इन दिनों मीडिया प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से खफा है। सभी को पता है कि उन्हें प्रधानमंत्री बनाने में मीडिया का कितना बडा योगदान है। मीडिया ने यूपीए-२ के कार्यकाल के गडबड घोटालों का पर्दाफाश किया। मीडिया ही कई महीनों तक महंगाई, भ्रष्टाचार की खबरों की सुर्खियां बनाता रहा और जनता को बताता रहा कि अक्षम और भ्रष्ट कांग्रेस के चंगुल से अगर देश को नहीं निकाला गया तो देश पूरी तरह से गर्त में समा जाएगा। चाहे न्यूज चैनल हों, अखबार हों, सोशल मीडिया हो सभी ने नरेंद्र मोदी के पक्ष में जबरदस्त माहौल बनाया। लेकिन पीएम बनने के बाद नरेंद्र मोदी सोशल मीडिया को तो अपनी सफलता का श्रेय देते हैं, लेकिन अखबारों और न्यूज चैनलों से दूरी बनाकर जैसे उनका तिरस्कार करते दिखायी देते हैं। जो लोग मोदी को करीब से जानते हैं उनका कहना है कि गुजरात दंगों के बाद मीडिया के द्वारा जिस तरह से नरेंद्र मोदी को लगातार कटघरे में खडा किया गया उससे उनके दिल में मीडिया के प्रति खटास आ गयी। उन्होंने लगभग सभी न्यूज चैनलों और अखबार वालों से दूरी बनानी शुरू कर दी। गुजरात का मुख्यमंत्री बनने से पहले मोदी इलेक्ट्रानिक मीडिया और प्रिंट मीडिया से मित्रता बनाये रखने में यकीन रखते थे। उस दौर में वे पत्रकारों के साथ बतियाते और चुटकलेबाजी करते देखे जाते थे। मुख्यमंत्री बनने के बाद उनमें बदलाव आता चला गया। गुजरात दंगों के बाद जब उन्हें 'खलनायक' के तौर पर पेश किया जाने लगा तो उनकी सहनशीलता भी जवाब देने लगी। एक बार उन्होंने कहा था कि अखबारों में छपने वाली कैसी भी खबर हो, बीस मिनट बाद तो वह रद्दी में तब्दील हो जाती है। दरअसल मोदी की यही चाहत और नीति रही है कि मीडिया उन पर किसी भी हालत में हावी न होने पाए।
प्रधानमंत्री बनने के बाद भी नरेंद्र मोदी अपने उसूल पर चल रहे हैं। आमतौर पर सभी प्रधानमंत्री किसी जाने-माने पत्रकार को अपना मीडिया सलाहकार बनाते हैं, लेकिन नरेंद्र मोदी ने अभी तक किसी को मीडिया सलाहकार नियुक्त नहीं किया है। नरेंद्र मोदी परम्पराओं में यकीन नहीं रखते। इसीलिए ही उन्होंने विदेशी दौरों में पत्रकारों को साथ ले जाना बंद कर दिया है। इससे पत्रकारों के उस जमात को धक्का लगा है जो जोड-जुगाड कर प्रधानमंत्रियों के साथ विदेश यात्राएं करने की आदी रही है। कई अखबारों के संपादक और मालिक प्रधानमंत्रियों के दौरों की राह देखा करते थे, क्योंकि उन्हें मुफ्त में यात्राएं करने और मौजमस्ती का अवसर मिलता था। नरेंद्र मोदी की देखा-देखी मंत्री और सांसद भी मीडिया से कतराने लगे हैं। बताते हैं कि मंत्रियों और नौकरशाहों को यह कहा गया है कि वे मीडिया से तभी बात करें जब बहुत जरूरी हो। दरअसल नरेंद्र मोदी को सोशल मीडिया से ज्यादा लगाव है। लोकसभा चुनाव से पहले ही वे सोशल मीडिया का भरपूर उपयोग कर लोगों से जुडते रहे हैं। उन्होंने मंत्रियों और पार्टी के सांसदों को निर्देश दे दिया है कि सरकारी योजनाओं और अन्य क्रियाकलापो की लोगों को जानकारी सोशल मीडिया के माध्यम से देने की अधिकतम कोशिश करें।
