Thursday, April 9, 2015

इतने अंधे तो मत बनिए

डॉक्टर कहते हैं कि तंबाकू से कैंसर होता है। सिगरेट और बीडी पीना मौत को आमंत्रण देना है। गुटखा, सिगरेट और बीडी के कारण भारत में हर साल दस लाख से ज्यादा मौतें होती हैं। भारतीय जनता पार्टी के एक विद्वान सांसद को इन तथ्यों में कोई दम नजर नहीं आता। उनका दावा है कि तंबाकू और धूम्रपान का कैंसर से कोई लेना-देना नहीं। इसलिए जी-भरकर तंबाकू चबाओ और बीडी-सिगरेट फूंको। किसी का कुछ नहीं बिगडने वाला। उन्होंने तो अपने दावे के दमदार होने के सबूत भी पेश कर डाले। छाती तानकर दो वरिष्ठ वकीलों के उदाहरण पेश किए। पहला वकील हर रोज धडल्ले से ६० सिगरेटें फूंकता था। शराब का भी वह खासा शौकीन था। दिन भर में एक बोतल चढाने के बाद भी उसे कोई फर्क नहीं पडता था। अपनी इसी दिनचर्या के साथ वह ८६ साल तक मस्तमौला की तरह जीया। हजारों रुपयें धुएं में उडाए और लाखों की मय डकारी। फिर भी उसे कभी भी किसी बीमारी ने नहीं घेरा। कैंसर तो बहुत दूर की बात है। दूसरा भी वकील है जो चेन स्मोकर है। कम से कम ४० सिगरेटें पीने के साथ ही शराब भी उसकी रोज की आदत में शुमार है। इसे भी कैंसर नहीं डंस पाया। ७५ साल की उम्र में भी बंदा भला चंगा है। टुन्न रहकर भी वर्षों से वकालत के पेशे को अंजाम देता चला आ रहा है। नशे की पुरजोर वकालत करने वाले भाजपा के इस सांसद की तरह और भी भाजपा कुछ धुरंधर हैं जो यह मानते है कि तंबाकू तो औषधीय गुणों की खान है। इसके सतत सेवन से पाचन क्रिया दुरुस्त रहती है और बीमारियां दूर भागती हैं। वे तो ऐसे हजारों लोगों को जानने का दावा करते हैं जो वर्षों से धूम्रपान करते चले आ रहे हैं, लेकिन पूरी तरह से स्वस्थ हैं। दूसरी तरफ कैंसर और हृदयरोग जैसी गंभीर बीमारियों के जानकार डॉक्टरों का यही अंतिम निष्कर्ष है कि तंबाकू अंतत: मौत ही देता है। तंबाकू का सेवन सेहत के लिए नहीं सामाजिक दृष्टि से भी हानिकारक है। तंबाकू की लत के शिकार लोग समाज से कटने लगते हैं। उनकी कार्यक्षमता भी घटती चली जाती है।
देश के दिग्गज नेता शरद पवार तंबाकू के कहर के भुक्तभोगी हैं। अपनी युवावस्था में ही तंबाकू वाला गुटखा खाने-चबाने की आदत पाल लेने वाले मराठा क्षत्रप के लिए चाहकर भी इस नशे से मुक्ति पाना दूभर हो गया था। उनके दिन की शुरुआत ही गुटखे से होती थीं। कोई भी क्षण ऐसा नहीं होता था जब गुटखा उनके मुंह में नहीं होता था। एक समय ऐसा आया जब मुंह के कैंसर ने उन्हें बुरी तरह से जकड लिया। मुंह खोलने में बेहद तकलीफ होने लगी। जान पर बन आयी। कैंसर के इलाज के लिए विदेशी अस्पतालों की शरण लेनी पडी। कोई गरीब आदमी होता तो शायद ही बच पाता। इलाज पर करोडों रुपये खर्च करने के बाद ही उनकी जान बच पायी। धनवान पवार की किस्मत अच्छी थी। उचित समय पर इलाज करवाया तो बच गये। मुख के कैंसर के मरीजों का बच पाना बहुत मुश्किल होता है। देश में तंबाकू विरोधी अभियान का चेहरा रहीं सुनीता तोमर इसका उदाहरण हैं। कई महीनों तक टीवी पर छायी रहने वाली सुनीता की मुंह के कैंसर के चलते एक अप्रैल को मौत हो गयी। तंबाकू की मार के निशान आज भी पवार के चेहरे पर नजर आते हैं। ऑपरेशन के दौरान मुंह के दांत निकाले जाने के कारण उनका चेहरा आडा-टेढा हो गया। फिर भी जान बची सो लाखों पाये। महाराष्ट्र के पूर्व गृहमंत्री आर.