Thursday, July 2, 2015

यह देश किस पर करे भरोसा?

औरतें ईमानदारी की पोषक होती हैं। उनमें भ्रष्टाचार करने की फितरत नहीं होती। हिन्दुस्तानी नारी तो सत्य और ईमानदारी की प्रतिमूर्ति होती है।' भूल जाइये इन सब कहावतों को। वो वक्त अब गुजर गया जब छाती तानकर ऐसे दावे किये जाते थे। आज की भारतीय स्त्री जब हर क्षेत्र में पुरुषों को पछाडने पर तुली है तो छल, कपट और झूठ के मामले में भी क्यों पीछे रह जाए। भगवान ने उसे भी दिमाग दिया है। उसे भी धन के महत्व की जानकारी है। वह भी रिश्ते निभाना जानती है। जिन्हें अभी भी कोई शक-शुबहा है, यकीनन वे अंधेरे में हैं। आज हर कहीं सुषमा, वसुंधरा, स्मृति, पंकजा और तीस्ता जैसे नामों के ढोल बज रहे हैं। ढोल कभी भी बेवजह नहीं बजा करते। हमेशा शोर-शराबा और धमाका करने वाली महिलाओं ने इन दिनों अपने मुंह सिल लिए हैं। उनसे कुछ बोलते ही नहीं बन पा रहा है। उनका मौन किसी को भी समझ में नहीं आ रहा है। हमेशा मुखर रहने वाली सुषमा स्वराज की खामोशी तो सबसे ज्यादा हैरान करने वाली है। उन पर सवाल दागे जा रहे हैं कि यह कौन-सी राजनीति की पोथी में लिखा है कि अपराधियों को बचाना, उनसे करीबी रिश्ते बनाना, छल, कपट और धोखाधडी करना न्याय संगत है?
ललित मोदी कानून की निगाह में जालसाज और भगोडा है। उसने हेराफेरी कर देश के अरबों रुपये विदेशों में पहुंचाए और पता नहीं कहां-कहां छिपा दिए। भद्रजनों के खेल क्रिकेट को सट्टे बाजों के हवाले कर कहीं का नहीं छोडा। इस शातिर को भारतवर्ष के कानून पर भरोसा नहीं। भागा-भागा फिर रहा है। जिन्हें उसको पकडवाने की पहल करनी चाहिए थी वही उसके करीबी बन गए। उसको बचाने के लिए दुनिया भर की जोड-तोड कर डाली। सुषमा स्वराज देश की विदेशमंत्री हैं। इसी विदेश मंत्री के पति और बेटी ने बखूबी फ्राड मोदी को बचाने की जिम्मेदारी निभायी। पिता-पुत्री, दोनों नामी वकील हैं। सुषमा का भी भगोडे ललित से सतत संपर्क बना रहा। भले ही देश का कानून उसकी तलाश में हांफता रहा। यानी रिश्ता करीबी भी था और गहरा भी। सत्ता ही अपराधी को किसी भी तरह से बचाने और छिपाने का खेल खेलती रही। यह भी कहा जा सकता है कि ललित मोदी अपने इन प्रभावशाली वकीलों को मोटी फीस चुका कर कहीं न कहीं विदेश मंत्री सुषमा स्वराज को भी साधता रहा है। तभी तो उन्होंने ललित मोदी का ऐसा साथ दिया जिसकी कभी कल्पना ही नहीं की गयी थी। चोरी पकडे जाने पर वे ऐसे चुप हैं जैसे सांप सूंघ गया हो।
राजस्थान की तेज-तर्रार मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने तो और भी हद कर दी। उन्होंने तो इस अपराधी के साथ कारोबारी और पारिवारिक रिश्ते ही बना लिए। उसके लिए कुछ भी कर गुजरीं। ललित मोदी ने वसुंधरा के बेटे दुष्यंत की कंपनी को करोडों रुपये की सौगात दी तो उसके बदले में ऐसे-ऐसे फायदे उठाये कि जिनका हकदार कोई भगोडा तो नहीं हो सकता। दरअसल सुषमा स्वराज और वसुंधरा राजे ने भाई-भतीजा वाद की उसी घातक परंपरा को ही आगे बढाया है, जिसके लिए पुरुष नेता बदनाम रहे हैं।
