Thursday, May 1, 2014

ओछी सोच और गंदी जुबान!

कुछ नामधारी जानबूझकर अपनी साख पर बट्टा लगाने पर तुले हैं। उनकी बकवासबाजी का कोई अंत नहीं दिखायी दे रहा है। पता नहीं इस देश के राजनेताओं को हो क्या गया है? गाली-गलौच और बेमतलब की लफ्फाजी पर उतर आये हैं। भद्दे-भद्दे इशारों का सहारा ले रहे हैं। इनका बस चले तो सामने वाले के कपडे फाड दें और खुद भी भरे चौराहे पर निर्वस्त्र हो जाएं। राजनीति में इतना नंगापन पहले कभी नहीं देखा गया। सत्तालोलुप नेताओं का निर्लज्ज हो जाना तो समझ में आता है, लेकिन किसी योगी का भोगी वाली भाषा पर उतर आना बेहद चौंकाता है। हर कोई हैरान है। इस रामदेव बाबा को हो क्या गया है! इतनी गंदी... सडकछाप भाषा और दो टक्के के मवालियों की सोच से भी बदतर घटिया विचार : ‘राहुल को लुगाई नहीं मिल रही है। देशी लडकी से वह ब्याह नहीं करेंगे। मां विदेशी बहू लाने की मंजूरी नहीं दे रही हैं। इसलिए दलित बस्तियों में पिकनिक और हनीमून मनाने जाते हैं। दलित की बेटी से ब्याह कर लें तो पीएम बन जाएंगे!' लोग तो उन्हें त्यागी और मर्यादी समझते थे। उनसे व्यक्तिगत ईष्र्या की भी उम्मीद नहीं की जाती थी। पर यह बंदा तो एकदम जलनखोर और अक्ल का अंधा निकला। बदजुबानी ऐसी कि गली-मोहल्ले के लफंगे भी इसके सामने बौने नजर आएं।
ऐसा तो हो नहीं सकता कि हरियाणा के दबंग जाटों की तरह लट्ठमार भाषा बोलने वाले बाबा रामदेव को हनीमून के मायने ही पता न हों। हनीमून का सीधा अर्थ है नये शादीशुदा जोडे का मिलन काल। इसे सुहागरात भी कहा जाता है। आश्चर्य तो यह है कि रामदेव खुद को योगी और संन्यासी बताते हैं। ऐसे तथाकथित सात्विक व्यक्ति के मन में भोगविलास से ओतप्रोत विचार आते कैसे हैं? क्या योग की तरह सेक्स पर भी उनका सतत चिं‍तन-मनन चलता रहता है? अब इसके जवाब भी रामदेव को दे ही देने चाहिए। कहीं न कहीं कोई गडबड तो है। जो दिखता है, वो असली सच नहीं है। बाबा का खुद को योगी दर्शाना महज धोखा है, ढोंग है। यह मानने में भी कोई हर्ज नहीं कि एक नकाबपोश का तुक्का चल गया है। बाबा जब तक अपने योग शिविरों में लोगों को योग सिखा रहे थे तब तक तो ठीक था। उनका दूसरों के फटे में टांग डालना उनकी औकात दर्शा गया। जैसे-जैसे योग शिविरों में लोगों की भीड बढने लगी उनकी नीयत डोलने लगी। आम लोगों से तो फीस वसूल नहीं सकते थे। उन्होंने रईसों को फांसना शुरू कर दिया। इस चक्कर में उन्होंने यह भी नहीं देखा कि उन्हें चंदा देने वाले साधु हैं या शैतान हैं। वो कुख्यात चेहरे भी उनके मंचों की शोभा बढाने लगे और थैलियां भेंट चढाने लगे जिन्होंने काले धंधे कर धन बटोरा था। बाबा को धन से मतलब था, सफेद हो या काला। जहां जाते वहीं लाखों रुपये का चंदा वसूल लेते। देने वाले भी यह सोचकर