Friday, March 28, 2014

इस सच को भूल मत जाना

राजनेताओं की जुबान ही राजनीति के दबे-छिपे असली सच का पर्दाफाश कर देती है। अपने शर्मनाक बोलवचनों की बदौलत सुर्खियां पाने वालों का असली चेहरा भी उजागर हो जाता है। कोई बडबोला किसी पार्टी के मुखिया को बडी दबंगता के साथ 'कुत्ता' कहता है तो कोई अपने राजनीतिक विरोधी को 'नपुंसक' करार दे देता है। सत्ता के लिए कुछ नेता किसी भी हद तक गिरने से नहीं कतराते। भाजपा के एक बुजुर्ग नेता हैं कैलाश जोशी। मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री रह चुके हैं। सांसद बनने का भी उन्होंने सौभाग्य पाया है। उन्हें देशभर के न्यूज चैनलों पर अपने किसी खासमखास को यह कहते हुए सुना गया कि लोकसभा की टिकट के लिए एक करोड ले आओ और चुनाव लड लो। जब इस खबर ने तूफान मचाया तो भाजपा के नेता का फट से बयान आया कि मैं तो मज़ाक कर रहा था। राष्ट्रवादी कांग्रेस के सर्वेसर्वा शरद पवार ने भाजपा के कैलाश जोशी को ही मात दे दी। उन्होंने मुंबई में श्रमिकों की भीड को सम्बोधित करते हुए कहा इस बार सतारा और मुंबई में अलग-अलग दिन मतदान हो रहा है। ऐसे में आप सबसे पहले सतारा में वोट देना और फिर २४ तारीख को मुंबई में आकर वोट दे देना। लेकिन यह नेक काम करते समय उंगली पर लगी स्याही के निशान को मिटाना मत भूलना। वे अपने श्रमिक वोटरों को यह बताना भी नहीं भूले कि पिछली बार वग एक ही दिन में होने के कारण कम वोqटग हुई थी। इस बार मौका भी है और दस्तूर भी। देश के दिग्गज नेता शरद पवार के इस सुझाव के पीछे छिपी असली नीयत ने बहुत कुछ बयां कर डाला। ताज्जुब! बोगस वोटिंग का सुझाव देने वाले शरद पवार ने पलटी मारते हुए कैलाश जोशी की तरह इसे मज़ाक कहने में जरा भी देरी नहीं लगायी।
दरअसल, इस देश की जनता के साथ पिछले ६६ वर्षों से मज़ाक ही तो होता चला आ रहा है। इस मज़ाक ने उसे कितने जख्म दिये हैं इसका हिसाब-किताब लगाने की कभी जरूरत ही नहीं समझी गयी। यह कितना दुखद है कि कुछ  राजनीतिक पार्टियां लोकसभा और विधानसभा की टिकटें बेचती हैं और नेता बोगस मतदान करने को उकसाते हैं। ऐसे में मन में यह विचार आता है कि क्या इस देश में होने वाले चुनाव महज दिखावटी हैं? जनता को सिर्फ बेवकूफ बनाया जाता है? देश में बदलाव के कोई खास संकेत नहीं दिख रहे हैं। वही पुराने खिलाडी मैदान में हैं। नयों के कपडे फाडे जा रहे हैं। उनपर स्याही फेंकी जा रही है। उन्हें काले झंडे दिखाकर पस्त करने की साजिशें रची जा रही हैं। कहीं ऐसा न हो कि यह नये पूरा खेल ही न बिगाड कर रख दें। महंगाई, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, अनाचार और कानून की निरंतर बिगडती हालत की कहीं कोई चर्चा नहीं है। किसी भी तरह से लोकसभा की २७२ सीटें हथियाने की मारामारी मची है। मर्यादा और सिद्धांतों को सूली पर चढा दिया गया है। कांग्रेस को डूबता हुआ जहाज मानने वालों को भाजपा ने ऐसा लुभाया है कि उन्होंने आगे और पीछे देखना ही छोड दिया है। संपादक, लेखक, पत्रकार, प्रवचनकार, अभिनेता, अभिनेत्रियां और धन्नासेठ भाजपा के समक्ष नतमस्तक हैं। हाल कुछ ऐसे हैं कि पियक्कडों ने भी चाय के तराने गाते हुए नरेंद्र मोदी