महाराष्ट्र सरकार की दमदार मंत्री पंकजा मुंडे स्वर्गीय गोपीनाथ मुंडे की सुपुत्री हैं। इन्होंने बिना निविदा आमंत्रित किये अपने खासमखासों को २०६ करोड का ठेका देकर मालामाल कर दिया। शातिर ठेकेदारों ने जो सामान सप्लाई किया वो हद दर्जे का घटिया और बाजार भाव से बहुत महंगा है। आदिवासी बच्चों को खिलाने के लिए जो चिक्की उपलब्ध करायी गयी उसमें भरपूर मिट्टी का समावेश है। पंकजा कहती हैं कि धन को खर्चना जरूरी था इसलिए बिना टेंडर के ही ठेके दे दिए गये। सवाल यह है कि उन्होंने संदिग्ध ठेकेदारों पर ही 'कृपा' क्यों की? इस सवाल का जवाब तो बडा सीधा-सादा है कि कहीं न कहीं कोई तो गडबड है ही। ऐसे में शंका के बादल न गरजें, भला ऐसा कैसे हो सकता है? यह मजबूरी भी हो सकती है। महाराष्ट्र के पूर्व उपमुख्यमंत्री और पंकजा के पिताश्री गोपीनाथ ने अपने जीवन काल में रहस्योद्घाटन किया था कि किसी जमाने में लोकसभा चुनाव लडने के लिए लाखों लगते थे, लेकिन अब करोडों खर्च हो जाते हैं। यह उनका खुद का अनुभव था, जो एक बयान की शक्ल में सामने आया था कि वे ८ करोड खर्च कर लोकसभा चुनाव जीते हैं। मीडिया ने काफी शोर मचाया था। बाद में वे पलटी खा गये थे। वैसे भी जो नेता चुनाव में करोडों फूंकते हैं उन्हें किसी न किसी तरह से वसूली भी तो करनी होती है। न करें तो कहां जाएं? पंकजा मुंडे बडे गर्व के साथ कहती हैं कि वे अपनी पिता की विरासत संभाल रही हैं!!
देश की मानव संसाधन विकास मंत्री (शिक्षा मंत्री) स्मृति ईरानी भी खूब हैं। जिन्होंने तीन चुनाव लडे और तीनों में दिए गये हलफनामे में अपनी शैक्षणिक योग्यता अलग-अलग बता दी! ऐसी चालाकियां जब तथाकथित आदर्शवादी राजनेता दिखाते हैं और रंगे हाथ पकडे जाते हैं तो तकलीफ तो होती ही है। यह सवाल भी खलबली मचाता है कि आखिर देश किन पर भरोसा करे? सामाजिक कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड। यह नाम भी काफी जाना-पहचाना है। यह वो महिला हैं जिन्होंने गुजरात के २००२ के दंगों के बाद नरेन्द्र मोदी के खिलाफ जबरदस्त अभियान चलाया था। उनके नाक में दम करके रख दिया था। यह परोपकारी महिला भी इन दिनों कई संगीन आरोपो के घेरे में हैं। दंगा पीडितों की सहायता के नाम पर बटोरे गये चंदे में ही हेराफेरी कर तीस्ता ने अपने ही मुंह पर ऐसी कालिख पोत डाली है कि जो शायद ही कभी मिट पाये। इस समाजसेविका ने विभिन्न एनजीओ और संस्थाएं बनाकर अमेरिका के फोर्ड फाउंडेशन से मोटा चंदा लेकर कानून तोडने का ऐसा अपराध किया है जिसके चलते जेल में जाने की नौबत आ गयी है। विदेशी धन के दम पर साम्प्रदायिक सौहार्द बिगाडने का षडयंत्र रचने वाली तीस्ता का धीरे-धीरे पर्दाफाश हो रहा है।
सच तो यह है कि अराजकता और भ्रष्टाचार का इतिहास रचने वाली महिलाओं की लिस्ट धीरे-धीरे और लम्बी होती चली जा रही है। क्या जयललिता और मायावती को देशवासी भूल सकते हैं जिनके भाई-भतीजावाद और अनंत भ्रष्टाचार के अंतहीन किस्से हैं...।

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