Thursday, April 30, 2015

आम के खास बनने का चक्कर

देश की राजधानी में एक किसान की मौत की गर्जना ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया। क्या वाकई गजेंद्र की मौत हर किसी को शोकग्रस्त कर गयी? राजनीतिज्ञों और मीडिया के मठाधीशों ने हद से ज्यादा हो-हल्ला नहीं मचाया? इस देश में तो किसानों के शोषण और उनके फांसी पर लटकने के सच से सारी दुनिया वाकिफ है। उनके लिए तो इतनी सहानुभूति नहीं दर्शायी जाती। उनके परिवारों तक तो आधी-अधूरी सरकारी सहायता राशि पहुंचने में महीनों लग जाते हैं। राजस्थान के किसान गजेंद्र की मौत में ऐसा क्या था जो सारे देश में हाहाकार मच गया? हमदर्दी का सैलाब उमड पडा! भीड के समक्ष हुई मौत को एक ऐसी घटना बनाकर रख दिया गया, जैसे अभूतपूर्व हो। किसी ने हत्या तो किसी ने आत्महत्या करार दे मनमाना शोर मचाया। मुख्यमंत्री, उपमुख्यमंत्री, मंत्री, नेताओं और पत्रकारों की मौजूदगी में पूरे फिल्मी स्टाइल में हुई मौत यकीनन कई सवाल छोड गयी।
पहले मुडते हैं गजेंद्र के अतीत की तरफ। राजस्थान के दौसा के रहने वाला गजेंद्र को पगडी पहनाने में महारत हासिल थी। एक मिनट में बारह लोगों के सिर पर पगडी सजाने वाले इस महत्वाकांक्षी शख्स की राजनीति में पैठ जमाने की चाह थी। मंत्रियों, सांसदों, विधायकों और उद्योगपतियों के सिर पर अपने हाथ से साफा बांधते-बांधते  उसके मन में भी उनके जैसा बनने की इच्छा जोर मारने लगी। वह कभी इस दल तो कभी उस दल की टिकट पाने के लिए दिग्गज नेताओं के चक्कर काटने लगा। भारतीय जनता पार्टी की टिकट के लिए उसने काफी हाथ-पैर मारे। जब दाल नहीं गली तो समाजवादी पार्टी की टिकट पर विधानसभा चुनाव लडा और मुंह की खायी। फिर भी उसने हार नहीं मानी। यूं ही थकहार कर बैठ जानेवालों में नहीं था गजेंद्र। अखबारों में सुर्खियां पाने और न्यूज चैनलों पर अपनी शक्ल दिखाने की भी उसमें गजब की लालसा थी। आम आदमी पार्टी से उसके जुडने की यही वजह थी। उसे पता था कि इस पार्टी के हर नेता की हर हरकत न्यूज चैनलों में जगह पाती है। उसे जैसे ही खबर मिली कि पार्टी दिल्ली के जंतर-मंतर पर किसानों की समस्याओं को उठाने के लिए आंदोलन करने जा रही है तो वह अपने गांव का लंबा फासला तय कर वहां पहुच गया। जंतर-मंतर में जुटी भारी भीड जैसे गजेंद्र की ही राह देख रही थी। गजेंद्र आज मीडिया में छाने की ठान कर आया था। आप के नेताओं को रोज-रोज टीवी पर देखकर उसके मन में जो सपना कुलबुलाता था, उसे साकार करने का यह सटीक अवसर था। उसने अपने भाई-बहनों, यार-दोस्तों और रिश्तेदारों को सूचित कर दिया कि वे टेलीविजन के सामने बैठ जाएं। वह सभी न्यूज चैनलों पर छा जाने वाला है। आम आदमी पार्टी की रैली का वही असली हीरो होगा। धोती, कमीज और रंगीन राजस्थानी पगडी में चमकता चेहरा और हाथ में आम आदमी पार्टी का चुनाव चिन्ह झाडू। यकीनन हजारों की भीड में वह अलग दिखायी दे रहा था। मीडिया, आम आदमी पार्टी के नेताओं और भीड का ध्यान अपनी ओर खींचने के