ऐसी नापसंदगी और खुन्नस बहुत कम देखने में आती है। नरेंद्र मोदी का जिस दिन से पीएम के लिए नाम आया उसी दिन से तरह-तरह की प्रतिक्रियाओं का अंबार लगता चला गया। करोडों देशवासियों ने कहा कि परिवर्तन होना ही चाहिए। लोकतंत्र में विरोध और विरोधियों को भी नजर अंदाज नहीं किया जा सकता। ऐसा तो हो ही नहीं सकता कि किसी एक नेता को सभी कबूल कर लें। नरेंद्र मोदी के साथ भी ऐसा ही हुआ। लेकिन कुछ चेहरों के दिल और दिमाग का उबाल जब शब्दों के रूप में बाहर आया तो नादानी, छोटेपन और हैरत की अमिट लकीरें खिंच गयीं। पूर्व प्रधानमंत्री एच.डी.देवगौडा का नाम कुछ देशवासियों को तो जरूर याद होगा। यह महाशय १९९६ में नाकाबिल होने के बावजूद भी भारत वर्ष के पीएम बनने में जिस तरह से कामयाब हो गये थे उससे यही लगा था कि बिल्ली के भाग्य से छींका टूट गया है। नरेंद्र मोदी के प्रति उनके दिल में पता नहीं कौन सी खटास है कि उन्होंने यह कहकर कटुता की सारी सीमाएं ही लांघ दीं : अगर मोदी के नेतृत्व में सरकार बनती है तो वह कर्नाटक छोड देंगे और राजनीति से भी संन्यास ले लेंगे। प्रबुद्ध जनों ने इसे किसी दिलजले की पीडा और ईर्ष्या का शर्मनाक इज़हार कहा। वैसे भी देवगौडा राजनीति के पुराने खिलाडी हैं। ऐसी बयानबाजियां उनके खून में रची-बसी हैं। चुप रहेंगे तो उनके होने का ही पता नहीं चलेगा। इसलिए ऐसा घटिया बयान देकर मीडिया की सुर्खियां पाने के साथ ही उन्होंने अपने दिमागी खोखलेपन को भी उजागर कर दिया। देवगौडा तो नेता कहलाने के भी हकदार नहीं हैं। एक अच्छा और सुलझा हुआ नेता अपने विरोधी नेता पर शाब्दिक बाण चलाने के लिए स्वतंत्र है। राजनीति में एक-दूसरे की कमजोरियों को उजागर करना भी जरूरी होता है, लेकिन प्रदेश छोडने और राजनीति को अलविदा कहने की धमकी देकर देवगौडा ने मोदी का कद बढा दिया और अपने पैरों पर कुल्हाडी मार दी। लंगडा-लूला यह भूतपूर्व प्रधानमंत्री अब किसी को अपनी शक्ल दिखाने के लायक भी नहीं बचा।
जिनकी सोचने-समझने की क्षमता ही जवाब दे चुकी हो उनका ऊल-जलूल बकना तो समझ में आता है, लेकिन किसी नामी-गिरामी साहित्यकार का देवगौडा जैसे शख्स के समकक्ष खडे नजर आना यकीनन हैरत में डाल देता है। ज्ञानपीठ और पद्म पुरस्कार से सम्मानित व कन्नड लेखक डॉ. यू.आर.आनंदमूर्ति ने एक समारोह में अपनी प्रगाढ विद्वता का प्रदर्शन करते हुए कहा कि मोदी जैसे व्यक्ति के प्रधानमंत्री बनने पर देश में दहशत फैलेगी। अगर वे देश की सत्ता पर काबिज हुए तो मैं भारतवर्ष में रहने की बजाय किसी दूसरे देश में जाकर अपना आशियाना बसा लूंगा। नरेंद्र मोदी को देश के लिए खतरा मानने वाले यह साहित्यकार बडे-बडे पुरस्कारों से नवाजे जा चुके हैं। तय है कि कलम के धनी होंगे ही। उनका लिखे साहित्य ने कई पाठकों पर अपनी छाप भी छोडी होगी। लेकिन मोदी पर व्यक्त किये गये उनके विचार और देश छोडने की धमकी उनकी छवि के अनुकूल तो कतई नहीं। ऐसे छोटे दिल के लेखक बडे साहित्यकार कैसे बन जाते हैं? कलम ही लेखक