Thursday, March 17, 2016

तेल देखो...तेल की धार देखो

लिखने के लिए मोर्चा संभालते-संभालते एकाएक फेसबुक पर झांकने की चाहत जाग उठी। कोरबा निवासी पत्रकार मित्र वेद प्रकाश मित्तल के द्वारा शेयर की गयी आर्थिक अपराधी, राज्यसभा सांसद विजय माल्या और जी न्यूज के जुगाडू कर्ताधर्ता सुभाष चंद्रा की आपस में गले मिलती तस्वीर पर नजरें अटक गयीं। तस्वीर ही बता रही थी दोनों में गजब का याराना है। एक डिफाल्टर उद्योगपति, दूसरा ऐसा मीडिया मालिक जिसने सत्ता की चाकरी कर अपार दौलत बनायी और आजकल उपदेशक बना फिरता है। इन शातिर पूंजीपतियों की आलिंगनबद्ध मुस्कराती तस्वीर के ऊपर लिखा पाया:
"कुम्भ में मिले दो भाई,
एक कसाई दूसरा हरजाई!"
उपरोक्त पंक्तियां बताती हैं कि लोगों में सत्ता के दलालों और आर्थिक दानवों के प्रति कितना गुस्सा है। वे खुलकर गाली नहीं दे सकते, लेकिन क्या यह शब्द किसी गाली और तमाचे से कम हैं? तय है कि अंदर ही अंदर आग जल रही है। अभी भी सब्र के पैमाने पूरी तरह से नहीं छलकें हैं, लेकिन विरोध के जो स्वर गूंज रहे हैं वे आने वाले भयंकर तूफान के संकेत तो दे ही रहे हैं।
इस तस्वीर ने यह भी बता दिया कि माल्या की मीडिया के धुरंधरों से कैसी नजदिकियां रही हैं। देश के अधिकांश नामी-गिरामी पत्रकार और संपादक उसकी महफिलों में जाम छलकाते हुए कमसिन बालाओं के साथ गुल्छर्रे उडाते हुए महंगे उपहार पाते रहे हैं। ऐसे में जब  अहसानफरामोश न्यूज चैनल वालों ने 'दोस्ती' का लिहाज नहीं किया तो माल्या को गुस्सा आ गया। उसने धमकाने के अंदाज में मीडिया को चेताया कि मैंने तुम लोगों पर इतने उपकार किये हैं जिनका कर्जा तुम कभी नहीं उतार सकते। मैंने तुम्हें सुख-सुविधाओं के समंदर में गोते लगवाये, विदेशों की सैर करवायी, सुरा और सुंदरी से लेकर हर वो अय्याशी का सामान उपलब्ध करवाया जिसकी तुमने मांग की। आज जब मेरा बुरा वक्त आया तो तुम लोग गिरगिट की तरह रंग बदलने पर उतर आये। मुझे ठग और लुटेरा कहने लगे। मैं अगर तुम लोगों की पोल खोलूंगा तो पता नहीं कहां-कहां मुंह छिपाते फिरोगे। मैंने तुम मतलबपरस्तों को जो खैरातें दी हैं उनके सभी सबूत मेरे पास हैं।
सरकारी बैकों का हजारों करोड रुपये कर्ज लेकर नहीं चुकाने और फिर रातों-रात देश छोडकर भाग जाने वाले माल्या के बचाव में भी कुछ राजनीतिक दिग्गज उतर आये। जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारुख अब्दुला ने कहा कि वे भगौडे नहीं हैं, बल्कि सम्मानित कारोबारी हैं। देश के पूर्व प्रधानमंत्री एच.डी. देवगौडा ने फरमाया कि माल्या देश के सपूत हैं, वह देश छोडकर नहीं भागे हैं। उन्होंने यह सवाल भी दागा कि ६० अन्य प्रमुख कर्जदार हैं जो कर्ज अदायगी में आनाकानी करते चले आ रहे हैं। ऐसे में अकेले माल्या पर ही क्यों निशाना दागा जा रहा है। विपक्ष और मीडिया तो हाथ धोकर उनके पीछे पड गया है? दरअसल ऐसे भाई-भतीजावाद के हिमायती नेताओं के कारण ही आजादी के इतने वर्षों बाद देश में असमंजस की स्थिति है। बैंकों से मोटे कर्ज लेकर उन्हें शराब-कबाब की भेंट चढा देने वाला शख्स सम्मानित कारोबारी कैसे हो सकता है? जब सरकारी बैंके छोटे-मोटे कर्जदाताओं को सूली पर लटकाने को उतर आती हैं तो माल्या जैसों के साथ ढिलायी और हमदर्दी गुस्सा तो दिलाती ही है। सात समंदर पार निकल जाने वाले विजय माल्या ने भी चोरी उस पर सीना जोरी के अंदाज में ट्वीट किया कि मैं भगौडा नहीं हूं। मैं भारतवर्ष का सम्मानित राज्यसभा सदस्य और उद्योगपति हूँ।
