Thursday, March 20, 2014

ऐसे बाबा किस काम के?

यह खबर नहीं चेतावनी है कि आसाराम के कुकर्मी चेहरे को बेनकाब करने वाले गवाह पर तेजाब उंडेल दिया गया। दुनिया के सबसे बडे लोकतांत्रिक देश भारत में ऐसा ही होता है। दूसरों को सच्चाई का साथ देने के प्रवचन देने वाले खुद सच को बर्दाश्त नहीं कर पाते। अपने ही शिष्यों के साथ धोखाधडी और उनकी बहन-बेटियों की अस्मत लूटने वाले तथाकथित संत यह कभी नहीं चाहते कि उनका असली चेहरा सामने आये। अब तो पथभ्रष्ट नेताओं और ढोंगी साधु-संतो के बीच भेद कर पाना मुश्किल हो गया है। देश के पहाड, जंगल, जमीन और तमाम धन संपदा को चट कर जाने वाले बेइमान नेताओं को बेनकाब करने वाले पत्रकारों पर डंडे बरसाने और गोलियां चलवाने का चलन भी बडा पुराना है। निष्पक्षता और निर्भीकता के साथ पत्रकारिता करने वालों को क्या-क्या नहीं सहना पडता। सत्ताधीश भी उन्हें बर्दाश्त नहीं कर पाते। चाटूकारों को जहां झूले में झुलाया जाता है वहीं झूठों के नकाब उतारने वालों को मौत का हकदार समझा जाता है। आजकल तो निष्पक्ष और निर्भीक पत्रकारों पर मानहानि के मुकदमें दायर करने का फैशन-सा चल पड रहा है। जिस दागी नेता को देखो वही पत्रकारों को अदालतों में घसीटने की खोखली मर्दानगी दिखाने में लगा है। पत्रकार समाज में जागृति लाने के लिए अपने धर्म को निभाते हैं और अराजक और धंधेबाज नेता उन्हें आतंकित करने के कई-कई फंडे अपनाते हैं। जो पत्रकार राष्ट्रसेवा के लिए पत्रकारिता के पेशे को अपनाते हैं वे जेब से फकीर होने के बावजूद आखिर तक इनके काले चेहरों को उजागर करने में लगे रहते हैं। यहां तक कि अपनी जान की बाजी भी लगा देते हैं। कुछ ऐसे भी होते है जो आखिरकार इनके हाथों बिक जाते हैं। मौकापरस्त राजनेताओं की दुकानदारी इन्ही बिकाऊ पत्रकारों की बदौलत परवान चढती चली आ रही है। पिछले कई महीनों से जोधपुर की जेल में बंद आसाराम के अंध भक्त उसे आज भी अपना भगवान मानते हैं। इन चेलों में कुछ राजनेता भी हैं जिन्हें मायावी प्रवचनकार की कमी खल रही है। अगर वे बाहर होते तो किसी न किसी राजनीतिक पार्टी के नाम की ढोलक बजा रहे होते। उसके प्रत्याशियों को जितवाने के लिए जी-जान एक कर चुके होते। यह धर्म के धंधेबाज राजनीति के सौदागरों के लिए बडे काम की चीज हैं। धर्म के सौदागर बहुत सोच समझ कर अपना दांव चलते हैं। जिनसे बहुत कुछ पाने का यकीन होता है उन्हीं को वोट देने का आदेश अपने अंध भक्तों को देते हैं। अपना वोट जाया करने वाले भक्तों को तो कुछ नहीं मिलता पर 'देवता' मालामाल हो जाते हैं। उन्हें मुफ्त में विभिन्न सरकारी सुविधाएं और जमीनें उपहार में दे दी जाती हैं जहां आश्रमों के नाम पर आलीशान इमारतें खडी होती चली जाती हैं। इन आश्रमों का अंदरूनी सच कम चौंकाने वाला नहीं होता। आसाराम के जादुई आश्रमों की असलियत सबके सामने है। वर्षों तक देश की बेटियों का यौन शोषण होता रहा और अजब-गजब की चुप्पी छायी रही। धर्म-कर्म की बडी-बडी