Thursday, December 17, 2015

कहां हैं चम्बल के डाकू?

जहां देखो वहां तनातनी। अहंकार, गुस्सा, बदजुबानी और भी बहुत कुछ। कल तक जो शालीनता का आवारण ओढे थे, वे भी नंग-धडंग होने लगे हैं। सत्ता और राजनीति जंग का अखाडा बन गयी है। मर्यादा की धज्जियां उडायी जा रही हैं। समाजसेवी अन्ना हजारे के चेले अरविंद केजरीवाल राजनीति में पदार्पण करने से पूर्व शासकीय अधिकारी थे। उनकी ईमानदारी और स्वच्छ छवि दिल्ली वासियों को भायी और वे बडे-बडे-सूरमाओं को धूल चटाकर दिल्ली की सत्ता पाने में सफल हो गये। पहले जब वे भ्रष्टाचार, अनाचार के खिलाफ ताल ठोकते थे तो उनका एक-एक शब्द लोगों के दिलों में उतर जाता था। इसी कमाल ने उन्हें देश का लोकप्रिय नेता बनाया। दिल्ली के मुख्यमंत्री बनने के बाद केजरीवाल में जो बदलाव आये हैं, वे उन्हें उन पेशेवर मतलबपरस्त नेताओं की भीड में शामिल कर रहे हैं, जिन्हें आम जन तरह-तरह की गालियों से नवाजते हैं। मुख्यमंत्री केजरीवाल के प्रधान सचिव के यहां केंद्रीय जांच ब्यूरो के द्वारा छापा मारे जाने के बाद उन्होंने जिस तरह से हो-हल्ला मचाया वह बहुतेरे देशवासियों को रास नहीं आया। उन्हीं का प्रधान सचिव रिश्वतबाजी के खेल खेल रहा था और वे अनभिज्ञ रहे? एक चरित्रवान मुख्यमंत्री ने संदिग्ध अधिकारी को अपने निकट ही क्यों आने दिया? अरविंद ने जिस अंदाज में नरेंद्र मोदी पर निशाना साधा और उन्हें कायर और मानसिक रोगी कह कर अपना गुस्सा उतारा इससे यकीनन उन्होंने अपने कद को छोटा करने की भूल की। देश की आम जनता अपने प्रधानमंत्री के खिलाफ ऐसे अपमानजनक शब्दों को बर्दाश्त नहीं कर सकती। भ्रष्टाचार मुक्त शासन और प्रशासन की पैरवी करने वाले केजरीवाल के द्वारा दागी आईएएस अधिकारी राजेंद्र कुमार के खिलाफ आवाज बुलंद करने की बजाय सीबीआई को कोसना उनके शुभचिंतकों को भी अंदर तक हिला गया।
अदालत ने जैसे ही कांग्रेस सुप्रीमो सोनिया गांधी और उनके लाडले राहुल गांधी को कोर्ट में पेश होने के निर्देश दिए तो मां-बेटे गुस्से से लाल-पीले हो गये। यहां तक कि संसद की कार्यवाही को भी बाधित कर दिया गया। सोनिया गांधी और उनकी मंडली खुद को कानून से ऊपर मानती है। उन पर नेशनल हेराल्ड की सम्पत्ति में लगभग पांच हजार करोड रुपये के घोटाले का संगीन आरोप है। न्यायालय ने सोनिया-राहुल को १९ दिसंबर को न्यायालय में हाजिर होने का आदेश क्या दिया कि उन्हें इसमें भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की साजिश नजर आयी! सोनिया बहुत शालीन महिला मानी जाती हैं। उनके आसपास २४ घण्टे जाने-माने वकीलों की फौज रहती है। कानून तो अपना काम करता है। उसका राजनीति से क्या लेना-देना। किसी जमाने की अनाडी सोनिया अब राजनीति के सभी दांवपेंच सीख चुकी हैं। तभी तो उन्होंने अकड और अहंकार से ओतप्रोत यह बयान उछालने में देरी नहीं लगायी कि 'मैं किसी से डरती नहीं हूं, मैं इंदिरा गांधी की बहू हूं।' आखिर भारत की पूर्व प्रधानमंत्री का नाम लेकर वे किसे डराना चाहती हैं? इतिहास गवाह है कि जब इंदिरा गांधी के खिलाफ इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने निर्णय दिया था तो वे भी इसी तरह से बौखला उठी थीं। इसी बौखलाहट के परिणाम स्वरूप ही उन्होंने देश में आपातकाल लागू कर अपने विरोधियों को जेल में ठूंस दिया