Thursday, July 23, 2015

हिम्मत तो दिखानी ही होगी

कहीं न कहीं कोई बहुत बडी गडबड तो है। अंधेरा पूरी तरह से छंटने का नाम नहीं ले रहा है। देशवासी बेहद शंकित हैं। ऐसा कब तक चलता रहेगा? २००६ में कई मासूम बच्चों की हत्या कर उनका मांस खाने वाले दो हैवान बडी मुश्किल से कानून की पकड में आये थे। नोएडा पुलिस ने धनवान, शैतान मोनिंदर सिंह पंधेर और उसके नौकर सुरेंद्र कोली को दबोचा था। कोली ने बारह बच्चों की निर्मम हत्या की बात कबूली थी। उसे फांसी की सज़ा सुना दिये जाने के बाद भी उसे जिन्दा रहने का मौका उपहार स्वरूप दे दिया गया! जब कानून मात्र दिखावा बनकर रह जाता है तो अपराधियों के हौसले बढते ही हैं। निठारी जैसे कांडों का सिलसिला चलता ही रहता है।
लगभग ९ साल बाद निठारी कांड से भी भयावह बलात्कार और हत्या कांड के सामने आने से यह मान लिया जाना चाहिए कि राक्षसी प्रवृत्ति के हैवानों के हौसले कम नहीं होने वाले। उन्हें कानून का कोई भय नहीं है। किसी भी सज़ा का खौफ उन्हें नहीं सताता। सन २०१५ के जुलाई महीने में पुलिस के शिकंजे में आया कुकर्मी रविन्द्र मासूम बच्चों को देखकर शैतान बन जाता था। वह पार्क में खेलते बच्चों या कहीं भी अकेले दिखने वाले मासूमों को चाकलेट और रुपयों का झांसा देकर सुनसान जगह पर ले जाता और फिर उनका यौन शोषण कर बडी बेदर्दी से हत्या कर चलते बनता। अकेले दिल्ली में ही उसने कई वारदातों को अंजाम दे डाला। नोएडा, बदायूं और अलीगढ आदि में भी इस दरिंदे ने कई मासूम बच्चों को अपनी हत्यारी-वासना का शिकार बनाया। पूरा आंकडा तो उसे भी याद नहीं है। फिर भी लगभग चालीस बच्चे उसकी अंधी वासना की बलि चढ गये। उसे अश्लील फिल्में, शराब तथा गांजा पीने की लत लग चुकी थी। जब नशा उफान पर होता तो वह शैतान बन जाता और बच्चों को अपनी हैवानियत का शिकार बनाता चला जाता। बाद में पकडे जाने के भय से बच्चों की निर्मम हत्या कर आराम से घर में जाकर सो जाता। कहते हैं कि अपराधी खाकी से कांपते हैं, लेकिन उसके चेहरे पर चिंता और डर की कोई शिकन नहीं देखी गयी। उसने यह कहने में भी देरी नहीं लगायी कि यदि पकड में नहीं आता तो वह ऐसे ही दो से दस वर्ष के बच्चों के साथ कुकर्म कर उनकी नृशंस हत्याएं करता चला जाता। ट्रक में हेल्पर की नौकरी करने वाला २४ वर्षीय यह दरिंदा पिछले सात वर्षों से ऐसी वारदातों को अंजाम देता चला आ रहा था। ट्रक के साथ जहां जाता था, वहीं मौका मिलते ही किसी भी मासूम बच्चे को लुभावने लालच के जाल में फांस लेता था। उसे अच्छी तरह से मालूम है कि अब उसकी सारी जिन्दगी जेल में ही बीतने वाली है, लेकिन इसका उसे कोई गम नहीं है।
हर बलात्कारी यह सोचकर संतुष्ट हो जाता है कि उसने जो चाहा था, वह पा लिया। अब जो होगा देखा जायेगा। असली पहाड जिन पर टूटता उनके दर्द और पीडा को कभी देखा और समझा नहीं जाता। वैसे भी यहां कौन किसकी फिक्र करता है। अदालतों में विराजमान कुछ न्याय के देवताओं का देवत्व भी गायब होता जा रहा है। उनकी असंवेदनशीलता बताती है कि वे भी कहीं न कहीं बला टालने की मानसिकता के शिकार होते चले जा रहे हैं।