बातें करने वाला दिखावटी वक्ता जब मीडिया की सुर्खियां बना तो सबसे ज्यादा तकलीफ उन नेताओं को हुई जो इसके दरबारों में हाजिरी लगाया करते थे। इन नेताओं की 'भक्ति' के चलते ही कपटी संतों और उनके भक्तों का अभूतपूर्व इजाफा होता देखा गया। जिस देश में करोडों लोग बेघर हैं वहां पर तथाकथित साधु-संतों को मुफ्त में अरबों रुपयों की जमीनों की सौगात दे दी जाती है। तस्वीर हम सबके सामने है। आसाराम हो या बाबा रामदेव। इन्होंने करोडों की जमीनें हथियायीं और अपने-अपने धंधे शुरू कर दिए। देखते ही देखते इनके आश्रम कारखाने बन गये जहां यौन वर्द्धक दवाओं से लेकर वो सब कुछ बनने लगा जो बाजार में बिकने के काबिल था। इस चुनावी मौसम में रामदेव बाबा की नौटंकी की चर्चा करना बहुत जरूरी है।
लोगों को योग विद्या की शिक्षा देने वाले रामदेव के संदिग्ध क्रिया- कलापों पर बहुत कुछ लिखा और कहा जा चुका है। अब तो यह तय कर पाना भी मुश्किल है कि रामदेव व्यापारी हैं, राजनीति का खिलाडी है या फिर कोई पहुंचा हुआ योगी है...। हर विषय पर बोलने का एकाधिकार प्राप्त कर चुके इस भगवाधारी ने कांग्रेस को हरवाने और भाजपा को जितवाने की प्रतिज्ञा की है। कांग्रेस उसके लिए तब तक अच्छी थी जब तक वह उस पर मेहरबान थी। जैसे ही उसके धंधे पर आंच आने लगी, जमीने छिनने लगीं, आयकर के छापे पडने लगे और राजनीतिक महत्वाकांक्षा पर प्रहार होने लगे तो उसे राहुल और सोनिया गांधी अपने जन्मजात शत्रु लगने लगे। कभी अरविं‍द केजरीवाल की वाहवाही करने वाले बाबा रामदेव को केजरीवाल और उसके साथी दुनिया के सबसे घटिया प्राणी लगते हैं। दरअसल, इन्होंने भी बाबा को कभी घास नहीं डाली। दरअसल, बाबा को वही लोग अच्छे लगते हैं जो उसके समक्ष नतमस्तक होते रहें। 'योगी' अपनी शर्तों के साथ भाजपा के चुनाव प्रचार में जुट गया है। उसने अपनी पसंद के कुछ चेहरों को भाजपा की टिकट दिलवाने में सफलता भी पायी है। सवाल यह उठता है कि एक योगगुरु को अपनी पसंद के उम्मीदवारों को टिकट दिलवाने की जरूरत क्यों आन पडी? जवाब यह है कि इसके पीछे उसका बहुत बडा स्वार्थ छिपा है। उसके मनचाहे साथी लोकसभा चुनाव जीतेंगे तो वह अपना सिक्का चलाने में कामयाब हो जायेगा। एक तरह से सत्ता उसकी मुट्ठी में होगी। योगी यही तो चाहता है कि वो जो कुछ भी करे उस पर कोई उंगली न उठाये। सरकारी डंडा उससे कोसों दूर रहे। उसे सरकारी जमीनों की खैरात मिलती रहे। वह साबुन, शैम्पू, च्यवनप्राश, भास्कर चूरण, नमक, आटा आदि सब बनाता रहे और देश और दुनिया में खपाता रहे। किसी भी बाजार में अपना परचम लहराने के लिए हुक्मरानों का साथ होना जरूरी है। बाबा रामदेव इस शुभ काम में जी-जान से लग गये हैं। अंबानियों और अदानियों ने भी यही और सत्ता के दलालों ने भी सिर्फ और सिर्फ यही काम किया। यह सागर मंथन का दौर है... सोचिए... चिं‍तन-मनन कीजिए कि आखिर ऐसे बाबा देश के किस काम आने वाले हैं?

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