था। आपातकाल के काले दिनों का खौफ आज भी देशवासियों के दिलों में ताजा है। २५ जून १९७५ से लगा आपातकाल १९७७ में खत्म हुआ था। आम चुनावों में कांग्रेस की तो दुर्गति हुई ही थी, इंदिरा गांधी को भी कम बदनामी नहीं झेलनी पडी थी। जब बात निकलती है तो दूर तक जाती ही है। उसका असर भी होता है। कहीं थोडा, कहीं ज्यादा। इसलिए तो बडे-बुजुर्ग कहते हैं कि जो भी बोलो, सोच समझ कर बोलो। कहीं ऐसा न हो कि लेने के देने पड जाएं, लेकिन कई पहुंचे हुए चेहरे बोलते ज्यादा हैं, सोचते कम हैं। बस उनका मुंह खुलता है और तीर चल जाता है। तीर की फितरत ही है घायल करना।
नितिन गडकरी देश के केंद्रीय मंत्री हैं। विवादास्पद, चुभनेवाली बयानबाजी करना उनकी पुरानी आदत है। अपने विरोधियों को तेजाबी शब्दों और मुहावरों से घायल करने में उन्हें बडा मज़ा आता है। जब उनकी 'पूर्ति' पर गाज गिरी थी तब उन्होंने आयकर अधिकारियों को अपने अंदाज में धमकाया था कि देश और प्रदेश में हमारी पार्टी की सरकार काबिज होते ही सभी अधिकारियों के दिमाग ठिकाने लगा दिये जाएंगे। संयोग से वर्तमान में केंद्र और महाराष्ट्र में भारतीय जनता पार्टी एंड कंपनी की सरकार है। नितिन गडकरी... केंद्रीय सडक परिवहन, राजमार्ग एवं जहाजरानी मंत्री हैं। इस देश में जहां-तहां भ्रष्टाचारी भरे पडे हैं। कोई भी ऐसा सरकारी दफ्तर और विभाग नहीं जहां बिना लेनदेन के फाइल सरकती हो। भ्रष्टों और भ्रष्टाचार से हर कोई त्रस्त है, लेकिन यह मान लेना भी सही नहीं कि हर सरकारी कर्मचारी और अधिकारी का चेहरा भ्रष्टाचार की कालिख से पुता हुआ है। हाल ही में नितिन गडकरी ने अपने ज्ञान का प्रकाश फैलाया कि क्षेत्रिय परिवहन कार्यालयों में भ्रष्टाचारी ही भरे पडे हैं। यहां डेरा जमाये भ्रष्टों ने चंबल के बीहडों में लूटपाट और डकैती करने वाले डकैतों को भी पीछे छोड दिया है। जो वाकई भ्रष्ट और बेईमान हैं उन्हें तो मंत्री महोदय के इस 'रहस्योद्घाटन' से कोई फर्क नहीं पडा। जान तो उनकी जली जो पूरी तत्परता और ईमानदारी के साथ काम करते हैं। इंदौर के आरटीओ एस.पी. सिंह मंत्री जी की अपमानजनक शब्दावली को बर्दाश्त नहीं कर पाये। उन्होंने बडे सधे हुए शब्दों में व्यंग्यबाण चलाया- 'अभी गडकरी ने चंबल के डाकू देखे कहां हैं...।' इसी तरह देश के विभिन्न सरकारी अधिकारियों, निष्पक्ष और निर्भीक पत्रकारों, संपादकों की आवाज गूंजी- 'सर्वज्ञानी मंत्री महोदय ने उन भ्रष्ट नेताओं को क्यों नजरअंदाज कर दिया, जिनकी वजह से देश की अस्सी प्रतिशत आबादी बदहाली का शिकार है। क्या उन्हें पता नहीं है कि नेताओं की बिरादरी किस तरह से 'तरक्की' करती है? चुनाव जीतने के लिए पानी की तरह जो काला धन बहाया जाता है वह कहां से आता है। एक नेता जब विधायक, मंत्री बनता है तो पांच-दस साल में उसके पास अरबो-खरबों कहां से आ जाते हैं। मंत्री जी की बिरादरी के लोग किस तरह से हजारों करोड की कोयला खदानों, जमीनों, स्कूल, कॉलेजों, दारू की फैक्ट्रियों आदि के मालिक बन जाते हैं? उनके इर्द-गिर्द भूमाफियाओं, सरकारी ठेकेदारों, स्मगलरों और सफेदपोश लुटेरों का सतत घेरा क्यों बना रहता है?' मंत्री जी, चंबल के डाकू तो बेवजह बदनाम हैं। असली डाकू तो वो हैं जिनकी इस लोकतंत्र में चर्चा तक नहीं होती।

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