Thursday, January 1, 2015

यही होता चला आ रहा है

जब आप किसी से लेते हैं तो देने से बच नहीं सकते। दाता और पाता का रिश्ता होता ही कुछ ऐसा है। इस हाथ दे, उस हाथ ले। ऊंचे लोगों के बीच लेन-देन चलता ही रहता है। इन धुरंधरों में शामिल हैं राजनेता, उद्योगपति, माफिया, साधु-संत, अखबारीलाल और किस्म-किस्म के दलाल और सत्ता के खिलाडी। इतिहास गवाह है कि इस देश में जितनी तेजी से राजनेताओं, तथाकथित समाज सेवकों और उनकी शातिर जमात ने आर्थिक तरक्की की है उतनी और किसी ने नहीं। इनका आपसी मायावी गठजोड भी स्पष्ट नजर आता है। ऐसे राजनेता बहुत कम हैं, जिन्होंने गुंडे, बदमाश न पाल रखे हों। रेत माफिया, कोल माफिया, दारू माफिया और तमाम तरह के आराजक तत्व इनके यहां पनाह पाते हैं और वक्त पडने पर एक-दूसरे के काम आते हैं। तथाकथित साधु-संतों, प्रवचनकारों और चिटफंडियों से भी इनकी करीबी कई गुल खिलाती है। पिछले कुछ वर्षों से सत्ताधीशों के द्वारा मीडिया के दिग्गजों का दुलारने और पुचकारने का चलन भी बढा है। पिछले डेढ साल से जेल के सीखचों के पीछे अपने दुष्कर्मों का फल भुगतते स्वयंभू संत आसाराम को यदि राजनेताओं की शह नहीं मिलती तो वह इस कदर बेखौफ होकर अबलाओं की इज्जत पर डाका नहीं डाल पाता। यह क्या किसी चमत्कार से कम है कि चंद वर्षों में उसने देश के दस से ज्यादा प्रदेशों में हजारों एकड जमीन जुटा और दबा ली। सरकारों ने भी उसे मुफ्त में जमीनें देकर अपनी दरियादिली दिखायी। यह वही सरकारें हैं जिनकी निगाहें सडकों और फुटपाथों पर जिन्दगी बसर करने वाले गरीबों पर नहीं जातीं। अमीरों की इमारतों के लिए उनकी झोपडियां जमींदोज कर दी जाती हैं। उनकी फरियाद सुनने वाला भी कोई नहीं होता। शातिरों और ढोंगियों का इशारे में काम हो जाता हैं। उनके कर्मकांड उजागर होने के बाद भी पर्दा डालने की भरपूर कोशिशें की जाती हैं। आसाराम एक ही दिन में तो नहीं पनपा। अपने देश में अंधभक्ति किसी को भी भगवान बना देती है। तथाकथित देवता की हैवानियत दिखकर भी नहीं दिखती। आसाराम को बडा घमंड था कि उसका कोई कुछ नहीं बिगाड सकता। बडे-बडे राजनेता उसके मंचों पर विराजमान होकर उसके नाम की आरती गाते थे। शासन और प्रशासन उसकी नकली संतई के समक्ष नतमस्तक होने के कारण गूंगा और बहरा बना रहा। आसाराम आश्रमों के नाम पर भव्य भवन बनाता चला गया। इन विशाल भवनों में होने वाले कुकर्मों को अनदेखा किया गया। प्रवचन कम और दुष्कर्म ज्यादा होते रहे। नारियों की अस्मत लुटती रही। अनुयायियों ने भी देखकर अनदेखा कर दिया। देहभोगी पिता-पुत्र पंद्रह हजार करोड रुपये से अधिक की दौलत के मालिक बन गए। जेल में भी आसाराम की अकड नहीं गयी। अपनी बेटी-पोती की उम्र की बच्चियों का यौन शोषण करने में ढोंगी नहीं लज्जाया, उसके चेले भी लज्जाहीन हो गए। उनके लिए आसाराम कल भी भगवान था, आज भी महान है।
देश के लाखों लोगों के खून-पसीने की कमायी को पचाने वाले सहारा प्रमुख सुब्रत राय का हश्र भी आसाराम जैसा होगा ऐसी तो कभी किसी ने सोचा ही नहीं था। हालाकि दोनों के रास्ते अलग-अलग हैं, लेकिन तौर-तरीकों में गजब की समानता है। १९७८ में मात्र दो हजार रुपये से चिटफंड आदि का धंधा करने वाले सुब्रत राय ने सबसे पहले उन मेहनतकशों को अपने जाल में फांसा जिनकी दिनभर की कमायी पच्चीस-पचास रुपये के आसपास थी। सुब्रत राय ने उन्हें बडे-बडे सपने दिखाये और देखते ही देखते चौंकाने वाली तरक्की का इतिहास रच दिया। चतुर सुब्रत राय ने भी राजनेताओं और सत्ताधीशों से नजदीकियां बनायीं और ऐसी छलांगें मारीं कि एक लाख करोड से भी ऊपर का साम्राज्य खडा कर आर्थिक जगत के जानकारों को विस्मय में डाल दिया। देश-विदेश में पांच और सात सितारा होटलों की कतार लगाने वाले इस जादूगर ने अखबारों के प्रकाशन के साथ ही टीवी चैनल भी खडे कर लिए। यानी वह मीडिया का बादशाह बन गया। उसके संदिग्ध कारोबार में राजनेताओं और फिल्मी कलाकारों के काले धन के लगने का भी खूब शोर मचा। समाजवादी मुलायम सिंह और सत्ता के दलाल अमर सिंह जैसे अनेक चेहरे उसकी रंगीन महफिलों की शोभा बढाते रहे। इससे सुब्रत का मनोबल बढता चला गया। सुब्रत ने भी आसाराम की तरह भोग-विलास में डूबने का ऐसा कीर्तिमान रचा कि आखिरकार उसकी पोल खुल ही गयी। सुब्रत के पास क्या नहीं था। कमी थी तो बस ईमानदारी की। उसके हवाई जहाज नेताओं और फिल्मवालों की सेवा में ऐसा लगे रहते थे जैसे दैनिक भास्कर ग्रुप के विमान छत्तीसगढ के मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह और उनके परिवार की चाकरी में लगे रहते हैं। मीडिया की आड में कोयले की खदाने हथियाने, धडाधड करोडों के सरकारी विज्ञापन पाने और अपने उद्योग धंधों को चमकाने की कला तो इन्हीं कलाकारों से सीखी जा सकती है। वैसे इनका अनुसरण करने वाले और भी कई चेहरे हैं। यह सभी लोग आसाराम और सुब्रत राय के जीवंत प्रतिरूप हैं। राजनेताओं, नौकरशाहों और मंत्रियों-संत्रियों के चरण चूमो-चाटो और अपने स्वार्थ साधते रहो। नरेंद्र मोदी से लेकर नितिन गडकरी तक लगभग सभी राजनेताओं का प्रायवेट विमान मालिकों से जबरदस्त याराना है। चुनाव के समय इनकी सेवाएं ली जाती हैं और चुनाव जीतने के बाद सरकारी जमीनें, ठेके, दारू की फैक्ट्रियां, मेडिकल कॉलेज आदि-आदि की खैरात देकर पाता का फर्ज़ निभाया जाता है। मनचाही यात्राएं होती रहती हैं। आदान-प्रदान चलता रहता है। आसाराम और सुब्रत राय जैसों के नये-नये अवतार पनपते रहते हैं। मीडिया शोर मचाता रहता है और साल-दर-साल बीत जाते हैं।

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