लिए उसके मन में एक धांसू विचार आया। वह फौरन मंच के ठीक सामने वाले पेड पर चढ गया। उसने पेड की शाखाओं के बीच अपनी भारी देह को जमाने के बाद भीड की तरफ नजरें दौडायीं। भीड भी उसकी उछल-कूद को देख तालियां पीटने लगी। उधर मंच पर नेता देश में हो रही किसानों की आत्महत्याओं के लिए मोदी सरकार को कोस रहे थे। इधर पेड पर टंगे किसान पर तमाशबीनों की निगाहें और मीडिया के कैमरे टिक चुके थे। किसान के लिए यही सुनहरा मौका था। उसने गमछे को अपनी गर्दन में फंदे की तरह कसा और आत्महत्या करने का अभिनय करने लगा। उसने एक चिट्टी भी नीचे फेंकी जिसमें उसने लोगों से घर जाने की सलाह मांगी थी। इस चिट्टी ने यह भी स्पष्ट कर दिया कि उसके पिता उससे नाखुश थे। इसलिए वह घर से भागा-भागा फिर रहा था।  सभी न्यूज चैनलों ने गजेंद्र को लाइव दिखाना शुरू कर दिया। उसके हाथ की झाडू, पगडी और रौबदार मूंछें दर्शकों को लुभाती रहीं। गजेंद्र के गले में बंधा गमछा उसकी मौत बन गया। राजधानी के जंतर-मंजर पर हुई इस मौत ने हजारों किसानों की आत्महत्याओं की खबरों को मात दे दी। जहां देखो वहां गजेंद्र की चर्चा ने जोर पकड लिया। पचासों मीडिया वाले गजेंद्र की पल-पल की तस्वीर देश और दुनिया को दिखाते रहे। उसकी मौत ने उनके चैनलों की टीआरपी को आसमान तक पहुंचा दिया। इतने सारे लोगों के सामने एक मौत हो गयी, किसी को कोई फर्क नहीं पडा। उनके लिए यह महज एक तमाशा था। आरोप-प्रत्यारोप और सहानुभूति का अद्भुत और अभूतपूर्व सैलाब उमडने में जरा भी देरी नहीं लगी। लगभग हर किसी का यही निष्कर्ष था कि फसल के बरबाद हो जाने के कारण गजेंद्र ने आत्महत्या की है। यह ऐसी आत्महत्या है जो सरकार के मुंह पर तमाचा है।
अब दिल्ली पुलिस ने जिलाधिकारी को अपनी जो रिपोर्ट सौंपी है उसमें स्पष्ट किया गया है कि गजेंद्र की मौत एक हादसा थी। फोरेंसिक जानकारों ने माना है कि उसकी मौत दम घुटने से हुई। हालात और तस्वीरें बताती हैं कि उसने अपना संतुलन खो दिया। उसने संभवत: सिर्फ दिखाने के मकसद से अपने गले में गमछा बांध रखा था, तभी उसका पैर डाल से फिसल गया और गले में फांसी लगने से उसकी दुखद मौत हो गयी। रिपोर्ट यह भी कहती है कि रैली में आए लोगों ने गजेंद्र को उकसाया-भडकाया जिसके चलते उसका नाटकीय हौसला बढता चला गया। गजेंद्र को उकसाने और उचकाने में जहां तमाशबीन भीड का योगदान था वहीं मीडिया ने भी कोई कोर-कसर बाकी नहीं रखी। भीड तो भीड होती है, उसका कोई ईमान-धर्म नहीं होता। उसे जैसे नचाओ, वैसे नाचती है। यहां पर तो असली दोषी मीडिया है जो जनहित के दावों के साथ बडी-बडी बातें करता है। कई बार तो खुद जज बन जाता है। अगर यह न्यूज चैनल वाले किसान गजेंद्र को भाव नहीं देते, अपने सभी कैमरे उस पर नहीं तानते तो वह झुंझलाते हुए झक मारकर पेड से उतर जाता और भीड में किसी कोने में जाकर खडा हो जाता। आखिर वो था तो एक आम आदमी। खास बनने के जुनून में बेमौत मर गया।

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