Thursday, July 16, 2015

धमकाने और दबाने की राजनीति

महानगरों, शहरों और ग्रामों में कुछ धन्नासेठों, नेताओं और तथाकथित समाज सेवकों की अपनी अलग सत्ता चलती है। अराजक तत्वों से दोस्ती और शासकीय अधिकारियों पर रौब झाडकर अपना काम निकलवाने में इन्हें महारत हासिल होती है। जब भी इनका कोई चहेता किसी बडे लफडे में फंस जाता है तो फौरन इनका फोन अधिकारी तक पहुंच जाता है। हत्यारों, बलात्कारियों, माफियाओं और गुंडे बदमाशों की खाकी के संग यारी और हिस्सेदारी अक्सर उजागर होती रहती है। दुनिया के सबसे बडे इस लोकतांत्रिक देश में देशद्रोहियों तक को कानून और पुलिसिया शिकंजे से बचाने के लिए कसरतबाजी चलती रहती है। छोटे शहरों में छुटभैय्ये नेता भी अपना काम निकालने के लिए शासकीय अधिकारियों पर धौंस जमाते रहते हैं। जब तक उनकी सुनी जाती है तब तक तो सब ठीक रहता है, अनसुनी करने पर अधिकारी को सबक सिखाने के लिए अपने ऊपर के आकाओं तक दौड लगायी जाती है। सत्तारुढ पार्टी के नेता तो अपने शहर और गांव में पुलिस वालों पर ऐसे हुक्म बजाते हैं जैसे वे ही असली पीएम और सीएम हों। अगर कोई ईमानदार अधिकारी उन्हें भाव नहीं देता उनका खून खौल उठता है। वे उसका स्थानांतरण करवाने के लिए अपनी पूरी ताकत लगा देते हैं। कुछ नेता तो सफल भी हो जाते हैं। ऐसे में उनकी चारों तरफ तूती बोलने लगती है। राजनीतिक भविष्य भी उज्जवल हो जाता है। भूमाफिया, खनन माफिया, काले धनपति और तमाम संदिग्ध कारोबारी उन नेताओं से करीबी बनाने की फिराक में रहते हैं, जिनका असरदार शासकीय अधिकारियों के बीच उठना-बैठना होता है। यह नेता भी उन्हें कभी निराश नहीं करते। इस हाथ दे और उस हाथ ले के दस्तूर पर चलते हुए अपनी राजनीति की दुकान का रूतबा और रौनक बढाते रहते हैं। देश में नरेंद्र मोदी की सरकार बनने से पहले नागपुर के एक नेता भ्रष्टाचार के आरोपों के चक्रव्यूह में फंस गये थे। आयकर विभाग ने अपना शिकंजा कसना शुरू किया ही था कि उन्होंने आयकर अधिकारियों पर चेतावनी की बंदूक तान दी थी कि यह मत भूलो कि अब केंद्र और प्रदेश में हमारी पार्टी की सरकार आने वाली है। भाजपा की सत्ता आते ही मैं एक-एक को देख लूंगा। वे नेता वर्तमान में केंद्र सरकार में दमदार मंत्री हैं। देश के दिग्गज राजनेता सरकारी अधिकारियों पर ऐसे ही धौंस जमाते हैं और इसका ज्वलंत उदाहरण है भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारी अमिताभ ठाकुर और मुलायम सिंह के बीच की धमाकेदार तनातनी। आईजी अमिताभ ठाकुर भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचारियों के खिलाफ अक्सर अपनी आवाज बुलंद कर सुर्खियां पाते रहते हैं। इस बार उन्होंने उत्तरप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और वर्तमान मुख्यमंत्री के पिताश्री मुलायम सिंह यादव को अपनी चौंकाऊ वीरता दिखायी है। अखिलेश सिंह यादव के राज में मंत्री कितने भ्रष्ट और बेलगाम हो चुके हैं, इसकी पिता और पुत्र को छोडकर सभी को खबर है। उन्हीं में से एक हैं खनन मंत्री गायत्री प्रजापति। अमिताभ ठाकुर की पत्नी ने सजग नागरिक का फर्ज निभाते हुए इन महाशय के तमाम काले कारनामों का साक्ष्यों सहित लोकायुक्त को ब्यौरा सौंपा था। जिसमें स्पष्ट किया गया कि अखिलेश सरकार के यह शातिर खनन मंत्री अवैध धंधों में इतने पारंगत हैं कि देखते ही देखते इन्होंने अरबों-खरबों जुटा लिये हैं और लखनऊ और अमेठी में सैकडों करोडों की जमीन-जायदाद खडी कर ली है। जैसे ही लोकायुक्त के पास मंत्री का काला चिट्टा पहुंचा, अमिताभ और उनकी पत्नी को धमकी भरे फोन आने लगे। जब धमकाने-चमकाने वालों ने देखा कि उनकी दादागिरी का ठाकुर दंपति पर कोई असर नहीं हो रहा है तो वे उन्हें बदनाम करने के षडयंत्र रचने लगे।
