Friday, January 10, 2014

इस सच को भी तो जानो

सत्ता पाने के लिए क्या-क्या नहीं हो रहा। सत्ता पर बने रहने के लिए भी हर तरह के दांव-पेंच और नुस्खे आजमाए जा रहे हैं। न्यूज चैनलों पर यह खबर सपाटे के साथ चल रही है कि राहुल गांधी की छवि को चमकाने के लिए ५०० करोड रुपये दांव पर लगाए जा रहे हैं। इस शुभ काम के लिए दो विदेशी एजेंसियों को ठेका दिये जाने की खबर ने चौंका दिया। भाजपा के भावी प्रधानमंत्री के नाम को मतदाताओं के दिलो-दिमाग तक पहुंचाने का ठेका भी किसी विदेशी कंपनी को बहुत पहले दे दिया गया था। सात समन्दर पार के विज्ञापन प्रबंधकों ने नरेंद्र मोदी को चमकाने के लिए जमीन-आसमान एक करने में देरी नहीं लगायी। जहां देखो वही नरेंद्र मोदी। देश के आधे से ज्यादा अखबार और न्यूज चैनल वाले भी मोदी की आरती गाने में ऐसे जुट गये जैसे वही इस मुल्क के इकलौते मसीहा हों जो डूबती नैय्या को पार लगा सकते हैं। आश्चर्य! यह मसीहा अपनी पार्टी भाजपा को दिल्ली की सत्ता नहीं दिला पाया। एक आम आदमी जिसने मुडे-तुडे कपडे पहन रखे थे और सिर को किसी पुराने मफलर और टोपी से ढंका हुआ था उसने तरह-तरह के नवीनतम वस्त्रों के शौकीन नरेंद्र मोदी को जबर्दस्त मात दे दी। आम आदमी के इर्द-गिर्द किसी भी तरह की कोई पुख्ता सुरक्षा का कोई घेरा नहीं था। वह जहां चाहता, वहीं चला जाता। उसके बोलने का अंदाज भी बडा सादा था। दूसरी तरफ नरेंद्र मोदी का काफिला था। उनकी चुनावी सभाओं की सुरक्षा व्यवस्था ऐसी कि परिन्दा भी आसपास न फटक सके। मोदी जहां जाते, वहीं रातों-रात उनके आदमकद पोस्टर लग जाते। आम आदमी तो खुद ही पोस्टर था। मोदी जब मंच पर भाषण देने आते तो ऐसा लगता किसी सल्तनत का राजा आम जनता से मुखातिब होने को आया है। उनके चेहरे की अजब-गजब मुस्कान और गर्व-दर्प देखते बनता था। जैसे कह रहे हों कि मैं ही सबकुछ हूं। बाकी सब तो चींटियां हैं। आम आदमी की तो कोई औकात ही नहीं है। वह तो भीड मात्र है। भीड का कोई वजूद और चरित्र नहीं होता। आश्चर्य! उनके भाषणों को तालियां भी खूब मिलीं। पर दिल्ली की जागरूक जनता ने मनचाहे वोट देने में भरपूर कंजूसी कर दी।
दरअसल, आम आदमी पार्टी और अरविंद केजरीवाल ने भाजपा और कांग्रेस दोनों के पैरों के नीचे की जमीन खिसका दी है। दोनों पार्टियां बेहद घबरायी हुई हैं। उन्हें यह डर सता रहा है कि यह तीसरा खिलाडी निश्चय हि उनके खेल को बिगाड सकता है। अरविंद केजरीवाल एंड कंपनी के आकस्मिक उभार की न तो राहुल गांधी ने कल्पना की थी और न ही नरेंद्र मोदी ने। दोनों पार्टियों के विभिन्न नेता अपने-अपने घमंड में चूर थे। अब जब होश ठिकाने आये हैं तो फिर से नयी चुनावी रणनीतियां बनायी जा रही हैं। एक तीसरे सीधे-सादे सहज इंसान ने इन्हें करोडों रुपये फूंकने पर विवश कर डाला है। वो आदमी बडे मजे से मजे ले रहा है। उसे किसी का कोई डर नहीं है। उसका कुछ भी नहीं खोनेवाला। उसे तो पाना ही पाना है। उसके कारवां की भीड बढती चली जा रही है। कल तक लग रहा था कि नरेंद्र मोदी के रथ को रोक पाना असंभव है और आज आम आदमी के प्रतीक अरविंद केजरीवाल के रथ के पहिये को जाम करने के लिए दिमाग खपाया जा