Thursday, December 31, 2015

आम आदमी के मन की डायरी का पन्ना

२०१६ को सलाम। आखिर गुजर ही गया २०१५ । हर साल ऐसे ही गुजर जाता है। अधिकांश उम्मीदें और सपने धरे के धरे रह जाते हैं। वैसे २०१५ ने कुछ ज्यादा ही सपने दिखाये थे। देश के हर आम आदमी को बहुत बडे बदलाव की आशा थी। नरेंद्र मोदी जी ने केंद्र की सत्ता पाने से पूर्व वादा किया था कि जो काम कांग्रेस वर्षों तक नहीं कर पायी उसे वे चंद महीनों में करके दिखा देंगे। जनता कांग्रेस के निठल्लेपन से परेशान थी इसलिए उसने भाजपा के सर्वेसर्वा मोदी पर आंख मूंदकर भरोसा कर लिया। सभी को यही लग रहा था कि यह बंदा कुछ खास है। इसकी सोच और बातों में दम है। यह दूसरे पेशेवर नेताओं जैसा नहीं दिखता। देखते ही देखते... १८ माह से ज्यादा का वक्त गुजर गया, लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ, जो इस देश के दबे-कुचले आम आदमी के चेहरे पर मुस्कराहट और महान मोदी के सत्तासीन होने का खुशनुमा अहसास दिला पाता। निरंतर बढती महंगाई और लडखडाती कानून व्यवस्था ने लोगों का मोहभंग कर दिया है। सत्ताधीशों के चेहरे बदल गये हैं, देश के हालात नहीं बदले। गरीब वहीं के वहीं हैं। अमीर छलांगें मारते हुए आर्थिक बुलंदियों के शिखर को छूते चले जा रहे हैं। मन-मस्तिष्क में बार-बार यह सवाल खलबली मचाता है कि इस देश के आम आदमी को कब तक छला जाता रहेगा? राजनेताओं की ऐसी कौनसी विवशता है कि सत्ता तो वे गरीबों की भलाई के वायदे के दम पर पाते हैं, लेकिन आखिरकार धनपतियों के ही होकर रह जाते हैं। आम आदमी की इच्छाएं और जरूरतें ऐसी भी नहीं कि शासक उन्हें पूरा न कर पाएं। पता नहीं ईमान की नैया कहां, क्यों और कैसे डोल जाती है? सत्ता के दलालों, धन्नासेठों, नेताओं और उद्योगपतियों की ही हर बार किस्मत चमक जाती है। गरीब खोटे सिक्के बनकर रह जाते हैं। यह कैसी विडंबना है कि आजादी के ६७ साल बाद भी देश की आधी से ज्यादा आबादी चिंताजनक बदहाली का शिकार है। इस देश का आम आदमी, गरीब आदमी मेहनत, मजदूरी करने में कोई संकोच नहीं करता, लेकिन उसके पास रोजगार का अभाव है। अशिक्षा ने उसके पैरों में बेडियां बांध रखी हैं। वह स्वास्थ्य सुविधाओं से वंचित है। उसके पास रहने को घर नहीं है। जितना कमाता है उतने में दो वक्त की रोटी नहीं जुटा पाता। न जाने कितने बच्चे शिक्षा के अभाव में अपराधी बन जाते हैं। स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी बीमार बनाये रखती है। महंगाई की मार जीते जी मार देती है। मोदी जी ने अच्छे दिन लाने का वादा किया था। कहां हैं वो अच्छे दिन? चंद लोगों की खुशहाली अच्छे दिन आने की निशानी नहीं हो सकती। नगरों-महानगरों का कायाकल्प, स्मार्ट सिटी, मेट्रो ट्रेन, बुलेट ट्रेन आदि पर अरबों-खरबों फूंकने से पहले उन भारतीयों की झुग्गी-झोपडियों में भी ताक लें जहां न पानी है और न ही बिजली। इक्कीसवीं सदी में भी उन्हें सोलहवीं सदी के आदिम युग में घुट-घुट