देश के मतदाताओं ने लाजवाब जनादेश देकर राजनीति के कई विद्धानों के मुंह पर ताले जड दिये हैं। इन महानुभावों ने ऐसे अभूतपूर्व जनादेश की कभी कल्पना ही नहीं की थी। इनका आखिर तक यही कहना था कि इस देश के अपरिपक्व मतदाता किसी भी पार्टी की झोली में इतने वोट नहीं डालने वाले जिससे कि वह केंद्र की सत्ता पर काबिज हो सके। उन्हें तो युवा मतदाताओं पर भी भरोसा नहीं था। वे जहां-तहां यही कहते नजर आये कि गरीब वोटर चंद नोटों में बिक जाते हैं। हर बार की तरह इस बार भी धन बल और बाहुबल अपना करिश्मा दिखायेगा। थैली शाहों के हारने का तो सवाल ही नहीं उठता। नरेंद्र मोदी के सपने तो धरे के धरे रह जाएंगे। कई लोगों को आम आदमी पार्टी से चमत्कार की उम्मीद थी। कांग्रेसियों को इस बार भी सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका के सिक्के के चल जाने का यकीन था। यही वजह थी कि प्रियंका गांधी ने अपनी दादी इंदिरा गांधी की तरह भाषणबाजी करने का अभियान चलाया। राहुल की तरह उनके भाषणों में कहीं कोई गहराई नहीं थी। नरेंद्र मोदी के सामने दोनों बच्चों से भी गये गुजरे साबित हुए। फिर भी चाटूकार कांग्रेसी आखिरतक यही कहते रहे की इस देश की अधिकांश जनता के दिल और दिमाग में गांधी परिवार बसा है। यह समझदार जनता गांधी और नेहरू परिवार के बलिदान को कभी भी नहीं भूल सकती। चाहे कुछ भी हो जाए, इस खानदान के साये में सांस लेती कांग्रेस पार्टी को तो अंतत: जीतना ही जीतना है।
अरविंद केजरीवाल से लेकर मुलायम, ममता, माया, नितिश आदि सबके सब यही मानकर चल रहे थे कि नरेंद्र मोदी तो मीडिया की पैदाइश हैं। देश में कोई लहर-वहर नहीं है। जब चुनाव परिणाम आएंगे तो मोदी लहर पर सवार भारतीय जनता पार्टी के सपनों के परखच्चे ही उड जाएंगे। इस बार भी चाराखोर लालू प्रसाद यादव और उनकी भ्रष्ट मंडली का संसद में डंका बजेगा। सत्ता के दलाल अमर सिंह और जया प्रदा की जीत तय है। दलबदलू अजीत सिंह और उसके साथी ही संसद भवन की शोभा बढाएंगे। मुलायम सिंह यादव अपनी पूरी फौज के साथ कांग्रेस के बचाव में दिख जाएंगे। यानी पिछली बार की तरह इस बार भी भ्रष्टाचारियों का पूरा का पूरा कुनबा सोलहवी लोकसभा में सीना ताने नजर आएगा। लेकिन मुंगेरीलालों के हसीन सपने धरे के धरे रह गये। गांधी परिवार के चहेतों के सभी पूर्वानुमान धरे के धरे रह गए। जनता ने मोदी विरोधियों के मसूंबों पर पानी फेर दिया। एकतरफा आये नतीजों ने मायावती, मुलायम, लालू, अमर, अजीत जैसे दिग्गजों की नाक काट दी। देश को पता चल गया कि १२९ साल पुरानी कांग्रेस के प्रति देशवासियों का मोहभंग हो चुका है। इस शुभ काम में खुद गांधी परिवार का बहुत बडा योगदान है। त्याग की मूर्ति कहलाने वाली सोनिया गांधी पूरे दस साल तक परदे के पीछे बैठकर डॉ. मनमोहन सिंह को कठपुतली की तरह नचाती रहीं और वे भी प्रधानमंत्री पद की गरिमा को विस्मृत कर बस हिलते-डुलते रहे। उन्हीं की सरकार के मंत्री और सांसद देश को लूटते रहे। अदना-सा शख्स राबर्ट वाड्रा अरबों-खरबों