Thursday, April 23, 2015

अंधेरे और उजाले के बीच

कैसे-कैसे रंग। कैसे-कैसे लोग। हकीकत का पता ही नहीं चलता। आधा-अधूरा सच ही सामने आता है। कहीं महिलाएं शराब की दुकानें चला रही हैं तो कहीं शराब बंदी के लिए अपना खून-पसीना बहा रही हैं। यह भारत देश है। पुणे, मुंबई, गोआ, गुडगांव, दिल्ली, बेंगलुरु आदि  महानगरों के बीयर बारों में नारियों को मयखोरी करते देख अब अचंभा नहीं होता। महिलाओं के पीने-पिलाने का चलन आम हो गया है। पुणे ने तो इस मामले में बाजी मार ली है। शनिवार और रविवार को पुणे के बीयर बार खचाखच भरे रहते हैं। नौजवान लडके-लडकियां जाम से जाम टकराते जश्न मनाते हैं। इनमें से अधिकांश नौकरीपेशा हैं, जिन्हें मोटी तनख्वाहें मिलती हैं। यह देश के विभिन्न शहरों और गांवों से आये हैं। इनमें आधुनिक रंगीनियों में डूबकर जीवन जीने का अंधा जुनून है। 'जिन्दगी सिर्फ एक बार ही मिलती हैं' ...इस सोच के साथ सतत उत्सव मनाने वालों में पुणे के युवक-युवतियां यकीनन अव्वल हैं। यही वजह है कि यहां के चमचमाते मॉल और सजे-धजे बीयर बार हमेशा गुलजार रहते हैं।
महाराष्ट्र में नयी सरकार के आते ही चंद्रपुर जिले की शराब दुकानों और बीयर बारों पर ताले लग गये। इतना बडा काम हुआ सिर्फ और सिर्फ महिलाओं की बदौलत। पति के शराबी हो जाने का असली कष्ट तो पत्नी को ही भोगना पडता है। जिन मांओं के बेटे शराब के नशे में धुत रहते हैं वे तो जीते जी मर जाती हैं। शर्म से सिर झुक जाता है। दरअसल घर के किसी भी सदस्य के शराबी होने से घर-परिवार में जो तंगी और बरबादी का सैलाब आता है वह तमाम खुशियों को बहा ले जाता है। इस पीडा और दर्द को महिलाओं से ज्यादा और कौन समझ सकता है। घर-परिवार युद्ध के अखाडे बन जाते हैं। कितने पियक्कड पति पीने के बाद शैतान बन जाते हैं। नशे में पत्नी और बच्चों को मारना-पीटना-धमकाना उनकी आदत में शुमार हो जाता है। बर्दाश्त करने की भी सीमा होती है। अपने शराबी पतियों, भाइयों और रिश्तेदारों की शराबखोरी से त्रस्त नारियों को शराब बंदी के लिए सडकों पर उतरना पडा। उनकी जंग रंग लायी। चंद्रपुर जिले में शराब बंदी लागू हो गयी। चंद्रपुर की सफलता ने महिलाओं के उत्साह को बढाया। यही वजह है कि बीते सप्ताह यवतमाल में शराब बंदी के लिए महिलाओं ने जोरदार मोर्चा निकाला। लगभग २५ हजार महिलाओं के सडक पर उतरने से जिला प्रशासन भी हैरत में पड गया।  खुफिया विभाग भी स्तब्ध रह गया। उसने इतनी बडी संख्या में महिलाओं के जुटने की कल्पना ही नहीं की थी। महिलाएं ठान चुकी हैं कि जब तक मुख्यमंत्री यवतमाल जिले में शराब बंदी करने का लिखित आश्वासन नहीं देते तब तक उनका आंदोलन जारी रहेगा। यह महिलाएं पूरे देश में शराब की दुकानों पर ताले लगते देखना चाहती हैं। वे नहीं चाहतीं कि इसकी वजह से नौजवान अपराध के रास्ते पर चलते हुए अपना भविष्य अंधकारमय कर लें। यही तो है वो नारी शक्ति जो देश की तस्वीर और तकदीर बदल सकती है। लेकिन...?
शराबी तो नशे के गुलाम होते हैं, लेकिन सरकारें क्यों अंधी बनी रहती हैं? उत्तराखंड देश का ऐसा प्रदेश है जहां कभी शराब के खिलाफ आवाज बुलंद करने वाली महिलाएं सडकों पर खडी नजर आती थीं। लेकिन अब तस्वीर बदल रही है। खुद महिलाएं ही शराब के कारोबार में उतर चुकी हैं। है न जबरदस्त अचंभे की बात। यही भी एक रंग है अपने देश का। यहां कुछ भी हो सकता है। कुछ भी किया और करवाया जा सकता है। उत्तरांचल में शराब की दुकानों का लाइसेंस पाने के लिए महिलाएं पुरुषों को मात दे रही हैं। यह भी सच है कि शराब की दुकानों के लिए आवेदन करने वाली अधिकांश महिलाएं उन परिवारों से जुडी हैं जो वर्षों से इस कारोबार में हैं। सरकार अपनी तिजोरियों को भरने के लिए कुछ भी करने को बेताब है। वह यह भी भूल गयी है कि उत्तराखंड तो 'देवभूमि' कहलाता है। यहां पर स्थित हैं चारों धाम, हरिद्वार, ऋषिकेश जैसे और भी कई धार्मिक स्थल जो करोडों देशवासियों के आस्था स्थल हैं।
सरकार को लोगों के स्वास्थ्य की चिंता नहीं है। शराब से मिलने वाला राजस्व जो कभी २०० करोड था, अब १६०० करोड के करीब जा पहुंचा है फिर भी सरकार की भूख कम नहीं हुई हैं। यकीनन महिलाओं का शराब के धंधे में कूदना अच्छे संकेत तो नहीं देता। गौरतलब है कि ५२८ दुकानों के लिए ६४,५२८ आवेदन प्राप्त हुए उनमें से १६,११६ आवेदन तो महिलाओं के ही थे। आखिर कौन सी ऐसी वजह है जिसने महिलाओं को शराब के कारोबार में उतरने को विवश कर दिया? इसका जवाब है सरकार की नयी और अजूबी नीति और अंधे बने रहने की नौटंकी। उसे राजस्व की चिन्ता है। लोगों के स्वास्थ्य और समाज के बिखराव और बिगडाव की कोई फिक्र ही नहीं।
यहां शराब दुकानों के मिलने वाले आवेदन पत्रों का चुनाव लाटरी से होता है। लाटरी में जिसका नाम निकलता है उसी को शराब दुकान का लायसेंस थमा दिया जाता है। शराब का कारोबार करने के इच्छुक लोग अलग-अलग नाम से ज्यादा से ज्यादा नाम डालकर शराब दुकानें हथियाने के लिए अपना तथा अपने रिश्तेदारों और घर की महिलाओं का इस्तेमाल कर रहे हैं। इससे उनकी मुराद पूरी होने ज्यादा अडचनें नहीं आतीं। पति नहीं तो पत्नी के नाम की लाटरी तो निकल ही जाती है। यह भी देखा जा रहा है कि कुछ महिलाओ को शराब का कारोबार रास आने लगा है। इससे होने वाली अंधी कमायी ने उनके सपनों को पर लगा दिये हैं। वे हवा में उड रही हैं। उनकी ऊपर वाले से यही दुआ रहती है कि उनके नाम की पर्ची निकले और वे ऐसा कुछ कर दिखाएं जो अभी तक पुरुष भी नहीं कर पाए।

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