आर. पाटील भी तंबाकू के आदी थे। गुटखा चौबीस घंटे उनके मुंह में दबा रहता था। उन्होंने भी जीवनपर्यंत तंबाकू चबायी और उसके विषैले रस से अपनी जिन्दगी बेरस कर डाली। 'आबा' के नाम से ख्यातिप्राप्त पाटील अच्छे खासे राजनेता थे! हट्टे-कट्टे, चुस्त दुरुस्त। शरद पवार की राष्ट्रवादी कांग्रेस के चंद ईमानदारों में उनका शुमार था। महाराष्ट्र में डांसबारों पर हमेशा-हमेशा के लिए ताले जडवाने की दमदारी उन्हीं ने दिखायी थी। उन्हीं की पार्टी के कई नेता डांसबारों में चलने वाले अश्लील तमाशों के पक्षधर थे। भाजपा, शिवसेना और कांग्रेस के कितने नेता शराब के धंधे से जुडे हुए हैं। उन्हीं में से कुछ की उन डांसबारों में भी हिस्सेदारी थी जहां खुलेआम देह व्यवसाय होता था। सबने पाटील पर दबाव बनाया कि वे डांसबार बंद करवाने की जिद छोड दें। लेकिन वे नहीं माने। यकीनन पाटील उसूलों के पक्के इंसान थे। लेकिन तंबाकू ने उन्हें मात दे दी। शुभचिन्तक उन्हें इस जहर से दूर रहने की सलाह देते-देते थक गये, लेकिन लत नहीं छूटी। कैंसर के शिकार होने के बाद महीनों अस्पताल में रहे। वे पवार की तरह खुशकिस्मत नहीं थे। अंतत: चल बसे। ऐसे ही लाखों लोग हैं जिन्हें तंबाकू लील गयी। उनके अते-पते ही गायब हो गए।
यह कितनी शर्म की बात है कि जानलेवा तंबाकू से होने वाली मौतों पर चिंता जताने की बजाय राजनीति की जा रही है। तंबाकू के पक्ष में कई ताकतें खडी हो गयी हैं। बीडी, सिगरेट और तंबाकू की वकालत करने वालों में अधिकांश वही लोग हैं जिनके इनके साथ कहीं न कहीं स्वार्थ जुडे हैं। तंबाकू की तरफदारी में जमीन आसमान एक करने वाले भाजपा सांसद तो बीडी के बहुत बडे कारोबारी हैं। देशभर में उनके कारखानों की बीडियों की अच्छी-खासी खपत होती है। करोडों की कमायी है। अपने देश में हर बात पर राजनीति करने का चालन आम हो गया है। तंबाकू ही नहीं, शराब व जुए-सटे के पक्ष में भी रातों-रात लोग झंडे लेकर खडे हो जाते हैं। दरअसल इनमें अधिकांश वे लोग हैं जिनके एक तरफ स्कूल, कालेज, अस्पताल चलते हैं तो दूसरी तरफ शराब, बीडी, सिगरेट आदि नशीले पदार्थों के कारखाने। इन्हें कहीं से भी कमायी चाहिए। इनके लालच की कोई सीमा नहीं। इनकी तिजौरियां कभी नहीं भरतीं।
बीडी और शराब के कारखाने चलाने वालों ने यह कैसे मान लिया कि जिन लोगों ने उन्हें अपना कीमती वोट देकर सांसद बनाया वे उनके छल और कपट को नहीं समझ सकते? देश के करोडों लोगों के स्वास्थ्य को खतरे में डालने वाले सौदागरों को तो धन के लालच ने अंधा बना दिया है, लेकिन हम आप अंधे और बहरे क्यों बने हुए हैं?

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