Wednesday, October 21, 2015

किसका खून खौलता है?

उसके लिए सब कुछ नया-नया था। उसकी उम्र ही क्या थी? मात्र ढाई साल! वह अपनी दादी के साथ रामलीला देखने आयी थी। दशहरा के अवसर पर दिल्ली में जगह-जगह रामलीलाएं होती रहती हैं। तब दिल्ली वाले काफी धार्मिक हो जाते हैं। वह बच्ची मंत्रमुग्ध होकर राम, सीता, लक्ष्मण और हनुमान के हाव-भाव और वेशभूषा को निहार रही थी कि अचानक लाइट चली गयी। रात के लगभग साढे ग्यारह बजे थे। आसपास अंधेरा छा गया। दादी और पोती ने घर की ओर रुख किया। सडक पर भी घुप्प अंधेरा था। घर पहुंचने को उतावली पोती दादी की उंगली छुडाकर आगे की ओर निकल गयी। उम्रदराज दादी बेफिक्र थी। घर एकदम पास था। अपना इलाका था। अपनी ही दिल्ली थी और थे अपने ही लोग। इसी दौरान दो बाइक सवार बच्ची के एकदम पास आकर रूके। उन्होंने भोली-भाली बच्ची को उठाया और सरपट ले भागे। कुछ मिनट बाद लाइट आ गयी। दादी इधर-उधर देख रही थी, लेकिन पोती तो गायब हो चुकी थी। दादी सन्न रह गयी। वह भागी-भागी घर पहुंची। परिवार वालों के पैरों तले की जमीन खिसक गयी। आसपास के लोग भी भौंचक्क रह गये। अपने ही मोहल्ले में यह कैसी अनहोनी हो गयी! सभी बच्ची को तलाशने में जुट गये। पुलिस को भी सूचना दे दी गयी। रामलीला स्थल के आसपास खोजबीन की गयी, लेकिन मासूम नहीं मिली। बच्ची को ढूंढने के लिए पुलिस ने चप्पे-चप्पे की छानबीन की। रात साढे ग्यारह बजे के आसपास गायब की गयी बच्ची आखिरकार २ बजे दूर एक पार्क में बेहोशी की हालत में खून से सनी मिली। फूल सी कोमल बच्ची के शरीर के गहरे जख्म उसके साथ हुई दरिंदगी को बयां कर रहे थे। जैसे ही इस खबर को पर लगे तो उसके बाद दिल्ली ही नहीं पूरे देश के शर्मसार होने का शोर मचा। न्यूज चैनल वालों के लिए यह जबरदस्त ब्रेकिंग न्यूज थी। तीन-चार दिन तक वैसे ही शोर-शराबा होता रहा जैसा कि हर शर्मनाक कुकर्म और जानलेवा बलात्कार के बाद होता है। लेखक के मन में कई सवालों ने खलबली मचायी। क्या वाकई देश शर्मसार है? क्या वाकई ऐसी दरिंदगी हर देशवासी के मस्तक को झुकाती है और उनके खून को खौलाती है? क्या कभी किसी के मन में यह विचार भी आता है कि अगर उनका बस चले तो वे बेटियों के साथ दुष्कर्म करने वाले हैवानों को भरे चौराहे पर गोली से उडा दें? कानून का तो व्याभिचारियों और वहशियों को कोई भय रहा ही नहीं। जैसे हाल मनमोहन सरकार के वक्त में थे वैसे ही नरेंद्र मोदी के शासन काल में हैं। नारियों के लिए वही शीला दीक्षित वाली दिल्ली है जहां रात को घर से बाहर निकलने पर सैकडों सवाल खडे किये जाते थे। उन्हें अंधेरा होते ही घर में दुबक जाने की सलाह दी जाती थी। जिस दिन ढाई साल की मासूम के साथ गैंगरेप किया गया, उसी दिन दिल्ली में ही एक और पांच साल की बच्ची तीन खूंखार शिकारियों के हत्थे चढ गयी। बच्ची के माता-पिता छह महीने पहले अपने दो बच्चों के साथ काम की तलाश में राजधानी में आये थे। पिता मजदूरी करते हैं और मां किसी रईस की कोठी में खटने जाती है। रोज सुबह काम पर निकल जाने वाली मां शाम को जब घर लौटी तो उसकी बेटी का रो-रोकर बुरा हाल था। उसके गुप्तांग से ब्लीडिंग हो रही थी और कपडे खून से सने थे। मां के लिए तो यह दिल को निचोड कर रख देने वाला दर्दनाक मंजर था। बेटी ने सिसकते हुए बताया कि मकान की ऊपरी मंजिल पर रहने वाले अंकल चाकलेट वगैरा देने के बहाने