का सबसे बडा हथियार होती है। इस देश में लेखकों और साहित्यकारों पर किसी भी तरह की कोई बंदिश नहीं है। आनंदमूर्ति को मोदी इतने चुभ रहे थे तो वे उनको बेपर्दा करने के लिए स्वतंत्र थे। मोदी का विरोध करने के लिए अगर वे कलम का इस्तेमाल करते तो यकीनन हर किसी के चहेते साहित्यकार बन जाते। देश छोडने की धमकी देकर उन्होंने 'कलमकार' और 'साहित्यकार' की गरिमा को ही ठेस पहुंचायी है। बुद्धिजीवी और चालू किस्म के लोगों में जमीन-आसमान का फर्क होता है। बुद्धिजीवी कभी प्रचार के भूखे नहीं होते। 'अधजल गगरी छलकत जाए' की कहावत को चरितार्थ करने वालों को मीडिया में छाये रहने की लत लग जाती है। एकाध फिल्म का निर्माण और कुछेक फिल्मों में अभिनय तथा रियलिटी शो 'बिग बास-३' में अपनी बेहूदी कलाकारी दिखा चुके कमाल खान ने भी मोदी के जीतने पर देश छोडने का ऐलान किया था। नरेंद्र जीत गए। भारतीय लोकतंत्र में अब तक की सबसे बडी विजय हासिल कर उन्होंने अपनी पार्टी भाजपा का भी कद बढा दिया। ऐसे नतीजों की उम्मीद किसी को भी नहीं थी। कमाल खान नरेंद्र मोदी के चुनाव जीतने के बाद दुबई भाग गया है। ऐसे लोग न रहम के काबिल हैं और न ही गुस्से के। यह तो अवहेलना और तिरस्कार के हकदार हैं। असली पीडा तो राजनेता देवगौडा और साहित्यकार अनंतमूर्ति जैसों की सोच को लेकर होती है। दरअसल इन तमाम लोगों को मोदी की जीत पर यकीन ही नहीं था। उन्हें लग रहा था कि न भाजपा जीतेगी और न ही मोदी के नाम का कभी डंका बज पायेगा। लेकिन जो परिणाम आये वे तो देवगौडा और आनंदमूर्ति जैसों के मुंह पर तमाचे से भी बढकर हैं। जो करिश्मा सोनिया, राहुल, प्रियंका और तमाम राजनीतिक पार्टियों के दिग्गज नहीं दिखा पाए अकेले मोदी ने दिखा दिया। लोकसभा चुनावों के परिणाम आने के बाद देश में जिस प्रकार की राजनीतिक तस्वीर बनी है उससे कई नेताओं को बेहद आघात लगा है। आघात की चपेट में आकर छटपटाते नेता यह भूल गए हैं कि मतदाताओं का फैसला कभी गलत नहीं होता। मतदाताओं ने नरेंद्र मोदी के प्रति अभूतपूर्व विश्वास जताकर देश के बिके और भटके हुए नेताओं को यह संदेश दिया है कि काठ की हांडी बार-बार नहीं चढती। महाघोटालेबाज सावधान हो जाएं। उनके जेल जाने के दिन करीब आ गए हैं। दुविधाग्रस्त राजनेताओं और साहित्यकारों की निगाह में नरेंद्र दामोदरदास मोदी चाहे कुछ भी हों लेकिन देश की जनता की निगाह में वे एक ऐसे नायक हैं जो देश की तस्वीर को बदलने का दम रखते हैं।
जिनकी सोचने-समझने की क्षमता ही जवाब दे चुकी हो उनका ऊल-जलूल बकना तो समझ में आता है, लेकिन किसी नामी-गिरामी साहित्यकार का देवगौडा जैसे शख्स के समकक्ष खडे नजर आना यकीनन हैरत में डाल देता है। ज्ञानपीठ और पद्म पुरस्कार से सम्मानित व कन्नड लेखक डॉ. यू.आर.