देशवासियों के खून-पसीने के ९ हजार करोड से ऊपर के धन का गबन करने वाला यह अय्याश आखिर सांसद बनने में कैसे सफल हो गया? माल्या को देवगौडा की पार्टी जेडीएस के समर्थन के चलते वर्ष २००२ और २०१० में कर्नाटक में दो कार्यकाल के लिए राज्यसभा की सदस्यता की सौगात हासिल हुई। कांग्रेस और भाजपा ने भी उसे साथ देने में कोई कोर-कसर बाकी नहीं रखी। तय है कि यह उपकार मुफ्त में तो नहीं किया गया होगा। इसकी पूरी फीस वसूली ही गयी होगी। राज्यसभा सांसद बनने के बाद माल्या का रूतबा बढता चला गया। बैंको के खजाने की मोटी रकमें कर्ज के रूप में उसकी तिजोरियों में समाती चली गयीं। अब यह बताने की जरूरत तो नहीं है कि अपने देश में विधायकों और सांसदों का कैसा-कैसा जलवा रहता है। अदना-सा विधायक भी पांच साल में करोडपति तो बन ही जाता है। भ्रष्ट सांसदों को अरबपति बनने में देरी नहीं लगती। सांसदों को अपने व्यक्तिगत काम निकालने के लिए सिर्फ इशारे की जरूरत होती है। विजय माल्या ने अपने नाम के आगे सांसद लगवाने के लिए हजारों करोड यूं ही नहीं फूंके। इस पदवी का उसे भरपूर लाभ मिला। जो बैंक अधिकारी व्यापारी माल्या को लोन देने से कतराते थे, वही अधिकारी उसके सांसद बनते ही दण्डवत होने लगे और फिर कर्ज की बौछार शुरु कर दी। अंधा मांगे दो आंखें की तर्ज पर माल्या ने जी भरकर लोन हथियाये और रकम को अंदर करने के साथ-साथ दोनों हाथों से लुटाता चला गया।
अभी तक हम यही देखते और सुनते आये हैं कि व्यापारी, उद्योगपति कर्ज लेकर इतनी मेहनत करते हैं कि अपने विकास के साथ-साथ कर्ज को नियमित पटा कर साख में बढोत्तरी करना अपना दायित्व मानते हैं, लेकिन माल्या ने कर्जें लिए ही डुबाने के लिए। माल्या आश्वस्त था कि वह इस देश का सांसद है और उसकी तूती हमेशा बोलती रहेगी। नौ हजार करोड तो क्या ९० हजार करोड का कर्ज लेने के बाद भी उस पर कोई आंच नहीं आयेगी। जब सत्ताधीश, नौकरशाह और अधिकांश मीडिया वाले उसके साथी हैं, खैरख्वाह हैं तो उसके बुरे दिन आने का तो सवाल ही नहीं उठता। वह देश और दुनिया की सुंदरियों को अपनी बाहों में समेटे कैलेंडर पर कैलेंडर निकालने में मगन रहा। अभिनेताओं, अभिनेत्रियों, नेताओं, सांसदों, मंत्रियों-संत्रियों को अपने निजी हवाई जहाजों से देश और दुनिया की सैर करवाता रहा। शबाब और शराब की बरसातें कर सभी को मदमस्त करता रहा। उसके सभी 'कृपापात्र' मुंह और आंखें बंद किये रहे। उसके यहां काम करने वाले लाखों कर्मचारी तनख्वाह के लिए भी तरसते रहे, लेकिन माल्या को इससे कोई फर्क नहीं पडा। उसे तो देश और विदेशों में आलीशान फार्म हाऊस, बंगले और महंगी से महंगी कारों को खरीदने और अय्याशी में डूबने से फुर्सत ही नहीं मिली। कल तक जिनकी जुबान पर ताले जडे थे आज वे चीख रहे हैं, चिल्ला रहे हैं कि विजय माल्या सरकार की आंखों में धूल झोंककर भाग गया! उसे पकडा क्यों नहीं गया? यह तमाशेबाजी नयी नहीं है। ढोल पीटने वाले भी बडे पुराने खिलाडी हैं...।

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