कर जीना पड रहा है। अच्छे दिन तो वाकई तब आयेंगे जब देश के करोडों-करोडों बदनसीबों को खुले आसमान के नीचे भूखे पेट नहीं सोना पडेगा। बहन, बेटियां और माताएं खुद को सुरक्षित महसूस करती हुर्इं किसी भी समय कहीं भी आ-जा सकेंगी। अभी तो हालात यह हैं कि कानून के रक्षक कमजोर और कानून के साथ खिलवाड करने वाले अपार बलशाली बने फिरते हैं। सफेदपोश रसूखदार अपराधी किसी से नहीं डरते। शासन और प्रशासन को अपने इशारों पर नचाते हैं। जिनकी पहुंच नहीं उन्हें कोई नहीं पूछता। प्रधानमंत्री जी ने यह ऐलान भी किया था कि 'न खाऊंगा, न खाने दूंगा।' पीएम साहेब हमें आपके ईमानदार होने पर कोई संदेह नहीं है, लेकिन आपके राज में भी खाने-खिलाने का चलन बदस्तूर जारी है। आपके सत्तासीन होने के पश्चात भी जन्मजात भ्रष्टाचारियों और रिश्वतखोरों में कोई बदलाव नहीं आया है। पहले वे पूरी तरह से निश्चिंत थे, लेकिन अब वे अपना काम काफी सतर्कता के साथ करते हैं। देश का अन्नदाता अभी भी निराशा के चंगुल में फंसा छटपटा रहा है। कोई भी दिन ऐसा नहीं गुजरता जब किसी-न-किसी प्रदेश से किसानों की आत्महत्या की खबर न आती हो। नक्सलियों के खूनी तेवरों में भी कोई बदलाव नहीं आया है। यह तस्वीर भी कम नहीं चौंकाती की आजाद भारत में भिखारियों की संख्या में इजाफा होता चला जा रहा है। ताजा सर्वेक्षण बताता है कि अपने देश में लगभग चार लाख लोग भीख मांग कर जीवन की गाडी खींच रहे हैं। ८० हजार भिखारी तो ऐसे हैं, जो १२वीं पास से लेकर बी.ए., बी.काम और एम.काम हैं। यह लोग अपनी पसंद से भिखारी नहीं बने हैं। अनेक युवा भी नक्सली बनकर खुश नहीं हैं। जिस देश में करोडों लोग नाउम्मीद और नाखुश हों, वहां तथाकथित बदलाव और तरक्की के कोई मायने नहीं हैं। जहां बचपन ही बीमार, सुविधाहीन और दिशाहीन हो वहां की जवानी कैसी होगी? देश का भविष्य कैसा होगा? हिन्दुस्तान की राजधानी से लेकर लगभग हर प्रदेश में अपराधों के आंकडों में आता भयावह उछाल यही बताता है कि जो कमी और गडबडी कल थी, आज भी बरकरार है। भारत का हर आमजन सर्वप्रथम मूलभूत सुविधाओं का अभिलाषी है। हर किसी को रोटी, कपडा और मकान मुहैया कराये जाने के आश्वासन सुनते-सुनते लोगों के कान पक गये हैं। आमजन को उसके हक से कब तक वंचित रखा जायेगा? बाल मजदूरी, बच्चियों और महिलाओं के साथ दुराचार और लगातार बढते अपराध भारत की पहचान बन गये हैं। अल्पसंख्यकों, दलितों और शोषितों पर जुल्म ढाने वालों के हौसलों में कोई कमी न आना भी यह दर्शाता है कि उन्हें कहीं न कहीं सत्ताधीशों की शह मिली हुई है। फिर भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रति अभी भी अधिकांश लोग आशावान हैं। वक्त गुजरता चला जा रहा है। यदि समय रहते उन्होंने खास लोगों के साथ-साथ आम लोगों के हित में बहुत कुछ कर दिखाने की राह पर कदम नहीं बढाया तो इतिहास उन्हें भी कभी माफ नहीं करेगा।

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