में खेलने लगा। गांधी परिवार के दामाद होने का उसने भरपूर फायदा उठाया। ऐसे न जाने कितने लुटेरों के हाथों देश लुटता रहा। लुटेरे मौज मनाते रहे। आम जनता पिटती-मरती रही। किसी को भी उस पर रहम नहीं आया। फिर भी इन धोखेबाज और निर्दयी शासकों को ऐसी करारी हार की कतई उम्मीद नहीं थी। मतदाता हर किसी का हिसाब रखते हैं। गांधी परिवार की चापलूसी करने वाले कांग्रेसी इस हकीकत को कभी समझ ही नहीं पाए। उनका खुद का तो कोई वजूद है ही नहीं। एक 'खानदान' के बलबूते पर चुनाव जीतने की आदत के शिकार रहे इन चाटूकारों को अपनी असली औकात का भी पता चल गया है। इसके लिए देश के वो मतदाता बधाई के पात्र हैं जिनकी परिपक्वता और ईमानदारी पर संदेह किया जा रहा था। नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री की गद्दी संभालने के फौरन बाद अद्भुत सक्रियता दिखाकर अपने तमाम विरोधियों की अटकलों की इमारतों को धराशायी करना शुरू कर दिया है। उन्होंने केंद्रीय मंत्रियों को मनपसंद 'पर्सनल स्टाफ' चुनने से मना किया है। मोदी को अपने मंत्रियों को यह नसीहत इसलिए देनी पडी क्योंकि अभी तक अधिकांश मंत्री अपने करीबियों को ही व्यक्तिगत कर्मचारी के तौर पर नियुक्त कर देश को 'चोट' पहुंचाते आये हैं। मोदी ने अपने साथियो को भाई-भतीजा वाद की नीति से दूर रहने की भी सलाह दी है। इसके साथ ही वे कतई नहीं चाहते कि उनकी सरकार के मंत्री और सांसद सरकारी ठेके हथियाएं या फिर अपने रिश्तेदारों यार दोस्तों की झोली में डालते चले जाएं। दरअसल मोदी नहीं चाहते कि उनके राज में भी राबर्ट वाड्रा जैसे भ्रष्ट 'दामाद' फलें-फूलें। किसी रेलमंत्री का भांजा रिश्वतखोरी और दलाली में लिप्त पाया जाए। ऐसी नसीहत मोदी जैसा निष्पक्ष और निर्भीक नेता ही दे सकता है, क्योंकि उन्होंने कभी भी सप्रंग सरकार के मंत्रियों, नेताओं की तरह अपने यार-दोस्तों और रिश्तेदारों को सरकारी खैरातें नहीं बांटीं। उन्होंने कोयले से भी कभी अपना मुंह काला नहीं किया। अब आने वाला वक्त ही बतायेगा कि उनकी पार्टी के सांसद और साथी-मंत्री उनके कहे अनुसार चलते हैं या फिर उसी पुराने सरकारी इतिहास को दोहराते हैं जिसके सभी के सभी पन्ने काले ही काले हैं।
अरविंद केजरीवाल से लेकर मुलायम, ममता, माया, नितिश आदि सबके सब यही मानकर चल रहे थे कि नरेंद्र मोदी तो मीडिया की पैदाइश हैं। देश में कोई लहर-वहर नहीं है। जब चुनाव परिणाम आएंगे तो मोदी लहर पर सवार भारतीय जनता पार्टी के सपनों के परखच्चे ही उड जाएंगे। इस बार भी चाराखोर लालू प्रसाद यादव और उनकी भ्रष्ट मंडली का संसद में डंका बजेगा। सत्ता के दलाल अमर सिंह और जया प्रदा की जीत तय है। दलबदलू अजीत सिंह और उसके साथी ही संसद भवन की शोभा बढाएंगे। मुलायम सिंह यादव अपनी पूरी फौज के साथ कांग्रेस के बचाव में दिख जाएंगे। यानी पिछली बार की तरह इस बार भी भ्रष्टाचारियों का पूरा का पूरा कुनबा सोलहवी लोकसभा में सीना ताने नजर आएगा। लेकिन मुंगेरीलालों के हसीन सपने धरे के धरे रह