के नाम की माला जपनी शुरू कर दी है। दलबदलू और अवसरवादी धडाधड भाजपा के पाले में समा रहे हैं। कभी नरेंद्र मोदी और भाजपा के घोर विरोधी रहे संपादक-पत्रकार एमजे अकबर ने एकाएक भाजपा में शामिल होकर देश के प्रबुद्धजनों को चौंका कर रख दिया है। अकबर की कभी कांग्रेस के प्रति वफादारी थी। इसी वफादारी के चलते ही कांग्रेस ने उन्हें राज्यसभा का सांसद भी बनवाया था। तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी के गरीबी मित्र होने का दावा करने वाले अकबर को जब कांग्रेस के जहाज के डूबने का अंदेशा हुआ तो उनकी निष्ठा भी बदल गयी। भाजपा की सदस्यता ग्रहण करने के बाद अकबर ने फरमाया कि मैं राजनीति में नीति के लिए वापस आया हूं। सभी जानते हैं देश संकट से जूझ रहा है। ऐसे में मोदी के नेतृत्व में मुल्क की तस्वीर बदली जा सकती है। इन्हीं अकबर महाशय ने २००२ में कहा था- 'हिटलर के केस में दुश्मन यहूदी था। मोदी के मामले में दुश्मन मुस्लिम है। ऐसा राजनेता मूर्ख नहीं हो सकता। वह (मोदी) उच्च किस्म के बुद्धिमान हो सकते हैं। लेकिन यह मानवता द्वारा असंस्कारित बुद्धि है। अगर मोदी बडे पैमाने पर जीतते हैं तो वह भाजपा को गुजरात संस्करण बना देंगे।' अपने देश में तथाकथित बुद्धिजीवियों को सत्ता का पिछलग्गू बनने में qकचित भी देरी नहीं लगती। कुछ ही बचे हैं जिन्होंने अभी तक अपने सिद्धांतों से समझौता नहीं किया है।
२००२ में कुछ तो २०१४ में कुछ कहने और मानने वाले पत्रकार अकबर की तरह सतपाल महाराज नामक प्रवचनकार और नेता ने भी जब भाजपा में प्रवेश किया तो लोगों को बेहद अचंभा हुआ। कांग्रेस के पूर्व सांसद सतपाल महाराज ने भी कांग्रेस से बहुत कुछ पाया है। उनकी पत्नी अमृता रावत उत्तराखंड की सरकार में मंत्री हैं। महाराज ने वर्षों से मुख्यमंत्री बनने की चाहत पाल रखी थी। वह पूरी नहीं हो पायी। उन्होंने भाजपा में शामिल होने के बाद रहस्योद्घाटन किया कि कांग्रेस में मेरा दम घुट रहा था। कांग्रेस को मेरा हिंदुत्ववादी चेहरा रास नहीं आ रहा था। इसलिए मैंने कांग्रेस को नमस्कार कर घुटन से मुक्ति पा ली है। अपने प्रिय पाठकों को यहां यह याद दिलाना भी जरूरी है कि इन्हीं सतपाल महाराज ने गुजरात के २००२ के दंगों के बाद गुजरात में ही सद्भावना पदयात्रा निकाली थी और नरेंद्र मोदी और भाजपा पर वही आरोप लगाये थे जिनका सिलसिला आज भी थमा नहीं है। इस चुनावी मौसम में दल बदलने का जबर्दस्त खेल चल रहा है। स्वार्थ की राजनीति करने वाले नेता हर पार्टी में हैं। इन्हें पहचानने की जिम्मेदारी हमारी है। राजनीति के आकाश में कई अच्छे चेहरे भी सितारों की तरह चमक रहे हैं। यही बेदाग आम चेहरे हमारे कीमती वोट के असली हकदार हैं। अपने धारदार लेखन की बदौलत देशभर के सजग पाठकों के दिलों में अपनी जगह बना चुके कवि, व्यंग्यकार गिरीश पंकज की यह पंक्तियां इस कलमकार के दिल की बात कह रही हैं:
यह चुनाव का मौसम है, अब वादे नित्य हजार मिलेंगे
जिनको हमने मूर्ख समझा, वही डेढ होशियार मिलेंगे
वही पुराने घिसे-पिटे, सब चेहरे अब तो बदलें हम
खोजो-खोजो इस बस्ती में, भले लोग दो-चार मिलेंगे

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