मीडिया मोदी पर यह आरोप लगाने से भी नहीं चूक रहा है कि चुनाव के दौरान तो उन्होंने मीडिया का जमकर इस्तेमाल किया। साक्षात्कारों की झडी लगा दी जिनकी वजह से देशवासियों ने उन्हें जाना और समझा और उनके प्रधानमंत्री बनने के सपने को पूरा किया। लेकिन अपना काम निकल जाने के बाद मोदी का मीडिया से आंखें फेर लेना अचंभित करने वाली बात है। जाने-माने पत्रकार एच.के. दुआ कहते हैं कि सरकार और मीडिया एक दूसरे के बगैर नहीं रह सकते। सरकार, मीडिया की सूचना की भूख मिटाने का एकमात्र बडा माध्यम है तब सरकार के लिए भी उसकी महत्ता इसलिए है क्योंकि मीडिया के जरिए ही वह जनता तक पहुंचती है। भारत में अब तक इंदिरा गांधी को छोड दिया जाए तो लगभग सभी प्रधानमंत्रियों के मीडिया के साथ बहुत ही मधुर संबंध रहे हैं। उन्होंने आपातकाल के दौरान मीडिया पर सेंसरशिप लगा दिया गया था। हालांकि बाद में इंदिरा गांधी ने अपने संबंध मीडिया से सुधारने की कोशिश की। अटल बिहारी वाजपेयी समय-समय पर मीडिया के जरिए जनता से संवाद कायम करते थे। उन्होंने मीडिया का इस्तेमाल एक हथियार के तौर पर किया। हालांकि इसके बाद मनमोहन सिंह पर मीडिया से दूरी बनाने का जरूर आरोप लगा। मनमोहन सिंह ने बहुत कम बार प्रेस कांफ्रेंस की जिससे उनकी छवि मीडिया से मुंह छिपाने वाली बन गई थी। हमें यहां यह समझने की जरूरत है कि प्रधानमंत्री का जनता के प्रति उत्तरदायित्व है। जब आप मीडिया से रूबरू होते हैं तो जनता तक आपकी बात पहुंचती है। देश के लिए नीतियां बनाने और गर्वर्नेंस में भी मीडिया काफी सहयोगी साबित होती है। जनता के मूड को पता करने के लिए मीडिया एक सशक्त साधन है। सरकार और मीडिया एक-दूसरे के साथी हैं। इस साथ और भरोसे के सतत बने रहने में ही देश की भलाई है। १५ अगस्त के दिन लाल किले पर दिये गये मोदी के भाषण ने आम जनता को आश्वस्त किया है कि वे देश का कायाकल्प करके ही दम लेंगे। उनका यह कहना है कि न तो मैं खाऊंगा और न ही किसी को खाने दूंगा... करोडों देशवासियों के दिल को छूने का काम कर गया। उनके इस कथन के बाद मंत्री, सांसद और नौकरशाह सतर्क हो गये हैं। फूंक-फूंककर कदम रख रहे हैं। उनकी विदेश यात्राओं पर भी बंदिश लग गयी है। यानी मोदी का असर तो दिखायी देने लगा है।
प्रधानमंत्री बनने के बाद भी नरेंद्र मोदी अपने उसूल पर चल रहे हैं। आमतौर पर सभी प्रधानमंत्री किसी जाने-माने पत्रकार को अपना मीडिया सलाहकार बनाते हैं, लेकिन नरेंद्र मोदी ने अभी तक किसी को मीडिया सलाहकार नियुक्त नहीं किया है। नरेंद्र मोदी परम्पराओं में यकीन नहीं रखते। इसीलिए ही उन्होंने विदेशी दौरों में पत्रकारों को साथ ले जाना बंद कर दिया है। इससे पत्रकारों के उस जमात को धक्का लगा है जो जोड-जुगाड कर प्रधानमंत्रियों के साथ विदेश यात्राएं करने की आदी रही है। कई अखबारों के संपादक और मालिक प्रधानमंत्रियों के दौरों की राह देखा