आनंदमूर्ति ने एक समारोह में अपनी प्रगाढ विद्वता का प्रदर्शन करते हुए कहा कि मोदी जैसे व्यक्ति के प्रधानमंत्री बनने पर देश में दहशत फैलेगी। अगर वे देश की सत्ता पर काबिज हुए तो मैं भारतवर्ष में रहने की बजाय किसी दूसरे देश में जाकर अपना आशियाना बसा लूंगा। नरेंद्र मोदी को देश के लिए खतरा मानने वाले यह साहित्यकार बडे-बडे पुरस्कारों से नवाजे जा चुके हैं। तय है कि कलम के धनी होंगे ही। उनका लिखे साहित्य ने कई पाठकों पर अपनी छाप भी छोडी होगी। लेकिन मोदी पर व्यक्त किये गये उनके विचार और देश छोडने की धमकी उनकी छवि के अनुकूल तो कतई नहीं। ऐसे छोटे दिल के लेखक बडे साहित्यकार कैसे बन जाते हैं? कलम ही लेखक का सबसे बडा हथियार होती है। इस देश में लेखकों और साहित्यकारों पर किसी भी तरह की कोई बंदिश नहीं है। आनंदमूर्ति को मोदी इतने चुभ रहे थे तो वे उनको बेपर्दा करने के लिए स्वतंत्र थे। मोदी का विरोध करने के लिए अगर वे कलम का इस्तेमाल करते तो यकीनन हर किसी के चहेते साहित्यकार बन जाते। देश छोडने की धमकी देकर उन्होंने 'कलमकार' और 'साहित्यकार' की गरिमा को ही ठेस पहुंचायी है। बुद्धिजीवी और चालू किस्म के लोगों में जमीन-आसमान का फर्क होता है। बुद्धिजीवी कभी प्रचार के भूखे नहीं होते। 'अधजल गगरी छलकत जाए' की कहावत को चरितार्थ करने वालों को मीडिया में छाये रहने की लत लग जाती है। एकाध फिल्म का निर्माण और कुछेक फिल्मों में अभिनय तथा रियलिटी शो 'बिग बास-३' में अपनी बेहूदी कलाकारी दिखा चुके कमाल खान ने भी मोदी के जीतने पर देश छोडने का ऐलान किया था। नरेंद्र जीत गए। भारतीय लोकतंत्र में अब तक की सबसे बडी विजय हासिल कर उन्होंने अपनी पार्टी भाजपा का भी कद बढा दिया। ऐसे नतीजों की उम्मीद किसी को भी नहीं थी। कमाल खान नरेंद्र मोदी के चुनाव जीतने के बाद दुबई भाग गया है। ऐसे लोग न रहम के काबिल हैं और न ही गुस्से के। यह तो अवहेलना और तिरस्कार के हकदार हैं। असली पीडा तो राजनेता देवगौडा और साहित्यकार अनंतमूर्ति जैसों की सोच को लेकर होती है। दरअसल इन तमाम लोगों को मोदी की जीत पर यकीन ही नहीं था। उन्हें लग रहा था कि न भाजपा जीतेगी और न ही मोदी के नाम का कभी डंका बज पायेगा। लेकिन जो परिणाम आये वे तो देवगौडा और आनंदमूर्ति जैसों के मुंह पर तमाचे से भी बढकर हैं। जो करिश्मा सोनिया, राहुल, प्रियंका और तमाम राजनीतिक पार्टियों के दिग्गज नहीं दिखा पाए अकेले मोदी ने दिखा दिया। लोकसभा चुनावों के परिणाम आने के बाद देश में जिस प्रकार की राजनीतिक तस्वीर बनी है उससे कई नेताओं को बेहद आघात लगा है। आघात की चपेट में आकर छटपटाते नेता यह भूल गए हैं कि मतदाताओं का फैसला कभी गलत नहीं होता। मतदाताओं ने नरेंद्र मोदी के प्रति अभूतपूर्व विश्वास जताकर देश के बिके और भटके हुए नेताओं को यह संदेश दिया है कि काठ की हांडी बार-बार नहीं चढती। महाघोटालेबाज सावधान हो जाएं। उनके जेल जाने के दिन करीब आ गए हैं। दुविधाग्रस्त राजनेताओं और साहित्यकारों की निगाह में नरेंद्र दामोदरदास मोदी चाहे कुछ भी हों लेकिन देश की जनता की निगाह में वे एक ऐसे नायक हैं जो देश की तस्वीर को बदलने का दम रखते हैं।
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