हद तो तब हो गयी जब अभी हाल ही में मुलायम सिंह यादव ने अमिताभ ठाकुर को फोन कर सुधर जाने की हिदायत दे डाली। यह फोन भी एक तरह से धमकी ही है कि हमारी सरकार के मंत्री चाहे जो करें, लेकिन तुम कौन होते हो उनके खिलाफ शिकायत करने वाले। तुम सिर्फ अपनी ड्यूटी पर ही ध्यान दो। तुम्हारी इतनी औकात नहीं है कि तुम समाजवादी सरकार के मंत्री पर निशाना साधो। दरअसल, मुलायम सिंह यादव एक घुटे हुए उम्रदराज नेता हैं। उन्हें आपा खोने में देरी नहीं लगती। वे सरकारी अधिकारियो को अपने पैर की जूती समझते हैं। उनकी हरकतों को देखने के बाद यह कतई नहीं लगता कि वे सच्चे समाजवादी हैं। भ्रष्टाचारियों के पनाह देते रहना और उन्हें बचाने के लिए गुंडागर्दी पर उतर आना उनकी पुरानी आदत है। उनके चेले भी उनका अनुसरण करते है। जिनमें कार्यकर्ता से लेकर सांसद, विधायक, मंत्री, नेता तक शामिल हैं। उत्तरप्रदेश के युवा मुख्यमंत्री अखिलेश सिंह यादव भी अपने पिताश्री के पदाचिन्हों पर चल रहे हैं। उन्हें भी ईमानदार अधिकारी नहीं सुहाते। वे भी अपनी सरकार के बेईमान मंत्रियों की पीठ थपथपाने में कोई कमी नहीं रखते। उनके राज में सपाई गुंडों को बेखौफ और खुलेआम कानून की धज्जियां उडाते हुए देखा जा सकता है। ईमानदार अधिकारियों और पत्रकारों पर बिजलियां गिरती रहती हैं।
पिता और पुत्र की एक ही नीति है कि उन अधिकारियों पर चाबुक बरसाते रहो जो उनके इशारे पर नहीं नाचते। इनके लिए कर्तव्य परायणता और ईमानदारी का कोई मोल नहीं है। आईएस अधिकारी दुर्गा नागपाल ने खनन माफियाओं की कमर तोडने के लिए पचासों छापे मारे और उनके वाहन जब्त किये। करोडों रुपये की राजस्व वसूली कर अपनी कर्तव्यनिष्ठा का परिचय दिया। अखिलेश सरकार ने पीठ थपथपाने की बजाय उन्हें निलंबित कर दिया। खनन माफियाओं की ऊपर तक पहुंच थी। निर्भीक अधिकारी को सजा दिये जाने का कारण यह बताया गया कि वे एक धार्मिक स्थल की दीवार को गिरवाकर दंगा करवाने और साम्प्रदायिक सौहार्द बिगाडने पर तुली थीं। अपने देश में राजनीतिक दबाव के आगे कभी न झुकने वाले अफसरो को तोडने और झुकाने की कई-कई कोशिशें की जाती हैं। लेकिन जिनकी नसों में ईमानदारी का खून दौडता है वे किसी से खौफ नहीं खाते। हरियाणा के आईएसएस अधिकारी अशोक खेमका का बार-बार तबादला इसलिए होता चला आ रहा है, क्योंकि वे सत्ताधीशों के इशारों पर नहीं नाचते। वे हर सरकार के निशाने पर रहे। उन्होंने २०१३ में जब कांग्रेस की सुप्रीमों सोनिया गांधी के दामाद रॉबर्ट वाड्रा की जमीनों के गोरखधंधे को उजागर किया तो उनका जीना हराम कर दिया गया। अशोक खेमका ने तो जगजाहिर भ्रष्टाचारी पूर्व मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चौटाला का गलत आदेश मानने से ही इंकार कर दिया था। भ्रष्टाचारी चौटाला अपने दुष्कर्मों के चलते जेल में सड रहा है। मुंबई के पूर्व आईपीएस अधिकारी वाय.पी.सिंह ने पुलिस विभाग में सत्ताधीशों और नेताओं की दखलअंदाजी पर काफी कुछ लिखा है। उनकी अच्छी-खासी नौकरी थी। रूतबा और दबदबा था। फिर भी वाय.पी. सिंह का दम घुटता था। दरअसल, वे उन बिकाऊ पुलिस अधिकारियों जैसे नहीं थे जो अपनी खुद्दारी की बोली लगाकर शर्मनाक समझौते करते चले जाते हैं और 'खाकी' की गरिमा को ही दांव पर लगा देते हैं।

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