करते थे, क्योंकि उन्हें मुफ्त में यात्राएं करने और मौजमस्ती का अवसर मिलता था। नरेंद्र मोदी की देखा-देखी मंत्री और सांसद भी मीडिया से कतराने लगे हैं। बताते हैं कि मंत्रियों और नौकरशाहों को यह कहा गया है कि वे मीडिया से तभी बात करें जब बहुत जरूरी हो। दरअसल नरेंद्र मोदी को सोशल मीडिया से ज्यादा लगाव है। लोकसभा चुनाव से पहले ही वे सोशल मीडिया का भरपूर उपयोग कर लोगों से जुडते रहे हैं। उन्होंने मंत्रियों और पार्टी के सांसदों को निर्देश दे दिया है कि सरकारी योजनाओं और अन्य क्रियाकलापो की लोगों को जानकारी सोशल मीडिया के माध्यम से देने की अधिकतम कोशिश करें।
मीडिया मोदी पर यह आरोप लगाने से भी नहीं चूक रहा है कि चुनाव के दौरान तो उन्होंने मीडिया का जमकर इस्तेमाल किया। साक्षात्कारों की झडी लगा दी जिनकी वजह से देशवासियों ने उन्हें जाना और समझा और उनके प्रधानमंत्री बनने के सपने को पूरा किया। लेकिन अपना काम निकल जाने के बाद मोदी का मीडिया से आंखें फेर लेना अचंभित करने वाली बात है। जाने-माने पत्रकार एच.के. दुआ कहते हैं कि सरकार और मीडिया एक दूसरे के बगैर नहीं रह सकते। सरकार, मीडिया की सूचना की भूख मिटाने का एकमात्र बडा माध्यम है तब सरकार के लिए भी उसकी महत्ता इसलिए है क्योंकि मीडिया के जरिए ही वह जनता तक पहुंचती है। भारत में अब तक इंदिरा गांधी को छोड दिया जाए तो लगभग सभी प्रधानमंत्रियों के मीडिया के साथ बहुत ही मधुर संबंध रहे हैं। उन्होंने आपातकाल के दौरान मीडिया पर सेंसरशिप लगा दिया गया था। हालांकि बाद में इंदिरा गांधी ने अपने संबंध मीडिया से सुधारने की कोशिश की। अटल बिहारी वाजपेयी समय-समय पर मीडिया के जरिए जनता से संवाद कायम करते थे। उन्होंने मीडिया का इस्तेमाल एक हथियार के तौर पर किया। हालांकि इसके बाद मनमोहन सिंह पर मीडिया से दूरी बनाने का जरूर आरोप लगा। मनमोहन सिंह ने बहुत कम बार प्रेस कांफ्रेंस की जिससे उनकी छवि मीडिया से मुंह छिपाने वाली बन गई थी। हमें यहां यह समझने की जरूरत है कि प्रधानमंत्री का जनता के प्रति उत्तरदायित्व है। जब आप मीडिया से रूबरू होते हैं तो जनता तक आपकी बात पहुंचती है। देश के लिए नीतियां बनाने और गर्वर्नेंस में भी मीडिया काफी सहयोगी साबित होती है। जनता के मूड को पता करने के लिए मीडिया एक सशक्त साधन है। सरकार और मीडिया एक-दूसरे के साथी हैं। इस साथ और भरोसे के सतत बने रहने में ही देश की भलाई है। १५ अगस्त के दिन लाल किले पर दिये गये मोदी के भाषण ने आम जनता को आश्वस्त किया है कि वे देश का कायाकल्प करके ही दम लेंगे। उनका यह कहना है कि न तो मैं खाऊंगा और न ही किसी को खाने दूंगा... करोडों देशवासियों के दिल को छूने का काम कर गया। उनके इस कथन के बाद मंत्री, सांसद और नौकरशाह सतर्क हो गये हैं। फूंक-फूंककर कदम रख रहे हैं। उनकी विदेश यात्राओं पर भी बंदिश लग गयी है। यानी मोदी का असर तो दिखायी देने लगा है।
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