रहा है। रंक ने राजा के होश ठिकाने लगा दिए। इस देश की जनता यही चाहती थी। यही तो चाहती है! भोली-भाली जनता को न नरेंद्र से कोई लेना-देना है और न ही राहुल से। उसे तो शिकायत है इनकी पार्टियों से जो बडे-बडे वादे तो करती रहीं पर कहीं भी खरी नहीं उतरीं। देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस की अगर नीयत साफ होती तो सदियों से दबे-कुचले, पिछडे और समाज के हाशिये पर पडे लोगों की सबसे पहले सुध लेती। सत्ता के मद में खोयी कांग्रेस ने तो इनकी तरफ देखा तक नहीं। महंगाई पर महंगाई बढाकर इन बदनसीबों को गरीबी रेखा से भी बहुत नीचे जीने को विवश कर दिया गया। न इन्हे कभी ढंग से दो जून की रोटी मिल पायी और न ही पीने के लिए पानी। शिक्षा, रोजगार, बिजली और स्वास्थ्य सेवाओं के लायक तो जैसे इन्हें समझा ही नहीं गया। शहरों और ग्रामों में इतना भेदभाव कि... जैसे शहरों और यहां के रईसों की बदौलत ही देश चल रहा हो। किसानों की आत्महत्याओं के असली कारणों की गहराई में जाने की कभी कोशिश ही नहीं की गयी। उन पर जुल्म ढाने वाले शोषकों और साहूकारों को भी खुले सांड की तरह छोड दिया गया। उद्योगपति बैंको के धन को डुबाते रहे फिर भी सम्मान पाते रहे। असमानता और अराजकता के इस पूरे खेल में मंत्रियों, अफसरों, नेताओं, सत्ता के दलालों ने जमीन, जंगल, पहाड और सरकारी खजाने लूट डाले। किसी भी राजनीतिक ठग और लूटेरे का बाल भी बांका नहीं हुआ। इन्हीं में से कई लोगों ने विधानसभा और लोकसभा में बडी आन-बान और शान के साथ अपनी उपस्थिति दर्ज करवायी। केंद्र और प्रदेश की सत्ता संभालने का अच्छा-खासा मौका भारतीय जनता पार्टी को भी मिला। छत्तीसगढ और मध्यप्रदेश को छोडकर कहीं भी खुशहाली की फसल लहराती नजर नहीं आयी। नरेंद्र मोदी ने गुजरात का कितना विकास किया उसका पूरा सच लालकृष्ण आडवानी उजागर कर चुके हैं। भाजपा के पितामह अटल बिहारी वाजपेयी ने गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को यूं ही राजधर्म निभाने की सीख नहीं दी थी। सच तो यही है कि यदि कांग्रेस और भाजपा की आम लोगों में बहुत अच्छी छवि होती तो 'आप' का उदय ही नहीं होता। न ही नरेंद्र मोदी और राहुल गांधी को भारत वर्ष में अपना नाम चमकाने के लिए प्रचार एजेंसियों का सहारा लेना पडता। जापान की जिन दो पब्लिक रिलेशन (पी.आर.) एजेंसियों को राहुल गांधी तथा कांग्रेस की धुंधलाती तस्वीर को संवारने और चमकाने का जिम्मा सौंपा गया है, वे अपने काम में लग गयी हैं। यह एजेंसियां प्रिंट और इलेक्ट्रानिक मीडिया को अपने पाले में लेंगी और इस तरह की खबरें छपवायेंगी और चलवायेंगी जिससे देशवासियों को लगे कि राहुल गांधी और कांग्रेस के सिवाय और कोई इस देश को नहीं बचा सकता। अगर किसी और के हाथ में देश की सत्ता गयी तो बहुत बडा अनर्थ हो जायेगा। राहुल गांधी को देश का एकमात्र युवा नेता दर्शाया जायेगा। राहुल की विभिन्न रैलियों की तस्वीरें हर जगह नज़र आयेंगी। सोशल मीडिया पर भी राहुल ही राहुल छा जाएंगे। पर सवाल यह है कि क्या वाकई वे देशवासियों के दिलों में जगह बना पायेंगे?

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