Thursday, July 9, 2015

चमत्कारी सत्ता के लुटेरे

कौन कहता है कि चमत्कार नहीं होते। चालाकी और कलेजा हो तो सबकुछ हो सकता है। कई लोग अक्सर रोते-गाते रहते हैं कि अपनी तो किस्मत खराब है। कितनी मेहनत करते हैं पर दो वक्त की रोटी भी नहीं जुट पाती। उन्हें इन दो सब्जी वालों से कुछ सीखना चाहिए जिन्होंने चंद वर्षों में हजारों करोड कमा कर दिखाये हैं।
पहले धुरंधर का नाम है कृपाशंकर सिंह। उत्तरप्रदेश में जन्मे यह महाशय लगभग तीस साल पहले रोजी-रोटी की तलाश में देश की मायानगरी मुंबई में अवतरित हुए। कहते हैं मुंबई किसी को भूखा नहीं सुलाती। हाथ-पैर मारने वाले के हाथ कुछ-न-कुछ लगता ही है। बेचारे कृपाशंकर को गाय या भैंस का दूध दोहने के अलावा और कुछ नहीं आता था। अपने वतन से जब चले थे तो जेब में एकाध सौ का पत्ता था। गाय या भैंस को खरीद पाने की औकात नहीं थी। इसलिए सडक के किनारे सब्जी बेचने के काम में लग गये। गुजारे लायक कमायी होने लगी। मुंबई के जिस इलाके में वे आलू-प्याज और सब्जियां बेचते थे वहां पर फिल्म अभिनेताओं और नेताओं का आना-जाना लगा रहता था। मिलनसार कृपा ने उनसे पहचान बनाने का सिलसिला शुरू कर दिया। धनवानों की चमक-धमक उन्हें लुभाने लगी। रंगारंग सपने भी आने लगे। यह वो दौर था जब मुंबई, बम्बई कहलाता था। धीरे-धीरे धंधा चल निकला। तब शिवसेना उफान पर थी। बाल ठाकरे का पूरी बम्बई में ऐसा दबदबा था कि खूंखार से खूंखार गुंडे-बदमाश, हत्यारे और माफिया तक उनसे खौफ खाते थे। कृपा को समझ में आने लगा कि आलू, गोभी, परवल और प्याज बेचकर ज्यादा कुछ नहीं होने वाला। कुछ छुटभैय्ये नेताओं की संगत में पड चुके कृपा ने राजनीति में कूदने का मन बना लिया। उनके कान में कुछ लोगों ने मंत्र फूंका कि अपने वालों की आवाज बुलंद कर बम्बई की राजनीति में पैठ जमायी जा सकती है। उत्तर भारतीयों की तकलीफों को समझने और उनका साथ देने वाले नेता नहीं के बराबर हैं। उन्होंने कांग्रेस के कुछ नेताओं के इर्द-गिर्द चक्कर काट कर उनसे भी हलकी-फुलकी दोस्ती गांठ ली। उन्हीं दोस्तों ने उन्हें यह पाठ पढाया कि अगर राजनीति के आकाश में चमकना चाहते हो तो शिवसेना के खिलाफ तन कर खडे हो जाओ। शिवसेना उत्तर भारतीयों के विरोध की राजनीति कर अपना फैलाव करती चली जा रही है। बम्बई में ऐसा कोई उत्तर भारतीय नेता नहीं है जो शिवसेना को मुंह तोड जवाब दे सके। डरपोक कृपाशंकर के लिए यह आसान काम नहीं था। फिर भी उन्होंने उत्तर भारतीयो का नेता बनने के लिए शिवसेना की नीतियों के खिलाफ भाषणबाजी और पेपरबाजी का श्रीगणेश कर दिया। धीरे-धीरे नाम होने लगा। बम्बई की नेता बिरादरी को पता चल गया कि मायानगरी में एक नया उत्तर भारतीय नेता उभरने को बेताब है। कृपाशंकर ने बम्बई के अलावा दिल्ली के बडे कांग्रेसी नेताओं के दरवाजों पर दस्तक देनी शुरू कर दी थी। मक्खनबाजी और चाटूकारिता और पूरी तरह से दंडवत होने के सकल गुण उनमें विद्यमान थे। दिल्ली में बैठे कांग्रेस के दिग्गज नेताओं को यह बंदा भा गया। कालांतर में उन्हें बम्बई में उत्तर भारतीयों के बाहुल्य वाले इलाके में विधानसभा चुनाव लडने की टिकट थमा दी गयी। वह जीत भी गये। फिर तो उन्होंने