने की तैयारी में जुटे तथाकथित दमदार पार्टियों के दमदार नेताओं के चेहरों का रंग उड गया है। बेचारे अभी से बीमार दिखायी देने लगे हैं। अंदर ही अंदर से घबराये इन नेताओं के बयान लोगों का मनोरंजन कर रहे हैं। जिस तरह से शुरु-शुरु में दिल्ली में आम आदमी पार्टी के भविष्य को लेकर बातें की जा रही थीं ठीक वैसे ही बोलवचन सुनने को मिल रहे हैं: इस पार्टी का दिल्ली में तुक्का चल गया। नागपुर के मतदाता इतने अनाडी नहीं हैं कि नौसिखियों को अपना कीमती वोट देने की भूल करें। वैसे भी हर विधानसभा और लोकसभा चुनाव से पहले कागजी शेरों की दहाड सुनने को मिलती ही रहती है। यानी नागपुर के नेताओं की जमीन इतनी पुख्ता है कि उसे कोई हिला नहीं सकता! वैसे यही गुमान दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को भी था। विधानसभा चुनाव से पहले उन्हे 'आप' पार्टी पानी का बुलबुला लग रही थी। बुलबुले ने समंदर को पानी पिला दिया और मदहोश समंदर के होश ठिकाने आ गये। दिल्ली की तरह महाराष्ट्र को भी बदलाव का इंतजार है। नागपुरवासी तो बेचैन हैं। राह देख रहे हैं। अरविं‍द केजरीवाल जैसा कोई जुनूनी आम आदमी आए और उनके सपने साकार कर दे। इस शहर के साथ हर पार्टी के नेताओं ने लगातार मज़ाक ही किया है। उद्योग धंधे गायब हो चुके हैं। वो एम्प्रेस मिल और मॉडल मिल कब की बंद हो गयीं जो नागपुर की खास पहचान थीं। इन मिलों के कपडों की अपनी एक अलग शान थी। यह कपडा देश के दूर-दराज के शहरों और गांवों के बाजारों में जाता था। हजारों श्रमिक इनसे जुडे थे। सबके सब एक ही झटके से बेरोजगार हो गये। नेताओं की घटिया राजनीति ने शहर के और भी कई उद्योगधंधों पर ताले जडवाये। मिलों की अरबों रुपयों की जमीनों को भी इन नेताओं के संगी-साथी औने-पौने दामों में खरीदने में कामयाब हो गये। इन पर बडी-बडी इमारतें तान दी गयीं। शहर के भाग्य विधाता कहे जाने वाले कुछ नेताओं का लगभग एक-सा चरित्र है। मिल-बांट कर खाने में यकीन रखते हैं। भले ही पार्टी अलग-अलग हो। इस मामले में सब एक हैं। अगर ऐसा नहीं होता तो विदर्भ और खासकर नागपुर की इतनी दुर्गति नहीं होती। 'मिहान' का जो सपना दिखाया गया था उसका भयावह सच भी सामने आ चुका है। यहां यह बताना जरूरी है कि सात-आठ वर्ष पूर्व 'मिहान' के नाम पर नागपुरी नेताओं ने जमकर श्रेय लूटा था। यह प्रचारित किया गया था कि इसकी बदौलत पूरे विदर्भ में क्रांति आ जाएगी। कम से कम दस लाख बेरोजगारों को रोजगार मिलेगा। तरक्की और बदलाव की उम्मीद के छलावे के कारण जमीनों के भाव आसमान छूने लगे थे। नेताओं के करीबियों ने प्रापर्टी के धंधे में कूदकर देखते ही देखते अरबों-खरबों की माया जुटा ली। सत्ताधीशों ने भी धन से अपने गोदाम भर लिये। लेकिन 'मिहान' केवल हवाई सपना ही साबित हुआ। आम जनता लुट गयी। किसी के हाथ में कुछ भी नहीं आया। दरअसल, शहरवासी वीआईपी कल्चर से मुक्ति चाहते हैं। वे जातिवादी नेताओं के होश ठिकाने लगाना चाहते हैं। उन्हें धनबल और बाहुबल की बैसाखी के सहारे चलने वाले धंधेबाज नेताओं से नफरत हो गयी है। वे किसी भी हालत में इन्हें 'जीतते' हुए नहीं देखना चाहते। यही भी सच है कि यह पवित्र काम सिर्फ और सिर्फ उस वोट की बदौलत ही हो सकता है जिसे अभी तक हम उनको देते चले गये जो कि इसके काबिल ही नहीं थे। 
आदर्श शास्त्री हों या डॉ. बोधनकर, इन जैसों का राजनीति में आना बहुत जरूरी है। भ्रष्ट नेताओं की मंडली को ऐसे लोग ही मात दे सकते हैं। महात्मा गांधी, विनोबा भावे, राम मनोहर लोहिया, जयप्रकाश नारायण ने जिस लोकशाही की कल्पना की थी उसी को साकार करने की राह पर निकले अरविं‍द केजरीवाल को तभी पूर्ण सफलता मिलेगी जब पूरी तरह से कर्मठ और ईमानदार लोग उनसे जुडेंगे। अरविं‍द केजरीवाल को मात्र एक व्यक्ति समझ लेना बहुत बडी भूल होगी। वे बदलाव के जीवंत प्रतीक हैं। आज पूरा देश उन पर उम्मीदें लगाये है। नारंगी शहर को भी बदलाव का इंतजार है। शहर के विभिन्न चौक-चौराहों तथा गली-कूचों में अरविं‍द केजरीवाल की तस्वीरों वाले पोस्टर और उन पर लिखे नारे लोगों की चेतना और उम्मीदों को जगाने लगे हैं:
'निकलो बंद मकानों से,
जंग लडो बेइमानों से,
....
'पहले लडे थे गोरों से,
अब लडेंगे चोरों से।

No comments:

Post a Comment