गये। गांधी परिवार के चहेतों के सभी पूर्वानुमान धरे के धरे रह गए। जनता ने मोदी विरोधियों के मसूंबों पर पानी फेर दिया। एकतरफा आये नतीजों ने मायावती, मुलायम, लालू, अमर, अजीत जैसे दिग्गजों की नाक काट दी। देश को पता चल गया कि १२९ साल पुरानी कांग्रेस के प्रति देशवासियों का मोहभंग हो चुका है। इस शुभ काम में खुद गांधी परिवार का बहुत बडा योगदान है। त्याग की मूर्ति कहलाने वाली सोनिया गांधी पूरे दस साल तक परदे के पीछे बैठकर डॉ. मनमोहन सिंह को कठपुतली की तरह नचाती रहीं और वे भी प्रधानमंत्री पद की गरिमा को विस्मृत कर बस हिलते-डुलते रहे। उन्हीं की सरकार के मंत्री और सांसद देश को लूटते रहे। अदना-सा शख्स राबर्ट वाड्रा अरबों-खरबों में खेलने लगा। गांधी परिवार के दामाद होने का उसने भरपूर फायदा उठाया। ऐसे न जाने कितने लुटेरों के हाथों देश लुटता रहा। लुटेरे मौज मनाते रहे। आम जनता पिटती-मरती रही। किसी को भी उस पर रहम नहीं आया। फिर भी इन धोखेबाज और निर्दयी शासकों को ऐसी करारी हार की कतई उम्मीद नहीं थी। मतदाता हर किसी का हिसाब रखते हैं। गांधी परिवार की चापलूसी करने वाले कांग्रेसी इस हकीकत को कभी समझ ही नहीं पाए। उनका खुद का तो कोई वजूद है ही नहीं। एक 'खानदान' के बलबूते पर चुनाव जीतने की आदत के शिकार रहे इन चाटूकारों को अपनी असली औकात का भी पता चल गया है। इसके लिए देश के वो मतदाता बधाई के पात्र हैं जिनकी परिपक्वता और ईमानदारी पर संदेह किया जा रहा था। नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री की गद्दी संभालने के फौरन बाद अद्भुत सक्रियता दिखाकर अपने तमाम विरोधियों की अटकलों की इमारतों को धराशायी करना शुरू कर दिया है। उन्होंने केंद्रीय मंत्रियों को मनपसंद 'पर्सनल स्टाफ' चुनने से मना किया है। मोदी को अपने मंत्रियों को यह नसीहत इसलिए देनी पडी क्योंकि अभी तक अधिकांश मंत्री अपने करीबियों को ही व्यक्तिगत कर्मचारी के तौर पर नियुक्त कर देश को 'चोट' पहुंचाते आये हैं। मोदी ने अपने साथियो को भाई-भतीजा वाद की नीति से दूर रहने की भी सलाह दी है। इसके साथ ही वे कतई नहीं चाहते कि उनकी सरकार के मंत्री और सांसद सरकारी ठेके हथियाएं या फिर अपने रिश्तेदारों यार दोस्तों की झोली में डालते चले जाएं। दरअसल मोदी नहीं चाहते कि उनके राज में भी राबर्ट वाड्रा जैसे भ्रष्ट 'दामाद' फलें-फूलें। किसी रेलमंत्री का भांजा रिश्वतखोरी और दलाली में लिप्त पाया जाए। ऐसी नसीहत मोदी जैसा निष्पक्ष और निर्भीक नेता ही दे सकता है, क्योंकि उन्होंने कभी भी सप्रंग सरकार के मंत्रियों, नेताओं की तरह अपने यार-दोस्तों और रिश्तेदारों को सरकारी खैरातें नहीं बांटीं। उन्होंने कोयले से भी कभी अपना मुंह काला नहीं किया। अब आने वाला वक्त ही बतायेगा कि उनकी पार्टी के सांसद और साथी-मंत्री उनके कहे अनुसार चलते हैं या फिर उसी पुराने सरकारी इतिहास को दोहराते हैं जिसके सभी के सभी पन्ने काले ही काले हैं।
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