जबरदस्ती उसे गोद में उठाकर अपने कमरे में ले गए। कमरे में पहले से ही मकान मालिक और एक किरायेदार मौजूद थे। तीनों ने बारी-बारी से उस पर नारकीय जुल्म ढाया और किसी के सामने मुंह खोलने पर पूरे परिवार को जान से खत्म कर डालने की धमकी दी। ऐन दशहरे के मौके पर दिल्ली में एक-एक कर चार बच्चियां दुष्कर्मियों की घिनौनी वासना का शिकार हो गयीं। मनोवैज्ञानिक कहते हैं यह नादान और मासूम बेटियां ताउम्र एक कभी भी खत्म न होने वाले सदमे में जीने को विवश रहेंगी। चाहे कितनी भी काउंसलिंग की जाए, उनका दर्द जिंदगी भर उन्हें एक डर और सदमे के साये की कैद से बाहर नहीं निकलने देगा। इस दर्द की भरपाई कोई भी नहीं कर सकता। इस घटना का असर जीवनभर देखने को मिलता है। ऐसी बच्चियां किसी पुरुष पर भरोसा नहीं कर पातीं। वे अपनी ही नजरों से गिर जाती हैं। कोई भी उत्सव इनमें खुशी की लहर नहीं ला सकता। कहते हैं कि दशहरे के दिन श्रीराम ने पथभ्रष्ट रावण का वध किया था। रावण के दस सर दस दुगुर्णों के प्रतीक हैं। काम, क्रोध, मद, लोभ, गर्व, हिंसा, पाखंड, आलस्य, व्याभिचार, द्युत। स्वयं में व्याप्त इन दुर्गुणों का नाश करने का नाम ही दशहरा है। हजारों साल से दुर्गुणों का नाश करने के नाम पर रावण के पुतले देशभर में जलाये जाते हैं। पहले पुतले छोटे होते थे। अब उनकी ऊंचाई आकाश को छूने को तत्पर नजर आती है। पुतलों के कद के साथ-साथ बुरे लोगों का कद भी बढता चला जा रहा है। कानून भी उनके समक्ष बौना नजर आता है या फिर कर दिया जाता है।
कर्नाटक के पूर्व उपमुख्यमंत्री केएस ईश्वरप्पा पर एक महिला पत्रकार ने देश में बढते बलात्कारों पर यह सवाल दागा कि... क्या ऐसे संगीन अपराधों के खिलाफ सरकार को जवाबदेह बनाने में विपक्ष विफल रहा है तो इस भाजपायी नेता ने अभद्रता की तमाम सीमाएं पार कर मुंह खोला कि -'आप एक महिला हैं। आपको यहां से अगर कोई खींचकर ले जाए और आपका रेप कर दे तो हम क्या कर सकते हैं?' सत्ताधीशों का जवाब भी ऐसा ही कुछ होता है। तभी तो व्याभिचारियों के हौसले बढते चले आ रहे हैं। उनके लिए बच्चियां सबसे आसान शिकार होती हैं। बच्चियों के साथ हो रही हैवानियत पर क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट रिपन सिप्पी का मत है कि कई बार ये लोग सेक्सुअल संतुष्टि के लिए सामने वाले पर पूरा नियंत्रण चाहते हैं। इसके लिए बच्चे इन्हें सॉफ्ट टार्गेट नजर आते हैं। छोटी बच्चियां मासूम होती हैं और विरोध भी नहीं कर पाती हैं। घरेलू झगडों, गरीबी, गंदगी में रहने के कारण ये फ्रस्ट्रेट होते हैं। अपनी फ्रस्ट्रेशन को निकालने के लिए पूरी तरह अत्याचारी हो जाते हैं और असहाय बच्चों पर आक्रोश निकालते हैं। नशे की आदत, ड्रग्स आदि लेने के कारण ये अपने आप पर नियंत्रण खो देते हैं और इस दौरान इन घटनाओं को अंजाम देते हैं। देश और प्रदेश की सरकारों की नीतियां ही कुछ ऐसी हैं कि नशाखोरों की तादाद बढती चली जा रही है। जगह-जगह देशी और विदेशी शराब की दुकानें और शराबखाने ऐसे खुल चुके हैं जैसे यह जिन्दगी की बहुत बडी जरूरत हों। गांजा, अफीम, चरस, हेरोइन और तमाम ड्रग्स भी आसानी से उपलब्ध हो जाते हैं। अपने देश में अस्सी प्रतिशत दुष्कर्म की घटनाएं नशाखोरी की देन हैं। शासन और प्रशासन का अंधापन भी इस भयावह अपराध का सहभागी है।

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