Thursday, April 2, 2015

अहंकार का अंधेरा

नया कुछ भी नहीं है। ऐसे तमाशे चलते ही रहते हैं। राजनीति में तो जैसे सबकुछ जायज है। नेताओं को एक-दूसरे के कपडे उतारने की पूरी आजादी है। खुद को पाक-साफ दिखाने और विरोधी को दागी बताने का चलन भी आम है। पर ऐसी खींचातानी, पटका-पटकी और सडक छाप लडाई पहले कभी नहीं देखी। आम आदमी पार्टी की नौटंकी ने हर किसी को हैरत में डाल दिया। इतना ओछापन और हद दर्जे की कमीनगी। राजनीति की तो नाक ही काटकर रख दी गयी। जो काम गैरों का था वो खुद ही कर डाला! भ्रष्टाचार और जनलोकपाल के प्रेरक आंदोलन से जन्मी आम आदमी पार्टी की तू-तू-मैं मैं ने देश के करोडों लोगों के बदलाव के सपनों पर काली चादर डाल दी है। देश के लाखों पढे-लिखे युवा जिन चेहरों को देखकर आम आदमी पार्टी से जुडे उन्हीं की आपसी टकराहट ने कई प्रश्न खडे कर दिए हैं। आप से तो काफी अलग उम्मीदें थीं। तभी तो युवक-युवतियां और हर उम्र के लोग आप से जुडते चले गए। देश के नौजवानों ने आप के स्वराज के नारे के आकर्षण में नौकरी छोडी और जंग में खुद को झोंक दिया। अपने भविष्य की भी परवाह नहीं की। अमीर-गरीब के साथ समर्पण और सहयोग से बनी इस पार्टी ने मात्र दो साल में उन बुलंदियों को छूने का कीर्तिमान रच डाला, जो दूसरों के लिए असंभव था। किसी एक की बदौलत अद्भुत और अभूतपूर्व करिश्में नहीं हुआ करते। इस सच से भी इंकार नहीं कि आप की कामयाबी के पीछे अरविंद केजरी का बहुत बडा योगदान रहा है। उनके वादे ही कुछ ऐसे थे कि लोगों ने आंख मूंदकर भरोसा किया। लेकिन यह मान लेना कि प्रशांत भूषण, योगेंद्र यादव, आनंद कुमार और अजीत झा जैसों का आप की सफलता में कोई रोल नहीं, सरासर नादानी और बेइंसाफी होगी। आप की नींव की मजबूती के लिए खून-पसीना बहाने वालों को एक ही झटके से बाहर कर देना यही दर्शाता है कि पार्टी में सवालों और असहमतियों के लिए कोई जगह नहीं है। सवाल यह भी कि कौन से दल में मनमुटाव और सवालबाजी नहीं होती।
इस सच को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता कि योगेंद्र यादव और प्रशांत भूषण ने विरोधियों के जूते-चप्पलों का सामना कर पार्टी को यहां तक पहुंचाया है। यह कहां का न्याय हैं कि जिन्होंने तब साथ दिया जब आप कुछ भी नहीं थे। चलना सीख रहे थे। सत्ता पाते ही आपकी सोच बदल गयी। आपको सच बोलने और सवाल उठाने वाले चुभने लगे। कवि कुमार विश्वास और पूर्व पत्रकार आशुतोष जैसे चाटूकारों की बन आयी। ऐसे ही शातिरों ने केजरीवाल के ऐसे कान भरे कि उन्होंने भी अपने विवेक की हत्या कर डाली। ये वही अरविंद हैं जो कभी यह कहते नहीं थकते थे कि देश की लगभग सभी राजनीतिक पार्टियों में सच कहने वालो का अकाल पड गया है। चाटूकारों का बोलबाला है। लेकिन हम अपनी पार्टी में ऐसा नहीं होने देंगे। लेकिन यह क्या? आप भी तो आप को अपनी जागीर बनाने पर आमादा हैं। किसी की सुनने को तैयार ही नहीं! पार्टी के संस्थापक ही पिट रहे हैं। आप पूरी तरह धृतराष्ट्र की मुद्रा में हैं। सफलता का इतना गुरुर! आप  इस तथ्य को भी भूल गये कि अहंकार अंधेरे की ओर ले जाता है। जो काम प्रेम-प्यार से हो सकता था उसके लिए आपने तानाशाही अपनायी। गुंडागर्दी का सहारा लिया। पार्टी के लोकतंत्र की हत्या कर डाली। आप भी जयललिता, मायावती, मुलायम सिंह और लालू प्रसाद यादव जैसों के साथ खडे हो गये जो सवालों से कतराते हैं और चरण वंदना करने वालों की पीठ थपथपाते हैं।
आम आदमी पार्टी के मुखिया अरविंद केजरीवाल अब दिल्ली के मुख्यमंत्री हैं। उन्हें अब सिर्फ और सिर्फ दिल्ली वालों के बारे में सोचना चाहिए। दिल्ली कई समस्याओं से जूझ रही है। यह भी तय है कि पांच साल तक उनकी सरकार पर कोई खतरा नहीं है। लेकिन उनकी असली जीत तभी होगी जब वे दिल्ली की जनता की कसौटी पर खरे उतरेंगे। दिल्लीवासी महंगाई की मार से तिलमिला रहे हैं। पानी-बिजली की समस्या का भी कोई स्थायी हल नहीं निकाला जा सका है। लाखों झुग्गी-झोपडी वालों का भी उद्धार करना है। रिश्वतखोरी और भ्रष्टाचार के दानव से मुक्ति मिलने का भी दिल्लीवालों को बेसब्री से इंतजार है। ठेकेदारी पर काम करने वाले कर्मचारी अंधेरा छंटने की राह देख रहे हैं। राजधानी में अपराधों के ग्राफ के बढते चले जाने का एक बडा कारण अशिक्षा और बेरोजगारी भी है। स्कूल, कालेज, अस्पताल और कानून व्यवस्था में सुधार दिल्ली वालों की ऐसी मांगें हैं जिनकी अभी तक अनदेखी होती आयी है। महिलाओं को दिल्ली आज भी डराती है। राजधानी को हर समस्या से मुक्त करना आप की जिम्मेदारी है। यदि मुख्यमंत्री अंदरूनी युद्ध में ही उलझे रहे तो युवाओं के लिए आशा की किरण बन उभरी 'आप' की दुर्दशा और  बरबादी पर कोई आंसू बहाने वाला भी नहीं होगा। आहत जनता राजनेताओं से परिवर्तन की आशा ही छोड देगी। बस यही मान लेगी कि कोई भी यकीन के काबिल नहीं। सब चोर-चोर मौसेरे भाई हैं। सिर्फ और सिर्फ सत्ता के भूखे।

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