दे देते की बाबा अच्छा काम कर रहा है। देशवासियों को स्वस्थ बनाने के एक सूत्रीय अभियान में लगा है। लेकिन असली सच तो था कुछ और। बाबा को उद्योग-व्यापार का साम्राज्य खडा करना था। जो रामदेव यह कहते नहीं थकता था कि दुनिया की हर बीमारी का इलाज योगासन हैं उसी ने धीरे-धीरे हर बीमारी की दवाइयां बनानी शुरू कर दीं। दवाओं के कारखानों के लिए किसानों की जमीनें दबानी और सरकारी जमीनें हथियाने का ऐसा कीर्तिमान रचा कि हर तरफ शोर मचने लगा कि यह योगी तो जमीनों का भूखा है। इसके लिए उसने नेताओं से करीबी रिश्ते बनाये। मंत्रियों-संत्रियों की चौखट पर नमनासन किया। हर किसी ने उस पर भरोसा किया और उसने इसी भरोसे की नींव पर अरबों-खरबों के धंधों के महल खडे कर लिए। जब धन आता है तो अहंकार भी साथ-साथ चला आता है। बाबा भी इससे अछूते नहीं रहे। वे तो जैसे अहंकार के गर्त में समा गये। शालीन भाषा से कन्नी काट ली। मन में सत्ता की चाहत जाग उठी। जानते थे कि सत्ता ही वो ताकत है जिससे अपना जबरदस्त रूतबा दिखाया जा सकता है। जब उसे लगा कि कांग्रेस उसकी मंशा जान चुकी है। अब वह उसके झांसे में नहीं आने वाली। उसे अब और अरबों-खरबों की जमीनें मुफ्त में नहीं मिलने वाली तो उसने अपना रंग बदल लिया। देशभर में जहां-तहां लगने वाले योग शिविरों में लोगों को राजनीति का पाठ पढाया जाने लगा। योग-भोग की राह पर चल पडा। ऐसे दुर्योग इस देश ने बहुत देखे हैं, लेकिन किसी बाबा का ऐसा बेहूदा तांडव नहीं देखा।
रामदेव के विवादास्पद घटिया बयान ने देश के करोडो लोगों को आहत किया है। दलितों के तन-बदन में आग लगा दी है। राजनीति के चक्कर में उलझकर कोई बाबा इतना भी गिर सकता है? देशवासियों के सवाल थमने का नाम नहीं ले रहे हैं। भगवाधारी चले तो थे भाजपा के भावी पीएम के वोटों की तादाद बढाने को... लेकिन उनकी बेवकूफी ने पता नहीं कितने वोटरों को चौकन्ना कर दिया। लोग सोचने लगे कि ऐसा शख्स जिस पार्टी का साथी है उस पार्टी को यदि सत्ता मिल गयी तो पता नहीं वह क्या कर गुजरे। यकीनन रामदेव ने नरेंद्र मोदी को बहुत नुकसान पहुंचाया है। वे मोदी के हितैषी नहीं शत्रु साबित हुए हैं। रामदेव से अब यह सवाल करना तो एकदम बेमानी है कि आखिर वे दलितों की बहन-बेटियों के बारे में क्या राय रखते हैं? उनकी असली सोच सात पर्दे फाडकर बाहर आ चुकी है। वे अब लाख नाक रगड लें पर देश उन्हें माफ नहीं करने वाला। उनसे उम्मीद थी कि वे गरीबी, बेकारी, बेरोजगारी, महंगाई, अशिक्षा और कश्मीर समस्या जैसे गंभीर मुद्दे उठायेंगे। पर उन्होंने तो अपना कपटी चेहरा ही उजागर कर दिया। अपनी ही प्रतिमा के इतने टुकडे कर दिये जो लाख कोशिशों के बाद भी कभी जुड नहीं पायेंगे।

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