ऐसी-ऐसी छलांगे लगायीं और दांव-पेंच खेले कि महाराष्ट्र सरकार में मंत्री भी बना दिये गये। उनकी राजनीति की गाडी सपाटे से दौडने लगी। उनके भाषणों में वही छलावा और कलाकारी होती जो इस देश के शातिर नेताओं की नस-नस में भरी है। उन्होंने कुछ ही वर्षों में महाराष्ट्र के दमदार नेताओं की फेहरिस्त में खुद को शामिल करवा लिया। कांग्रेस की सुप्रीमों सोनिया गांधी से मिलना-जुलना आम हो गया। दुश्मनों की भी तादाद बढने लगी। धीरे-धीरे कृपा के भ्रष्टाचार की खबरें मीडिया में आने लगीं। भ्रष्टाचार के पाप का घडा भरता चला गया। आखिरकार धमाका भी हो गया। खुद को उत्तर भारतीयों के मसीहा दर्शाने वाले कृपाशंकर तो बहुत बडे मुखौटेबाज निकले। कानून ने जब पूरी तरह से अपना शिकंजा कसा तो पता चला कि कभी झोपडी में रहने वाला वो अदना-सा भैय्या तो अब अरबों-खरबों की दौलत का मालिक बन चुका है। उसके पास कई बंगले, फार्महाऊस, आलीशान फ्लैटों, दुकानों के साथ-साथ महंगी से महंगी कारों का काफिला है। घर में रखी पचासों तिजोरियां हीरा-सोना-चांदी और नोटों से लबालब भरी पडी हैं। करीबी तो करीबी दूर-दराज के रिश्तेदारों के नाम से भी करोडों की सम्पतियां खरीदी गयी हैं।
दूसरे चतुर नेता हैं छगन भुजबल। इन्होंने भी मुंबई के फुटपाथ पर पहले आलू-प्याज बेचे फिर राजनीति में कूद पडे। दलितों और शोषितों के सभी संकट दूर करने के लिए इन्होंने सर्वप्रथम शिवसेना का दामन थामा। बहुत उछल-कूद मचायी। गरीबों और दबे-कुचले बम्बई वासियों के लिए मर मिटने की नारेबाजी कर वोटरों को लुभाया और तरक्की की सीढिया चढते चले गये। शिवसेना में रहकर अपनी खूब हैसियत बढायी। जब शिवसेना के खराब दिन आये तो उसको नमस्कार कर शरद पवार की राष्ट्रवादी पार्टी में छलांग लगा दी। जब महाराष्ट्र में कांग्रेस, राकां गठबंधन की सरकार बनी तो छगन की निकल पडी। छगन भुजबल को महाराष्ट्र के गृहमंत्री जैसे बडे पद का भरपूर सुख भोगने का अवसर मिला। इसी दौरान तेलगी का अरबों-खरबों का नकली स्टाम्प घोटाला सामने आया। यह सरासर राष्ट्रद्रोही कृत्य था। करोडों रुपये की रिश्वत के लिए छगन को देशद्रोही से दोस्ती करने में कोई शर्म नहीं आयी। तेलगी के साथ छगन भुजबल की 'दोस्ती' जब बेनकाब हुई तो देश और दुनिया स्तब्ध रह गयी। अपनी पार्टी की सरकार थी, इसलिए छगन पर कोई आंच नहीं आयी। कल का सब्जी वाला भ्रष्टाचार की सभी हदें पार करता चला गया। मुंबई, पुणे, ठाणे, नासिक में करोडों की जमीनें बंगले, फार्महाऊस बनते चले गए। कई उद्योगधंधे भी शुरू हो गये। आयात, निर्यात के कारोबार को भी पंख लग गये। अपने भाई-भतीजों और रिश्तेदारों के नाम से सरकारी ठेके लेने के लिए हर मर्यादा को ताक पर रख दिया गया। मुंहमांगी रिश्वतों का अंबार लगता चला गया। मीडिया में उनके भ्रष्टाचार की खबरें छपतीं, लेकिन कार्रवाई नदारद। नयी सरकार ने जब शिकंजा कसा तो पता चला कि छगन और उनके परिवार के पास तो तीन हजार करोड से भी ज्यादा की धन-दौलत है! उन्होंने तो यूपी के कृपाशंकर को मात दे दी। अब देखते हैं कि इन्हे मात देने वाले किसी 'चमत्कारी'  का नाम कब सामने आता है...।

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