कुछ दिनों पूर्व मद्रास उच्च न्यायालय ने एक नाबालिग से बलात्कार के मामले में हैरतअंगेज फैसला सुनाते हुए पीडिता को बलात्कार के आरोपी से शादी करने की सलाह डाली। वे यह भूल गये कि बलात्कार की शिकार महिला को बलात्कारी के साथ शादी करने की सलाह देना उसकी आत्मा को छलनी और लहुलूहान करने जैसा है। यह सुझाव बलात्कारी के हौसले को पस्त करने के बजाय उनके मनोबल को बढाने वाला है। किसी महिला की इज्जत पर डाका डालने और उसके सम्मान के साथ जीने के अधिकार को छीनने की भरपायी न तो धन-दौलत से हो सकती है और न ही शादी से। पीडिता २००८ में वी. मोहन नामक बलात्कारी की हैवानियत का शिकार हुई थी। तब वह दसवीं की परीक्षा की तैयारी कर रही थी। मोहन उसका पडोसी था। मोहन ने उसे किसी काम के बहाने अपने घर बुलाया। फिर बडी चालाकी से कोल्डड्रिंक में नशीली दवा मिला कर पिलायी। उसे पीते ही वह अपनी सुध-बुध खो बैठी। मोहन ने उस पर बलात्कार कर तस्वीरें भी खींच लीं। इन्हीं नग्न तस्वीरों का डर दिखाकर वह लगातार नीचकर्म करता रहा। लडकी कई बार गिडगिडायी, हाथ पांव भी जोडे पर उसे दया नहीं आयी। आखिरकार बेबस लडकी गर्भवती हो गयी। उसकी पढाई भी छूट गयी। भविष्य चौपट हो गया। लोग छींटाकशी के तेजाब की बौछारें करने लगे। जीना दुश्वार हो गया। जैसे-तैसे उसने खुद को संभाला। बलात्कारी के खिलाफ अदालती लडाई लडती रही। महिला कोर्ट ने बलात्कारी मोहन पर न सिर्फ दो लाख रुपये का जुर्माना लगाया, बल्कि सात साल की सजा भी सुनायी। बलात्कारी मोहन ने इस फैसले के खिलाफ मद्रास हाईकोर्ट में जमानत के लिए अपील दायर की। हाईकोर्ट ने उसकी अंतरिम जमानत मंजूर करते हुए पीडिता के साथ शादी कर घर बसाने का हैरतअंगेज सुझाव देकर हर सजग देसवासी को हैरान-परेशान कर दिया। लडकी इस फैसले को सुनकर स्तब्ध रह गयी। उसने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि बलात्कार के मामले में शादी के नाम पर किसी भी तरह का समझौता पीडिता और बलात्कारी में नहीं हो सकता। इस तरह के सुझाव देना असंवेदनशीलता की श्रेणी में आता है। अपनी सात वर्षीय बेटी के साथ संघर्ष करती और लोगों के ताने झेलती लडकी का दर्द इन शब्दों में छलका है : "अगर मैं जज के फैसले को मान लेती तो जिन्दगी भर मेरा रेप ही होता रहता। मेरे लिए चरित्र और मान-सम्मान से ज्यादा और किसी चीज़ की अहमियत नहीं है।"
आज वह बिनब्याही मां है, लेकिन थकने और हारने को तैयार नहीं। वह आत्मबल और स्वाभिमान की प्रतिमूर्ति है उसने ठान लिया है कि बेटी के साथ वह भी पढाई करेगी। वह अपनी बेटी को अच्छी से अच्छी शिक्षा देने में कोई कभी नहीं रखेगी। यही ताकत और जिद ही तो भारतीय नारी की असली पहचान है। यह भी सच है कि इस देश में बडी क्रूरता के साथ अंजाम दिये जाने वाले सभी बलात्कारों की रिपोर्ट पुलिस थानों में दर्ज नहीं हो पाती। कई बलात्कृत नारियां कानून का दरवाजा खटखटाने से कतराती हैं। पिछले दिनों हर तरफ सुर्खियां पाने वाली यह खबर इस कलमकार को बेहद निराश कर गयी कि कजलीगढ में गुंडे-बदमाशों के एक गिरोह ने दो वर्षों में ४५ लडकियों के साथ सामूहिक दुष्कर्म किया, लेकिन किसी भी लडकी ने थाने में रिपोर्ट दर्ज करवाने की हिम्मत नहीं दिखायी!!

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