Thursday, April 16, 2015

दिल्ली से नागपुर तक

शहर अब डराने लगे हैं। महानगरों की सडकों को रक्तिम होने में देरी नहीं लगती। यह कैसा बदलाव है जहां कानून का खौफ नहीं! कानून के रखवालों को भी संगीन से संगीन जुर्म करने में कोई परहेज नहीं! खाकी और अपराधी में कोई खास फर्क ही नजर नहीं आता। पहले बात दिल्ली की। देश की राजधानी की। यहां तो लोग बात-बात पर आपा खोने लगे हैं। धैर्य के पुल टूटते चले जा रहे हैं। भाई-चारे का गला घोंटा जा रहा है। लोग रफ्तार की गिरफ्त में हैं। इधर-उधर देखते ही नहीं। बस खुद में समाये आगे निकल जाते हैं। उन्हीं के आंखों के सामने जानलेवा मारपीट और हत्याएं हो जाती हैं। उन्हें कोई फर्क नहीं पडता। चेहरे पर कोई शिकन नहीं आती। ऐसे में शक होता है कि क्या यह वही दिलवालों की दिल्ली है जिनकी सहृदयता, भावुकता और संवेदना की गाथाएं गूंजा करती थीं। नई दिल्ली के वेलकम इलाके में शुक्रवार की रात ४२ वर्षीय मंसूब की लाठी-डंडों से पिटायी कर हत्या कर दी गयी। मंसूब अपने घर के पास स्थित मस्जिद में नमाज अदा करने के बाद लौट रहा था। तभी रास्ते में उसकी कुछ लोगों से कहा-सुनी हो गयी। उन लोगों ने उसे बुरी तरह से पीटना शुरू कर दिया। पत्नी और बेटी उन्हें बचाने के लिए वहां पहुंचीं तो उनकी फरियाद को अनसुना कर पीट-पीट कर अधमरा कर दिया गया।
ऐसी ही एक हत्या दिल्ली के दरियागंज में की गयी। एक युवक की बाइक एक चमचमाती कार से ज़रा सी टकरा गयी। कारवालों का खून खौल उठा। उन्हें कार में लगी हलकी सी खरोंच बर्दाश्त नहीं हुई। कार से उतरकर उन्होंने युवक को सबक सिखाने की सोची। इस चक्कर में वे इंसान से हैवान बन गये। शैतानों ने उसके मासूम बच्चों के सामने ही उसकी जान ले ली। बच्चे गिडगिडाते रहे अपने पिता को बख्श देने के लिए, लेकिन उनका गुस्सा तो सातवें आसमान पर पहुंच चुका था। यह अंधी आग तब ठंडी हुई जब एक जीता-जागता इंसान इस दुनिया से चल बसा। जहां इस निर्मम हत्या को अंजाम दिया गया वह स्थान पुलिस चौकी के निकट ही था। बच्चों ने पुलिस वालों से हाथ-पैर जोडे, लेकिन वे बुत बने रहे उन्हें यह ख्याल ही नहीं आया कि जनता की सुरक्षा करना उनकी पहली जिम्मेदारी है। अपराधियों को पकडना और उन्हें सजा दिलवाना उनका धर्म है। लोगों की सुरक्षा करना भी उन्हीं का दायित्व है। यह लिखने में संकोच नहीं कि देश के अधिकांश पुलिसिये अपने कर्तव्य को निभाने में लगभग जीरो हैं। कुछ हैं जो लगभग अपना फर्ज दिलेरी से निभाते हैं। लेकिन उनकी राह आसान नहीं होती। भ्रष्ट, ईमानदारों को जीने नहीं देते। उनका पता काटने की साजिशो में लगते रहते हैं। जहां शातिर सक्रिय रहते हों और अच्छे लोग तटस्थ बने रहते हों वहां कानून के परखचे उडने से कौन रोक सकता है? जैसा कि अक्सर होता आया है कि आम लोग उन लोगों से प्रेरणा लेते हैं जिनका समाज में सिक्का चलता है। ब‹डों से छोटे प्रेरित होते ही हैं। ठीक उसी तरह से बडे-बडे महानगरों से नगर कस्बे और गांव प्रभावित होते हैं। उनकी लीक पर चलने में उन्हें ज्यादा वक्त नहीं लगता। देश की राजधानी के एक थाने में दो युवतियों के कपडे उतार कर डंडों से पिटायी की गयी। पुलिस वाले जबरन अपराध कबूलने का दबाव बनाते-बनाते इतने हिंसक हो गये कि हर मर्यादा भूल गये। वैसे भी डंडे की दशहत दिखाकर निरपराधी को अपराधी बना कर पेश करना भारतीय पुलिस की पुरानी परिपाटी है। पुलिस की इसी कलाकारी के कारण न जाने कितने निर्दोषों को जेल में वर्षों तक सडना पडता है। असली गुनाहगार आजाद घूमते रहते हैं। खूंखार अपराधियों के लिए बिकाऊ पुलिस वाले अपना ईमान-धर्म तक बेच देते हैं। इसके एक नहीं अनेक उदाहरण हैं। देश की सबसे बडी तिहाड जेल में एक से बढकर एक खूंखार हत्यारे, बलात्कारी, बदमाश और ड्रग माफिया कैद हैं। दिल्ली की इस जेल को तो पूरी तरह से चाक-चौबंद होना चाहिए, परिंदा भी पर नहीं मार सके। लेकिन ऐसा नहीं है। पिछले तीन महीनों में इसी जेल में चालीस से अधिक मोबाइल फोन बाहर से कैदियों तक आसानी से पहुंचा दिये गए। वैसे तो कैदियों तक और भी बहुत कुछ पहुंचता रहता है, लेकिन जेल में मोबाइल फोन की बरामदगी यही दर्शाती है कि जेल प्रशासन किस तरह से काम करता है और किसके प्रति वफादारी निभाता है। तिहाड जेल में बाहर से मोबाइल फेंके जाते है और दबंग और मालदार कैदियों तक धडल्ले से पहुंच जाते हैं! यह कारनामा जेलकर्मियों की मिलीभगत के बिना संभव नहीं। कैदियों को शराब, बी‹डी, सिगरेट और विभिन्न सामानों का बिकाऊ, जेल कर्मियों की बदौलत आसानी से मिल जाना बडी पुरानी बात हो चुकी है। जेल के अधिकारी जब मेहरबान हों तो जेल को होटल बनते देरी नहीं लगती। इसका नजारा नागपुर जेल में भी देखा गया। यहां की जेल से पांच कैदी बडी आसानी से फरार हो गये। उसके बाद जांच की नौटंकी हुई। पचासों मोबाइल फोन बरामद किये गए। यह भी खुलासा हुआ कि जेल में खूंखार कैदियों का ही राज चलता है। वे जो चाहते हैं, कर गुजरते हैं। जिन पांच कैदियों ने जेल की सलाखें काटने और कई फुट ऊंची दीवार को फांदने का कीर्तिमान रचा उन्हीं के जेल में बंद आका की कितनी धाक है उसका इससे पता चल जाता है कि उसने जेल में बैठकर भी लाखों की हफ्तावसूली बडी आसानी से कर ली। जब भुक्तभोगियों ने थाने में रिपोर्ट दर्ज करवायी तो लोगों को पता चला कि नागपुर तो दिल्ली से भी आगे दौड रहा है। यहां भी वही सबकुछ बेखौफ होता है जिसके लिए दिल्ली बदनाम है।

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